16-Sep-2013 06:44 AM
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आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा के दस पृष्ठीय इस्तीफे ने नरेन्द्र मोदी को भले ही परेशानी में डाल दिया हो लेकिन इस इस्तीफे में ऐसा कुछ नहीं है जिसका फायदा विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस को मिल

सके। यदि कांग्रेस वंजारा के समर्थन में खड़ी होती है तो यह समर्थन परोक्ष रूप से उन एनकाउंटरों के लिए भी होगा जिनके आरोप में वंजारा वर्ष 2007 से जेल की सलाखों के पीछे हैं और शायद जेल की सलाखों के पीछे ही उनका रिटायरमेंट भी हो सकता है। कांग्रेस ने इस विषय में केवल इतना कहा है कि फर्जी मुठभेड नरेन्द्र मोदी सरकार की नीति है लेकिन कांग्रेस के इस कथन से वंजारा को राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। इसीलिए अपने लंबे इस्तीफे में वंजारा ने लिखा है कि वे मोदी को भगवान मानते थे। वंजारा की इस हताशा से साफ झलकता है कि जिसे वे भगवान मानते थे अब उसने कृपा करना बंद कर दिया है, कृपा बंद हो गई है इसलिए भक्त ने भगवान को ही कोसना शुरू कर दिया। यदि कृपा जारी रहती तो शायद वंजारा इतने सत्यवादी नहीं बनते। एक तरह से इस पत्र द्वारा वंजारा ने यह सिद्ध कर दिया है कि जो भी मुठभेड़ हुई वे सब फर्जी थीं। अब यह सिद्ध करना होगा कि इन फर्जीं मुठभेड़ों को किसके कहने पर अंजाम दिया गया। क्या नरेन्द्र मोदी इसमें स्वयं शामिल थे। यह सिद्ध करना आसान नहीं है।
फर्जी मुठभेड के मामले में जांच करीब-करीब पूरी हो चुकी है और मोदी की भूमिका के विषय में जांच कर्ताओं ने कोई स्पष्ट राय नहीं दी है। अब वंजारा का पत्र केवल भ्रम ही पैदा कर सकता है। क्योंकि उन्हें जिस वक्त यह काम सौंपा गया था उसी समय वे इसका खुलासा कर देते तो शायद उन्हें लाभ भी मिल जाता। अभी लगभग 6 साल बाद इस बात का खुलासा करने का अर्थ समझ से परे है। लेकिन इस पत्र ने राजनीतिक बहस को तो जन्म दिया ही है। माकपा, कांग्रेस, जनतादल यूनाईटेड सहित कई दलों ने आनन-फानन में मोदी की इस्तीफे की मांग कर डाली। राज्यसभा में भाजपा कोयला घोटाले को लेकर सरकार पर हमले कर रही थी लेकिन बाद में इस मुद्दे पर अभूतपूर्व हंगामा हुआ। यह इस्तीफा ऐसा समय में आया है जब कांग्रेस ने एक सीडी जारी करवाई है जिसमें कथित रूप से तुलसीराम प्रजापति की हत्या को लेकर भाजपा के नेताओं की बातचीत है। इस बातचीत से यह पता चल रहा है कि अमित शाह को बचाने के लिए कुछ लोग सक्रिय हंै। यह सीडी सच है या गलत इसका आंकलन तो तत्काल नहीं किया जा सकता लेकिन इस सीडी से पता चलता है कि अमित शाह को बचाने के लिए गुजरात सरकार ने ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। खास बात यह है कि शाह को बचाने वाली यह कथित सीडी उस समय सामने आई जब वंजारा ने एक लम्बा चौड़ा पत्र लिखकर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। वंजारा का कहना है कि उन्होंने राज्य सरकार के कहने पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी और गुजरात को कश्मीर बनने से बचाया लेकिन सरकार ने उन्हें अलग-थलग कर दिया। इस इस्तीफे में बताया गया है कि फर्जीं मुठभेड़ में शामिल पुलिस अधिकारियों ने सरकार की सहज नीति का क्रियान्वयन किया लेकिन पूर्व गृह मंत्री अमित शाह और गुजरात सरकार ने फर्जी मुठभेड़ों के संबंध में जेलों में बंद 32 अन्य अधिकारियों के साथ विश्वासघात किया है। इन अधिकारियों से सीबीई पूछताछ कर है। वंजारा का कहना है कि मोदी और उनकी सरकार का स्थान नवी मुंबई की तलोजा केंद्रीय जेल में या अहमदाबाद की सबारमती केंद्रीय जेल में होना चाहिए। वंजारा को सच कहने में 6 साल लग गए। लेकिन वंजारा के खिलाफ जो सच्चाई सीबीआई ने जुटाई है उससे साफ जाहिर होता है कि यह सब निरंकुश तरीके से किया गया हालांकि वंजारा ने इस तथ्य को खारिज किया है उनका कहना है कि जो भी मुठभेड़ें हुई वे जीरो टॉलरेंस की नीति के कारण हुई। लेकिन राज्य सरकार ने पुलिस कर्मियों को अपने भाग्य के भरोसे छोड़ दिया। वंजारा का गुस्सा सरकार के खिलाफ है उनका कहना है कि यदि सीबीआई को गिरफ्तार ही करना है तो वह उन लोगों को गिरफ्तार करे जो नीतियां बनाते हैं।
लोकायुक्त पर मोदी राज्यपाल में ठनी
गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर मोदी सरकार और राज्यपाल कमला बेनीवाल में तनातनी हो गई है। बेनीवाल ने विधान सभा में पारित गुजरात लोकायुक्त कमीशन विधेयक 2013 यह कहते हुए लौटा दिया है कि इसमें बहुत सी खामियां है। वस्तुत: बेनीवाल द्वारा उठाई गई आपत्तियां अनपेक्षित नहीं है क्योंकि जो विधेयक राज्य विधानसभा में सर्वसमति से पारित हुआ है उसमें कहा गया है कि लोकायुक्त की नियुक्ति संबंधी सभी अधिकार मुख्यमंत्री के पास रहेंगे। इसमें राज्यपाल और प्रदेश के मुख्य न्यायधीश की कोई भूमिका नहीं रहेगी। सूत्र बताते है कि 30 सितम्बर से प्रारंभ हो रहे विधानसभा सत्र के दौरान इस विधेयक को पुन: प्रस्तुत किया जा सकता है।