जनलोकपाल पर बंटे अन्ना और केजरीवाल
18-Dec-2013 10:50 AM 1234758

जनलोकपाल पर एक बार फिर जंग छिड़ी हुई है। इस बार यह जंग अन्ना हजारे बनाम केंद्र सरकार नहीं हैं बल्कि जनलोकपाल की गंगा से निकली दो धाराओं के बीच है। जन लोकपाल आंदोलन की उपज अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे आमने-सामने हैं। मतभेद गहरा गए हैं। अन्ना हजारे रालेगण सिद्धि में अनशन कर रहे हैं और सरकार ने राज्यसभा में लोकपाल विधेयक प्रस्तुत कर दिया है। अन्ना हजारे का कहना है कि सरकार ने इस बार जो विधेयक प्रस्तुत किया है वह पूरी तरह तो वैसा नहीं है, किंतु उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप हैं और यदि यह विधेयक पारित होता है तो वे अपना अनशन वापस ले लेंगे। अन्ना हजारे का आंदोलन इस बार थोड़ा भिन्न है। क्योंकि उसमें अरविंद केजरीवाल नहीं हैं। अरविंद केजरीवाल एक दूसरे छोर पर देश की नैतिकता भरी फौज का नेतृत्व कर रहे हैं और उन्होंने सरकार द्वारा प्रस्तुत लोकपाल विधेयक को जोकपाल विधेयक कहकर खारिज कर दिया है। दिल्ली में वे पहले ही कह चुके हैं कि जनलोकपाल उसके मूल स्वरूप में ही आएगा। अरविंद केजरीवाल ने कल्पना की थी कि यदि बहुमत मिला तो रामलीला मैदान में विधानसभा लगाकर जनलोकपाल विधेयक पारित कराया जाएगा। लेकिन उनकी इस चिरसंचित महत्वाकांक्षा को जनता ने परवान नहीं चढऩे दिया। वे मंजिल के करीब पहुंचकर भी मंजिल तक नहीं पहुंच पाए। अब विडम्बना यह है कि कभी जनलोकपाल के समर्थन में खड़े और अन्ना के साथी रहे तमाम लोगों के बीच ही सरकारी लोकपाल को लेकर संसद से कहीं ज्यादा बहस छिड़ी हुई है। जिस तरह के तेवर अरविंद केजरीवाल ने अख्तियार किए हैं उससे लग रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व जन लोकपाल को एक बड़ा मुद्दा बनाकर लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी राष्ट्रव्यापी प्रभावी बनाने में कामयाब हो सकती है। उधर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की सरकारी लोकपाल पर यूनिटीÓ से अन्य दल सकते में हैं। यदि ये दोनों मिल जाते हैं तो लोकसभा और राज्यसभा में कोई भी सरकारी लोकपाल को नहीं रोक सकेगा। समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों की दुविधा यह है कि वे अपराधियों, भ्रष्टाचारियों और आरोपियों के भरोसे राजनीति करती आई हैं। लिहाजा वे खुलकर जनलोकपाल विधेयक की मुखालफत कर रही हैं। हालांकि भाजपा ने इसे बिना किसी बहस के समर्थन देने की बात भी कह दी है, लेकिन लगता नहीं कि यह मंजिल आसानी से तय हो पाएगी। अन्ना के अनशन के दबाव में लोकपाल बिल एक बार फिर राज्यसभा में आ गया है। यह वही बिल है, जिसे राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी की सिफारिशों के बाद सरकार ने नए सिरे से तैयार किया है। एक तरह से यह एक नया बिल है। जो बिल लोकसभा में पास हुआ था, उसमें 13 से ज्यादा बड़े संशोधन किए गए हैं। इसलिए राज्यसभा में बिल पास हुआ, तो इसे फिर लोकसभा में दोबारा से भेजा जाएगा। किंतु जो भी बिल संसद पास करेगी, वह यकीनन वैसा बिल नहीं होगा, जैसा कि अन्ना चाहते हैं। आम आदमी पार्टी ने अभी से इस मुद्दे को उछालना शुरू कर दिया है, ताकि जो भी बिल पास हो, उसे जनलोकपाल से अलग और कमजोर बताकर विरोध किया जाए और लोकसभा चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर कांग्रेस और बीजेपी को एक साथ घेरने की रणनीति बनाई जाए। बीजेपी चाहती है कि मजबूत लोकपाल बनाने का श्रेय उसके हिस्से में जाए। कांग्रेस को लगता है कि संसद जैसा भी विधेयक पास करेगी, उसे अन्ना हजारे मंजूर कर ही लेंगे।
लोकपाल पास कराने का श्रेय यूपीए सरकार को ही मिलेगा और आम आदमी पार्टी को चुनावी फायदा नहीं मिलेगा। नए बिल का लोकपाल नौ सदस्यीय होगा- एक अध्यक्ष व आठ अन्य सदस्य। कम से कम आधे सदस्य एससी, एसटी, ओबीसी, महिला व अल्पसंख्यक वर्ग से होंगे। लोकपाल का चयन प्रधानमंत्री, लोकसभा स्पीकर, लोकसभा में नेता विपक्ष, चीफ जस्टिस और राष्ट्रपति की तरफ से नामित न्यायिक सेवा से जुड़े नामी व्यक्ति होंगे। लोकपाल के दायरे में सभी सरकारी कर्मचारी और जनसेवक आएंगे। प्रधानमंत्री कुछ शर्तों के साथ लोकपाल के दायरे में आएंगे। शिकायत आने पर लोकपाल तय करेगा कि शिकायत में कितना दम है। तब शुरुआती जांच करवाई जाएगी। स्पेशल कोर्ट में मुकदमा चलेगा। जांच से लेकर सुनवाई तक का  काम अधिकतम साढ़े तीन साल में पूरा करना होगा। सरकार सीबीआई को कुछ अधिकार देने को तैयार हुई है।
लोकपाल जिन मामलों को जांच के लिए सीबीआई के पास भेजेगा, उनकी जांच लोकपाल के पूर्ण निर्देशन में होगी। ऐसे केस की जांच कर रहे अफसरों का लोकपाल की मंजूरी के बगैर तबादला हो सकेगा। बड़ा सवाल है कि क्या ऐसे लोकपाल से भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा? अन्ना ने खुद कहा था कि अगर उनके जनलोकपाल को लागू किया गया, तो भी 60 फीसदी भ्रष्टाचार पर रोक लग सकेगी। चीन में तो भ्रष्टाचार पर फांसी तक की सजा का प्रावधान है, लेकिन वहां घोटाले सामने आते रहते हैं। भारत में तो हर स्तर पर रिश्वत लेने-देने का बात की जाती रही है। लोग भी मानते हैं कि बिना कुछ दिए काम होता नहीं है। ऐसे में, लोकपाल तो तभी कुछ कर सकेगा, जब उसके पास शिकायत पहुंचेगी। गलत शिकायत पर सजा का प्रावधान कर सरकार ने इस रास्ते में भी रोड़ा लगाने का ही काम किया है।
अन्ना हजारे ने सरकारी लोकपाल बिल को मंजूर कर दिया है। उनका कहना है कि वह बिल के मसौदे से संतुष्ट हैं, लेकिन जनलोकपाल आंदोलन में कभी उनके साथ रहे अरविंद केजरीवाल ने सरकारी लोकपाल को जोकपाल करार दिया है। वहीं, आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने लोकपाल को लंगड़ा और लूला करार दिया है। शनिवार को रालेगण सिद्धि में अन्ना ने कहा कि हमारी मांगी थी प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाए, जिसे मंजूर कर लिया गया है। सीबीआई लोकपाल के अंडर में होगी, यह भी प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि लोकपाल बिल पारित होने के बाद अनशन तोड़ देंगे। जानिए, अन्ना हजारे ने जनलोकपाल में कौन सी मांगें रखी थीं और आम आदमी पार्टी को किन मांगों पर एतराज है। 
सवाल यह है कि लोकपाल विधेयक सत्ता में स्वीकार्य भी हो गया तो राज्य इसे अपनाएंगे या नहीं। अभी तक राज्यों ने जनलोकपाल को एक तरह से नकार ही दिया था। सरकारी लोकपाल थोड़ा सा लचीला है। शायद इसीलिए कांग्रेस शासित राज्यों में इसे तत्काल स्वीकार किया जा सकता है, लेकिन गुजरात, बिहार जैसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सरकारी लोकपाल के मसौदे पर आपत्ति हो सकती है। हालांकि भाजपा ने समर्थन दिया है। लिहाजा गुजरात में अब इसका विरोध शायद न हो। लेकिन बाकी प्रदेशों में सरकारी लोकपाल लागू होने में अभी समय लगेगा। मध्यप्रदेश जैसे कुछ राज्यों में पहले से ही लोकपाल कार्यरत है पर उसका कोई विशेष असर देखने में नहीं आया। आमतौर पर होता यह है कि लोकपाल के दायरे में जांच के लिए जो भी मुद्दे लाए जाते हैं वे धीरे-धीरे घिसते-घिसते खत्म हो जाते हैं। अभी तक किसी भी बड़ी मछली पर लोकपाल ने वार नहीं किया। येदियुरप्पा इसका अपवाद कहे जा सकते हैं।

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