बेशर्मी की हद
15-Feb-2014 10:21 AM 1234910

भारत की संसद में रिवाल्वर ले जा सकते हैं, चाकू ले जा सकते हैं, मिर्च पाउडर ले जा सकते हैं और कुछ भी न मिले तो किसी का गला घोटने के लिए माइक के वायर और टाई, बेल्ट से लेकर पजामे का नाड़ा तो हैं ही। लुब्बे लुआब यह है कि हमारी संसद में जघन्य हत्यारे, लुटेरे और अपराधी बैठे हुए हैं जो मौका पडऩे पर किसी की भी जान ले सकते हैं। संसद में बहस के लिए आंकड़ों और तथ्यों से सुसज्जित होकर जाने वाले सांसद अब गिने-चुने ही बचे हैं जो सांसद हैं उनमें से ज्यादातर बहस करना नहीं बल्कि हंगामा पसंद करते हैं। संसद की कार्रवाई का हंगामे की भेंट चढ़ता बेशुमार समय इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। जहां पर बोलने के लिए कुछ न हो, तर्क और शब्द कम पड़ जाएं, स्मृति विश्राम हो जाए वहां हंगामा ही होता है। यूपीए-2 के कार्यकाल के ज्यादातर संसदीय दिन हंगामे की भेंट चढ़े। किंतु 13 फरवरी को जो कुछ हुआ वह 2001 में संसद पर हुए हमले से भी भयानक था। तेलंगाना विधेयक सदन के पटल पर रखने की कोशिश की जा रही थी। आंध्र के विभाजन के खिलाफ आंदोलनरत सांसदों को एहतियातन कांग्रेस ने निलंबित कर दिया था। किंतु बचे हुए सांसदों ने एकजुट होकर विधेयक का मुखर विरोध शुरू कर दिया। लोकसभा में चारों तरफ हंगामा था। विधेयक प्रस्तुत किया जाता उससे पहले ही विधेयक को फाडऩे के लिए कांग्रेस के कुछ सांसद झपट पड़े। वे स्पीकर की मेज की तरफ बढ़े इसी दौरान कांग्रेस के सांसद एल राजगोपाल ने मिर्च का स्प्रे छिड़क दिया और पूरे सदन में अफरा-तफरी का माहौल हो गया। मिर्च का स्प्रे महिलाएं अपने बचाव के लिए प्रयुक्त करती है। यह एक जानलेवा वस्तु भी साबित हो सकता है। क्योंकि इसका सीधा असर श्वसन तंत्र पर पड़ता है। सांस फूलने लगती है, तेज खासी आती है, धमनियों में ऑक्सीजन की मात्रा अचानक कम होती है और यदि ज्यादा देर तक स्प्रे का असर बना रहा तो हृदयघात भी हो सकता है जो जानलेवा है। संसद में 13 फरवरी को मिर्च स्प्रे के बाद एंबुलेंस बुलानी पड़ी। कई सांसदों को सांस लेने में तकलीफ हुई। एक सांसद को हार्टअटैक आ गया, लेकिन तेलगु देशम के एल राज गोपाल को कोई अफसोस नहीं था। उन्हें लगा कि उन्होंने बड़ा भारी शहीदाना कृत्य किया है। उनकी राजनीति पक्की हो गई है, लेकिन सदन जो देश की राजनीति का मंदिर है इस हमले से अपवित्र हो गया। तेलगु देशम पार्टी के सांसद वेणुगोपाल रेड्डी ने भी माइक तोड़कर चाकू की तरह लहराया। उनके हाथ में चाकू था या माइक यह स्पष्ट नहीं है। कुछ लोग कह रहे हैं कि चाकू था।
सवाल यह है कि अमेरिका में जब पूरे कपड़े उतारकर एयरपोर्ट पर जांच की जाती है तो हमारे यही मंत्री और सांसद चिल्लाते हैं और इसे एक बड़ा मुद्दा बना लेते हैं, लेकिन देश की संसद में चाकू, रिवाल्वर जैसे घातक हथियार लाने की सांसदों को छूट मिली हुई है। 2001 में जब संसद पर हमला हुआ था उस समय यह सुझाव दिया गया था कि सांसदों को भी सिक्योरिटी चेक से गुजरना चाहिए। लेकिन सांसदों ने इसका भरपूर विरोध किया। बाद में आईडी कार्ड दिखाना अनिवार्य कर दिया गया। हमारा लोकतंत्र अभी भी सामंतशाही के रंग में रंगा हुआ है। जिसकी लाठी उसकी भैंस। संसद में आने वाले 30 प्रतिशत सांसद भले ही उचित तरीके से चुनकर आते हों, लेकिन बाकी 70 प्रतिशत सदन में आने के लिए क्या तरकीबे अख्तियार करते हैं यह सबको पता है। राजनीति के अपराधीकरण को रोकने की केवल बात की जाती है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि देश की सर्वोच्च संस्था में हत्या के अपराधी, भ्रष्टाचारी, बाहुबली से लेकर विभिन्न अपराधों में लिप्त लोकसेवक पहुंचते हैं। बिहार के बाहुबली सांसद आनंद मोहन ने जब संसद के द्वार का शीशा तोड़ा था उसके बाद से ही मांग उठी कि राजनीति को साफ-सुथरा बनाया जाए, लेकिन यह मांग केवल कागजों तक सिमट कर रह गई। किसी भी राजनीतिक दल ने आगे बढ़कर यह संकल्प नहीं लिया कि वह राजनीति से अपराधियों को अलग कर देगा और दागदार लोगों को टिकिट नहीं देगा।
इसी कारण देश की संसद सबसे असुरक्षित जगह बन चुकी है। संसद में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री सहित पूरा मंत्रिमंडल, पक्ष-विपक्ष के महत्वपूर्ण नेता और लोकसभा का अध्यक्ष विराजता है, लेकिन उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। भले ही सीआरपीएफ के 14 सौ जवान विशेष परिस्थितियों में संसद की सुरक्षा करते हो, लेकिन वे सदन के भीतर हर एक सांसद के पीछे तैनात नहीं किए जा सकते। वे बाहरी आक्रमणों को तो रोक सकते हैं पर सदन के भीतर यदि कोई किसी की जान लेने पर उतारू हो जाए तो उसे नहीं रोक सकते। जिस सदन में चाकू, रिवाल्वर, मिर्च पाउडर ले जाने की छूट हो वहां प्रधानमंत्री की भी हत्या हो सकती है, लेकिन इसके बाद भी सुरक्षा के लिए कोई उपाय न करना कहां की समझदारी है। हर सांसद की तलाशी क्यों नहीं ली जाती। अनिवार्य रूप से ली जानी चाहिए। कांग्रेस के सांसद ने मिर्च का स्प्रे छिड़का कल को कोई ज्वलनशील  पदार्थ संसद में ला सकता है। सोमनाथ चटर्जी ने इस घटना से आहत होने के बाद कहा है कि जिम्मेदार सांसद के खिलाफ आपराधिक मामला चलना चाहिए। यह जरूरी है। सर्वसम्मति से ऐसा कानून भी बनाया जाए जो संसद में हिंसक कार्रवाई को रोके और हिंसक आचरण करने वालों को सख्त से सख्त सजा दी जाए।
बर्बाद हो गए हजारों घंटे
पिछले पांच वर्षों में संसद के कई कार्य दिवस और हजारों घंटे हंगामे की भेंट चढ़ चुके हैं। विपक्ष का काम विरोध जताना है, लेकिन सदन का बहिष्कार और सदन में हंगामा या काम नहीं चलने देना विरोध का कौन सा तरीका है यह समझ से परे है। संसद की एक-एक घंटे की कार्रवाई करोड़ों रुपए की पड़ती है। इस हिसाब से देखा जाए तो देश के करदाताओं के अरबों रुपए सांसदों की नसमझी की भेंट चढ़ चुके हैं। वर्ष दर वर्ष भारतीय संसद का रूप बिगड़ता जा रहा है। कभी भारतीय संसद को सुसंस्कृत और सभ्य बहस के लिए प्रशंसा मिलती थी। किंतु अब यह बाहुबलियों का अखाड़ा है।

तेलंगाना पर कांग्रेस-भाजपा ने भ्रम फैलाया
संसद में जो कुछ हुआ उसका असली दोष कांग्रेस और भाजपा दोनों पर है। दरअसल दोनों पार्टियां तेलंगाना तो बनाना चाहती हैं, लेकिन साथ ही यह भी चाहती हैं कि तेलंगाना बनाने का श्रेय उन्हें मिले और दूसरी तरफ सीमांध्र में कोई असंतोष भी न हो। सीमांध्र में राजनीति करने वाली तेलगु देशम पार्टी भाजपा के करीब आ रही है। इसलिए भाजपा आंध्रप्रदेश के विभाजन का कलंक अपने सर नहीं रखना चाहती। उधर कांग्रेस दोनों हाथों में लड्डू लेना चाहती है क्योंकि आंध्र की 42 में से 33 सीटें कांग्रेस के पास हैं। यदि यहां कांग्रेस सिमटती है तो सारे देश में उसका सफाया हो जाएगा। किंतु क्या इस घटना के बाद आंध्रप्रदेश में कांग्रेस की विश्वसनीयता बची रह सकती है। आंध्र के लगभग 2 तिहाई सांसद कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ लामबंद हो चुके हैं। मुख्यमंत्री किरण रेड्डी ने विधानसभा में आंध्रप्रदेश के विभाजन संबंधी विधेयक को गिरवाकर केंद्र सरकार की बुरी तरह किरकिरी की है। इन सारे अपमानों को झेल रही केंद्र सरकार भला कैसे सत्ता में बनी रह सकती है। अनुमान है कि कांग्रेस को आंध्र में बमुश्किल 5-7 सीटें मिलेंगी। इसलिए पृथक तेलंगाना चुनाव से पहले बनाया जा रहा है ताकि तेलंगाना में 17 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस अपना दावा ठोंक सके। वोट बैंक की राजनीति में सदन की गरिमा की धज्जियां उड़ाने की तैयारी है। दुख की बात यह है कि 16 सांसदों को ही निलंबित किया गया है। बाकी सांसद जो हंगामा कर रहे थे उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। निलंबन भी मात्र पांच दिनों के लिए है। जिस अपराध के लिए बड़ी सजा मिलनी चाहिए थी उस अपराध पर केवल निलंबन की सजा देते हुए एक तरह से सांसदों को शह दी जा रही है। सांसद पर कार्रवाई करने के लिए अलग कानून हैं। उनके खिलाफ पुलिस सीधे एक्शन नहीं ले सकती। अपने इसी विशेष अधिकार का सांसद दुरुपयोग करते हैं। तेलंगाना पर कांग्रेस की नासमझी देश को महंगी पड़ेगी। लगता है कि बजट सत्र में यह विधेयक पारित नहीं हो सकेगा।

संसद में बढ़ती शर्मनाक घटनाएं
23 मार्च, 2013: राज्यसभा में बजट सत्र के दौरान श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर हो रहे हंगामे के दौरान नाराज एक सांसद ने अध्यक्ष के आसन के माइक उखाड़ दिए, वहीं लोकसभा में तेलंगाना मुद्दे पर दिन भर हंगामा होता रहा।
5 सितंबर, 2012: सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण देने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक पेश करने के दौरान राज्यसभा में हाथापाई, बसपा सांसद अवतार सिंह करीमपुरी और सपा सांसद नरेश अग्रवाल के बीच धक्का-मुक्की हुई। हंगामे की वजह से विधेयक पर चर्चा तक नहीं हो पाई।
8 मार्च, 2010: राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक के विरोध में सपा, राजद और लोजपा के कुछ सदस्यों ने विधेयक की प्रतियां सभापति के आसन की ओर उछाल दीं, मेज पर चढ़ गए, धक्का-मुक्की में सभापति की मेज के दो माइक भी उखाड़ दिए गए।
19 मार्च, 2007: राज्यसभा में भाजपा के एसएस अहलूवालिया ने भाषण दे रहे तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के सामने आकर अवरोध पैदा करने की कोशिश की जिसके बाद सांसदों के बीच धक्का-मुक्की हुई।
1990 में जब बालयोगी लोकसभा अध्यक्ष हुआ करते थे, बिहार के बाहुबली सांसद आनंद मोहन को हंगामा करने पर संसद से बाहर फिंकवा दिया गया। इस दौरान नाराज आनंद मोहन ने संसद का शीशे का दरवाजा तोड़ दिया और अपना हाथ बुरी तरह घायल कर लिया। बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ उनके कपड़ों से वह गन गिर पड़ी जो वे सदन में छुपा कर ले गए थे।

विधानसभाएं भी कम नहीं
जुलाई, 2010: बिहार विधानसभा में पक्ष और विपक्षी सदस्यों ने एक-दूसरे पर कुर्सी फेंके, गमले भी तोड़े गए।
फरवरी, 2009: आंध्र प्रदेश में विपक्षी दल के हंगामा के दौरान विधायक एक-दूसरे के ऊपर गिरे, जिसमें कुछ जख्मी भी हो गए।
फरवरी, 2008: यूपी विधानसभा में सपा सदस्यों ने राज्यपाल की मौजूदगी में काले गुब्बारे उड़ाए।
नवंबर, 2006: पश्चिम बंगाल विधानसभा में पक्ष-विपक्ष के सदस्यों के बीच हाथापाई, नौ विधायक समेत 13 लोग घायल।
दिसंबर, 2005: बिहार विधानसभा में विपक्षी दल के सदस्यों ने सदन में तोडफ़ोड़ की, सभा सचिव की ओर कुर्सियां फेंकी।
नवंबर, 2004: उड़ीसा में पक्ष-विपक्ष के बीच हाथापाई और चप्पल तक फेंका गया, मुख्यमंत्री नवीन पटनायक घायल हुए।
मार्च, 2001: गुजरात में हंगामा के दौरान विपक्षी विधायकों ने अध्यक्ष के कमरे की खिड़की तोड़ डाले और नेम प्लेट भी फेक दिए।
अक्तूबर, 1997: यूपी में कल्याण सिंह सरकार के विश्वास मत के दौरान एक दूसरे पर माइक, जूते चलाए, कई विधायक घायल हुए।

हमारे लिए शर्मनाक...बेहद शर्मनाक। पूरी दुनिया में हमारे लोकतंत्र की तारीफ होती थी। आज उसी लोकतंत्र पर धब्बा लग गया।
-मीरा कुमार, लोकसभा अध्यक्ष
लिस्ट ऑफ बिजनेस में तो तेलंगाना बिल का जिक्र तक नहीं था। बिल पेश नहीं हुआ। कांग्रेस दोनों हाथों में लड्डू रखने के लिए झूठ बोल रही है। 
-सुषमा स्वराज
मैं 1970 से सांसद हूं। लेकिन मैंने आज तक ऐसा नहीं देखा। ये बेहद ही शर्मनाक है। इसके लिए पूरी तरह सरकार जिम्मेदार है। 
-लालकृष्ण आडवाणी
अब ये लोकतंत्र का मंदिर नहीं रहा। 25 सांसद संसद को बंधक नहीं बना सकते। हम अपील करेंगे कि स्पीकर इन सांसदों पर सख्त कार्रवाई करें।
-कमलनाथ, संसदीय कार्यमंत्री
मैंने तो आत्मरक्षा में पेपर स्प्रे किया था। कांग्रेस सांसदों ने मुझ पर हमला बोला था। स्पीकर से इसकी शिकायत भी करूंगा। जब महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए मिर्च स्प्रे रखने का अधिकार है, तो मैं क्यों नहीं रख सकता? मुझे भी अपनी सुरक्षा का अधिकार है।
स्प्रे छिड़कने वाले एल राजगोपाल (कांग्रेस सांसद)

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^