05-Dec-2013 10:05 AM
1234795
वोट बैंक की आड़ में अल्पसंख्यकों की कुछ ज्यादा ही पैरवी करते हुए मुआवजे में भेदभाव बरतने पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाई है। यूपी सरकार को दंगा पीडि़तों को मुआवजे का आदेश वापस लेने का कहा है। सुप्रीम

कोर्ट का कहना है कि बेहतर होगा यदि राज्य सरकार सभी पक्ष के पीडि़तों को मुआवजे में शामिल करे। उत्तरप्रदेश सरकार के आदेश में दंगा पीडि़तों से कहा गया था कि यदि वे हलफनामा दें कि वे अपने गांव नहीं लौट सकते तो उन्हें पांच लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन बाद में स्थानीय प्रशासन ने साफ किया कि हलफनामे का अर्थ यह नहीं है कि मुस्लिम दंगा पीडि़त अपनी संपत्ति पर अधिकार खो देंगे। दरअसल राज्य सरकार इन दंगों के बाद से ही मुस्लिम समाज की कुछ ज्यादा ही हिफाजत करने लगी है। इसी कारण राज्य में दोनों समुदायों के बीच धु्रवीकरण भी दिख रहा है। भारतीय जनता पार्टी इस धधकती आग में अपने स्वार्थ की रोटी सेंकना चाहती है। हाल ही में भाजपा के मंच पर इन दंगों के आरोपी विधायकों का नायकों जैसा स्वागत किया गया। उधर समाजवादी पार्टी भी कुछ इसी अंदाज में मुस्लिम समाज के कुछ धुरंधर नेताओं को अपनी सभाओं में बुला रही है।
इससे ऐसा लगने लगा है कि राज्य में मुसलमानों की पार्टी समाजवादी पार्टी है और हिंदुओं की पार्टी भारतीय जनता पार्टी है। इस विभाजन ने कांग्रेस तथा बहुजन समाज पार्टी को चिंता में डाल दिया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बीएसपी और कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले किसी फार्मूले पर काम कर सकते हैं। क्योंकि समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस के तालमेल का सवाल ही पैदा नहीं होता और राज्य में हिंदू-मुस्लिम धु्रवीकरण होने पर जातिवाद का मुद्दा भी ठंडा ही पड़ जाएगा। आलम यह है कि दोनों दल गाहे-बगाहे नफरत की इस आग को जलाए रखना चाहते हैं। समाजवादी पार्टी कुछ ज्यादा ही इच्छुक है इस आग को धधकाने के लिए। मुआवजे का प्रस्ताव भी कुछ ऐसा ही प्रस्ताव था, जिसमें प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने राज्य सरकार से साफ कहा कि सभी पीडि़त समान है। बेहतर होगा राज्य सरकार अधिसूचना वापस ले। कोर्ट के इस रुख को देखते हुए उत्तरप्रदेश सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने तत्काल कहा कि किसी भी व्यक्ति को धर्म के आधार पर पुनर्वास से वंचित नहीं किया जाएगा। अधिवक्ता ने स्वीकारा कि राज्य सरकार से गलती हुई है और इसे अधिसूचना में शामिल नहीं होना चाहिए था। इसे वापस लेकर नई अधिसूचना जारी की जाएगी। उत्तरप्रदेश में मुस्लिम शब्द सत्तासीन समाजवादी पार्टी के लिए एक बहुमूल्य शब्द बनता जा रहा है। वह सरकारी योजनाओं के लाभ से लेकर मुआवजे तक हर जगह मुसलमानों या मुस्लिमों शब्द का प्रयोग जरूर करती है। मुस्लिमों की इस अनावश्यक तरफदारी ने राज्य में भाजपा जैसी पार्टियों को बवंडर खड़ा करने का मौका दे दिया है और यह बवंडर कब तूफान में बदल जाएगा कहा नहीं जा सकता। बहरहाल भारतीय जनता पार्टी फिलहाल उत्तरप्रदेश में बहुत उत्साहित है। जो कुछ भी हो रहा है। उसकी योजना के तहत ही हो रहा है। मुजफ्फरनगर के दंगों में भले ही उसकी भूमिका न रही हो, लेकिन इन दंगों ने कहीं न कहीं भाजपा को राजनीतिक रूप से लाभान्वित किया है। नरेंद्र मोदी की सभाएं उत्तरप्रदेश में लगभग मृत हो चुकी भाजपा में नई जान फूंक रही हैं। भाजपा का काडर भी अब हरियाने लगा है, पहले कई ग्रामीण क्षेत्रों से भाजपा कार्यकर्ता लगभग विलुप्त हो चुके थे, अब वे भी दिखाई देने लगे हैं। इस बदले हुए माहौल ने मुलायम सिंह को चिंता में डाला है। यदि वे सर्वधर्म समरसता का रास्ता अपनाते हैं तो मुस्लिमों को लगेगा कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है। लिहाजा मुलायम खुलकर मुसलमानों के पक्ष में आ गए हैं, लेकिन उनके सुपुत्र कहीं न कहीं हिंदुओं को भी अपनी तरफ रखना चाहते हैं। मुजफ्फरनगर दंगों के समय आजम खान की नाराजगी इसी बात पर थी कि अखिलेश यादव ने कथित रूप से हिंदुओं की मदद की। अखिलेश की राजनीति मुलायम से थोड़ी हटी हुई है वे यह जानते हैं कि जब धार्मिक टकराव अपने चरम पर होता है तो जातिवाद नहीं चलता। यदि उत्तरप्रदेश में हालात विस्फोटक होंगे तो मुलायम का बहुचर्चित मुस्लिम यादव समीकरण धराशायी हो जाएगा क्योंकि यादव किसी भी स्थिति में धार्मिक अवहेलना नहीं झेल सकते। वैसे भी भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली को लेकर मुसलमानों के साथ जो विवाद चल रहा है वह यादवों के लिए चुनाव के वक्त एक बड़ा मुद्दा हो सकता है। भाजपा में हालांकि इस विषय में कोई विशेष हलचल नहीं दिखाई दी है, लेकिन मौका आने पर भाजपा इस मुद्दे पर भी दांव खेल सकती है। यदि ऐसा हुआ तो मुलायम दुविधा में पड़ जाएंगे। वैसे फिलहाल तो विकास को केंद्र में रखकर ही मोदी राजनीति कर रहे हैं और धर्म निरपेक्ष दिखने की कोशिश में हैं।
कांग्रेस 1989 के बाद से न केवल इस राज्य में सत्ता से बाहर है अपितु उसका प्रभाव क्षेत्र भी सिकुड़ता जा रहा है। यही नहीं तो केंद्रीय सत्ता में जिस 2004 में वह वापिस लौटी उस समय उसे कुछ दस सीटें जीतने में सफलता मिली थी। 2009 में जीती 22 सीटों का महत्व इसलिए भी अधिक महत्व रखता है क्योंकि उसके बाद 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में उसे तीस सीटें ही मिल पायी थी अर्थात लोकसभा की कुल छह सीटों के लायक ही बढ़त। कांग्रेस की स्थिति में 2012 के निर्वाचन के बाद उत्तर प्रदेश में गिरावट ही हुई है। उत्तर प्रदेश में वह समाजवादी पार्टी के पीछे खड़ी हो या बहुजन समाज पार्टी के। आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में दोनों दलों के सुप्रीमो और उनके परिवार को राहत देकर उसने जो दांव चला है उसका कितना अनुकूल परिणाम होगा यह कहना कठिन है। लेकिन दोनों ही दलों ने चुनाव में कांग्रेस से दूर ही रहने का अभियान चला रखा है। सपा उसे कुशासन और मुस्लिम हितों को नजरंदाज करने के लिए दोषी ठहरा रही है और बसपा ने किसी भी दल के साथ चुनावी समझौता करने की अपनी नीति पर कायम रहने का संकल्प व्यक्त किया है। बसपा ने 1993 के बाद-जब सपा से समझौता किया था-किसी भी दल के साथ चुनावी समझौता नहीं किया है। चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए भी उसकी प्राथमिकता मायावती को उसका सिरमौर बनाने की प्राथमिकता रही है। मायावती को आशा है कि चौधरी चरण सिंह और चंद्रशेखर की तरह उन्हें भी प्रधानमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस विवश होगी। उधर मुलायम सिंह तीसरे मोर्चे के जरिए प्रधानमंत्री बनने की जुगत में लगे हैं। दोनों ही परवान चढ़ेंगे ऐसा विश्वास दिला पाने युक्त माहौल फिलहाल नहीं है। यदि 2009 द्मद्ग निर्वाचन में सीटों की प्राप्ति की समीक्षा करें तो यह स्पष्ट होता है कि उसे अधिकांश सीटें प्रदेश के अवध क्षेत्र से प्राप्त हुई थी और इसमें वर्तमान इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का महत्वपूर्ण योगदान माना जा सकता है। बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर, बहराइच, बाराबंकी, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, बस्ती, सुल्तानपुर, रायबरेली में बनी प्रसाद वर्मा की बिरादरी ने कांग्रेस को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये जनपद कुर्मी बिरादरी की राजनीतिक हैसियत वाले रहे हैं, आज भी हैं। उत्तर प्रदेश भर में कुर्मी समाज प्रतिवर्ष धूम धाम से सरदार पटेल की जयंती मनाता है। कांग्रेस को 2009 में बेनी वर्मा फैक्टर का लाभ होने के कारण कांग्रेस जिन कारणों से लोगों को निलंबित या निष्कासित करती रही है उसकी सीमाएं पार करने के बावजूद वर्मा के खिलाफ यदि बोलने का साहस नहीं दिखा पा रही है तो उसकी पृष्ठभूमि में मतदाता का वह समीकरण है जिसे उन्होंने बनाकर 2009 में कांग्रेस को 22 सीटें दिलाई। इसमें एक सीट फिरोजाबाद से राजब्बर की सीट भी शामिल है जो उपचुनाव में मिली थी।
कांग्रेसियों के सामने समस्या है कि नित्य बढ़ती महंगाई, घोटालों, कुशासन, चीन-पाकिस्तान तथा अन्य देशों में मिल रही बेइज्जती और कानून भर बना देने की गर्वोक्ति के कारण तथा नरेंद्र मोदी के प्रति अशोभनीय अभिव्यक्ति के कारण कांग्रेस के प्रति जो देशव्यापी अरूचि बढ़ी है, उसका उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक प्रभाव है। इस प्रभाव का एक कारण यह भी है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रायबरेली और राहुल गांधी अमेठी को ही उत्तर प्रदेश समझ लिया है। सारी केंद्रीय योजनाओं का अधिकतम नियोजन इन दोनों क्षेत्रों में उसी तरह सीमित हो गया है जैसा उनका उत्तर प्रदेश का दौरा। अब तो अमेठी से राहुल के चुने जाने पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है क्योंकि संजय सिंह ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है। संभव है अभी यह कहना तर्कसंगत न लगता हो कि 1977 की भांति (जब संजय गांधी और इंदिरा गांधी दोनों ही अमेठी-रायबरेली से हार गए थे) उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति वही जायेगी लेकिन इस बात को शायद ही कोई कहने वाला है कि वह 2004 की भी स्थिति बनाए रख पायेगी। अमेठी के राजा संजय सिंह जो आपातकाल से ही इस क्षेत्र में कांग्रेस के कर्णधार थे, इस समय सुल्तानपुर से सांसद हैं, राहुल गांधी के मुकाबले अमेठी से चुनाव लडऩे के लिए ताल ठोक चुके हैं जो 1977 के चुनाव परिणाम की ओर बरबस ध्यान खींच रहा है। कांग्रेस इस समय सबसे गहरे संकट के दौर में है उसकी ऐसी स्थिति 1977 में ही नहीं हुई थी जब नौ राज्यों में शून्य हो जाने के बावजूद दक्षिण के राज्यों में मिले समर्थन के कारण उसे हाशिए पर डाला जाना संभव नहीं हो सका था। इस बार तो वे राज्य भी कांग्रेस के लिए अनुकूल नहीं है।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तो कांग्रेस संदेह के घेरे में है ही। सीबीआई के एक पूर्व निदेशक की पुस्तक से वह मामला भी प्रकाश में आया है जिसमें कहा गया है कि राजीव गांधी ने चाहा था कि रक्षा सौदे की दलाली में दिया जाने वाला धन कांग्रेस के खाते में जाना चाहिए। अमर्यादित अभिव्यक्तियों से हास्यास्पद बनते जाने के बाद भी यदि कांग्रेस को चुनावी सफलता की आशा है तो यह उसके साहस का प्रमाण माना जा सकता है। लेकिन जैसा एक व्यक्ति ने ट्वीट किया है च्ज्सोनिया गांधी को मामा के घर चलने की जब राहुल ने सलाह दी तो सोनिया गांधी ने कहा- अभी इंतजार करो। यदि न्यायाधीश काटजू का यह कथन सही है कि भारत के 99 प्रतिशत लोग मूर्ख हैं तो तुम अवश्य ही प्रधानमंत्री बनोगे।ज्ज् यह एक व्यंग्य भले ही हो लेकिन कांग्रेस के लिए बस यही एक आशा की किरण है।