31-Dec-2013 09:21 AM
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अपने मंत्रिमंडल में 23 मंत्रियों को शामिल करने के बाद जब शिवराज सिंह चौहान बेन स्टॉर्मिंग सेशन के लिए रातापानी पहुंचे तो उतने सहज नहीं थे। इतनी भारी भरकम जीत के बाद जिस फ्री हैंड की बात की जा रही थी वह फ्री हैंड मंत्रिमंडल

गठन में थोड़ा कम दिखाई दिया। न चाहते हुए भी शिवराज को कुछ अनचाहे चेहरे शामिल करने पड़े। संघ के पदाधिकारियों और आलाकमान को संतुष्ट करने के फेर में केवल 19 जिलों का ही प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में हो पाया। विदिशा, राजगढ़, गुना, शाजापुर, बैतूल, हरदा, कटनी, सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, अशोकनगर, मुरैना, श्योपुर, छतरपुर, टीकमगढ़ जैसे महत्वपूर्ण जिलों सहित 32 जिले ऐसे हैं जहां से कोई मंत्री नहीं है। इसका अर्थ यह है कि मात्र 18 लोकसभा सीटों को प्रतिनिधित्व है। आने वाले लोकसभा चुनाव में 11 सीटों से मंत्रियों का न होना भी एक असरकारी मुद्दा रहेगा।
किंतु सर्वाधिक चिंताजनक है एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में न होना। शायद इसीलिए शिवराज ने अभी 23 मंत्री बनाए हैं। कोटे के हिसाब से 11 मंत्री पद खाली हैं और आने वाले समय में मंत्रिमंडल विस्तार के समय इसका ध्यान रखा जाएगा। 19 कैबिनेट और 4 राज्य मंत्री बनाए गए हैं जिनमें से 12 पुराने मंत्रियों की वापसी हुई है जबकि छह चेहरे नए हैं। रायसेन जिले से तीन मंत्री और भोपाल तथा सागर जिले से 2-2 मंत्री होना जरूरी था ऐसा कहना है संगठन के कुछ खासमखास लोगों का। लेकिन जिन्होंने इस मंत्रिमंडल का विश्लेषण किया उनका कहना है कि इसका अर्थ यही है कि फ्री हैंड की बात सत्य नहीं है। कुछ संघ के सिफारिशी चेहरे हैं। पिछली कैबिनेट के जिन 9 सदस्यों जगदीश देवड़ा, महेंद्र हार्डिया, अर्चना चिटनीस, रंजना बघेला, नारायण सिंह कुशवाह, जयसिंह मरावी, मनोहर ऊंटवाल, नानाभाऊ मोहोड़ और तुकोजीराव पंवार को छोड़ा गया उनमें से कुछ चेहरे ऐसे थे जो शिवराज की पसंद के थे, भीतरी दबाव के कारण शिवराज उन्हें मंत्रिमंडल में नहीं ले सके। उनका दर्द भी फूट पड़ा जब उन्होंने कहा कि जो मंत्री नहीं बने हैं उनसे पूछिए मंत्री बनने का क्या मतलब होता है। चुनाव जीतने से ज्यादा जरूरी काम है मंत्रिमंडल बनाना। सचमुच कठिन ही था। क्योंकि कुछ मंत्रियों के लिए वरिष्ठ नेताओं ने जिद की जैसे शपथ ग्रहण की पूर्व संध्या पर सुंंदरलाल पटवा अपने भतीजे के लिए सोर्स लगाते रहे। अगले दिन सुबह सुरेंद्र पटवा का नाम जब लगभग तय हो चुका था उस समय कैलाश जोशी ने नए सिरे से अपने बेटे दीपक जोशी के लिए फील्डिंग शुरू कर दी। उच्च पदस्थ सूत्रों ने यह भी बताया कि जोशी ने अपने बेटे दीपक जोशी का नाम आगे बढ़ाते हुए यह तक कहा कि मैं अगला चुनाव नहीं लडूंगा। रुस्तम सिंह का नाम अंतिम समय में शिवराज सिंह की इच्छा के विरुद्ध कटा। क्योंकि उनके स्थान पर लाल सिंह आर्य को पार्टी के एक पदाधिकारी ने मंत्री बनवाने के लिए दबाव डाला। इस बार उमाशंकर गुप्ता के समर्थन में नरेंद्र सिंह तोमर का खुलकर सामने आना चर्चा का विषय रहा। मेनन और शिवराज गुप्ता के नाम पर सहमत नहीं थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी कुछ मंत्रियों के लिए सिफारिश की जिसमें शरद जैन का नाम प्रमुख है। मंत्रिमंडल में अपने पसंद के लोगों को शामिल करवाने में अनंत कुमार और पूर्व भाजपा अध्यक्ष वैंकेया नायडू की भी महत्पूर्ण भूमिका रही। कुछ वरिष्ठ नेता अपने खास लोगों को मंत्री बनाना चाह रहे थे, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। कुछ मंत्रियों को अपने विभागों पर भी आपत्ति थी जैसे बाबूलाल गौर गृह विभाग की बजाय नगरीय प्रशासन चाह रहे थे, क्योंकि मेट्रो उनका सपना है, लेकिन उन्हें उनकी पसंद का विभाग नहीं मिला। पिछले चुनाव से कुछ माह पूर्व मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी पर टिप्पणी करके चर्चा में आए पूर्व आदिमजाति कल्याण मंत्री विजयशाह ने जब अपना विभाग बदलने की इच्छा जाहिर की तो उन्हें खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बना दिया गया। गोपाल भार्गव की पांच वर्ष बाद एक बार फिर सहकारिता में वापसी हुई है। गौरीशंकर शेजवार और कुसुम मेहदेले के विभाग उतने महत्वपूर्ण नहीं थे इसीलिए विभागों को लेकर तनातनी विभाग वितरण के बाद भी चलती रही। यहां तक कि 24 घंटे बाद रामपाल से पीएचई विभाग लेकर कुसुम मेहदेले को दे दिया गया और राज्यमंत्री लाल सिंह आर्य को विमानन विभाग भी देकर उनका कद बढ़ाने की कोशिश की गई। मेहदेले का कद बढ़ाने के लिए संभवत: उन्हें जिम्मेदारी दी गई थी।
शायद इसीलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पद संभालते ही 16 दिसंबर को जब मंत्रालय में अधिकारियों की बैठक ली तो उन्होंने कहा कि फाइलों पर निर्णय लेने की समयसीमा तय होनी चाहिए। मुख्यमंत्री खुद काम करके मंत्रियों को यह बताना चाह रहे हैं कि काम करने से ही उनकी ताकत बढ़ेगी। मुख्यमंत्री ने सारे प्रमुख सचिव, सचिव और विभागाध्यक्षों को वर्ष भर का एक्शन प्लान जनवरी में बनाने का निर्देष दिया है। इससे साफ जाहिर होता है कि वे मंत्रिमंडल में किसी भी मंत्री को छूट देने के मूड में नहीं हैं। कुछ मंत्रियों के विभागों को लेकर भी चर्चा हो रही हैं जैसे गौरीशंकर शेजवार को वनमंत्री या कैलाश विजयवर्गीय को नगरीय प्रशासन एवं आवास व पर्यावरण का प्रभार देना, सरताज सिंह को लोक निर्माण मंत्री बनाना, नरोत्तम मिश्रा पर कुछ ज्यादा ही विश्वास जताना। बिसेन को किसान कल्याण एवं कृषि विभाग देना। उमाशंकर गुप्ता तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास मंत्रालय से कहां तक खुश रहेंगे कहना मुश्किल है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती तो बाबूलाल गौर के साथ है। जिन्होंने आते ही कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं, जिससे पुलिस की रिश्वत खोरी पर अंकुश लग सके। जैसे वाहनों का चालान न्यायालय में वसूलने की योजना। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर विभाग पर पैनी नजर रख रहे हैं। दिल्ली में चल रही उथल-पुथल का असर मध्यप्रदेश में साफ दिख रहा है। हर मंत्री को स्पष्ट निर्देष है कि वह कार्यशैली में ईमानदारी और पारदर्शिता लाए।