18-Dec-2013 08:47 AM
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छत्तीसगढ़ के चुनावी परिणाम आशा के अनुरूप ही रहे। हालांकि 8 दिसंबर को जब मतगणना चल रही थी। बड़े उतार-चढ़ाव देखने को मिले। किसी कमजोर दिलवाले के लिए तो यह सदमा ही हो सकता था। कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस

आगे रहती। एक समय ऐसा भी आया जब कांग्रेस 50 सीटों पर आगे हो गई और कांग्रेस के मुख्यालय में भी मिठाइयां वगैरह आकर रखा गईं। पदाधिकारियों की चहल-पहल भी होने लगी उन्हें लगा कि रुझान परिणामों में बदलने वाले हैं। टीवी पर चर्चा कर रहे पत्रकार भी कांग्रेस के लिए अच्छी खबर की घोषणा कर रहे थे। उधर चिंतित रमन सिंह से दिल्ली के नेताओं ने बातचीत की नरेंद्र मोदी अहमदाबाद में हवाई पट्टी पर थे और दिल्ली की तरफ उड़ान भरने को तैयार थे उन तक भी यह खबर पहुंची कि छत्तीसगढ़ हाथ से जा रहा है, लेकिन उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया कि जब तक मैं दिल्ली पहुचुंगा छत्तीसगढ़ भी जीत लिया जाएगा। लगभग वैसा ही हुआ दिल्ली में जिस वक्त नरेंद्र मोदी का प्लेन उतर रहा था उसी समय भाजपा की लीड बढऩे लगी। पहले 44-43 का आंकड़ा आया फिर 44-44 की बराबरी का फिगर आया फिर अचानक 47-40 का फलेश दिखने लगा और शाम तक यह पता हो गया कि भारतीय जनता पार्टी ने फिर मैदान मार लिया है। 49 सीटें भाजपा के खाते में गई। दोनों दलों के बीच बहुत कड़ा मुकाबला था और कोई भी कम नहीं था। महज एक प्रतिशत वोट लेकर भाजपा ने कांग्रेस को पराजित कर दिया। कांगे्रस के लिए उस दिन यह तीसरा धक्का था। राजस्थान और मध्यप्रदेश में जो भूकंपीय बहुमत भारतीय जनता पार्टी को मिला वैसा तो छत्तीसगढ़ में नहीं मिला लेकिन उसके बावजूद जीत प्रभावी थी और कांग्रेस के लिए चिंताएं बढ़ती जा रही थीं। अजीत जोगी जो बड़ी उत्सुकता से टेलीविजन की तरफ नजरें गड़ाए हुए थे अपनी पत्नी और बेटे की जीत की खबरों के बावजूद मायूस दिखाई दिए। उन्हें उम्मीद थी कि सत्ता मिली तो शायद कोई भूमिका मिले। लेकिन अगले पांच वर्ष फिर भारतीय जनता पार्टी का राज इस प्रदेश में रहने वाला है यह तय हो गया है। रमन सिंह भारतीय जनता पार्टी के उन मुख्यमंत्रियों में शामिल हो चुके हैं जिन्होंने लगातार तीसरी जीत दर्ज की है। राष्ट्रीय राजनीति में भी उनका कद बढ़ा है और उनके आत्मविश्वास में भी चौगुनी वृद्धि हुई है। रात में थके-थके किंतु चमकते हुए चेहरे से जब रमन सिंह ने पत्रकारों का इस्तकबाल किया तो लगा कि कहीं न कहीं उनके चेहरे पर संतोष है वे कठिन मुकाबले में ही सही लेकिन जीत गए हैं।
छत्तीसगढ़ छोटा राज्य है महज 90 विधानसभा सीटें हैं कहीं भी झुकाव हो सकता है, लेकिन लगातार तीसरी बार सत्ता में आकर रमन सिंह ने अपनी काबिलियत सिद्ध की है। उस माहौल में जब छत्तीसगढ़ में एक बड़ा नक्सली हमला हुआ और सहानुभूति तकरीबन कांग्रेस की तरफ थी, रमन सिंह ने बड़ी कुशलता से भाजपा को जीत दिलाई और अपनी सरकार के कामकाज पर एक तरह से जनता से अनुमोदन प्राप्त किया।
कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ एक बड़ा धक्का है। हालांकि चरणदास महंत कह रहे हैं कि उन्होंने पार्टी नेताओं की शहादत को भुनाने की कोशिश नहीं की, लेकिन बस्तर में कांग्रेस की बढ़त के पीछे कहीं न कहीं इस वारदात का योगदान था। लेकिन बस्तर को छोड़कर बाकी जिलों में कांग्रेस की दुर्गति चिंता करने वाली है। कांग्रेस ने इस बार राहुल फार्मूले पर टिकिट बांटने की कोशिश की थी, लेकिन राहुल फार्मूला छत्तीसगढ़ में नहीं चला। उसका कारण यह रहा कि भले ही ऊपर से एक दिख रहे थे, लेकिन अंदर से बंटे हुए थे सारे नेता। एक-दूसरे की जड़ खोदने में संलग्न थे और इसी कारण दिग्गजों के इलाकों में कांग्रेस की पराजय हुई। कई बड़े नेता अपना गढ़ नहीं बचा पाए। इस बात की चिंता तो स्वयं चरणदास महंत ने भी व्यक्त की। लेकिन इस जनादेश को सरकार के पक्ष में कहना जल्दबाजी होगी। यदि भारतीय जनता पार्टी टिकिट वितरण में सतर्कता नहीं दिखाती तो मात्र एक लाख वोटों के अंतर से भारतीय जनता पार्टी सत्ता में शायद ही आ पाती। भाजपा को 53.4 लाख वोट मिले हैं, जो वर्ष 2000 के वोटों के मुकाबले कहीं 0.7 प्रतिशत अधिक हैं। जबकि कांग्रेस को 1.6 प्रतिशत वोटों का फायदा हुआ है। यानी लोकप्रियता दोनों दलों की बढ़ी और वोट बैंक में भी तब्दीली आई पर अर्थमैटिक कांग्रेस के खिलाफ बैठ गया। कांग्रेस की यह दुर्गति कई सवाल खड़े करती है। छत्तीसगढ़ में कोई लहर नहीं थी। सत्ता विरोधी रुझान के कारण भाजपा स्वयं सकते में थी। सारे एग्जिट पोल में बमुश्किल सरकार बनने की भविष्यवाणी कहीं जा रही थी, लेकिन कांग्रेस इतनी कमजोर होकर काम कर रही है यह अनुमान नहीं था। इस जीत के बाद कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी फैक्टर ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को पुन: सत्ता पाने से रोकने में अहम भूमिका निभाई है। भाजपा का भी कहना है कि नरेंद्र मोदी की मौजूदगी से सत्ता विरोधी रुझान कम हुआ और केंद्र में कांगे्रस की नाकामी को मोदी ने राज्य में भुना लिया। मोदी इस खेल में माहिर तो हैं और इसमें कोई शक भी नहीं है। लेकिन अकेले मोदी श्रेय देना ज्यादती होगी। रमन सिंह पिछले पांच वर्षों से लगातार मेहनत कर रहे थे। पिछली बार के चुनाव उनको चिंता में डाल चुके थे। हालांकि भाजपा 50 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन रमन सिंह इस सच्चाई से वाकिफ थे कि छोटा राज्य होने के कारण थोड़ा बहुत रुझान भी सत्ता से बेदखल कर देगा। इसीलिए उन्होंने सस्ते चावल देने से लेकर तमाम योजनाएं लागू कीं और देश में सबसे अच्छी सार्वजनिक वितरण प्रणाली विकसित करके दिखाई। रमन सिंह का यह करिश्मा काम कर गया। विश्लेषकों का मानना है कि यदि रमन सिंह के शासनकाल में कांग्रेसी नेताओं पर जानलेवा हमले की घटना न होती तो शायद वे 55 से 60 के बीच में सीटें जीत लेते। यह अनुमान कुछ हद तक सही भी है, लेकिन बस्तर में जिस तरह भाजपा ने राजपरिवार से निकटता बढ़ाई उसका दुष्प्रभाव चुनावों पर पड़ा। बहरहाल जीत-जीत होती है। कांग्रेस को 39 सीटें मिली हैं और उसकी एक सीट बढ़ी है। अन्य दो सीटों पर जीते हैं और नरेंद्र मोदी ने जो चुनावी सभाएं की है वहां भाजपा को कोई विशेष फायदा नहीं हुआ। नेता प्रतिपक्ष रवींद्र चौबे की साजा से पराजय चौंकाने वाली है। कई दिग्गज धराशायी हुए हैं। कांग्रेस के 27 विधायक और भाजपा के 21 विधायक हार गए। पांच मंत्री भी धराशायी हो चुके हैं, जिनमें लता उसेंडी, चंद्रशेखर साहू, ननकी राम कंवर, राम विचार नेताम और हेमचंद यादव प्रमुख हैं।
महिलाओं को इन चुनावों में विशेष तवज्जों नहीं मिली। भाजपा ने कुल 11 महिलाओं को टिकिट दिया था, जिसमें से छह जीत पाईं। कांग्रेस ने 14 महिलाओं को टिकिट दिया था जिनमें से 3 जीतीं। जीतने वाली उल्लेखनीय महिला हैं रेणु जोगी। अन्य दलों ने 56 महिलाओं को मैदान में उतारा सभी हार गईं। रमन सिंह भारी अंतर से जीते लेकिन उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है भाजपा के बृजमोहन अग्रवाल का रायपुर दक्षिण सीट से लगातार छठवीं बार जीतना। खास बात यह है कि अग्रवाल की जीत का अंतर इस बार भी बढ़ा। एक निर्दलीय जीता है, बहुजन समाज पार्टी एक सीट पर सिमट गई हैं पिछली बार दो थी। रायपुर ग्रामीण में कांग्रेस प्रत्याशी सत्यनारायण शर्मा जीतने में कामयाब रहे हैं। यूं देखा जाए तो न किसी को फायदा है न नुकसान। सबसे बड़ी जीत कांग्रेस के हिस्से में आई है जहां अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी 46250 वोटों से जीतने में कामयाब रहे हैं। जबकि भाजपा के राजू सिंह क्षत्रिय मात्र 608 सीटों से जीत सके हैं। जनता ने रमन सिंह के चेहरे और चावल पर भरोसा दिखाया है, लेकिन प्रत्याशियों से मोह भंग भी हुआ है। लगभग 4 लाख से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया जो एक चिंतनीय आंकड़ा हो सकता है। सुनने में आया है कि नोटा का बटन सबसे ज्यादा आदिवासी बहुल क्षेत्रों में दबाया गया है। यह तो विश्लेषण की बात है, लेकिन जिस तरह नोटा को एक बड़ी संख्या में वोट मिले हैं उसे याद रखना बहुत जरूरी है।
खासकर छत्तीसगढ़ में इसका महत्व है। क्योंकि दोनों दलों के बीच जीत का अंतर महज 1 लाख है और नोटा का बटन दबाने वालों की संख्या 4 लाख से ज्यादा है।