05-Dec-2013 08:50 AM
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जब तक यह स्टोरी आपके हाथ में पहुंचे उसके कुछ दिन बाद ही शायद पांच राज्यों के चुनावी परिणाम आपके टेलीविजन स्क्रीन पर पलक झपकते प्रकट हो जाएंगे। किंतु उन परिणामों की आशंका में आसन्न प्रसूता स्त्री की तरह हमारे

कर्णधारों के चेहरे के भावों को पढऩा बड़ा दिलचस्प है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के कार्यालयों में यह दिलचस्पी देखी जा सकती है। हालांकि दिग्गज नेता आराम फरमा रहे हैं और कुछ आस-पास के राज्यों में चुनावी गतिविधियों में संलग्न हो चुके थे, लेकिन उनके चेहरे में चिंता और उत्सुकता का मिश्रण देखने को मिला। जो शायद वर्ष 2003 और वर्ष 2008 के चुनाव के समय नहीं था। तब यह तय था कि कौन सा दल जीतेगा। लेकिन इस बार भले ही नौ-दो-ग्यारह चुनावी सर्वेक्षणों ने भारतीय जनता पार्टी की भूकम्पीय जीत की भविष्यवाणी की है किंतु सच तो यह है कि स्वयं भाजपा भी कहीं न कहीं संशय में है। क्षेत्र से लौटकर भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में पहुंचे प्रत्याशियों, मंत्रियों और पदाधिकारियों के फीडबैक से पता चलता है कि भले ही हमने सब कुछ संभाल लियाÓ जैसी उक्तियां भरपूर दी जा रही हों, लेकिन जिस तरह कुछ लोगों ने अपनों से जख्म खाए हैं उसकी टीस उनके मन में भी है और भविष्य की चिंता भी कमोवेश इसी वजह से सता रही है। मध्यप्रदेश में मतदान प्रतिशत बढ़ा है। पिछली बार के मुकाबले लगभग 2 प्रतिशत अधिक वोट डाले गए। पिछली बार 69 प्रतिशत के लगभग वोटिंग हुई थी इस बार 72 प्रतिशत के करीब पहुंच चुकी है। हालांकि डाक मत पत्र पूरे नहीं डाले गए हैं इसलिए वोटिंग का प्रतिशत एक दम सही तो मतगणना के दिन शाम को ही पता चल सकेगा। लेकिन जो भी अधिक मतदान हुआ है वह दोनों दलों के लिए बड़ा दिलचस्प और पेंचीदा बना हुआ है। मतदान में क्षेत्रीय विविधता है तो अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव भी है। कहीं बहुत ही अधिक उत्साह देखने को मिला तो कहीं पिछली बार के मुकाबले बाहर निकलने वालों की तादाद कम ही थी। परिणाम तय है। हमारे अनुमानों से वह नहीं बदलने वाला जो वोटिंग मशीन में फीड हो चुका है। किंतु फिर भी एक माह तक चले सघन चुनावी अभियान के दौरान जो कुछ उभरकर सामने आया उससे यह तो साफ लग रहा है कि जिस तरह कयास लगाए जा रहे थे यह चुनाव एक तरफा बिलकुल नहीं है। अनुपात और अर्थमेटिक का चमत्कारिक सांख्यिकीय संतुलन कुछ अप्रत्याशित परिणाम दे सकता है, लेकिन अब चुनाव के परिणाम संख्या पर ही निर्भर करेंगे। मध्यप्रदेश में पांच हजार से अधिक मत से जीतने वाले प्रत्याशी बहुत कम होने की संभावना है। ज्यादातर सीटों पर मुकाबला नजदीक का है और दोनों पार्टियों के मत प्रतिशत का अंतर भी कोई ज्यादा नहीं रहने वाला है। ऐसे परिदृष्य में उन सीटों पर चर्चा जरूरी है जहां कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए चिंताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। प्राय: हर संभाग में मुकाबला कड़ा है। दिग्गजों के पैरों तले जमीन भी खिसक सकती है। सभी गोपाल भार्गव की तरह बेफिक्र नहीं हैं जो अपने क्षेत्र में वोट मांगने के लिए घर-घर नहीं गए। चाहे कैलाश विजयवर्गीय हों या फिर नरोत्तम मिश्रा, चाहे सुरेश पचौरी हों या फिर आरिफ अकील। चिंताएं सभी के चेहरों पर हैं। मध्यप्रदेश में भाजपा या कांग्रेस किसी भी दल के भाग्य में तीसरी बार सरकार बनाने का अवसर नहीं आया, लेकिन एक खासियत यह है कि जब भी सिंहस्थ होता है भाजपा की सरकार सत्ता में रहती है। इस बार फिर यह अवसर है देखना है कौन सा मिथक टूटता है और कौन सा मिथक नया बनता है।
चंबल संभाग में कुछ खास मुकाबले हैं और कुछ खास शतरंज की बिसाते हैं जिन पर सभी की नजर है। खासकर भिंड की सीट पर जहां संजीव कुशवाहा के मैदान में आने से मुकाबला रोचक हो गया है। कुशवाहा को प्रभात झा का समर्थक समझा जाता है और उन्होंने अंतिम समय तक अपना नाम वापस नहीं लिया था उनकी मौजूदगी भाजपा के नरेंद्र सिंह कुशवाहा की संभावना को और क्षीण करेगी वैसे इस सीट से वर्तमान विधायक चौधरी राकेश सिंह है जिन्होंने कभी पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया था मेहगांव में भी एक बागी ने भाजपा की नींद उड़ाई है। नरेंद्र तोमर के निकट रहे वर्तमान विधायक राकेश शुक्ला ने यहां पर अंतिम समय तक प्रयास किया और बाद में टिकिट न मिलने पर निर्दलीय खड़े हो गए। इससे भाजपा के मुकेश चौधरी की हार की संभावना प्रबल हो गई है और कांग्रेस के ओपी एस भदौरिया यहां ज्यादा ताकतवर बनकर उभरे हैं।
राजधानी भोपाल में भारतीय जनता पार्टी का परचम फहराता आया है। लेकिन इस बार राजधानीवासियों ने भाजपा के प्रति उतनी उदारता नहीं दिखाई। भोपाल की दक्षिण-पश्चिम, हुजूर और बैरसिया सीटों पर कड़ा मुकाबला है। भाजपा की राह यहां आसान नहीं है। भोपाल दक्षिण-पश्चिम में संजीव सक्सेना ने बेतहाशा मेहनत की। वे जीत का अंतर प्रभावी तरीके से कम करने की ताकत रखते हैं। उमाशंकर गुप्ता को चुनाव के दौरान सक्सेना ने पसीने ला दिए। हुजूर में भी रामेश्वर शर्मा को डागा, सबनानी समर्थकों के भितरघात के अलावा ध्रुवनारायण सिंह के समर्थक सचानदास बाबा की चुनौती का भी सामना करना पड़ेगा। यहां कांग्रेस के आरिफ मसूद को फायदा मिल सकता है। यहां चुनाव फंसा हुआ है और ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। बैरसिया में दोनों दलों के बीच रोचक मुकाबला है। पिछली बार भाजपा के ब्रम्हानंद रत्नाकर तो आसानी से जीत गए थे, लेकिन विष्णु खत्री के लिए खतरे की घंटी है। क्योंकि कांग्रेस के महेश रत्नाकर ने अच्छी मेहनत की है। बुधनी, आष्टा, इछावर में भाजपा का रास्ता साफ है। सीहोर में कांग्रेस के वोट काटने के लिए सुरेश पचौरी के समर्थक स्वदेश राय हैं। नरसिंहगढ़ में संघ समर्थक नीरज यादव और रामदास उइके मैदान में हंै तो राजगढ़ में इंदर सिंह कंवर ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाजपा को चुनौती दी है। दोनों जगह कांग्रेस को फायदा मिलेगा। भोजपुर में पटवा की सल्तनत खतरे में है, सांची में गौरीशंकर शेजवार को प्रभुराम चौधरी से कड़ी टक्कर मिल रही है। वैसे शेजवार ने इस बार मेहनत अधिक की है। यह सीट भाजपा निकाल भी सकती है।
नर्मदापुरम् संभाग में भी भाजपा ने पिछली बार 9 सीटें जीती थी इस बार भी उसकी सीटों का अंतर उतना ही रहेगा, लेकिन भैंसदेही में कांग्रेस और हरदा तथा बैतूल में भाजपा के लिए उलटफेर का संकेत मिल रहा है। बैतूल से उमाभारती समर्थक राजीव खंडेलवाल के मैदान में आने से भाजपा के हेमंत खंडेलवाल की संभावना क्षीण हुई है। यहां 2008 में भाजपा के अल्केश आर्य जीते थे, लेकिन उन्हें इस बार टिकिट नहीं मिला। उनके समर्थक भी नाराज हैं इससे कांग्रेस के हेमंत वागद्रे की जीत तय मानी जा रही है। सिवनीमालवा में सरताज सिंह इस बार अपना रिकार्ड कायम रख पाएंगे इसमें संदेह है।
रीवा संभाग की 18 सीटों में भारतीय जनशक्ति पार्टी के भाजपा में विलय से कुछ अंतर पडऩा तय है। भाजपा यहां पिछली बार 13 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, इस बार कठिनाई पहले की अपेक्षा अधिक है। रामपुर बघेलान में भी भाजपा के राजेश तिवारी निर्दलीय खड़े हो गए, जिससे पूर्व विधायक हर्ष सिंह के जीतने की संभावना कम हो गई है। सिरमौर में बहुजन समाजपार्टी का वर्चस्व तोडऩा कांग्रेस और भाजपा के लिए कठिन होगा। मउगंज में लक्ष्मण तिवारी के खिलाफ भाजपा के ही कुछ लोगों ने काम किया है। ऐसी खबरें पार्टी मुख्यालय तक भी पहुंची थी। इसलिए यह चुनाव भी थोड़ा फंस गया है। देव तालाब में जातिगत समीकरण कुछ ऐसे हैं कि यहां बहुजन समाज पार्टी पिछले दिनों काफी मजबूत हुई है और इसका फायदा भाजपा की बजाए कांग्रेस को मिलता दिख रहा है। कांग्रेस के उदय प्रकाश मिश्रा ने विशेष मेहनत भी की है। मनगवां में पन्ना बाई प्रजापति को अपनों के ही आघात सहने पड़ेंगे। गुढ़ में भी भाजपा के नागेंद्र सिंह को खतरा हो सकता है।
सागर संभाग में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति दयनीय है। टीकमगढ़ में कमल पटेल के समर्थक केके कथाल ने भाजपा के प्रत्याशी केके श्रीवास्तव को कड़ी चुनौती दी है। कथाल भाजपा के बागी है। कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह को इन हालातों में हराना कठिन है। खुरई में कांग्रेस के अरुणोदय चौबे इस बार भी सीट निकाल सकते हैं। सुरखी में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। सागर में भाजपा के शैलेंद्र जैन के मुकाबले सुशील तिवारी भारी हैं। हालांकि यहां जैन मतों की अच्छी खासी तादाद है। जतारा में भाजपा के हरिशंकर खटीक से जनता नाराज है। चुनाव के समय भी कुछ नाटक नौटंकी देखने को मिली थी जिसका असर होना तय है। यही हाल पृथ्वीपुर में है जहां कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह के खिलाफ माहौल था, लेकिन ऐन टाइम पर भाजपा के कोरीलाल डांगी ने पार्टी का विरोध करके निर्दलीय लडऩे की घोषणा कर दी जिससे कांग्रेस को फायदा मिलना तय है। महाराजपुर में मानवेंद्र सिंह से भाजपा के कुछ कार्यकर्ता खफा हैं। जिसका असर चुनाव परिणाम में देखने को मिलेगा। कांग्रेस के महेंद्र चौरसिया ने आखिरी दौर में बहुत मेहनत की थी। राजनगर में रामकृष्ण कुसमारिया की स्थिति डावांडोल है। उन्हें बाहरी प्रत्याशी कहा गया। क्षेत्र बदलने का असर भी इस चुनाव में देखा गया। कांग्रेस के विक्रम नाती राजा के प्रति क्षेत्र में ज्यादा सहानुभूति है। मलहरा में तिलक सिंह लोधी की लोकप्रियता इतनी क्यों है। इसका आंकलन भाजपा को करना ही होगा। हालांकि उमा भारती ने बड़े दिल से यहां मेहनत की है। लेकिन चुनावी परिणाम कुछ भी हो सकता है। सागर संभाग में कुछ और सीटें भी हैं, जिन पर सबकी नजर रहेगी। पिछली बार जयंत मलैया की जीत का अंतर बहुत कम था। इसलिए इस बार भी उन्हें डेंजर जोन में रखा गया था, लेकिन मलैया ने अपनी टीम की बदौलत स्थिति मजबूत की है। कांग्रेस के चंद्रभान लोधी की आपराधिक छवि से कांग्रेस को नुकसान पहुंचना तय है।
उज्जैन संभाग महाकाल के आशीर्वाद का आकांक्षी रहा है। यहां के नेता हर चुनाव में कालजयी जीत चाहते हैं, लेकिन यहां बदलाव बहुत होता है। उज्जैन संभाग की 29 सीटें भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं और यहां खासियत यह है कि दोनों लगभग बराबरी पर हैं। हालांकि वर्ष 2008 में भाजपा को 18 सीटें मिली थी, लेकिन इस बार 10 सीटें ऐसी हैं जहां मुकाबला तगड़ा है और ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। महिदपुर और मंदसौर में बागियों ने दोनों पार्टियों को चुनौती दी है। मंदसौर में दिग्विजय सिंह के समर्थक दिनेश जैन, कांग्रेस के वोट काटेंगे तो भाजपा के वोट काटने के लिए पार्टी की पूर्व कार्यकर्ता ममता शर्मा निर्दलीय के रूप में मैदान में हैं। बदनागर में भाजपा के पूर्व कार्यकर्ता सुकमल जैन ने विद्रोह कर दिया था और वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए। सैलानियां में भी भाजपा को मीसाबंदी रहे कार्यकर्ता हेमचंद डामर की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। मंदसौर में कभी मीनाक्षी नटराजन की निकट रहीं आशिया बी कांग्रेस से बगावत करके मैदान में है तो सुवासरा में भाजपा के मनोहर बैरागी ने गणित बिगाड़ दिया है। गरोथ, मनासा, नीमच और जावद में भी बागियों ने सारा खेल बिगाड़ दिया है। सुसनेर में कांग्रेस के लिए चुनौती बढ़ गई है क्योंकि यहां दिग्विजय सिंह के समर्थक लालसिंह बतौर निर्दलीय प्रत्याशी हैं। आगर की आरक्षित सीट पर भी भाजपा के मनोहर ऊंटवाल के खिलाफ कांग्रेस के मधु गहलोत ने अच्छा चुनावी प्रबंधन किया है, किंतु उनकी जड़ खोदने के लिए दिग्विजय सिंह के समर्थक रामलाल मालवीय बतौर निर्दलीय प्रत्याशी खड़े हो गए हैं। सुल्तानपुर में भी दिग्विजय सिंह के समर्थक योगेन्द्र सिंह ने महेंद्र जोशी की जीत मुश्किल कर रखी है। काला पीपल में प्रत्याशी बदलने से भाजपा को नुकसान हो सकता है। कांग्रेस के केदार सिंह मंडलोई की छवि इस क्षेत्र में भाजपा के इंद्र सिंह परमार के मुकाबले थोड़ी बेहतर है। खातेगांव में भी मुकाबला टक्कर का है क्योंकि बृजमोहन धूत की सीट बदलकर भाजपा ने आशीष शर्मा को मैदान में उतारा है जो कांग्रेस के श्याम होलानी के मुकाबले कमजोर प्रत्याशी हंै। बागली में भाजपा के चंपालाल देवड़ा ने काफी मेहनत की, लेकिन कांग्रेस के स्टार प्रचारक ज्योतिरादित्य सिंधिया का यहां अच्छा प्रभाव है और कांग्रेस के प्रत्याशी टेर सिंह की स्थिति मजबूत बताई जा रही है। उज्जैन दक्षिण में भाजपा हमेशा जीतती है, लेकिन इस बार कांग्रेस के जयसिंह दरबार ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी है। भाजपा ने इस सीट पर प्रत्याशी बदला है जिसका असर भी दिखाई दे रहा है। मनासा में कैलाश चावला के खिलाफ भाजपा के ही कुछ लोगों ने काम किया था। 2008 में कांग्रेस के विजेंद्र मालाहेड़ा जीते, लेकिन इस बार भाजपा ज्यादा संगठित है। सुवासरा में राधेश्याम पाटीदार को सत्ताविरोधी रुझान की चपेट में आने का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि कांग्रेस के प्रत्याशी हरदीप सिंह डांग भी उतने प्रभावशाली नहीं हैं।
ग्वालियर संभाग में भी भाजपा के लिए बागियों से चुनौती है। नरेंद्र तोमर के निकट रहे बृजेंद्र तिवारी भी अनूप मिश्रा के खिलाफ भितरवार से मैदान में हैं और कांग्रेस के वर्तमान विधायक लाखन सिंह की पोजीशन मजबूत है। सेवड़ा में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही डगमगा रही हैं यहां बहुजन समाजपार्टी का अच्छा-खासा दबदबा है और बसपा के राधेलाल बघेल से मुकाबला करना कठिन है। भाजपा की दिक्कत यह है कि यहां उनके प्रत्याशी प्रदीप अग्रवाल का वोट काटने के लिए भाजपा के ही कार्यकर्ता कमलेश मन्नी कटवार ने निर्दलीय के रूप में ताल ठोक दी है। कटवार प्रभात झा के करीबी माने जाते हैं। ग्वालियर पूर्व में माया सिंह की स्थिति डगमगा रही थी, लेकिन अंतिम समय में कुछ सुधार हुआ। करेरा में भी कुछ इसी तरह की स्थिति है। जहां भाजपा के प्रत्याशी बदलने के कारण कांग्रेस की शकुंतला खटीक थोड़ी मजबूत हुई है। दतिया में नरोत्तम मिश्रा की जीत का अंतर घट सकता है। पोहरी में कांग्रेस के हरिवल्लभ शुक्ला ने अच्छी मेहनत की है। भाजपा के प्रहलाद भारती को कड़ी चुनौती है। मुंगावली में भारतीय जनता पार्टी के लिए सीट बचाना कठिन हो सकता है। सत्ता विरोधी मतों का खेल यहां भारी पड़ सकता है। वर्ष 2008 में ग्वालियर संभाग में भाजपा 12 सीटें जीत पाई थी। इस बार मुकाबला बराबरी का है।

शहडोल संभाग की एक तिहाई सीटें भी कांग्रेस और भाजपा के लिए सरदर्द हो सकती हैं। यहां मुख्य रूप से चितरंगी, कोतमा, पुष्पराजगढ़ और मानपुर में रोचक टक्कर देखने को मिलेगी। चितरंगी में भाजपा के जगन्नाथ सिंह को अपना गढ़ मचाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी। कोतमा में भी प्रत्याशी बदले जाने का नुकसान भाजपा को होता दिख रहा है क्योंकि यहां पर भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र सोनी के खिलाफ पार्टी के कुछ लोगों ने काम किया है। कांग्रेस मनोज कुमार को मजबूत प्रत्याशी मान रही है। पुष्पराजगढ़ में भी यही हाल है यहां चुनाव बराबरी का है। मानपुर में भाजपा की मीना सिंह को कांग्रेस की शकुंतला प्रधान से विशेष चुनौती है।
इंदौर और जबलपुर संभाग पर चुनावी परिणाम निर्भर करते हैं। इस बार दोनों दलों ने यहां भरपूर मेहनत की है। इंदौर में 10 और जबलपुर में 11 सीटें ऐसी हैं जहां चुनावी नतीजे कुछ भी हो सकते हैं। यह दोनों संभाग ही जीत-हार का फैसला करेंगे। इंदौर की राऊ सीट पर जीतू जिराती और जीतू पटवारी के बीच बराबरी की टक्कर है। पिछली बार जीतू जिराती ने जीत हासिल की थी, लेकिन अब जीतू पटवारी भारी हैं। जीतू जिराती के खिलाफ माहौल देखा जा रहा था। यह जानते हुए भी उन्हें टिकिट देेने का जोखिम भाजपा ने उठाया था। हरसूद में भाजपा के विजयशाह को वैसे तो चुनौती नहीं मिलती है, लेकिन इस बार कांग्रेस के सूरजभानू सोलंकी ने बहुत पहले से क्षेत्र में मेहनत की है और वे कमजोर प्रत्याशी नहीं कहे जा सकते। यही हाल अलीराजपुर में है जहां कुछ स्थानीय मुद्दों के कारण भाजपा के नागर सिंह चौहान की डगर कमजोर सी है। झाबुआ में कांग्रेस का गढ़ ढहता हुआ दिख रहा है। यहां पर चुनाव पूर्व कांग्रेस में जो घमासान हुआ था उसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। पान सेमल में भी कांग्रेस प्रत्याशी बदले जाने के कारण गुटबाजी का असर दिखाई दे रहा हे। पेटलवाद में निर्मला भूरिया इस बार बेहतर स्थिति में हैं। कुक्षी में कांग्रेस और भाजपा के बीच बराबरी का मुकाबला है। मनावर में भाजपा की रंजना बघेल इस बार बमुश्किल ही जीत पाएंगी। उनका जनसंपर्क अब शायद ही रंग लाए। सेंधवा में भी भाजपा के अंतर सिंह आर्य के समक्ष कड़ी चुनौती है। पंधाना में सीट बदलने से भाजपा का आत्मविश्वास डगमगाया हुआ है, लेकिन इंदौर में सबसे रोचक मुकाबला कैलाश विजयवर्गीय और अंतर सिंह दरबार के बीच है। महू की इस सीट पर कैलाश विजयवर्गीय को घेरने में तो दरबार कामयाब रहे हैं अब देखना है कि वोटिंग मशीन में क्या फीड हुआ है। इंदौर संभाग में भीकनगांव सीट पर कांग्रेस की झूमा सोलंकी मजबूत लग रहीं थी, लेकिन अरुण यादव के खास रहे मोहन सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपनी चुनौती प्रस्तुत कर दी। बड़वाह में भी कांग्रेस के संभावनाओं को अरुण यादव के समर्थक सचिन बिड़ला ने ध्वस्त कर दिया है। उधर नेपानगर और बुरहानपुर में भी दोनों दलों के भीतर भितरघात की खबरे हैं। बड़वानी में इस बार भाजपा मजबूत दिखाई दे रही थी, लेकिन भाजपा के बागी शांतिलाल गंगवाड़ खेल बिगाड़ सकते हैं। यहीं हाल जोबट आरक्षित सीट पर है जहां भाजपा के बागी मुकेश सिंह को संघ का भी समर्थन है। झाबुआ में कांतिलाल भूरिया की भतीजी कलावती भूरिया कांग्रेस का तो भाजपा के बागी प्रेम सिंह भाजपा का खेल बिगाड़ेंगे। इंदौर प्रथम पर भी भितरघात और
वोट कटने का खतरा है यहां कांग्रेस के
समर्थक खंडेलवाल ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा भरा है।
जबलपुर संभाग में 37 सीटों में से भाजपा को 21 और कांग्रेस को 16 सीटें मिली थीं। इस बार आधा हिस्सा कांग्रेस को मिल सकता है बल्कि जो 11 सीटें सीधे मुकाबले में हैं उनमें से 7 भी कांग्रेस ने जीत ली तो यहां कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। कई सीटें ऐसी है जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए राह उतनी आसान नहीं है। कई जगह बागियों ने नाक में दम कर रखा है। बाहौरी बंद में कांग्रेस के निशिथ पटेल की जीत की संभावनाएं और बढ़ गई हैं क्योंकि यहां भाजपा के पूर्व विधायक प्रभात पांडे को चुनौती देने के लिए भाजपा के शंकर मेहतो निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाग्य आजमा रहे हैं। मेहतों को प्रहलाद पटेल का करीबी समझा जाता है। यही हाल बरगी में है जहां कांग्रेस और भाजपा दोनों ही बागियों से जूझ रहे हैं। भाजपा की प्रतिभा सिंह को दशरथ सिंह लोधी और संघ के समर्थक यशवंत सिंह से चुनौती है तो कांग्रेस के ठाकुर सोबरन सिंह की चुनौती के लिए दिग्विजय सिंह के समर्थक सूरज जैसवाल मैदानेजंग में हैं। जबलपुर उत्तर में भी भाजपा के शरद जैन को इस बार कठिनाई हो सकती है। क्योंकि संघ के करीबी चौखेलाल निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए हैं। यही हाल शाहपुरा में है जहां भाजपा के पूर्व विधायक ओमप्रकाश धुर्वे को चैन सिंह भावड़ी से चुनौती है। चैन सिंह फग्गन सिंह कुलस्ते के करीबी माने जाते हैं। कटंगी में भी भाजपा के केडी देशमुख को जीत मिलना कठिन है क्योंकि संघ के करीबी ध्यानेंद्र चौधरी भाजपा से विद्रोह कर निर्दलीय मैदान में है। यही हाल सिवनी में है जहां एक नहीं दो-दो बागी भाजपा के लिए चुनौती बने हुए हैं। राजेश उपाध्याय और घासीराम सिनोदिया ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनौती दी है। जो कि भाजपा के पूर्व विधायक नरेश दिवाकर का गणित बिगाडऩे के लिए काफी है यहां राजकुमार खुराना कांग्रेस के तरफ से मजबूत बनकर उभरे हैं। नरसिंहपुर में शुरू से ही समस्याएं होने के कारण पार्टी के कुछ नेताओं ने जालम सिंह का टिकिट काटने की बात कही थी, लेकिन वे अपनी टिकिट बचा ले गए और उनके विरोध में विश्वास परिहार बागी बनकर सामने आए हैं। परिहार को संघ का समर्थन है। बड़वारा में भाजपा के मोती कश्यप की लोकप्रियता घटी है। तमाम मेहनत के बावजूद वे अंतिम समय तक जूझते रहे थे। बहोरी बंद में कांग्रेस के निशिथ पटेल और भाजपा के प्रभात पांडे के बीच सीधा मुकाबला है। उधर, पाटन में नीलेश अवस्थी ने भाजपा के दिग्गज अजय विश्नोई की नाक में दम कर दिया है। मुकाबला बराबरी का माना जा रहा है। बरगी में भी प्रतिभा सिंह की हालत पतली है। जबकि पनागर में प्रत्याशी बदले जाने के कारण भाजपा की इंदु तिवारी दोहरी चुनौती का सामना कर सकती हैं। शहपुरा में भाजपा के ओमप्रकाश धुर्वे ने अच्छी पकड़ बनाई है। कांग्रेस को इस सीट का नुकसान हो सकता है। परसवाड़ा में भारतीय जनता पार्टी के रामकिशोर कड़े मुकाबले में फंसते नजर आ रहे हैं। सिवनी में नीता पटेरिया की सीट बदलकर यहां से नरेश दिवाकर को भाजपा ने कांग्रेस के राजकुमार खुराना के मुकाबले में उतारा था, लेकिन पूरे संभाग में यही एक सीट है जहां कांग्रेस ने भरपूर मेहनत की है। जिसका नतीजा मिल सकता है। तेंदुखेड़ा में प्रत्याशी बदलने के कारण कांग्रेस को काफी मशक्कत करनी पड़ी। फिर भी गुटबाजी ने पीछ नहीं छोड़ा। वैसे भाजपा के संजय शर्मा एक ताकतवर प्रत्याशी हैं। अमरवाड़ा में उत्तम ठाकुर को टिकिट देने से वर्तमान भाजपा विधायक प्रेमनारायण ठाकुर के समर्थक नाराज हो गए थे उन्होंने नारेबाजी भी की थी और चुनाव के दौरान भी पार्टी विराधी काम किया। यही हाल सौंसर में है जहां प्रत्याशी भले ही न बदला गया हो, लेकिन भाजपा को यह सीट भितरघात के चलते भारी पड़ सकती है।
भारतीय जनता पार्टी के कई मंत्रियों की हालत ठीक नहीं है। कांग्रेस के भी बहुत से दिग्गज धराशायी हो सकते हैं। भाजपा में कैलाश विजयवर्गीय, उमाशंकर गुप्ता, नरोत्तम मिश्रा, रंजना बघेल, अजय विश्नोई, रामकृष्ण कुसमारिया जैसे दिग्गजों को कठिन मुकाबले में रूबरू होना पड़ेगा तो कांग्रेस में भी कई नाम ऐसे हैं जिनके सामने चुनौती बड़ी है। सबसे बड़ा नाम तो सुरेश पचौरी का है, जिनके समक्ष चुनाव जीतना किसी बड़े युद्ध से कम नहीं है। चुनाव पूर्व भी पचौरी पर उनके समर्थकों ने ही दोषारोपण किया था। चुनाव उपरांत अब सारे दिग्गज इस बात का आंकलन कर रहे हैं कि गड़बड़ी कहां हुई। ज्यों-ज्यों क्षेत्र की खबरें आ रही है। घबराहट बढ़ रही है। यह उत्तेजना 8 दिसंबर को दोपहर एक बजे तक चरम पर रहेगी।