31-Dec-2013 07:14 AM
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उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एसआईटी (स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम) की मोदी को दी गई क्लीनचिट पर अहमदाबाद मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट बीजे गणात्रा की अदालत ने मुहर लगा दी है। सांसद अहसान जाफरी की विधवा जाकिया

जाफरी ने एसआईटी द्वारा मोदी को दी गई क्लीनचिट के खिलाफ अदालत की शरण ली थी। जाकिया जाफरी के पति अहसान जाफरी को दंगाइयों ने दिन-दहाड़े जलाकर मार डाला था। जाकिया जाफरी का आरोप था कि गुजरात दंगों के समय मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 62 अन्य लोगों ने गुजरात में हुई हिंसा को बढ़ावा दिया। जिसके चलते गुलबर्ग सोसाइटी में वर्ष 2002 में हिंसा भड़की और 69 लोगों को मार डाला गया, जिनमें अहसान जाफरी भी शामिल थे। वर्ष 2002 के गुजरात दंगों में 1 हजार लोगों की मृत्यु हुई थी। जिनमें से अधिकांश मुस्लिम थे। इसी कारण इन दंगों के घाव अभी तक भरे नहीं है और दंगों को लेकर मोदी सहित कई लोगों के विरुद्ध जांच पड़ताल चल रही है। माया कोडनानी तथा 24 अन्य को तो सजा भी सुनाई जा चुकी है।
स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम का कहना था कि गोधरा ट्रेन अग्निकांड में मरने वाले कारसेवकों के शवों को विश्व हिंदू परिषद द्वारा अहमदाबाद ले जाना कोई साजिश नहीं थी और न ही इसके लिए 27 फरवरी 2002 को मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं के बीच बंद कमरे में हुई किसी बैठक के सबूत मिले हैं। पांच महीने तक चली इस जिरह के बाद कोर्ट 2 दिसंबर को फैसला देने वाला था किंतु इसे 26 दिसंबर तक के लिए टाल दिया गया। इससे पहले 18 सितंबर को जाफरी के वकील ने लिखित हलफनामा दिया था जबकि एसआईटी ने अपना लिखित हलफनामा 30 सितंबर को दिया। जिसके बाद यह तय हुआ कि फैसला 28 अक्टूबर को सुनाया जाएगा, लेकिन बाद में इसे आगे बढ़ा दिया गया। एसआईटी शुरू से ही कहती आई है कि मोदी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं है। एसआईटी ने 8 फरवरी 2012 को जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें कहा गया था कि 8 वर्ष बीत जाने के कारण सबूत जुटाने में परेशानी के बावजूद जो भी साक्ष्य जुटाए जा सके उनसे यह साबित नहीं हो सका कि वर्ष 2002 के दंगों के षड्यंत्र के आरोप में जिन लोगों को आरोपित किया गया था वे इसमें शामिल थे। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट पर स्वतंत्र राय लेने के लिए वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रम को अदालत की सहायतार्थ नियुक्त किया, लेकिन उससे भी कोई नतीजा नहीं निकला। एसआईटी के प्रमुख आर राघवन का कहना था कि बिना सुप्रीम कोर्ट के सहयोग के यह मुकदमा नहीं लड़ा जा सकता था। एसआईटी के रुख से यह साफ हो जाता है कि मोदी के खिलाफ कोई विशेष सबूत अभी तक गुजरात के दंगों में नहीं मिले हैं और किसी भी अदालत में उन्हें आरोपित नहीं किया गया है। हालांकि जाकिया जाफरी के बेटे तनवीर जाफरी ने कहा है कि वे इस मामले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे। लेकिन इतना तय है कि ऊपरी अदालत में जाकिया जाफरी को कुछ हासिल होना संभव नहीं है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जाकिया ऊपर की अदालत में जाने के लिए स्वतंत्र है।
न्याय की कार्रवाई अपनी गति से चलती है इसलिए नरेंद्र मोदी न तो पूरी तरह निर्दोष साबित हुए हैं और न ही वे दोषी हैं। उनके ऊपर आरोप लगे हुए हैं और जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, मोदी उन आरोपों की छाया से निकलते जा रहे हैं। यह तो तय है कि मोदी को गुजरात दंगों में सजा दिलाना उतना आसान नहीं है, लेकिन अदालतों के फैसले कहीं न कहीं मोदी की राजनीतिक स्वीकार्यता में वृद्धि कर सकते हैं। खासकर मोदी को अछूत समझने वाली पार्टियां इन फैसलों के बाद अपने सिद्धांतों पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य हो सकती है। कोर्ट की भी भाषा कुछ ऐसी ही हैं। जैसे कोर्ट का कहना है कि नरेंद्र मोदी ने दंगों में जानबूझकर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई हो ऐसा साबित नहीं होता। बल्कि मोदी ने दोनों समुदायों से आक्रामक न होने के लिए अपील की थी। इसे टीवी पर भी प्रसारित किया गया था। कोर्ट का कहना था कि यह भी साबित होता है कि मोदी ने कानून व्यवस्था बनाए रखने और शांति के लिए जरूरी कदम उठाए थे। कोर्ट ने संजीव भट्ट व श्रीकुमार के बयान भरोसेमंद नहीं माने क्योंकि दस्तावेज बयानों को पुष्ट नहीं कर पाए। कोर्ट ने इस बात से भी इनकार किया कि 27 फरवरी 2002 को अपने निवास पर बुलाई गई बैठक में मोदी ने आपत्तिजनक निर्देष दिए थे। कोर्ट का कहना था कि इसके सबूत नहीं मिलते इसलिए मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई गुनाह नहीं बनता। कोर्ट के इस फैसले ने कांग्रेस की परेशानी बढ़ाई है। कांग्रेस गुजरात दंगों पर नरेंद्र मोदी को घेरने की योजना बना रही है, लेकिन लगता है कि नरेंद्र मोदी का सितारा फिलहाल बुलंद है। इसीलिए कपिल सिब्बल ने ट्वीट करके कहा कि मोदी के खिलाफ ऊंचे कोर्ट में जाने का रास्ता खुल गया है। लेकिन कांग्रेस हार मानने वाली नहीं है।
जासूसी कांड पर जांच आयोग
नरेंद्र मोदी को भले ही कोर्ट से राहत मिल गई हो, लेकिन कांग्रेस उन्हें सस्ते में छोडऩे के मूंड में नहीं है। हाल ही में केंद्र ने नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए गुजरात में कथित रूप से एक लड़की की जासूसी के मामले में नरेंद्र मोदी के विरुद्ध जांच आयोग बनाने का फैसला किया है जो फोन टेपिंग, जासूसी की जांच करेगा। केंद्र का कहना है कि यह फैसला जांच आयोग कानून 1952 की धारा 3 के तहत किया गया है। इसके मुताबिक केंद्र को किसी भी मामले में आयोग के गठन का अधिकार है। बशर्ते वह एक से अधिक राज्यों से जुड़ा हो। इस कानून के मुताबिक मोदी के खिलाफ जांच की जा रही है। क्योंकि महिला आर्किटेक्ट की जासूसी गुजरात के अलावा कर्नाटक में भी हुई थी। बहरहाल सरकार द्वारा इस आयोग के गठन से राजनीतिक तापक्रम थोड़ा बढ़ गया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने इसे संघीय ढांचे पर चोट बताया है और कहा है कि इससे केंद्र तथा राज्यों के संबंधों में तनाव आएगा। भाजपा अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी जासूसी कांड पर केंद्र सरकार के विरोध में समर्थन मांग रही है। देखना है कि मोदी को लेकर भाजपा किस सीमा तक लड़ाई लड़ती है। क्योंकि जिस लड़की की जासूसी की बात कही जा रही है उसका कहीं अता-पता नहीं है। वह अभी तक प्रेस के सामने भी नहीं आई है। उसके माता-पिता ने अवश्य कहा है कि उन्हें नरेंद्र मोदी से कोई शिकायत नहीं है और उन्होंने जांच पड़ताल की बात स्वयं की थी तथा अपनी बच्ची पर नजर रखने का कहा था। लेकिन फिर भी फोन टेपिंग मामले में कुछ लोग लपेटे में आ सकते हैं। क्योंकि कुछ समय पहले राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने फोन टेपिंग के आरोप लगाए थे। अब अरुण जेटली सहित उन राजनीतिज्ञों के आरोपों की भी जांच की जाएगी। साथ ही उस लड़की के फोन टेप करने के मामले की भी जांच होगी। इससे यह लगता है कि केंद्र सरकार ने जानबूझकर जांच का दायरा बढ़ाया है ताकि भाजपा इसे मुद्दा न बना सके। लेकिन मुद्दा तो बन ही गया। भाजपा का कहना है कि केंद्र सरकार एक ही मामले में तब तक दूसरा आयोग नहीं बना सकती है जब तक उसी मामले में राज्यस्तरीय जांच आयोग काम कर रहा हो। अरुण जेटली का कहना है कि केंद्र के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।
नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक अदालत ने तो अपनी राय स्पष्ट कर दी है। अब इसके बाद ऊंची अदालतों में मामला लंबा खिंचेगा तब तक लोकसभा चुनाव सामने होंगे इसका अर्थ यह है कि लोकसभा चुनाव तक मोदी सुकून में रहेंगे।