जासूसी के दंश से बच पाएंगे मोदी?
05-Dec-2013 09:08 AM 1234800

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए एक तुरुप का पत्ता चला गया था लेकिन अब उसका असर धीरे-धीरे कम पड़ता दिखाई दे रहा है। दरअसल यह मामला उतना गंभीर नहीं होता, लेकिन निलंबित आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा द्वारा किए गए रहस्योद्घाटन ने मोदी को एक नए विवाद में ही घसीट दिया। कहा गया कि जिस लड़की की जासूसी कराई जा रही थी उसकी और मोदी की सीडी भी उपलब्ध है, लेकिन यह बात कुछ हजम नहीं हुई। यदि इस तरह की किसी सीडी का अस्तित्व है तो वह कहां पर छिपी हुई है। जनता के सामने क्यों नहीं आ रही है। खासकर इस माहौल में जब नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस ही नहीं बल्कि भाजपा में भी कई ताकतें उनको धराशायी करने की कोशिश कर रही हैं, कोई सीडी भला इतने समय तक दबी हुई कैसे रह सकती है। इसलिए सीडी वाली बात दमदार नहीं है, लेकिन एक तथ्य है जो यक्ष प्रश्न की तरह खड़ा हुआ है कि नरेंद्र मोदी ने आखिर क्यों उस लड़की की जासूसी कराई। यदि मोदी ने नहीं भी कराई है तो फिर किसने कराई और क्यों? अमित शाह को नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है। अमित शाह लंबे समय से मोदी के राजदार रहे हैं। दोनों में एक-दूसरे के प्रति अटूट विश्वास है। इसीलिए अमित शाह का कोई भी कदम मोदी का ही कदम माना जाता है।
मोदी ने जासूसी नहीं करवाई तो अमित शाह ने उस लड़की की जासूसी क्यों करवाई। यह दिलचस्प है। बहुत सी बातें कही गई हैं उनमें से एक यह भी है कि लड़की की नजदीकियां कहीं और बढऩे लगी थी जो शायद किसी खास व्यक्ति को नापसंद था। मोदी के लिए सुकून वाली बात यह है कि उस लड़की के पिता ने किसी भी प्रकार की जांच से साफ इनकार कर दिया है। लेकिन कांग्रेस इस मामले को जीवित रखना चाहती है अब यह कहा जा रहा है कि जिस लड़की की जासूसी की गई थी उसे नरेंद्र मोदी ने कारोबारी फायदा पहुंचाया था और बिना नीलामी के ही सरकारी ठेके दिए गए थे। कांग्रेस का कहना है कि लड़की की कंपनी और उसके परिवार को गांधी नगर ग्रिड सोलर प्रोजेक्ट तथा अन्य सरकारी प्रोजेक्ट के काम दिए थे। हालांकि इस विषय में अभी तक गुजरात सरकार की ओर से कोई सफाई नहीं आई है। कांग्रेस हर हाल में इस मुद्दे को जीवित रखना चाहती है। इसीलिए किसी न किसी तरह इस मामले में सूचना जुटाकर मोदी के खिलाफ माहौल तैयार किया जा सकता है। पहले यह भी बताया गया था कि युवती के फोन टेप करने और जासूसी करने के मामले में गुजरात सरकार से सवाल जवाब किए गए हैं तथा पूछा गया है कि क्या उसने इस मामले में कानूनी नियमों का पालन किया था, लेकिन बाद में यह एक अफवाह ही साबित हुई। राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य निर्मला सावंत ने उस पत्र की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए थे जो कथित रूप से युवती के पिता द्वारा युवती की जासूसी करने के लिए लिया गया था। सावंत का कहना है कि आयोग यह जानना चाहता है कि वह पत्र पिता द्वारा लिखा गया था या अन्य किसी व्यक्ति द्वारा। लेकिन आयोग इस मामले में सीधा हस्तक्षेप नहीं कर सकता। कुछ मामलों में न्याय एजेंसियां और पुलिस संज्ञान ले सकती है। भाजपा की दृष्टि से यह मामला इसलिए परेशानी भरा है क्योंकि लड़की को जो अनावश्यक लाभ गुजरात सरकार द्वारा मिला वह एक बड़ा मुद्दा बन सकता है।
लेकिन माहौल चुनावी होने के कारण भारतीय जनता पार्टी अब यह प्रचारित कर रही है कि मोदी के खिलाफ यह एक साजिश है। हालांकि मोदी ने इस संबंध में कोई बयान नहीं दिया है। मोदी की चुप्पी इसलिए भी हो सकती है कि वे इसे छोटा-मोटा मामला मानते हुए पार्टी के ऊपर ही छोडऩा चाहते हैं। जो भी हो पर इस मामले में आईएएस अधिकारी शर्मा ने जो आरोप लगाए हैं वे जरा ज्यादा संगीन किस्म के हैं। नौ साल पहले कच्छ में महिला आर्किटेक्ट ने एक गार्डन बनवाया था। मोदी को वह अच्छा लगा। शर्मा ने दोनों की मुलाकात कराई थी। बाद में महिला ने मुख्यमंत्री को ई-मेल भेजी। उस पर जवाब भी आया। बातचीत आगे बढ़ी। मोदी के कहने पर महिला ने अलग ई-मेल अकाउंट भी बनाया। उसके बाद दोनों में कथित रूप से फोन पर भी बातें होने लगी। इसके लिए अलग मोबाइल नंबर लिया गया। महिला को अधिकारी पर भरोसा था, इसलिए वह उन्हें सब बताती थी। वह बताती थी कि मुख्यमंत्री का फोन आया। मैसेज आया। रणोत्सव के दौरान गलतफहमी दूर हो गई। उसने बताया कि मैं आ रही हूं।Ó अधिकारी ने कहा कि मैंने तो किसी को मुख्यमंत्री से मिलने की अनुमति नहीं दी है। अगले दिन सुबह महिला मोदी के साथ थी। मोदी ने उससे पूछा कि तुम तो बेंगलुरू जाने वाली थी। यहां कैसे? तब भरोसा हो गया कि महिला झूठ नहीं बोल रही थी। उसके बाद अधिकारी के घर एक बेनामी पत्र के साथ महिला की एक क्लिपिंग आई। उन्होंने यह बात कुछ लोगों को फोन पर बताई। मुख्यमंत्री को इसका पता चल गया। उन्हें शक हुआ कि यह क्लिपिंग महिला और उनके बारे में है। इस वजह से अधिकारी के घर छापे मारे गए। लेकिन किसी को क्लिपिंग नहीं मिली। उन्हें झूठे मामलों में फंसाया गया। लड़की ने बताया कि किसी ने उसे 2006 में पैसा ऑफर किया था। लेकिन उसने नहीं लिया। आरटीआई आवेदन से खुलासा हुआ है कि 2005 में इस महिला आर्टिटेक्ट को वीआईपी दर्जा मिला हुआ था। कच्छ में वार्षिक विंटर फेस्टिवल के दौरान महिला को 5,153 रुपए का मोबाइल रिचार्ज और पेट्रोल खर्च का चेक जारी हुआ था। फेस्टिवल का कुल बिल 2.43 करोड़ रुपए था। किसी और व्यक्ति को मोबाइल रिचार्ज का पैसा नहीं दिया था। यह सारा वाकया संदिग्ध है।

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