05-Dec-2013 09:40 AM
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राजस्थान में जब अशोक गहलोत वोट डालकर लौट रहे थे उस समय उनके चेहरे पर एक विचित्र संतोष का भाव था। आत्मविश्वास के साथ उन्होंने कहा कि अंडर करंट है और इसमें उनकी सरकार बनना तय है। गहलोत के इस

आत्मविश्वास का राज समझ से परे था। लेकिन किसी ने कहा कि 200 में से 80-85 सीट भी कांग्रेस को मिल गई तो आला कमान का गहलोत पर भरोसा कायम रह सकता है और यही उनके आत्मविश्वास का कारण भी है। वैसे जीत के प्रति आश्वस्त तो भाजपा भी नहीं है क्योंकि शतक के करीब पहुंचना उसके लिए भी बहुत कठिन है। चुनाव के बाद जब गिले-शिकवे दूर करने की बात सामने आई तो यह बताया गया कि किस तरह चुनाव के दौरान कुछ अपने वालों ने ही पार्टी की जड़ खोदने की कोशिश की। यही हाल कांग्रेस में थे। लेकिन भाजपा को नुकसान इसलिए है कि वह सत्ता विरोधी लहर का भरपूर फायदा उठाना चाह रही थी जो कि उठा न सकी। इसीलिए राज्य में भाजपा की लहर चलने से रह गई। मतदाता का मोह दोनों दलों को परेशान किए हुए है। यह परेशानी लगभग आठ दिन तक तो दोनों दलों के नेताओं के चेहरे पर बनी रहेगी। हालांकि इन चुनाव में राजस्थान में नरेंद्र मोदी का प्रभाव न के बराबर दिखा। बल्कि कई जगह तो नकारात्मक असर भी पड़ा है। ऐसा जानकारों का कहना है। मोदी फैक्टर का लाभ लोकसभा चुनाव में जरूर मिलेगा लेकिन विधानसभा में जीते तो उसका मनोवैज्ञानिक लाभ मोदी उठा सकते हैं।
राजस्थान में यूं तो अपने-अपने क्षेत्रों में दोनों दल मजबूत हैं। किंतु कई जगह मुकाबला रोचक है और चुनाव फंसा हुआ है। लगभग 39 सीटों पर बराबरी की टक्कर है। जहां दोनों दल जीत का दावा कर रहे हैं इनमें से 25 सीटें जिसको मिलेंगी वही दल सरकार बनाएंगा। राजस्थान की राजधानी जयपुर व सवाईमाधोपुर, टोंक करौली व दौसा जिले ढूंढाड़ क्षेत्र में आते हैं, जिनमें 36 विधानसभा सीटें आती हैं। जयपुर की 19 सीटों में से छह पर कांग्रेस व भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। पिछले चुनाव में जयपुर जिले में 10 सीटें भाजपा को, तो कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं, वहीं दो सीटें अन्य के खाते में गई थीं। इस बार भाजपा यहां नौ सीटों पर मजबूत दिख रही है, वहीं कांग्रेस दो सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन दो सीटों की स्थिति असमंजस पैदा कर रही है। सवाईमाधोपुर, दौसा, करौली व टोंक जिलों की 17 सीटों पर शहरी क्षेत्रों में भाजपा का रुझान दिखाई दे रहा है, तो देहाती क्षेत्रों में कांग्रेस का। यहां मीणा समाज के व अजा-जजा वोट अधिक होने के कारण किरोड़ी लाल मीणा की पार्टी राजपा का अच्छा दबदबा है। यहां से राजपा 6 सीटों पर मजबूत स्थिति में है। कांग्रेस 3, भाजपा 4 व 4 सीटों पर ही असमंजस की स्थिति बनी हुई है। राजस्थान के 43 सीटों वाले मारवाड़ क्षेत्र मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का क्षेत्र है और यहां कांग्रेस की कम सीटें आने से गहलोत की प्रतिष्ठा पर सवाल हो सकता है। इस क्षेत्र में जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर जैसे 7 जिले आते हैं। यहां 7 जिलों की 18 सीटों पर भाजपा व 7 पर कांग्रेस मजबूत स्थिति में लग रही है। मारवाड़ी की 9 सीटों पर निर्दलीयों व बागियों ने समीकरण बिगाड़ा हुआ है और बची सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर है। पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस व भाजपा को 20-20 सीटें तथा तीन सीटें निर्दलियों को मिली थीं।
सीकर, झुंझुनू व चुरू जिले वाले शेखावाटी क्षेत्र के तीन जिलों में 21 सीटें हैं। इस क्षेत्र में कांग्रेस के टिकट बंटवारे को लेकर केन्द्रीय मंत्री शीशराम ओला की चली। उन्होंने विधायक रीटा चौधरी का टिकट कटवाकर मंडावा से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान को, तो नवलगढ़ से राज्य मंत्री राजकुमार शर्मा का टिकट कटवाकर प्रतिभा सिंह को टिकट दिलवाया। रीटा और राजकुमार निर्दलीय के रूप में रोड़ा बनकर खड़े हो गए हैं। दोनों ही सीटें इस क्षेत्र की उन 13 सीटों में शामिल हैं, जहां नतीजे को लेकर कोई अंदाजा नहीं लगा पा रहा है। यहां भाजपा पांच, कांग्रेस दो सीटों पर मजबूत दिख रही है। हाड़ौती क्षेत्र से जुड़े होने के कारण भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। यहां के झालावाड़, कोटा सहित 4 जिलों में 17 सीटें हैं और कांग्रेस-भाजपा दोनों ही 5-5 सीटों पर जीत दर्ज करने की स्थिति में लग रहे हैं। बची 5 सीटों पर दोनों ही पार्टियां के उम्मीदवार एक-दूसरे को खासी टक्कर दे रहे हैं, तो 2 पर निर्दलियों ने समीकरण बिगाड़ रखा है।
पिछले चुनाव में कांग्रेस 10, तो भाजपा 7 सीटों पर विजयी रही थी। उदयपुर, चित्तौडग़ढ़ सहित 6 जिलों वाले मेवाड़ क्षेत्र में कांग्रेस के नेता सी.पी. जोशी, तो भाजपा से गुलाबचंद कटारिया की प्रतिष्ठा की लड़ाई चल रही है। उम्मीदवार चुनने में दोनों की ही चली थी। इधर, मेरवाड़ा क्षेत्र जिसमें अजमेर व भीलवाड़ा जिले आते हैं, यहां भी जोशी की प्रतिष्ठा दांव पर है। यहां की टिकटें भी जोशी के फैसले से बंटी हैं तथा उन्होंने अपने चहेते पूर्व वन राज्य मंत्री रामपाल जाट को भी इस क्षेत्र की आसींद सीट से टिकट दिलवाया है। मेवाड़ में 28 सीटें है। यहां कांग्रेस 12 व भाजपा 10 सीटें अपने हक में करती दिखाई दे रही हैं, वहीं 6 सीटों पर दोनों मुख्य पार्टियों के बीच अच्छी टक्कर व निर्दलियों के कारण असमंजस की स्थिति बनी हुई है। मेरवाड़ा की 15 सीटों में से कांग्रेस तीन व भाजपा 4 पर जीत दर्ज कर सकती है और 7 पर कड़ा मुकाबला चलेगा। नहरी क्षेत्र के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ व बीकानेर जिलों की 18 सीटों में से भाजपा 7 व कांग्रेस 4 सीटों पर तथा 2 सीटों पर जमींदारा पार्टी व 1 पर माकपा अच्छी स्थिति में लग रही है। 4 सीटों पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। इधर, अलवर, भरतपुर व धौलपुर जिलों की 22 सीटों में से भाजपा 8, कांग्रेस 6 व राजपा 2 सीटों पर मजबूती बनाए हुए है, वहीं छह सीटों पर असमंजस की स्थिति है।
चुनाव प्रचार से दूर रहे
वरिष्ठ जाट नेता
राजस्थान विधानसभा के चुनाव प्रचार से इस बार प्रभावी जाट नेता दूर ही नजर आए। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान राजस्थान में स्टार प्रचारक होने के बावजूद अपने चुनाव क्षेत्र मंडावा को छोड़कर किसी अन्य चुनाव क्षेत्र में प्रचार करने नहीं गए। मंडावा में कांग्रेस की मौजूदा विधायक रीटा चौधरी के बगावत कर निर्दलीय चुनाव लडऩे से डॉ. चन्द्रभान कड़े संघर्ष में फंस गए। इस कारण डॉ. चन्द्रभान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के बावजूद कहीं चुनाव प्रचार करने नहीं जा पाए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व केन्द्रीय मंत्री शीशराम ओला भी राजस्थान विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारक थे मगर उनके बीमार होने से वो भी कहीं कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार करने नहीं जा पाए। राजस्थान के जाटों में मिर्धा परिवार का बड़ा दबदबा रहा है लेकिन कांग्रेस ने इस बार रामनिवास मिर्धा के पुत्र हरेन्द्र मिर्धा का टिकट काट देने से कांग्रेस से बगावत कर नागौर सीट से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए। हरेन्द्र मिर्धा के निर्दलीय चुनाव लडऩे से कांग्रेस को नुकसान होने की संभावना बढ़ गई है। जाटों के प्रभावी जाट नेता रहे नाथूराम मिर्धा के परिवार से उनकी पोती ज्योति मिर्धा नागौर से कांग्रेस की सांसद हैं मगर वे भी नागौर के बाहर कहीं प्रचार के लिए नहीं निकल पा रही थी। जाटों के बड़े नेता परसराम मदेरणा स्वयं वृद्ध होने व उनके विधायक पुत्र महिपाल मदेरणा के भंवरी देवी प्रकरण में जेल में बंद होने से मदेरणा परिवार मनोवैज्ञानिक रूप से दबाव में है। महिपाल की पत्नी लीला मदेरणा को कांग्रेस ने टिकट दिया है मगर वे खुद अपनी जीत के लिए संघर्ष कर रही हैं। कुम्भाराम आर्य की पुत्रवधु सुचित्रा आर्य कांग्रेस में हैं मगर उनका जाटों पर असर नहीं है वे स्वयं पिछला विधानसभा चुनाव हार चुकी हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे नारायण सिंह भी कहीं चुनाव प्रचार में नहीं जा पा रहे थे। नारायण सिंह खुद पिछला विधानसभा चुनाव दांतारामगढ़ से माकपा के अमराराम से हार गए थे। इस बार फिर वह दांतारामगढ़ में माकपा के अमराराम व भाजपा के हरीश कुमावत के सामने त्रिकोणीय संघर्ष में फंसे हुए थे। छह बार विधायक रहे नारायण सिंह के लिए इस बार का चुनाव महत्वपूर्ण है। यदि इस बार भी वो हार जाते हैं तो फिर उनके राजनीतिक जीवन का अंतिम चुनाव साबित होगा इस कारण वो हरसंभव चुनाव जीतने का प्रयास कर रहे थे। उनका पूरा समय अपने स्वयं के चुनाव प्रचार में ही बीत गया है।