05-Dec-2013 08:47 AM
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छत्तसीगढ़ के आसन्न चुनावी परिणामों ने भारतीय जनता पार्टी को चिंतित कर दिया है। इस चिंता का एक कारण चुनाव के दौरान कुछ खास व्यक्तियों की नाराजगी और पार्टी के विरोध में भीतर ही भीतर काम करना भी है। नरेंद्र मोदी की

सभाओं से छत्तीसगढ़ में भाजपा को कुछ उम्मीद बंधी थी, लेकिन सत्ता विरोधी माहौल का असर खत्म करने में नरेंद्र मोदी कामयाब नहीं हो सके। रमन सिंह ने सस्ते चावल से लेकर और कई तरह के वादे किए, लेकिन उतने प्रभावी नहीं हो सके। लोगों में नाराजगी खत्म करने में पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकी है भाजपा। दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रति भी मतदाताओं में कोई उत्साह नहीं है। इसी कारण 8 दिसंबर को आने वाले परिणाम को लेकर दोनों दलों में चिंता है। इतना अवश्य हुआ है कि पहले के मुकाबले मतदान प्रतिशत बढ़ा है और मतदाताओं ने उन क्षेत्रों में भी बढ़-चढ़कर मतदान किया जहां नक्सलियों का आतंक है। इसका कारण यह है कि पेट की भूख के आगे कोई आतंक नहीं चलता और छत्तीसगढ़ में इस भूख को शांत करता है चावल, जिसे लेकर हर चुनावी सभा में कुछ न कुछ बोला जरूर गया चाहे वह 35 किलो प्रति परिवार चावल मुफ्त देने की बात हो या सस्ता चावल मुहैया कराने का आश्वासन।
छत्तीसगढ़ बोली में चावल को चाउरÓ कहा जाता है और यहां के लोग मुख्यमंत्री रमन सिंह को चाउर वाले बाबाÓ कहते हैं. राज्य के गरीबों को किफायती दर पर अनाज मुहैया कराने वाले सिंह ने तीसरी बार भाजपा की सरकार बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इस राज्य के ग्रामीण भाजपा सरकार की गरीबों को किफायती दर पर अनाज मुहैया कराने के लिए पीडीएस योजना और राज्य खाद्य सुरक्षा कानून को लेकर संतोष जाहिर करते हैं। राज्य के ज्यादातर लोग आदिवासी हैं। उन्हें भाजपा सरकार किफायती दर पर चावल दे रही है। बहरहाल, छत्तीसगढ चावल मिल एसोसिएशन नीति में बदलाव की मांग कर रहा है ताकि चावल के लिए योगदान के एवज में छत्तीसगढ़ को कुछ फायदा हो। भाजपा सरकार का दावा है कि उसने छत्तीसगढ़ में विकास के अभूतपूर्व कार्य किए हैं। सरकार ने कुछ महीनों पहले गऱीबों को हर राशन कार्ड पर प्रति माह तीन रुपए की दर से 35 किलो चावल देना शुरु किया है। इसके अलावा उसने किसानों को 14 की जगह तीन प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण देना भी शुरु किया है। विकास, चावल और सस्ता कर्ज ही चुनाव का मुख्य चुनावी मुद्दा बने हुए हैं। कांग्रेस ने इसके जवाब में कहना शुरु किया है कि विकास तो केंद्र के पैसे से हुआ और वह भी तब जब केंद्र की कांग्रेस सरकार ने राज्य के आबंटन को चार गुना बढ़ा दिया। दूसरे वह विकास के काम में हुए भ्रष्टाचार की बात कर रही है। सस्ते चावल की होड़ में कांग्रेस ने दो रुपए किलो की दर से चावल देने का आश्वासन दे दिया और किसान को ब्याज मुक्त कर्ज देने की घोषणा कर दी है। लेकिन मतदाता पर इन लोकलुभावन नारों-वायदों का असर ख़ास नहीं दिख रहा है।
भाजपा ने दोबारा सरकार बनाने के लिए अपने 18 विधायकों के टिकट काटे। ताकि सत्ता विरोधी रुझान का असर कम हो सके, भविष्य की तस्वीर धुंधली है। मतदाता कुछ स्पष्ट राय नहीं रख रहा है। इसका कारण यह है कि शायद वह अपने पत्ते नहीं खोलना चाहता। किंतु वोटिंग मशीन में कुछ तो फीड हुआ ही है। सरकार में रहते हुए जो सर्वेक्षण करवाए गए थे। वे सर्वेक्षण उस समय के थे जब रमन सिंह सारे राज्य में घूम रहे थे, लेकिन उसके बाद जो माहौल बना वह किसके पक्ष में गया कहना आसान नहीं है। इसी कारण भविष्य को लेकर संशय है।