16-Nov-2013 06:38 AM
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मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार अंतिम दौर में हैं। भाजपा और कांग्रेस के स्टार प्रचारक धुआंधार प्रचार कर रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोपों का महासागर हिलोरें ले रहा है। सभी को चुनावी परिणामों की चिंता है। राजनीतिक दांवपेंच चरमसीमा पर हैं।

एक-दूसरे को पराजित करने के लिए तुरुप की चालें चली जा रही हैं। राजनीति में जो भी विरोध जनता को दिखाई देता है। उससे अलग सतह के भीतर भी एक राजनीति चलती है जो असल में कहीं न कहीं चुनावी परिणामों को प्रभावित करती है। प्रकट रूप में यह हुआ कि भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर विस्फोट करते हुए कांग्रेस के सांसद उदय प्रताप सिंह को भाजपा में शामिल कर लिया। माणक अग्रवाल ने जिस तरह सुरेश पचौरी पर पैसे लेकर टिकिट बांटने का आरोप लगाया था उसके बाद लग रहा था कि पार्टी का झगड़ा है भीतर ही भीतर निपट जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दिवाली के एक दिन पहले से ही कुछ सुगबुगाहटें थी और 13 नवंबर की देर रात भाजपा के दिग्गज नेताओं के पास समाचार पहुंच चुका था कि अगले दिन क्या होने वाला है। किंतु मीडिया को उत्सुकता इस बात की थी कि शायद शिवराज कांग्रेस के गंभीर आरोपों पर कुछ सफाई देंगे, लेकिन चौधरी राकेश सिंह से अलग इस बार प्रेस से रूबरू हुए बगैर शिवराज ने राव उदय प्रताप सिंह की घोषणा की और चलते बने। उदय प्रताप सिंह के आने से लगभग छह सीटों पर भाजपा को फायदा हो सकता है, लेकिन पहले बात नुकसान की। ये तो सच है कि भारतीय जनता पार्टी के 90 प्रतिशत मंत्रियों के विरुद्ध जनाक्रोश है। वहीं भाजपा के 80 प्रतिशत विधायकों के प्रति कार्यकर्ताओं का आक्रोश है और यह भी स्थापित सच्चाई है कि शिवराज सिंह का चेहरा ही इन चुनावों में भाजपा की यूएसपी है। दरअसल शिवराज को शिवराज बनाने में कुछ विवादों का भी योगदान है। भले ही वह रजा मुराद द्वारा उठाया गया टोपी विवाद हो या फिर लालकृष्ण आडवाणी द्वारा शिवराज की पैरवी। सर्वधर्म समभावी होने के साथ-साथ जिस गति से शिवराज ने कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं को तोड़ा है उसके चलते वे सर्वदल प्रभावी भी हो गए हैं। लेकिन भाजपा के विधायकों और मंत्रियों के रथ का पहिया पंचर है। जनता को मंत्रियों और विधायकों से ही रूबरू होना है। शिवराज तो हर जगह आ नहीं सकते इसीलिए भाजपा के पक्ष में थोड़ा झुकाव होने के बावजूद कोई लहर नहीं है और यही एकमात्र वजह है कि चुनावी सर्वेक्षणों के विपरीत मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस लगभग एक ही पायदान पर खड़े हुए हैं। दोनों दलों का शतक मारना तय हैं, लेकिन लीड कौन लेगा इसका फैसला अंतिम चरण के चुनाव प्रचार के बाद बने माहौल पर निर्भर करेगा। भाजपा और कांग्रेस दोनों में जो असंतोष का ज्वालामुखी फटा था उसकी आग ने भाजपा को कम कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। माणक अग्रवाल, नूरी खान और भाजपा में आए कांग्रेस के सांसद उदय प्रताप सिंह सहित कई कांग्रेसी नेताओं ने तो खुलेआम आरोप लगाए की कांग्रेस में टिकिट बिके हैं। पैसे लेकर टिकिट नीलाम किए गए हैं। मोहन प्रकाश, कांतिलाल भूरिया, सुरेश पचौरी, प्रेमचंद गुड्डू, प्रवीण कक्कड़, प्रमोद गोगलिया जैसे नेताओं के दामन पर टिकिट नीलामी की कीचड़ के दाग उछले। यह तक कहा गया कि एक बड़े नेता ने 12 लोगों का पैसा वापस किया क्योंकि वे उन्हें टिकिट नहीं दिला सके थे। ऐसे ही आरोप कुछ भाजपा के नेताओं के ऊपर लगे। खुलकर नहीं मगर परोक्ष रूप से यह कहा गया कि दिल्ली और भोपाल भजपा कार्यालयों में कुछ दलाल सक्रिय हैं जो पैसा लेकर टिकिट दिला रहे हैं। 4-5 करोड़ रुपए में टिकिट बिक रहे हैं। यह आंकड़ा अतिश्योक्तिपूर्ण हो सकता है। लेकिन आश्चर्य का विषय है कि टिकिट नीलामी का आरोप लगने के बाद भी किसी नेता ने प्रेसवार्ता आयोजित कर सफाई नहीं दी मानो सब यह मान रहे थे कि ऐसे आरोप सामान्य बात है। क्योंकि इसमें कुछ सच्चाई भी होगी। हालांकि अभी तक पैसे के लेन-देन का वैसा प्रमाण नहीं मिला है जैसा हाल ही में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव के समय सामने आया था, लेकिन यह एक गंभीर आरोप है और इस पर सफाई अवश्य दी जानी चाहिए थी।
महाकौशल और मालवा तय
करेंगे सरकार
जबलपुर और इंदौर संभाग में 37-37 सीटें हैं और इन दोनों में कांग्रेस-भाजपा के बीच अब कांटे की टक्कर है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव इंदौर संभाग में अधिक है। जबलपुर में भाजपा ने पिछली बार शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार भाजपा को कुछ सीटों पर कठिनाई हो सकती है। जैसे बड़ा पारा से भाजपा के मोती कश्यप के मुकाबले कांग्रेस के बसंत सिंह मैदान में हैं। मोती कश्यप 2008 में भी जीते थे और क्षेत्र में विकास कार्यों को लेकर उनके प्रति कार्यकर्ताओं ने नाराजगी का इजहार किया था। हालांकि जो लोग उनका विरोध कर रहे थे वे अब उन्हीं के गले में हाथ डालकर घूम रहे हैं, लेकिन यह प्रेम बाहरी है या भीतरी कहना मुश्किल है। विजयराघौगढ़ में संजय पाठक का किला मजबूत है भाजपा ने यहां पदमा शुक्ला को मैदान में उतारा है। मुड़ावारा में भाजपा की टिकिट बदलने से मौजूदा विधायक गिरिराज किशोर नाराज हैं, जिसका फायदा फीरोज अहमद को मिल सकता है। बहौरी बंद में कांग्रेस के निशिथ पटेल की जीत पक्की है। सिंधिया भी उनकी जीत को आश्वस्त हैं। भाजपा ने प्रभात पांडे को टिकिट दिया है जिन्होंने पिछले एक पखवाड़े में काफी मेहनत की है। पाटन में अजय विश्नोई की जीत का अंतर घटेगा, नीलेश अवस्थी ने उन्हें ज्यादा मेहनत करने पर मजबूरी किया है। बरगी में भाजपा की प्रतिभा सिंह के समक्ष कांग्रेस ने ठाकुर सोबरन सिंह को टिकिट दी है और वे मजबूत प्रत्याशी नहीं है। जबलपुर पूर्व में अंचल सोनकर की पकड़ अभी भी बरकरार है यह सीट कांग्रेस जरूर जीतेगी। मुकाबले में भाजपा के लखन घनघोरिया अपनी ही पार्टी के असंतुष्टों से जूझ रहे हैं।
यही हाल जबलपुर उत्तर के शरद जैन का है जो कांग्रेस के नरेश सर्राफ के मुकाबले में लगभग बराबर ही हैं। जबलपुर केंट से ईश्वरदास रोहाणी के निधन के बाद उनके सुपुत्र अशोक रोहाणी को सहानुभूति का फायदा मिलेगा। लेकिन जबलपुर पश्चिम में कांग्रेस के तरुण भानोट ने अच्छी मेहनत की है और वर्तमान विधायक हरेंद्र सिंह बब्बू जातीय समीकरणों के बावजूद कमजोर हुए हैं। पनागर में नरेंद्र त्रिपाठी का टिकिट कटने से असंतोष है भाजपा की इंदु तिवारी को कांग्रेस के रूपेंद्र पटेल से कड़ी टक्कर मिलेगी। सिहोरा निवास, मंडला, बैहर, लांजी, परसवाड़ा, बालाघाट, बरघाट, सिवनी, लखनादौन, अमरवाड़ा, सौंसर और परासिया में सभी स्थानों पर भाजपा पिछली बार जीती थी, लेकिन इस बार सिवनी में नीता पटेरिया का टिकिट बदला गया है उनके स्थान पर भाजपा ने नरेश दिवाकर को टिकट दिया यहां राजकुमार खुराना की छवि साफ-सुथरी है जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। शहपुरा, डिंडौरी, बिछिया, वारासिवनी, कटंगी में कांग्रेस की स्थिति बेहतर है। केवलारी में हरवंश सिंह के देहांत के बाद ढाल सिंह बिसेन की ताकत भी बढ़ी है, लेकिन गोटेगांव और नरसिंहपुर में कांग्रेस के स्थानीय विधायकों के प्रति असंतोष है यहां भितरघात
का भी खतरा है। तेंदूखेड़ा, गाडरवारा, जुन्नारदेव, चौरई और छिंदवाड़ा में कांग्रेस का किला
मजबूत है।
इंदौर संभाग में इस बार सभी 37 सीटों पर जीत का अंतर बहुत कम रहेगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया का यहां खासा प्रभाव है। हालांकि यहां भाजपा ने 2008 के चुनाव में 37 में से 22 सीटें जीती थीं लेकिन इस बार संभाग की 20 सीटों पर भाजपा कमजोर मानी जा रही है। कुछ में बहुत तगड़ा मुकाबला है। महु में अंतर सिंह दरबार ने कैलाश विजयवर्गीय को क्षेत्र तक सीमित कर दिया है। इंदौर की पांचों सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव बढ़ा है। इंदौर तीन में मुकाबला रोचक है यहां भाजपा और कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायकों को ही टिकिट दिया है। मानधाता में नारायण पटेल लोकेंद्र तोमर को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। पंधाना में मौजूदा विधायक का टिकिट कटने से असंतोष है। भीकनगांव में भी यही हाल है। महेश्वर में कांग्रेस ने टिकिट बदलकर राजकुमार मेव को मैदान में उतारा है। इससे कोई विशेष अंतर नहीं आएगा। भगवानपुरा में भाजपा ने गजेंद्र पटेल को टिकिट दिया है। जिससे जमुना सोलंकी के समर्थकों में भारी रोष है। सेंधवा में अंतर सिंह आर्य के खिलाफ माहौल है।
उज्जैन और भोपाल संभाग
में महासंग्राम
वर्ष 2008 में उज्जैन संभाग की 29 सीटों में से भाजपा ने 18 जीती थी। 10 कांग्रेस के खाते में गई और एक पर निर्दलीय ने कब्जा किया। मालवा के निकट होने के कारण यहां भी थोड़ा सा असर राजशाही का है। राजाओं-महाराजाओं की छवि लोगों को आकर्षित करती है। लेकिन उज्जैन शहर में भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव कुछ अधिक ही है। इस बार उज्जैन दक्षिण से भाजपा ने अपना प्रत्याशी बदला है और शिवनारायण की जगह मोहन यादव चुनावी मैदान में हैं। शिवनारायण के खिलाफ कई शिकायतें थीं कार्यकर्ताओं में भी आक्रोश था। मोहन यादव ज्यादा ऊर्जावान है और कांग्रेस के जयसिंह दरबार भी इस बार अच्छी टक्कर दे रहे हैं। उज्जैन उत्तर से भी पारस जैन के खिलाफ आवाज उठी थी, लेकिन दिल्ली में उनकी लॉबिंग अच्छी होने का फायदा मिला। कांग्रेस ने यहां से विवेक यादव को टिकिट दिया है। देवास में तुकोजीराव पवार इस बार भी सीट बचा ले जाएंगे। खातेगांव में बृजमोहन धूत की टिकिट कटने से नाराजगी है, लेकिन गरोठ में सुभाष सोजतिया को मुश्किल का पड़ सकता है क्योंकि भाजपा के राजेश जाटव जातिगत समीकरण में बाजी मार सकते हैं। मल्हारगढ़ में जगदीश देवड़ा और सुहासरा में भाजपा के राधेश्याम पाटीदार की जीत का अंतर घट सकता है। मनासा में कैलाश चावला भी इस बार विजेंद्र मालाहेड़ा के मुकाबले मजबूत दिखाई दे रहे हैं। जावद में ओम प्रकाश सकलेचा के समक्ष भी ज्यादा चुनौती नहीं है। ज्योतिरादित्य और शिवराज सिंह की सभाओं से दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में उत्साह है। कालापीपल में बाबूलाल वर्मा (भाजपा) के समर्थक पार्टी के खिलाफ काम कर रहे हैं क्योंकि इस बार वहां इंद्रसिंह परमार को टिकिट दी गई है। जावरा से महेंद्र सिंह कालूखेड़ा (कांग्रेस) का टिकिट कटने से मुकाबला रोचक हो गया है। इस बार कांग्रेस को 12 से 15 सीटें उज्जैन संभाग से मिलने की उम्मीद है। भोपाल संभाग में वर्ष 2008 में भाजपा ने क्लीन स्वीप करते हुए 18 सीटें जीती थी छह सीटें कांग्रेस और भारतीय जनशक्ति को एक सीट मिली थी, इस बार भारतीय जनशक्ति का विलय भाजपा में हो चुका है। इसलिए सिलवानी सीट पर रामपाल सिंह को जीत मिल सकती है। विदिशा में राघवजी ने निर्दलीय लडऩे की धमकी दे दी थी जिसका प्रभाव कम करने के लिए रणनीतिक तौर पर शिवराज सिंह चौहान यहां से प्रत्याशी हैं जिनके मुकाबले में शशांक भार्गव उतने प्रभावी नहीं हैं। अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए भाजपा ने भोपाल उत्तर से आरिफ बेग को टिकिट देकर एक तरह से कांग्रेस के आरिफ अकील को वाकओवर भी दे दिया है। भोपाल दक्षिण से उमाशंकर गुप्ता को हराने के लिए संजीव सक्सेना को 44 हजार वोट कवर करने पड़ेंगे जो थोड़ा कठिन है। भोपाल मध्य से ध्रुवनारायण सिंह का टिकिट कटने के कारण कांग्रेस के आरिफ मसूद को भाजपाई भितरघात का लाभ मिलेगा। वैसे यहां भाजपा के सुरेंद्रनाथ सिंह भोपाल के न होकर उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं। बाहरी प्रत्याशी के कारण उनका भी भाजपा में जमकर विरोध है। गोविंदपुरा में सचिन तेंदुलकर की तर्ज पर बाबूलाल गौर को विदाई चुनाव में जनता धोखा नहीं देगी ऐसी उम्मीद है। किंतु नरेला में विश्वास सारंग के सामने सुनील सूद इस बार ज्यादा टक्कर दे रहे हैं। यहां कांग्रेस ने कुछ दूसरे दलों के प्रत्याशियों को भी भाजपा के वोट काटने के लिए खर्चा-पानी दिया है। ऐसा कहा जा रहा है। सूद पांच वर्ष से जनता को दिखाई नहीं दिए यही उनका माइनस पाइंट है। हुजूर में जीतेंद्र डागा के एवज रामेश्वर शर्मा को टिकिट दिया गया है वह भी भोपाल के नहीं हैं सिरोंज के होने के कारण उनका भी विरोध जमकर हो रहा है। लेकिन कांग्रेस के राजेंद्र मंडलोई को पहले पार्टी की राजनीति से भी जूझना होगा। बैरसिया में टिकिट कटने से ब्रह्मानंद रत्नाकर दुखी हैं। विष्णु खत्री साफ-सुथरी छवि के व्यक्ति है। कांग्रेस के महेश रत्नाकर भी बराबरी पर हैं। यहां जीत का अंतर बहुत कम रहने वाला है। बुदनी में चर्चा थी कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के अनुज लक्ष्मण सिंह यहां शिवराज सिंह को घेरने की कोशिश करेंगे, लेकिन बाद में महेंद्र सिंह चौहान को टिकिट मिला जो शिवराज के मुकाबले एक मामूली नाम है, लेकिन आष्टा, इछावर, सीहोर में भाजपा के लिए राह कठिन है। खासकर सीहोर में ऊषा सक्सेना अपनी ही पार्टी के कुछ लोगों से जूझना पड़ सकता है। उदयपुरा में भगवान राजपूत ने पांच वर्ष लगातार जनता से संपर्क बनाए रखा। इसी कारण भाजपा के रामकृष्ण कोटवार को कठिनाई होगी। भोजपुर में रोचक मुकाबला है। भाजपा के सुरेंद्र पटवा और सुरेश पचौरी जैसे दिग्गज चुनावी मैदान में हैं। पचौरी ने पूरी ताकत झोंक दी है। सुनने में आया है कि दिग्विजय सिंह विशेष रूप से पचौरी को जीतता देखना चाहते हैं। सांची में गौरीशंकर शेजवार से जनता की नाराजगी कम हुई है। बासौदा, कुरवाई, शमशाबाद, नरसिंहगढ़ और सारंगपुर में भाजपा की जीत का अंतर घट सकता है। सिरोंज में लक्ष्मीकांत शर्मा मजबूत हैं। ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर में कांग्रेस को ज्योतिरादित्य का लाभ मिलेगा।
सागर और ग्वालियर में
महाराजा चलेंगे
बुंदेलखंड के सागर और ग्वालियर संभाग में ज्योतिरादित्य ने विशेष मेहनत की है। सागर में 26 और ग्वालियर में 21 सीटें है। इन दोनों संभागों पर 47 सीटों में बराबरी की टक्कर कही जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। पिछले चुनाव में दोनों संभागों से भाजपा ने 26 सीटें प्राप्त की थी और कांग्रेस को 14 सीटें मिली थीं। भाजश भी तीन सीटें लेने में कामयाब रही थी। इस बार हालात बदले हुए हैं। भाजश भारतीय जनता पार्टी के साथ है और इसी कारण यहां के नेताओं को थोड़ी राहत है अन्यथा इन दोनों संभागों में भाजपा की हालत दयनीय हो चुकी है। बीना, देवरी, नरयावली, सागर और जतारा में उमा भारती की सभा विशेषतौर पर आयोजित करने के लिए यहां के भाजपा प्रत्याशी लालायित हैं क्योंकि यहां भाजपा की स्थिति कमजोर है। खुरई में कांग्रेस के अरुणोदय चौबे और सुरखी में गोविंद सिंह राजपूत मजबूत स्थिति में हैं। बंडा में भी कांग्रेस मजबूत स्थिति में है। टीकमगढ़ में इस बार बराबरी का मुकाबला हो सकता है। हालांकि पृथ्वीपुर में कांग्रेस के विजेन्द्र सिंह अपनी सीट बचाने में कामयाब रहेंगे। निवाड़ी में वर्तमान विधायक समाजवादी पार्टी की मीरा यादव के खिलाफ माहौल लगातार बिगड़ता जा रहा है। यहां कांग्रेस के बालकृष्ण दुबे ने अच्छी मेहनत की है। महाराजपुर में मानवेंद्र सिंह इस बार भाजपा के टिकिट पर चुनाव लड़ रहे हैं। चंदला में भाजपा के रामदयाल अहिरवार का टिकिट कटने से असंतोष है। रामकृष्ण कुसमारिया ने अपना क्षेत्र बदलकर राज नगर को चुनावी क्षेत्र बनाया है और वे स्थानीय कार्यकर्ताओं की नाराजगी झेल रहे हैं। छतरपुर में ललिता यादव को थोड़ी राहत मिली है। बिजावर में कांग्रेस मजबूत हो रही है। मलेहरा में उमा भारती के कारण रेखा यादव सीट निकालने में कामयाब रहेंगी। दमोह में संतोष भारती प्रकरण के कारण कांग्रेस ने नौटंकी दिखाई जिसका सीधा फायदा अब भाजपा को मिल गया है। जयंत मलैया के पक्ष में उमा भारती के प्रचार के कारण लोधी वोट भी भाजपा की झोली में आ सकते हैं। हालांकि जीत-हार का अंतर पांच हजार के भीतर ही रहेगा। जबेरा में दशरथ लोधी जातीय समीकरण में स्थिर बने रहेंगे। हटा, पवई, गुन्नोर में भाजपा को कड़ा मुकाबला देखने पड़ेगा। पन्ना में कुसुम मेहदेले की हार का कारण उमा भारती ही थीं। इस बार शायद उन्हें लाभ मिल सके। ग्वालियर में कांग्रेस 10 सीटों पर मजबूत हुई है। ग्वालियर ग्रामीण में बहुजन समाजपार्टी और कांग्रेस के बीच गुप्त समझौते की बात कही जा रही है। वैसे यह सीट बसपा के पास है। यदि कांग्रेस जीतती है तो उसे फायदा होगा, लेकिन भाजपा को भी नुकसान नहीं होगा। ग्वालियर शहर में कांग्रेस के प्रद्मुन सिंह को महाराजा की कृपा प्राप्त है। ग्वालियर पूर्व में इस बार माया सिंह चुनाव लड़ रही हैं क्योंकि यहां से भाजपा के अनूप मिश्रा के खिलाफ माहौल है। कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल थोड़े कमजोर प्रत्याशी है। ग्वालियर दक्षिण में कांग्रेस और भाजपा लगभग बराबरी के मुकाबले पर हैं। भाजपा के नारायण सिंह के खिलाफ इस चुनाव में स्थानीय नेताओं ने शिकायत दर्ज कराई थी। लेकिन उनका टिकिट नहीं कटा। भितरवार में अनूप मिश्रा को लाखन सिंह की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। डबरा में कांग्रेस की इमरती देवी और सेवड़ा में कांग्रेस के घनश्याम सिंह मजबूत हुए हैं। दतिया में नरोत्तम मिश्रा की जीत का अंतर कम हो सकता है। करेरा, पोहरी, पिछोर, कोलारस, बमौरी, गुना में कांग्रेस का प्रभाव बढ़ा है। शिवपुरी में यशोधरा राजे को प्रस्तुत करके भाजपा ने संतुलन बनाने की कोशिश की है जिसका प्रभाव अशोकनगर चंदेरी और मुगावली में भी पड़ सकता है। राघौगढ़ में जयवर्धन सिंह को हराना कठिन है।
रीवा, शहडोल और चंबल
में स्थानीय मुद्दे
रीवा, शहडोल और चंबल संभाग में सदैव स्थानीय मुद्दे हार-जीत का फैसला करते हैं। इन तीनों संभाग में 43 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से भाजपा के पास 28 कांग्रेस के पास 9 सीटें हैं बाकी अन्य दलों के पास है। इस बार कांग्रेस ने थोड़ी मेहनत की है और उसकी सीटें बढऩे की संभावना है। रीवा में श्रीनिवास तिवारी के पुत्र और पौत्र को चुनावी मैदान में उतारकर कांग्रेस ने वंशवाद को बढ़ावा दिया है। इसी कारण यहां वंशवाद एक मुद्दा है। भारतीय जनता पार्टी को चित्रकूट रैगांव, सतना, नागोद, मैहर में विशेष प्रयास करने होंगे। हालांकि भारतीय जनशक्ति पार्टी के आने से मऊगंज की सीट पर भाजपा मजबूत हुई है। शहडोल में कांग्रेस की स्थिति अपेक्षाकृत सुधरी है। मानपुर, बांधवगढ़, पुष्पराजगढ़, अनूपपुर, जैतपुर तथा सिंगरौली में भाजपा को समस्या हो सकती है। कांग्रेस के इस क्षेत्र से एकमात्र विधायक बिसाहूलाल भी थोड़ी परेशानी में है। चंबल में कांग्रेस की स्थिति मजबूत हैं और इस बार वह 10 सीटें भी जीत सकती है। वैसे श्योपुर, लहार और गोहद में भाजपा ने पिछले दिनों धुआंधार प्रचार किया है जिसका फायदा मिल सकता है। सभी संभागों के आंकलन के बाद यह लगता है कि मध्यप्रदेश में दोनों पार्टियां अब बराबरी पर हैं। फर्क इतना है कि शिवराज सिंह चौहान भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी हैं, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम कांग्रेस का अंतिम नाम नहीं है। यही भ्रम कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। वैसे भी कांग्रेस की मेहनत देखकर यह नहीं लगता कि इस बार वह चुनाव जीतने के लिए मैदान में है। यदि अनायास कोई जीत हाथ लग जाए तो अलग बात है वर्ना जिस तरह कांग्रेस के नेता कांग्रेस की ही बखिया उधेडऩे में लगे हैं और नूरी खान जैसे नेताओं पर धमकाने के आरोप लग रहे हैं उसके चलते कांग्रेस में एकता कहीं दिखाई नहीं दे रही है।
इन चुनावों में भाजपा लगातार विकास को मुद्दा बनाने की कोशिश में है। शिवराज सिंह चौहान जो आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं उनमें थोड़ी अतिश्योक्ति हो सकती है, लेकिन कांग्रेस के पास शिवराज के शासन के अतिरिक्त और कोई मुद्दा नहीं है। केंद्र सरकार की योजनाओं को प्रस्तुत करना कांग्रेस के लिए उतना प्रभावी नहीं है। खासकर जिस तरह के घोटाले पिछले पांच वर्षों में केंद्र में देखने को मिले उसके चलते चुनावी अभियान में अपनी बात प्रभावी ढंग से रखने में कांग्रेस सफल नहीं रही। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने आक्रामक विज्ञापन अभियान भी चला रखा है जिसमें शिवराज सिंह चौहान के कार्यों का गुणगान है तो कांगे्रस के कार्यकाल में हुए घपलों-घोटालों का उल्लेख भी है। इसी कारण यह चुनावी समर अब रोचक मोड़ पर है।