18-Dec-2013 10:58 AM
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मध्यप्रदेश में डिब्बा कारोबार के मार्फत फर्जी स्टॉक एक्सचेंज खोलकर करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने वाले अमित सोनी और उसके साथियों को कोई कड़ी सजा मिल सकती है, इसमें संदेह है। इस पूरे फर्जीवाड़े के सबूत अभी तक अप्राप्त हैं और जो परिस्थितियां हैं उनके चलते शायद पुलिस को ये सबूत एकत्र करने में पसीना भी छूट सकता है। खासबात यह है कि थोड़ी सी मिलीभगत से चंद सेकंड के अंदर यह सबूत नष्ट हो सकते हैं।
इस मामले में थोड़ी बहुत बरामदगी तो की गई है और जिस दुकान में 30 किलो सोना पकड़ाया था उसे सील भी किया गया है, लेकिन इतने बड़े रैकेट का पर्दाफाश करने के बावजूद अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि अमित सोनी और उसके सहयोगियों ने फर्जी स्टॉक एक्सचेंज खोलकर निवेशकों को कुल कितने का चूना लगाया। इस मामले की एक-एक कड़ी जोडऩा तभी संभव है जब कम्प्यूटरों से वह जानकारी उगलवाई जाए जो आरोपियों के खिलाफ पुख्ता प्रमाण प्रस्तुत करती हो। कम्प्यूटर में फीड यह सबूत नष्ट हो चुके हैं या यथावत हैं इस विषय में भी कुछ पक्का नहीं कहा जा सकता। पहले यह कहा गया कि घोटाला 15 सौ करोड़ रुपए का हो सकता है, लेकिन बाद में यह बात सामने आई कि फिलहाल राशि बताना संभव नहीं है। घोटालेबाजों को गिरफ्तार किया जा चुका है उनकी अदालतों में पेशी दर पेशी हो रही है। फरियादियों का कहना है कि पुलिस ठोस नतीजे तक नहीं पहुंच पाई है, और यदि ऐसा ही रहा तो अपराधियों को जमानत मिल जाएगी। शायद यह सत्य भी हो, क्योंकि सूत्र बताते हैं कि सीआईडी वालों का कहना है कि इस मामले के सबूत साइबर क्राइम के दो अफसरों की आपसी टसल के कारण नष्ट हो चुके हैं या करवाये जा सकते हैं।
खास बात यह है कि रजिस्टर्ड संस्था के नाम पर यह अवैध व्यापार लंबे समय से चल रहा था लेकिन इसकी भनक किसी को नहीं थी। आयकर विभाग और अन्य विभाग भी इस धोखाधड़ी को पकडऩे में नाकामयाब रहे। मामले के दो मुख्य आरोपी माधवी खंडेलवाल और विनय महाजन अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। यदि ये दोनों पकड़ में आते हैं तो शायद कुछ और महत्वपूर्ण सबूत मिलें। खासकर माधवी खंडेलवाल की गिरफ्तारी बहुत जरूरी है क्योंकि कहा यह जाता है कि माधवी खंडेलवाल के कुछ प्रभावशाली लोगों से अच्छे संबंध थे उसके पास कई लोगों के टेलीफोन नंबर भी हैं जिनमें कुछ अफसर भी शामिल हैं। कथित रूप से इन अफसरों को फर्जीवाड़े की जानकारी थी, लेकिन माधवी और अमित सोनी की पूरी गैंग द्वारा पैसा मिलने के कारण इन अफसरों ने इस फर्जीवाड़े को बदस्तूर चलने दिया पर अब इसका भंडाफोड़ होने के बाद यह भी संभव है कि माधवी और महाजन को बचाने या सुरक्षित जगह छिपाने की कोशिश की जा रही है। जो डिजीटल सबूत खतरे में हैं उन्हें सीबीआई ही रिकवर कर सकती है, लेकिन सीबीआई के लिए भी उन हार्डिक्स को खंगालना उतना आसान नहीं होगा। शायद इसीलिए राज्य सरकार ने इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने का निर्णय लिया है। कथित रूप से कहा जा रह है कि सीबीआई की जांच में एमपी साइबर सेल के कुछ आईपीएस व अन्य अधिकारियों तक भी बात आ सकती है।
इस प्रकरण का एक पहलू यह भी है कि भारत में अभी भी कम्प्यूटर संबंधी कानून उतने मजबूत नहीं बन पाए हैं। बहुत से साफ्टवेयर ऐसे हैं जिन पर देश में प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। डब्बा कारोबार करने वाले कारोबारियों ने 70 हजार डॉलर का भुगतान हवाला के द्वारा किया और मेटा नामक साफ्टवेयर दुबई से खरीदा गया। दुबई में हवाला करने के लिए विजय सेमरे और राकेश बत्रा ने रामा मोहन के मार्फत इंदौर से हवाला करवाया ऐसा कहा जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि इस मामले से जुड़े कई गोपनीय और गैर कानूनी दस्तावेज इंदौर स्थित अलग-अलग बैंकों के लॉकर में रखे हैं। यह लॉकर मुख्यत: दुकानों के नौकरों के नाम से हैं। इस रैकेट का संचालन सुनियोजित तरीके से किया जा रहा था। सीए सत्यनारायण अग्रवाल द्वारा इनकम टैक्स और सेल्स टैक्स की विभागीय कार्रवाई की पूर्व जानकारी इन लोगों तक कैसे पहुंच जाती थी यह भी जानने का विषय है। शशांक जैन (टिंकू), लोकेश चौधरी, तूफान सिंह, विजय सेमरे, कुणाल, अमजद बेलिम, अनुराग सोनी, धीरज सोलंकी, आशीष सोलंकी, बबलू खान, असलम उर्फ टाटा, अनवर खान, राज मराठा, बाबू सहित कई अन्य नाम जो इस कारोबार से जुड़े हुए हैं। कहीं न कहीं बड़े घोटाले की तरफ इशारा कर रहे हैं। यह घोटाला जिस तकनीक से किया गया है वह भारत के सायबर जगत के लिए भी एक चेतावनी है।