04-Feb-2013 11:41 AM
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उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पार्टी खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के एकदम खिलाफ हैं। इस मामले में वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हम कदम हैं, लेकिन पिछले दिनों जब कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज के पार्टनरशिप समिट 2013 की मेजबानी की बात उठी तो आगरा को चुना गया क्योंकि कोलकाता में ममता बनर्जी की नाराजगी का खतरा था। हालांकि पहले यह समिट कोलकाता में ही होने वाला था। बहरहाल इस समिट में अखिलेश यादव ने अपनी बात अपने ही अंदाज में रखी। उन्होंने कहा कि विदेशी निवेश की आवश्यकता तो है, लेकिन किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए भी प्रभावी कदम उठाएं जाने चाहिए। अखिलेश यादव ने जिस फोरम के समक्ष यह बात रखी वह फोरम अच्छी तरह जानती है कि खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी विधेयक परोक्ष रूप से समाजवादी पार्टी के सहयोग से ही आगे बढ़ पाया है। अन्यथा इस मुद्दे पर तो सरकार भी जा सकती थी। इसीलिए अखिलेश यादव के भाषण की सभी ने तारीफ की। अखिलेश यादव का कहना था कि विकास का लाभ अभी भी गरीबों तक नहीं पहुंच रहा है और जब तक किसानों की आमदनी नहीं बढ़ेगी विकास का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। दरअसल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के समर्थकों का कहना है कि खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आने से किसानों की आमदनी स्वत: ही बढ़ जाएगी क्योंकि उन्हें उनके उत्पादों के ऊंचे दाम मिलने लगेंगे, लेकिन अखिलेश यादव के विचारों को भले ही पसंद किया जा रहा हो पर जिस तरह की नीतियों पर उनकी सरकार चल रही हैं उससे कोई खास बदलाव होने वाला नहीं है। खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर सबसे ज्यादा विवाद उत्तरप्रदेश में ही होने की संभावना थी मगर समाजवादी पार्टी ने इस संभावना पर यह कहकर विराम लगा दिया कि खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मॉडल उत्तरप्रदेश में लागू नहीं किया जाएगा। ज्ञात रहे कि उत्तरप्रदेश ही वह राज्य है जहां पर 20 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की संख्या सर्वाधिक है। यदि उत्तरप्रदेश में यह मॉडल लागू किया जाता है तो प्रदेश की शहरी आबादी का एक बड़ा वर्ग इसका फायदा उठा सकता है, लेकिन इससे चुनावी नुकसान भी है। इसी कारण भारतीय जनता पार्टी ने भी इस मुद्दे पर काफी बड़ा आंदोलन खड़ा कर लिया था। हालांकि उससे कोई फायदा नहीं मिल सका। अब कल्याण सिंह को भाजपा में लाकर यह उम्मीद जताई जा रही है कि भाजपा की स्थिति प्रदेश में कुछ सुधर सकेगी, लेकिन फिलहाल तो ऐसा कोई लक्षण नजर नहीं आ रहा है।

उधर मायावती के भाई के नियंत्रण वाली कुछ कंपनियों का नगद लेनदेन उत्तरप्रदेश में विवाद का विषय बनता जा रहा है। कहा जाता है कि इन कंपनियों में 760 करोड़ रुपए का नगद लेनदेन हुआ है। इस नगद लेनदेन का स्रोत क्या है यह जानना बड़ा कठिन है, लेकिन रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को जो डाक्यूमेंट सौंपे गए हैं। उनसे पता चलता है कि मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के नियंत्रण वाली सात में से सिर्फ एक कंपनी का ठोस बिजनेस है। बाकी कंपनियां 2007 में बहुजन समाजवादी पार्टी (बीएसपी) की चीफ मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद बनाई गई थीं। कंपनियों से जुड़े ट्रांजैक्शन में एक खास पैटर्न उभर कर आया है, जिसमें राजनीतिक हस्तियां या उनसे करीबी रूप से जुड़े लोग कंपनियां बनाते हैं। कई बार करोड़ों में होने वाली इन कंपनियों की इनकम के स्त्रोत के बारे में साफ तौर पर जानकारी नहीं होती। इससे फंड जुटाने में राजनीतिक असर के इस्तेमाल को लेकर संदेह पैदा होता है। एक ही शख्स अक्सर डायवर्स बिजनेस वाली कंपनियों से जुड़ा होता है। इससे इन कंपनियों की सच्चाई को लेकर सवाल खड़े होते हैं। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनकारियों ने कई बार ऐसी कंपनियों को लेकर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि गलत पैसे के इस्तेमाल से सामाजिक रुतबा हासिल करने के मकसद से ऐसी कंपनियां बनाई जाती हैं। हाल में जिन बड़ी हस्तियों पर ऐसे आरोप लगे हैं, उनमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी शामिल हैं। दोनों ने इन आरोपों को खारिज किया है। कुमार की कंपनियों के मामले में ज्यादातर पैसा भारी प्रीमियम पर शेयर इशू करने, थर्ड पार्टीज द्वारा कंपनियों को दिए गए अडवांस को जब्त करने, अनडिस्क्लोज्ड इनवेस्टमेंट्स की बिक्री और डिविडेंड के रूप में आया है। कुमार ने इनमें से कुछ ट्रांजैक्शन पर टैक्स चुकाए हैं। हालांकि, फंड के स्त्रोत और इन कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने वाली फर्मों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है।
-मधु आलोक निगम