15-Feb-2014 10:17 AM
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गुजरात में नरेंद्र मोदी ने 300 शहरों के एक हजार टी स्टालों पर जनता से सीधे संवाद किया। बड़े-बड़े टीवी स्क्रीन पर जनता मोदी को देख रही थी और मोदी चाय की चुस्कियां लेते हुए सवालों का जवाब दे रहे थे। सेटेलाइट, डीटीएच, इंटरनेट

और मोबाइल जैसे आधुनिकतम दूरसंचार के संसाधनों से सुसज्जित मोदी का यह चाय पर आमंत्रण मीडिया में उतना प्रचार तो नहीं पा सका क्योंकि जिस वक्त मोदी चाय की चुस्कियां ले रहे थे उस वक्त दिल्ली में केजरीवाल रिलायंस के सर्वेसर्वा मुकेश अंबानी को घेर रहे थे, लेकिन फिर भी कांग्रेस के लिए तो यह तूफान ही था। मुख्य मुकाबला जिस पार्टी से हो उसे थोड़ी बहुत बढ़त मिले तो चिंता होना स्वाभाविक है। एक हजार स्क्रीन पर भले ही देखने वाले 25-30 हजार ही क्यों न हों, लेकिन यह एक प्रभावी माध्यम तो है। यदि आने वाले समय में स्क्रीनों की संख्या बढ़ाकर 10 या 12 हजार की जाती है तो निश्चित रूप से देशव्यापी प्रभाव देखने को मिलेगा। भले ही इसे वोट में तब्दील होने में थोड़ा समय लगे। बहरहाल सुर्खियों से बेदखल हो चुके नरेंद्र मोदी हर संभव कोशिश में हैं कि वे लोगों की ख्यालों की रहगुजर में बने रहें।
लोकसभा चुनाव तक यह जरूरी भी है। जिस तरह केजरीवाल आए दिन धमाके कर रहे हैं और देशभर का मीडिया दिल्ली में जाकर बैठ चुका है उसको देखते हुए मोदी द्वारा नए-नए पैंतरे अख्तियार करना स्वाभाविक है। बहरहाल मोदी की चाय पर चर्चा सुशासन और सरकार के कामकाज के बारे में ही थी। जबसे गुजरात के विषय में यह प्रचारित हुआ है कि यह भारत का सर्वाधिक विकसित राज्य बन चुका है तब से मोदी को सुशासन का विशेषज्ञ माना जाने लगा है और मोदी भी बहुत सी हवा-हवाई बातें करने में माहिर हैं। जिनका अर्थ जब वे मंच से बोलते हैं तो कुछ और होता है, लेकिन बात में लोग अर्थ निकालने की कोशिश करते हैं तो निकलता ही नहीं है। लेकिन चुनाव इसी का नाम है। जो अपने को जितने बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर सकेगा वही चुनाव में आगे रहेगा। फिलहाल मोदी आगे हैं। यह बात अलग है कि उनकी खुद की पार्टी के लोग उनके उत्साह की पोल खोल देते हैं। जैसे कोलकाता में रैली के दौरान भाजपा ने रैली में आए हुए लोगों की संख्या को जो आंकड़ा दिया था उसे वरुण गांधी ने काट-छांट करके 50 हजार कर दिया था और कहा कि 50 हजार लोग ही आए थे। वरुण गांधी के इस दावे ने कांग्रेस को मुखर किया। लेकिन चाय के प्याले में तूफान लाकर मोदी ने हवा का रुख पलट दिया है। मोदी कहते हैं कि चाय की दुकानें देश की पहली संसद है। जहां विभिन्न राजनीतिक मुद्दों पर गरमागरम चर्चा होती है। एक तरह से यह ठीक ही है। जो देश राजनीतिक रूप से जितना जागरुक होगा वह उतनी ही तेजी से आगे बढ़ेगा। फुटपाथ पार्लियामेंट के जरिए मोदी दिल्ली की पार्लियामेंट में अपनी धमाकेदार मौजूदगी का रास्ता तलाश रहे हैं। लेकिन बात केवल इतनी ही नहीं है। नरेंद्र मोदी ने एक और नई रणनीति अपनाई है वे अपने को पिछड़ों का नेता घोषित करने की कोशिश में हैं। उन्होंने हाल ही में केरल में एक सम्मेलन में कहा कि छुआछूत का शिकार उन्हें भी होना पड़ता है। मोदी ने इस कथन की आड़ में उन लोगों पर भी कटाक्ष किया जो मोदी को राजनीतिक रूप से अछूत घोषित करने पर तुले हुए हैं। मोदी इस बहाने पिछड़ों की राजनीति को भी हवा दे रहे हैं। इसका फायदा उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे प्रदेशों में मिल सकता है जहां पिछड़ों की तादाद अच्छी खासी है। वैसे देश की राजनीति में भी पिछड़े कम नहीं हैं। इससे भाजपा की उस छवि को भी थोड़ा बदलने में कामयाबी मिल सकती है जिसके तहत यह कहा जाता है कि भाजपा सवर्णों और शहरी बाबुओं की पार्टी है। भाजपा में सदैव से ही सवर्णों का वर्चस्व रहा है। शायद इसके पीछे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रभाव हो, लेकिन मोदी भाजपा की सवर्णवादी छवि का पिछड़ा चेहरा है और यही अन्य दलों के लिए परेशानी का सबब है। राहुल गांधी इसी आधार पर मोदी के मुकाबले पीछे हैं तो अरविंद केजरीवाल भी नरेंद्र मोदी के चाय वाले की पृष्ठभूमि से पिछड़ते नजर आ रहे हैं। बहरहाल यह तो तय है कि मोदी का प्रभाव जिस तेजी से बढ़ रहा था वह अब उतना तीव्र नहीं है, लेकिन मोदी अभी भी सबसे आगे हैं। देखना है कि मिशन 272 कैसे पूरा होता है।