31-Dec-2013 07:12 AM
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सनी लियोनी की दूसरी फिल्म जैकपॉट रिलीज हो गई है। जानिए अंग प्रदर्शन के मामले में सनी लियोनी पिछली फिल्म से आगे निकल पाई हैं? जैकपॉट देखने के लिए जरूरी नहीं कि आपको जुआ खेलना आए। परंतु एक फिल्म में जरूर
इतनी ताकत होनी चाहिए कि वह अनाड़ी आदमी को भी समझा दे कि पर्दे पर क्या चल रहा है। निर्देशक कैजाद गुस्ताद इस मामले में पूरी तरह नाकाम हैं। पहली सुपरफ्लॉप फिल्म बूमÓ से पहचाने जाने वाले कैजाद की यह दूसरी फिल्म है। जो पहली फिल्म के रास्ते पर ही चलती मालूम पड़ती है। फिल्म में कहानी तो उलझाने वाली है ही, निर्देशक ने भी उसे जिस ढंग से पेश किया है उससे वह और उबाऊ मालूम पडऩे लगती है। कुछ दर्शक तो इसे झेल नहीं पाते और बीच में ही उठ कर चल देते हैं। यहां गोवा का एक गांव है। जिसमें एक कैसिनो (जुआघर) है। कैसिनो का एक बॉस (नसीरूद्दीन शाह) है। गांव वाले मिल कर बॉस को ठगने के चक्कर में हैं। रकम है... पांच करोड़! सब क्यों बॉस के पीछे पड़े हैं? उसने क्या बिगाड़ा है? क्या गांव के लोगों और बॉस में पुराने दुश्मनी है? वगैरह-वगैरह। कई ऐसे सवाल हैं जिनका कहानी में कोई जवाब नहीं है। इससे भी बढ़ कर यह कि फिल्म में हीरो (सचिन जोशी) और हीरोइन (सनी लियोनी) की लव स्टोरी में कोई दम नहीं है। निर्देशक यह बता ही नहीं पाते कि क्या वाकई उनमें लव है? या बस खेल चल रहा है। हीरो-हीरोइन अपने दोस्तों के साथ मिलकर 250 एकड़ के एक मैदान पर झूठा बोर्ड लगा के बॉस को सपना दिखाते हैं। वह सिर्फ दस करोड़ में ये खरीद सकता है। बॉस झांसे में आ जाता है। फिर कैसे वह जाल में फंसता है, यही फिल्म में बहुत बिखरे अंदाज में दिखाया गया है। दर्शक कहानी का मजा नहीं ले पाता क्योंकि खुद उसे बिखरे सिरों को जोडऩे में सिर खपाते रहना पड़ता है। नसीर की श्रेणी के अभिनेता कई फिल्में पैसों की खातिर करते हैं। यह उसी श्रेणी की फिल्म है। जिसके प्रमोशन में उन्होंने हिस्सा नहीं लिया और न भविष्य में इस पर बात करना चाहेंगे। जूट की रसिस्यों-से बालों वाला एक गंदा गेट-अप उनके सिर यहां मढ़ा गया है। वहीं सचिन जोशी का भविष्य इस फिल्म को देख कर भी उज्ज्वल नहीं लगता।