05-Dec-2013 08:55 AM
1234985
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के खिलाफ किए गए स्टिंग ऑपरेशन को भले ही फर्जी कहा जाए रहा हो, लेकिन इससे आम आदमी पार्टी की साख को बहुत धक्का पहुंचा है और कभी अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद

हुआ करते थे, लेकिन अब हर्षवर्धन को तरजीह दी जा रही है। 8 दिसंबर को इस स्टिंग ऑपरेशन का असर सामने आ जाएगा। आम आदमी पार्टी ने भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया है। इसी कारण जनता उससे ज्यादा पारदर्शिता की उम्मीद लगाए बैठी है। जिस वेबसाइट मीडिया सरकार डॉट कॉम ने यह स्टिंग ऑपरेशन किया है। उसकी विश्वसनीयता पहले ही संदेहास्पद है। हालांकि वेबसाइट की सीईओ अनुरंजन झा ने फुटेज चुनाव आयोग को सौंप दिए हैं। फुटेज में कथित तौर से आरकेपुरम से उम्मीदवार साजिया इल्मी, कोंडली से उम्मीदवार मनोज कुमार, संगम विहार से उम्मीदवार दिनेश मोहनिया को प्रॉपर्टी विवाद में मनचाही मदद मुहैया कराने जैसे वादे करते हुए कैमरे में कैद किया गया है। वहीं साजिया इल्मी धरने के बदले में कैश चंदा स्वीकारती दिखाई दे रही हैं। कुमार विश्वास कविता शो के लिए नगद में पैसे लेने की बात करते दिख रहे हैं। इस स्टिंग ऑपरेशन ने आम आदमी पार्टी को बहुत परेशान किया है। इल्मी ने तो यह तक कहा कि वह चुनाव से हट सकती हंै, लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल इन लोगों के बचाव में आ गए और केजरीवाल ने स्टिंग ऑपरेशन को ही नकार दिया। स्टिंग की सच्चाई चाहे जो हो, लेकिन आम आदमी पार्टी के ऊपर दिल्ली के लोगों को बेतहाशा विश्वास है और यह विश्वास इस स्टिंग ऑपरेशन के बाद डगमगा गया है। वैसे भी कविता पढ़-पढ़कर धनवान बने कुमार विश्वास के बारे में पहले भी ऐसी खबरें आईं थी कि वे कवि सम्मेलनों या ऐसे ही कविता पाठ के एवज में नगद राशि लेते हैं और टैक्स की बचत करते हैं, लेकिन इन खबरों की पुष्टि नहीं हो सकी थी पर इस स्टिंग ऑपरेशन ने कुमार विश्वास नगद पैसे की बात कर रहे हैं इसलिए आरोप लगाने वालों को एक मौका तो मिला है, लेकिन दिल्ली में चुनाव के मुद्दे वही हैं।
भारतीय जनता पार्टी जो पहले पीछे चल रही थी वह अब दोनों दलों के मुकाबले काफी आगे है और कहा जा रहा है कि उसकी सरकार भी बन सकती है। नरेंद्र मोदी की सभाओं ने कार्यकर्ताओं में नया जुनून पैदा किया है। कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर भाजपा का उत्साह बढ़ा हुआ है। कांग्रेस पहली बार दिल्ली चुनाव में बैकफुट पर है। उसकी रणनीति रक्षात्मक नजर आ रही है। पिछले दिनों शीला दीक्षित ने कहा कि उनकी लड़ाई आम आदमी पार्टी से नहीं भाजपा से है तो इसका अर्थ यही निकाला जा रहा है कि चुनाव के उपरांत गठबंधन की स्थिति में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी साथ आ सकते हैं। लेकिन ऐसा हुआ तो यह आम आदमी पार्टी के पतन की शुरुआत होगी। क्योंकि वह पूरा आंदोलन ही कांग्रेस और उसके भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा हुआ था, जिसके मूल में मजबूत लोकपाल विधेयक की मांग भी थी। अब इस आंदोलन को एक राजनीतिक दिशा देने की कोशिश अरविंद केजरीवाल ने की है तो उनकी राह उतनी आसान नहीं रह गई। कई बाधाएं आ चुकी हैं। पहले आम आदमी पार्टी के ही एक सहयोगी ने केजरीवाल पर तानाशाही करने का आरोप लगाया और बाद में इस पूरे आंदोलन के सिद्धांतकार अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल से कहा कि जन लोकपाल के खिलाफ आंदोलन के दौरान एकत्र की गई राशि का उपयोग चुनाव में नहीं होना चाहिए। बहुत से लोगों ने सवाल भी उठाए कि आखिर अन्ना हजारे ने यह प्रश्न किसकी प्रेरणा से पूछा। अन्ना हजारे द्वारा इस तरह आम आदमी पार्टी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश से कई लोगों को निराशा भी हुई, लेकिन अरविंद केजरीवाल हतोत्साहित नहीं हुए हैं। वे चुनाव उपरांत किसी भी प्रकार के गठबंधन से इनकार करते हैं और कहते हैं कि सत्ता के लिए उन्होंने गठबंधन बांधा तो यह जनता के साथ विश्वासघात होगा।
बहरहाल दिल्ली में एक बार फिर काबिज होने का सपना देख रही कांग्रेस के समक्षप 43 सीटें बनाए रखने की चुनौती है। मुद्दे वही हैं जो पहले थे। तीनों प्रमुख दलों ने अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्र जारी किए हैं। आम आदमी पार्टी का चुनावी घोषण पत्र ज्यादा व्यावहारिक है जबकी कांग्रेस और भाजपा ने जनता को लोक लुभावन वादों से लुभाने की कोशिश की है।
भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा
इन चुनावों में महंगाई और भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा रहेगा। इसके साथ ही महिलाओं की सुरक्षा, दिल्ली के स्थानीय मुद्दे जैसे बिजली की बढ़ती दरें, पानी और आवास की कमी भी हावी हैं। इन्हीं मुद्दों को लेकर विपक्षी पार्टियां वर्तमान सरकार हमला बोलते हुए मतदाताओं को अपने पक्ष में रिझाने की कोशिश में लगी हैं। दूसरी और प्रदेश सरकार अपने कार्यकाल के दौरान किए गए विकास के कार्यों को लेकर जनता से वोट मांग रही है। दिल्ली में जब भी विकास की बात करते हैं तो विकास सिर्फ प्रदेश सिर्फ पॉश इलाके में नजर आता है यानी जहां अमीरजादे लोग या सरकारी महकमे के लोग निवास करते हैं। बाकी इलाकों में हालात बदतर है। दिल्ली के विकास का दावा कर रही कांग्रेस की कोशिश है कि महंगाई चुनाव का मुद्दा न बने। लेकिन प्रदेश में रोजमर्रा की चीजें इतनी महंगी हो गई हैं कि लोगों को पेट भरने के लिए काफी जद्दोदजहद करना पड़ रहा है। प्याज और टमाटर कीमतें को रूला ही दिया है। इसको लेकर सरकार के खिलाफ जनता में काफी रोष है। इसके आलावा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शीला सरकार को भाजपा और आम आदमी पार्टी सरकार को घेर रही है। राष्ट्रमंडल खेलों में हुए घोटाले की सबसे पहले एफआइआर दर्ज कराने के लिए शिकायत करने वाले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा को भी लपेट रहे हैं। वह भाजपा शासित दिल्ली नगर निगम में भी भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रहे हैं।
दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। 16 दिसंबर 2012 को वसंत विहार इलाके में गैंगरेप की घटना के बाद से यह मुद्दा बेहद अहम हो गया है। इस घटना ने न सिर्फ प्रदेश को हिलाकर रख दिया बल्कि यह मुद्दा देश भर में गुंजा। जिससे महिला सुरक्षा पर बने कानून को और कड़ा बनाया। फिर भी देश की राजधानी में बलात्कार और गैंगरेप जैसी धटनाओं को रोकने में सरकार नाकाम रही है। बसों और मेट्रो और सार्वजनकि स्थानों में महिलाओं से छेड़छाड़ बदस्तूर जारी है। इस मुद्दे पर भी विपक्षी दल सरकार को घेर रहे हैं। इस चुनाव में बिजली की दरों का मुद्दा भी अहम है। क्योंकि शीला सरकार ने अपने कार्यकाल में कई बार बिजली की दरें बढ़ाई जिससे प्रदेश की जनता महंगी बिजली से परेशान हो चुकी है। इस मुद्दे पर आप पार्टी ने बिजली की दरें बार-बार बढ़ाने के लिए सरकार और बिजली कंपनियों में साठगांठ के आरोप लगाए। आप ने वादा किया कि हमारी सरकार बनेगी तो 30 प्रतिशत बिजली दरें कम कर देंगे। इसके बाद भाजपा ने भी 30 प्रतिशत कम करने का वादा कर दिया। अब आप ने 50 प्रतिशत कम करने का वादा कर दिया है।
बिजली के बाद दिल्ली में पानी भी बहुत बड़ा मुद्दा है। बाहरी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली की कम से कम 30 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां पानी आपूर्ति की समस्या है। इन विधानसभा क्षेत्रों में पानी कई-कई दिन तक नहीं आता, जहां आता भी है तो गंदा आता है। इस मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा के पास कोई जवाब नहीं है। क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है जबकि एमसीडी पर भाजपा का कब्जा है। इस पर कांग्रेस और भाजपा को घेरते हुए आम आदमी पार्टी ने कहा, उसकी सरकार बनेगी तो हर माह 20 किलोलीटर पानी मुफ्त देगी। इस विधानसभा चुनाव में भी अनधिकृत कॉलोनियों का नियमितीकरण एक बड़ा मुद्दा है। सरकार के दावों के बावजूद सैकड़ों कॉलोनियां नियमित नहीं हो पाई हैं। जो कागजों में नियमित हो गई हैं, वहां अब तक रजिस्ट्री बंद है। ऐसे में भाजपा और आम आदमी पार्टी यहां के लोगों को समझाने की कोशिश कर रही है कि उन्हें बरगलाया जा रहा है। जबकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कागजों पर ही सही, नियमित होने के बाद इन इलाकों में जमीन की कीमत करोड़ों में पहुंच गई है। दिल्ली में मेट्रो यातायात के मुख्य साधन बनने के बाद भी डीटीसी बसों स्थान महत्वपूर्ण है। क्योंकि सभी इलाकों में मेट्रो की पहुंच नहीं है। बसों से सफर करने वाले आम लोग होते हैं जिन्हें हर रोज कई समस्यों का सामना करना पड़ता है। जब लोग ऑफिस या दूसरे काम के लिए घर से निकलते हैं तो डीटीसी बस स्टॉप पर पहुंचते हैं। वहां बसों का इंतजार करते हैं। बस समय पर नहीं पहुंच है। काफी इंतजार के बाद जब बस आती है तो एक साथ एक ही रूट नंबर की कई बसें आती है। फिर काफी देर तक बस नहीं आती, उसके बाद फिर एक बस आती है उसमें काफी भीड़ होती है। जिसमें सफर करना काफी तकलीफ देह होता है। इसके अलावा कभी-कभी बस स्टॉप पर यात्री होने के बावजूद बस ड्राइवर बस नहीं रोकता है। इतना ही नहीं यात्रियों की सुविधा के अनुसार कई जगहों पर बस स्टॉप भी नहीं बनाए गए हैं। जहां बस स्टॉप होने चाहिए वहां नहीं है जहां नहीं होना चाहिए वहां बस स्टॉप है। बसों में सुरक्षा की बेहद कमी है। प्रत्येक दिन हर बस में आम लोगों को पाकेटमारों से जूझना पड़ता है। कहने के लिए दिल्ली से प्राइवेट बसों को हटा दिया गया है। उसके जगह क्लस्टर बसें चल रही है पर उस बसों में डीटीसी बसों के नियम लागू नहीं होते। उस बसों में पास मान्य नहीं है। जिससे लोगों को सफर में काफी परेशानी होती है क्योंकि किसी किसी रूट में ज्यादा क्लस्टर बसें ही चलती हैं। यह समस्या किसी भी पार्टियों के एजेंडे में नहीं है। इसे शामिल किया जाना चाहिए। इसके आलावे दिल्ली में पार्किंग और जाम की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसके साथ प्रदूषण की भी समस्या है।