16-Nov-2013 08:03 AM
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वर्ष 1977 में जब जनता पार्टी सरकार ने पद्म पुरस्कारों पर रोक लगा दी थी उस वक्त भारी विवाद हुआ था। दरअसल यह रोक इसलिए लगाई गई थी क्योंकि ज्यादातर पुरस्कार उन लोगों को दिए जाते थे जो कहीं न कहीं कांग्रेस के हितों को

साध रहे थे या फिर जिनका वैचारिक झुकाव किसी विशेष पैटर्न पर था। लेकिन बाद में कांग्रेस ने न्यायिक प्रक्रिया द्वारा इस प्रतिबंध को समाप्त करवा दिया। कारण साफ था कांग्रेस अपनों को ही रेवड़ी बाटना चाह रही थी। कला, साहित्य, शिल्प, समाजसेवा, राजनीति से लेकर अन्य कई जगहों पर कांग्रेस के हिमायतियों को शुरू से ही पद या पुरस्कारों से नवाजा गया है। कई अकादमियों से लेकर बहुत से साहित्य, कला-संस्कृति के संस्थानों में वर्षों से कबाड़ की तरह कांग्रेसनुमा बुद्धिजीवी या कलाकार जमें हुए हैं और लंबे समय तक जमे भी रहे थे। एक जमाने में इन पर वामपंथियों का कब्जा हुआ करता था। लिहाजा पद्म पुरस्कार शुरू से ही विशेष राजनीतिक झुकाव के व्यक्तियों को मिलते रहे। इसका अर्थ यह नहीं था कि ये सारे लोग इन पुरस्कारों के लायक नहीं थे यह अवश्य थे, लेकिन जो इन पुरस्कारों से वंचित रहे वे भी कोई कम नहीं थे। बहरहाल राजनीति की तासीर बदलने के साथ ही कला-संस्कृति के संस्थानों में कुछ स्थापित लोगों को बेदखल किया गया तो अन्य राजनीतिक विचारधाराओं से प्रेरित लोगों को भी गुमनामी की धुंध छोड़कर सत्ता की चटखती धूप
में आने का मौका मिला। किंतु यह एक अलग विषय है।
पद्म पुरस्कारों को हाल ही की जिस घटना ने विवाद के केंद्र में ला दिया है वह है लता मंगेश्कर द्वारा नरेंद्र मोदी की तारीफ। नरेंद्र मोदी कांग्रेस की राजनीति के लिए भले ही बड़े भारी संकट न हों लेकिन सोशल मीडिया से लेकर देश के मीडिया तक हर जगह वे संकट तो बने ही हुए हैं और जिस तरह मोदी ने पानी पी-पीकर कांग्रेस को कोसने का अभियान चला रखा है उसके चलते कांग्रेस का मोदी विरोधी होना स्वाभाविक है। ऐसे में कोई भी मोदी की तारीफ करके भला कांग्रेस का कृपा पात्र कैसे रह सकता है। यही कारण है कि जब भारत की स्वर कोकिला लता मंगेश्कर ने नरेंद्र मोदी की तारीफ की तो कांग्रेस के कुछ नेताओं ने असंतोष जाहिर कर दिया। मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष जनार्दन ने तो लता मंगेश्कर से भारत रत्न लौटाने की मांग भी कर डाली। फिर भी उम्मीद थी कि यह विवाद इस असंतोष प्रकटन के साथ ही समाप्त हो जाएगा। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। कांग्रेस में कुछ खास किस्म की अनुवांशिक बनावट है और वह देर से ही सही बदला जरूर लेती है। लिहाजा स्वर कोकिला को अब एक नए विवाद में घसीटा गया है। किसी ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी जुटाई है कि लता मंगेश्कर समेत कई लोगों ने पद्म पुरस्कारों की अनुशंसा की थी और इनमें उनके परिवार के लोग शामिल थे। खासकर अपनी बहन ऊषा मंगेश्कर के लिए लता जी ने जो पैरवी की उसका खुलासा होने के बाद लता मंगेश्कर बेहद निराश हो गईं। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि मोदी की तारीफ इतनी महंगी पड़ सकती है। यह विवाद बुरादे के ढेर में लगी आग के समान भीतर ही भीतर सुलग रहा है। अभी तो शुरुआत है आने वाले दिनों में न जाने कितने ऐसे चेहरे बेनकाब किए जाएंगे जिन्होंने पद्म पुरस्कार की अनुशंसा की होगी। बहरहाल इस विवाद से दुखी लता मंगेश्कर ने कह दिया है कि वह अब भविष्य में कभी भी पद्म पुरस्कारों की अनुशंसा नहीं करेंगी। लेकिन लता मंगेश्कर के ऐसा कहने से विवाद थमने वाला नहीं है। आने वाले दिनों में भाजपा की तरफ से भी यह पद्म युद्धÓ शुरू
हो सकता है और फिर इसमें कुछ ऐसे लोगों
को घसीटा भी जा सकता है जो कांग्रेस के
समर्थक हों।
क्योंकि कांग्रेस ने लता मंगेश्कर द्वारा नरेंद्र मोदी की तारीफ किए जाने पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी। कांग्रेस के प्रवक्ता भक्तचरन दास का कहना था कि सारा देश लता मंगेश्कर का सम्मान करता है। कांग्रेस भी उन्हें सम्मान देती है, उनकी आवाज में दर्द और संवेदनशीलता है किंतु यदि उनके मुंह से मोदी जैसे असंवेदनशील व्यक्ति की तारीफ निकलती है तो सारे देश को दुख होता है।