05-Dec-2013 09:21 AM
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जम्मू कश्मीर में नरेंद्र मोदी की पहली रैली धमाकेदार साबित हुई। जब जम्मू ललकार रैली के पूर्व हुए धमाके में दो लोगों की मृत्यु हो गई। नरेंद्र मोदी की रैली में यह दूसरा बम विस्फोट है। इससे पहले पटना में 27 अक्टूबर को हुंकार रैली के

दौरान भी बम फटे थे और छह लोगों की मृत्यु हुई थी। नरेंद्र मोदी पर इस वक्त आतंकवादियों की नजर है और वे भारत के उन राजनेताओं में से हैं जिनकी जान को सर्वाधिक खतरा है। शायद इसी के मद्देनजर उनके लिए विशेष सुरक्षा की मांग भारतीय जनता पार्टी ने की थी। लेकिन उसे चुनावी मुद्दा बनाया गया। सवाल यह है कि नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्ति की सभा के दौरान दो-दो बार बम फटने की घटनाएं क्यों हुई। जब इंटेलीजेंस की पूर्व सूचना है तो सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए जा रहे हैं। यदि यह घटनाएं इसी तरीके से बढ़ी तो भारत में किसी भी लोकप्रिय राजनेता के लिए चुनावी सभाएं करना कठिन हो जाएगा। बम धमाकों के माध्यम से आतंकवादी शायद ये चेतावनी दे रहे हैं कि मोदी जैसे नेता की सभा में भीड़ न जुटे अन्यथा भीड़ को निशाना बनाया जाएगा। यह बहुत खतरनाक संकेत है और भारतीय लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है। मोदी अच्छे हैं या बुरे इसके लिए उनसे सहमत-असहमत हुआ जा सकता है। उनके आरोपों का जवाब भी दिया जा सकता है, लेकिन मोदी को जिस तरह निशाना बनाया जा रहा है वह सुरक्षा की दृष्टि से सभी राजनेताओं के लिए एक चेतावनी है। भारत में आतंकवादी हमलों के चलते कई लोगों की जानें गई हैं। आतंकवादी हमलों में हमने दो-दो प्रधानमंत्री खोएं हैं, कई अन्य राजनेता भी आतंकवादी हमलों के शिकार हुए हैं। इसलिए विशेष सतर्कता बरतना जरूरी है। राहुल गांधी की सुरक्षा के समय भी कई बार चूक देखने में आती है। कई बार राहुल गांधी स्वयं सुरक्षा का घेरा तोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। यह एक खतरनाक कदम है। मोदी की जम्मू रैली से पहले उधमपुर जिले के जखैनी में एक यात्री बस से आतंकवादी मोहम्मद आजम को पकड़ा गया था यह आतंकवादी मोदी की रैली को निशाना बनाना चाहता था और उसे हिजबुल ने प्रशिक्षित किया था। इससे सिद्ध होता है कि हिजबुल सहित तमाम खतरनाक आतंकवादी संगठनों के रडार पर मोदी हैं। ऐसे में विशेष सुरक्षा बरतने और मोदी को राहुल गांधी या अन्य नेताओं के समकक्ष सुरक्षा देने में देरी नहीं की जानी चाहिए। इस घटना का एक पहलू यह भी है कि नरेंद्र मोदी पर किए जाने वाले ये
हमले मोदी के प्रति जनता में सहानुभूति भी
पैदा कर सकते हैं जो अंतत: उन्हीं लोगों के मकसद को नुकसान पहुंचाएगा जो मोदी से दुश्मनी निभा रहे हैं।
बहरहाल यह एक अलग विषय है। प्रश्न केवल इतना है कि किसी भी व्यक्ति की सुरक्षा को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। नरेंद्र मोदी ने जम्मू में सभा के दौरान धमाकों का जिक्र न करके समझदारी का परिचय दिया है। इससे पहले पटना में भी उन्होंने धमाकों के विषय में कुछ नहीं कहा था। हालांकि धमाकों के बाद वे घायलों और मृतकों के परिजनों से जाकर मिले थे।
जम्मू में भी नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री पी. चिदंबरम पर हमले किए। उन्होंने कहा कि अटलजी ने तीन मंत्र दिए थे इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत। इस रास्ते पर सभी को चलना चाहिए। एक-दूसरे से लड़कर हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं। नरेंद्र मोदी ने सवाल उठाया कि कश्मीर में इतनी फिल्मों की शूटिंग होती है, लेकिन वहां कोई फिल्म स्टूडियों क्यों नहीं है। मोदी नब्ज पकडऩे में माहिर हैं और उन्होंने जानबूझकर लोगों की दुखती रगों पर हाथ रखा। जम्मू-कश्मीर की समस्या असुरक्षा और बेरोजगारी है। मोदी इससे वाकिफ हैं। इसलिए उनका भाषण भी इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित था। इससे पहले दिल्ली और राजस्थान में उन्होंने सरकार की वित्त नीति को निशाना बनाया था। उन्होंने कहा था कि चिदंबरम को लगता है कि सोना खरीदने से महंगाई बढ़ती है लेकिन सच यह है कि महंगाई भ्रष्टाचार के कारण बढ़ती है। मोदी के इस आक्रमण का जवाब चिदंबरम ने ट्वीटर पर दिया और कहा कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा। बहरहाल इन वाद-विवादों के बीच यह स्पष्ट हो चला है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश में है, लेकिन कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के लिए नरेंद्र मोदी की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। नरेंद्र मोदी की सभाओं में इसी तरह धमाके होते रहे तो कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान भी हो सकता है। क्योंकि मोदी के प्रति जो कुछ भी होता है उसके लिए जनता कांग्रेस को दोषी मानने लगती है या फिर जनता को ऐसा मानने के लिए विवश किया जाता है क्योंकि ऐसा प्रचार होता है। इसी कारण नरेंद्र मोदी की सुरक्षा पर केंद्र सरकार अतिरिक्त सतर्कता बरत रही है, लेकिन उसके बाद भी ये धमाके कई सवाल पैदा कर रहे हैं।