मुजफ्फरनगर में सुलग रही है आग
16-Nov-2013 07:58 AM 1234772

उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत की आग अभी भी धधक रही है। दरअसल स्थानीय प्रशासन और सरकार ने जो भी उपाए किए वे एक तरफा किए, जिससे दूसरे समुदाय को लगा कि सरकार उनके साथ नहीं

है। वोट बैंक की राजनीति के चलते यहां नफरत का जहर इस कदर फैल गया है कि अभी भी मौतों का सिलसिला रुका नहीं है। आलम यह है कि लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं। जहां जो अकेला दिखता है उसकी जान पर बन आती है चाहे हिंदू हो या मुसलमान मौतों का सिलसिला बदस्तूर जारी है। शाहपुर में एक डिस्पेंसरी में डॉक्टर को दिखाकर जब दूसरे समुदाय के लोग घर जा रहे थे तो उनके ऊपर फायरिंग और पथराव हो गया। बाद में उन्होंने थाने में जाकर हंगामा मचाया।
पुलिस लाचार है, एक तो उसकी संख्या कम है और दूसरे पुलिस से ज्यादा हथियार तो अवैध हथियार रखने वालों के पास हैं जो दिनों-दिन अपने हथियारों के अमले में वृद्घि कर रहे हैं। इफरात में गोला-बारूद इकट्ठा हो चुका है। इंटेलीजेंस को भी इसकी खबर है, लेकिन राज्य की राजनीति के आगे सब लाचार हैं। आजम खान की गलत मिजाजी का विरोध करने वाले कर्मचारियों पर तो कार्रवाई हो जाती है, लेकिन दंगों को हवा दे रहे लोगों के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं होती। रसूलपुर में प्रशासन की नाक के नीचे कई गांवों में पंचायतों का आयोजन हुआ जिनमें आर-पार की लड़ाई की चेतावनी दी गई और प्रशासन गहरी नींद में सोता रहा। हत्याओं का सिलसिला भी जारी है। बुढ़ाना के वैल्ली गांव में खेत पर चारा लेने गए एक ग्रामीण की गला रेत कर हत्या कर दी गई। इस घटना के बाद तनाव फैल गया। एडीजी कानून व्यवस्था मुकुल गोयल देहात पहुंचे और उन्होंने क्षेत्र का दौरा किया, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। एक और युवक की हत्या हो गई। जिससे गुस्साई भीड़ ने कस्बे में जमकर उत्पात मचाया। रसूलपुर, काकड़ा जैसे गांवों में तनाव बढ़ रहा है। शाहपुर के मोहल्ला कस्सावान में तो पुलिस के सामने ही दो समुदाय के लोग भिड़ पड़े और पथराव तथा हवाई फायरिंग भी हुई। जिस युवक की हत्या की गई थी उसकी लाश को शाहपुर के चांदपुर रोड पर रखकर चक्काजाम और हंगामा किया गया। ऐसी घटनाएं आए दिन घट रही हैं। दंगे में छह हजार लोग नामजद हो चुके हैं। एसआईटी दंगों की तफ्तीश कर रही है, लेकिन उत्तरप्रदेश सरकार का झुकाव एक समुदाय विशेष की तरफ होने के कारण दूसरे समुदाय में यह संदेश पहुंच रहा है कि उसके साथ अन्याय हो रहा है। यह संदेश पहुंचाने का काम उन लोगों द्वारा किया जा रहा है जो दंगों की सुलगती आग में राजनीति करना चाहते हैं और इस आग को बुझाना ही नहीं चाहते। पिछले दिनों मोहम्मदपुर रायसिंह के जंगलों में तीन युवकों की हत्या उस वक्त हो गई थी जब पीएसी उसी इलाके में थी। एडीजी का कहना है कि पीएसी के पहुंचने से पहले ही तीनों की हत्या कर दी गई, लेकिन लोगों का कहना है कि पीएसी की मौजूदगी में ये हत्याएं हुई। उधर उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि उत्तरप्रदेश को किसी भी कीमत पर गुजरात नहीं बनने दिया जाएगा। लेकिन मुलायम सिंह की इस अपील से इस क्षेत्र में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है। जब तक कि यहां कुछ कठोर प्रशासनिक कदम नहीं उठाए जाएंगे समस्या बनी रहेगी। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद मुस्लिम समुदाय के बीच समाजवादी पार्टी की साख में खासी गिरावट आ गई है और कांगे्रस इस स्थिति का फायदा उठाना चाहती है। यही कारण है कि सलमान खुर्शीद लगातार उत्तरप्रदेश के दौरे पर हैं। राहुल गांधी को भी फिर से उत्तरप्रदेश में सक्रिय किए जाने की योजना है। इन सबको देेखते हुए अखिलेश यादव ने गुजरात के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी का अनुसरण करते हुए अब विकास का नारा बुलंद कर दिया है। अखिलेश यादव ने कहा कि 2014  के लोकसभा चुनाव में असली लड़ाई टीवी पर नहीं जमीन पर लड़ी जाएगी। जनता विकास कराने वालों का ही साथ देगी। अखिलेश का कहना है कि समाजवादी पार्टी ने विकास को छोटे शहरों और गांव की ओर मोड़ा है। आजमगढ़, जोनपुर और सेफई का मेडिकल कॉलेज इसका उदाहरण है।
उधर समाजवादी सरकार विधानसभा चुनाव में लेपटॉप की घोषणा को पूरा करने के बाद लोकसभा चुनाव में मुफ्त अनाज देने का दांव खेलना चाहती है। इसी कारण मुलायम सिंह यादव ने केंद्र सरकार के खाद्य सुरक्षा विधेयक को खारिज कर दिया है, लेकिन वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि देश में केवल मुसलमान ही पिछड़े और गरीब है। मुसलमानों की इस पैरवी का अर्थ समझा जा सकता है। किंतु दुविधा यह है कि इस बार मुलायम सिंह यादव को आजमखान का साथ खुलकर नहीं मिल रहा है। आजमखान की अखिलेश यादव से पटरी बैठती नहीं है और मुलायम सिंह अखिलेश यादव के पुत्र मोह में आजम खान को लगातार उपेक्षित कर रहे हैं। यही कारण है कि आजम खान ने पिछले दिनों कह दिया था कि मुसलमान उनसे नाराज है। दरअसल मुसलमान नाराज हों या न हों लेकिन ऐसा कहकर आजम खान ने यह संकेत तो दे ही दिया कि उनकी नाराजगी समाजवादी पार्टी पर भारी पड़ेगी।

 

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