31-Dec-2013 07:04 AM
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दिल्ली में न न करते केजरीवाल ने आम आदमी की सरकार बना ही ली। कांग्रेस देखती रह गयी। यदि कांग्रेस विश्वास मत का समर्थन नहीं करती है तो सरकार गिराने का पाप उसके सर पर लगेगा और यदि समर्थन देती है तो कम से कम

6 माह तक तो केजरीवाल को झेलना ही होगा इस दौरान केजरीवाल अपना काम कर जाएंगे। यदि उनके कामों में कांग्रेस ने अड़ंगा डाला तो कांग्रेस का चेहरा बेनकाब होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि कांग्रेस ने राज्यपाल को बिना शर्त के आप को समर्थन देने की जो चाल चली थी वह उल्टी पड़ गयी है। आम आदमी पार्टी ने जनता से रायशुमारी कर सरकार बनाई है इसलिए उनपर कोई यह आरोप नहीं लगा सकता कि वे अवसरवादी हैं। आप की सरकार बनाने की घोषणा से कांग्रेस और भाजपा नेताओं के चेहरे लटक गये हैं। इस फैसले ने कांग्रेस और भाजपा की राजनीति को एक और तगड़ा झटका दिया है। मेट्रो से रामलीला मैदान जाकर शपथ लेने वाले केजरीवाल ने दिल्ली से वीआईपी संस्कृति को हटाने का बीड़ा उठाया है।
कांग्रेस की स्थिति आगे कुआं पीछे खाई वाली है तो भाजपा की हालत खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे वाली है। कांग्रेस, भाजपा और आप तीनों अपने-अपने नफे-नुकसान के मद्देनजर राजनीतिक चालें चल रहे थे। आप को घेरने में लगी भाजपा और कांग्रेस को अंत्तोगत्वा आप ने मनौवैज्ञानिक तौर राजनीतिक पटखनी दे दी है। राजनीतिक रूप से दोनों दलों की यह पराजय आने वाले समय में देश की रजनीति पर प्रभाव डालेगी। खासकर मोदी के चुनावी अभियान के लिए यह एक बड़ी चुनौती है क्योंकि आम आदमी पार्टी शहरों में अपनी खास पकड़ बना रही है। मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के अभियान के समय अब भाजपा ने आप के लिए नयी रणनीति बनाई है।
दिल्ली विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा रही थी जिसे 31 सीटें मिली थीं। करीब दो हफ्ते तक राजनीतिक गतिरोध बना रहा। भाजपा ने सरकार बनाने में असमर्थता जाहिर की। उसी के बाद से आप पर सरकार बनाने का चौतरफा दबाव बनने लगा था। बहुमत के लिये कांग्रेस ने आप को बाहर से समर्थन देने की घोषणा करने के बाद से ही आप से कहा जा रहा था कि वो सरकार बनाकर जनता से किये वायदों को पूरा करे। कांग्रेस चूंकि इस स्थिति में नहीं थी कि वो सरकार बना सके ऐसे में उसने आप को बाहर से समर्थन देकर बड़ा दांव खेला। कांग्रेस रणनीतिकारों ने यह सोचा कि आप को समर्थन देकर सरकार बना दी जाए। क्योंकि अगर आप की सरकार नहीं बनती है तो दोबारा चुनाव के मैदान में उतरना पड़ेगा। ऐसे में अगर दोबारा कांग्रेस की सीटें नहीं बढ़ती तो इसका बड़ा निगेटिव प्रभाव 2014 के लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। वहीं दिल्ली की जनता भी कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करेगी कि उसे आप को बिना शर्त समर्थन देकर सरकार बनाने का प्रयास करना चाहिए था।
आप भी पहले कह चुकी थी कि वो किसी ने समर्थन लेगी और न ही किसी को समर्थन देगी। ऐसे में उसने सरकार बनाने के सवाल को सीधे तौर पर जनता के बीच ले जाने की रणनीति पर काम किया। आप ने सरकार बनाने को लेकर जनता की राय पूछी उसमें उसे 5 लाख 23 हजार एसएमएस मिले जिनमें से 70 प्रतिशत जनता सरकार बनाने के पक्ष में थे। आप ने दिल्लीभर में कुल 280 सभाएं की। इनमें से 257 सभाओं में भी सरकार बनाने के पक्ष में राय आई थी। जनता के बीच जाने से आप ने एक तीर से दो निशाने एक साथ लगाने का काम किया है।
सरकार बनने पर आप के विरोधी दल निराशा में डूब चुके हैं, क्योंकि आप ने अपने घोषणा पत्र में जो असंभव वायदे किए, इतने दिनों में उन्हें संभव करने के उपाय भी पार्टी नेताओं ने खोज लिया होगा। माना जा रहा है कि सरकार बनते ही पार्टी नेता अपने वायदों को पूरा करने के लिए फैसले लेने लगेंगे। जाहिर है कि ज्यादातर के लिए नौकरशाही तैयार न होगी तो पार्टी के नेता एक साथ दोनों तरह के पहल कर सकते हैं। जो वायदे पूरे होंगे उन्हें पूरे करवाएंगे और जिन पर अड़ंगा लगेगा उसे लेकर जनता के बीच जाएंगे। यह भी संभव है कि उसी बहाने वे दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने के अपने वायदे पर अमल करने के लिए आंदोलन शुरू करें। इसी मुद्दे पर चार महीने बाद लोकसभा चुनाव में चले जाएं। यह लगभग तय है कि अरविंद केजरीवाल और पार्टी के बड़े नेता लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। सरकार बनाने की दुविधा खत्म कर वे इसी काम में लगने वाले हैं। इसीलिए यह भी कहा जा रहा है कि केजरीवाल तो कुछ महीने केवल नाम के मुख्यमंत्री बनेंगे, सारा काम उनकी टीम के दूसरे लोग देखेंगे । केजरीवाल लोकसभा चुनाव में देशभर में पार्टी का प्रचार करेंगे।
आप को बिना शर्त समर्थन देने वाली कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा नेता भी इस प्रयास में लगे हुए हैं कि आप की सरकार बने जिनसे उन पर वायदे पूरा न कर पाने का आरोप लगे और अगर दोबारा चुनाव हुआ तो इसका ठीकरा आप के सिर फोड़ा जा सके।
आप के नेता शुरू में इस पक्ष में थे कि अगर इसी हाल में चुनाव हो जाए तो आप को आसानी से पूरा बहुमत मिल जाएगा। जिस मुद्दे के आधार पर वे चुनाव में गए यानी कि न तो कांग्रेस का समर्थन लेंगे और भाजपा का। उसे सरकार के लिए क्यों छोड़ दें। कुछ नेता शुरू से और अब ज्यादातर नेता इस मत के हैं कि अपनी शर्तों पर सरकार बनवाकर अगर उन्होंने लोकसभा चुनाव तक एक-दो भी बड़ा वायदा पूरा कर लिया तो न केवल दोबारा विधानसभा चुनाव में उन्हें बहुमत मिलेगा बल्कि लोकसभा चुनाव में भी अच्छी सफलता मिलेगी। विधायक तो ज्यादातर इसी मत के हैं। कांग्रेस किसी भी तरह विधानसभा चुनाव टालने में लगी हुई है। अभी तो कांग्रेस के नेता मानते हैं कि बिजली के दाम आधा करने, हर घर में मुफ्त 700 लीटर पानी पहुंचाने, जहां अनधिकृत कालोनी हैं, वहीं पक्का मकान देने जैसे असंभव वायदे को न पूरा कर पाने के चलते आपÓ खुद परेशान हो कर सरकार गिरा देगी, अगर ऐसा नहीं हुआ तो किसी बहाने कांग्रेस सरकार गिरा देगी जैसा कि उसका पुराना इतिहास रहा है। केजरीवाल ने कहा कि सरकार बनाने के बाद उनकी प्राथमिकता होगी कि वह वीआईपी कल्चर खत्म हो। न तो कारों पर लाल बत्तियां लगी होंगी और न ही हूटर। उनके मंत्री भी दिल्ली के लुटियंस जोन में मिलने वाले कमरों के बजाय अपने घरों में ही रहेंगे। कांग्रेस, भाजपा और मीडिया द्वारा ये सवाल बार-बार पूछे जाने पर कि क्या घोषणापत्र में किए गए वायदों को पूरा कर पाएंगी आम आदमी पार्टी। दिल्ली में विजय परचम लहराने के बाद आप की नजरें लोकसभा चुनाव में दिल्ली, हरियाणा, यूपी और गुजरात पर टिकी हैं। दिल्ली में सरकार बनाने से उसकी जनता के बीच चुनौती स्वीकार करने वाले दल की बनेगी तो वहीं उसे प्रशासनिक ताकत और अनुभव भी प्राप्त होगा। दिल्ली देश की राजधानी है ऐसे में वहां समस्याओं की कमी नहीं है वहीं घोषणा पत्र में किये वायदे पूरा करना भी बड़ी चुनौती है।
पद संभालते ही काम शुरू
अरविंद केजरीवाल जल्दी में हैं उन्हें मालूम है कि कांग्रेस विश्वसनीय पार्टी नहीं है। कभी भी किसी भी वक्त धोखा दे सकती है, लेकिन जितना समय मिला है उसमें जनता से किए गए वादे को पूरा करने के लिए केजरीवाल हर संभव कोशिश कर रहे हैं। अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में उन्होंने दिल्ली से लालबत्ती की संस्कृति को अलविदा कह दिया। कोई भी विधायक, मंत्री या नौकरशाह अब लालबत्ती नहीं लगा सकेगा। भ्रष्टाचार के लिए उन्होंने कहा कि यदि कोई रिश्वत मांगे तो मना मत करना उससे सेटिंग कर लेना हमें एक फोन कर देना, उसे पकड़वा देना और आपका काम सरकार करवाएगी। एक हफ्ते बाद विश्वासमत आने वाला है, लेकिन केजरीवाल को उसकी फिक्र नहीं है। केजरीवाल का कहना है कि सरकार गिरे या रहे आम आदमी पार्टी को जनता की सेवा करनी है वह सरकार के बाहर रहकर भी की जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि साथियों को घमंड नहीं करना चाहिए। वह अपने इलाकों में जाएं और सेवा भावना से काम करें, अपनी जीत पर केजरीवाल बहुत उत्साहित नहीं हैं, बल्कि वह कह रहे हैं कि दिल्ली की जनता ने दिखा दिया है कि ईमानदारी से चुनाव लड़ा जा सकता है और ईमानदारी से चुनाव जीता भी जा सकता है। अरविंद केजरीवाल नौकरशाही के दांव-पेंच से वाकिफ हैं और यह भी समझते हैं कि वे सारे काम एक दिन में नहीं कर पाएंगे इसलिए उन्होंने लोगों से कहा कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे एक दिन में सरकार बनेगी और दूसरे दिन समाधान मिल जाएगा। किंतु इतना अवश्य है कि दिल्ली की डेढ़ करोड़ की आबादी अगर एक हो गई तो हर समस्या का हल मिल जाएगा। रामलीला मैदान पर जब केजरीवाल बोल रहे थे तो कुछ दूसरे राजनीतिक दलों के द्वारा भेजे गए जासूस भी उन्हें सुनने आए थे। अपनी-अपनी कारों में बैठे ये लोग जानने की कोशिश कर रहे थे कि जनता का मिजाज क्या है। केजरीवाल की ताजपोशी ने दिल्ली में सभी राजनीतिक दलों को कड़ी चेतावनी दी है। यदि केजरीवाल देश के शहरों और गांवों में पहुंचने में कामयाब हो जाते हैं तो देश की राजनीति को वे पूरी तरह बदलकर रखने की ताकत भी रखते हैं।
अन्ना उदासीन
अन्ना हजारे ने दिल्ली में नयी सरकार बनाने के अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (आप) के फैसले पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और बस इतना कहा कि जब उनके पूर्व सहयोगी लोकायुक्त मुद्दे पर कुछ करेंगे तब वह अपनी राय व्यक्त करेंगे। उन्होंने कहा, मैं बोलता हूं, केजरीवाल पर नो कमेंट। कोई बात नहीं करना है।ÓÓ जब उनसे केजरीवाल की पार्टी द्वारा बाहर से कांग्रेस का समर्थन लेने के बारे में पूछा गया तब उन्होंने कहा, जो भी अच्छा हो, उसे करने दीजिए...जो भी ठीक होगा, वह करेगा।ÓÓ जब उनसे पूछा गया कि क्या केजरीवाल का कदम नैतिक है, उन्होंने कहा, मैं बात नहीं करना चाहता... अभी पता नहीं, वो क्या करने वाले हैं।ÓÓ