16-Nov-2013 07:54 AM
1234890
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की मित्रता भी कई बार विवाद का कारण बन जाती है। हाल ही में उन्होंने मुस्लिम धर्म गुरु तौकीर रजा और धर्मगुरु प्रमोद कृष्णम के साथ मंचासीन होकर एक नया

विवाद पैदा कर दिया है। तौकीर रजा की कुंडली किसी से छिपी नहीं है। बरेली के मौलाना तौकीर रजा का नाम अचानक उस वक्त सुर्खियों में आया जब आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल से उनकी मुलाकात हुई और रजा ने भी केजरीवाल को समर्थन देते हुए कहा कि उनके विचार केजरीवाल से मिलते-जुलते हैं। आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास गौहत्या विरोधी आंदोलन की कथित शुरुआत के लिए मौलाना तौकीर रजा की प्रशंसा भी कर चुके हैं। यानी गौमाता ने आम आदमी पार्टी की राजनीति को भी प्रभावित तो कर ही दिया है।
वैसे रजा का राज यह है कि वे विवादित होते हुए भी हर पार्टी में पैठ बना ही लेते हैं। उनका कांग्रेस से रिश्ता है और समाजवादी पार्टी सरकार ने तो उनको राज्यमंत्री का दर्जा ही दे दिया है। बरेली के दंगों में कथित रूप से विवादित भूमिका निभाने वाले रजा की दिग्विजय सिंह से निकटता अब चुनावी चर्चा का विषय बन चुकी है। दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि रजा इन आरोपों से मुक्त हो चुके हैं और वे गौ हत्या के विरुद्ध कार्य करना चाहते हैं। दिग्विजय की रजा से निकटता शायद उतना विवाद का विषय नहीं हो किन्तु जिस कल्कि महोत्सव में दिग्विजय सिंह और केंद्रीय मंत्री तारिक अनवर उत्तरप्रदेश के संभल शहर में शामिल हुए थे। उस कार्यक्रम के सूत्रधार प्रमोद कृष्णम की कहानी काफी दिलचस्प है और बहुत दूर तक पहुंचती है।
कृष्णम् की कांग्रेसी नेताओं से निकटता को संदेह की दृष्टि से देखा जाता रहा है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे कभी कांग्रेस के असफल नेता भी रहे हैं। यह कितना सच है इसके बारे में तो कुछ पता नहीं, किन्तु कुछ समय पूर्व अजमेर ब्लास्ट के एक आरोपी भावेश पटेल ने राष्ट्रीय जांच अभिकरण (एनआईए) के विशेष न्यायालय को लिखी चिट्ठी में कथित रूप से कहा था कि दिग्विजय सिंह, केंद्रीय मंत्रियों सुशील कुमार शिंदे और प्रकाश जायसवाल और आरपीएन सिंह ने मुझे लाखों रुपयों की पेशकश की थी ताकि मैं अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार की संलिप्तता की बात अपने बयान में दर्ज करवा दूं। सूत्रों के मुताबिक इस घटना के बाद कुछ नाम और भी सामने आए थे। जिनमें प्रमोद कृष्णम् का नाम भी था। जो वास्तव में पहले प्रमोद त्यागी हुआ करते थे। भावेश पटेल का नाम पुलिस ने अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में दर्ज की गई प्राथमिक सूचना रपट में दर्ज किया था। पुलिस पटेल को गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही थी, लेकिन भावेश पटेल मुरादाबाद में प्रमोद त्योगी के आश्रम में रह रहा था। त्यागी के इसी आश्रम में उनकी भेंट एन.आई.ए. के आईजी से हुई थी। त्यागी के पास पटेल कई महीने रहा। ताज्जुब है पुलिस उसे फिर भी न जानने का दावा करती रही। प्रमोद त्यागी युवा कांग्रेस में सक्रिय रहा। बाद में त्यागी ने अपने आप को विधिवत कल्कि घोषित कर दिया और पद की गरिमा के अनुरूप अपना नाम भी प्रमोद कृष्णम रख लिया। उसने मुरादाबाद के अपने गांव अचोड़ा कम्बोह में कल्किधाम का निर्माण किया। वहां कल्कि महोत्सव शुरू किया। इस नये कल्कि आश्रम में कपिल सिब्बल से लेकर श्रीप्रकाश जायसवाल, राजीव शुक्ला, दिग्विजय सिंह तक सभी आते हैं। भावेश पटेल के माता-पिता प्रमोद त्यागी को सचमुच नया कल्कि मान कर उसके उपासक हुये। उसी हैसियत से भावेश पटेल आश्रम में रहता था। पटेल का कहना है कि इसी त्यागी ने उसकी कांग्रेस के प्रमुख नेताओं यथा गृहमंत्री शिंदे और महासचिव दिग्विजय सिंह से मुलाकात करवाई। एन.आई.ए. के अधिकारी भी पटेल से इसी त्यागी के तथाकथित आश्रम में मिलते थे। सूत्रों के अनुसार पटेल का कहना है कि दिग्विजय सिंह ने उसे आश्वासन दिया था कि तुम इस कांड में संघ प्रमुख मोहन भागवत एवं कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार का नाम ले देना, तो तुम्हें गिरफ्तारी के महीने बाद ही जमानत पर छुड़ा दिया जायेगा। इस काम के लिये उसे पैसे का आश्वासन भी दिया गया। शायद इसी समझौते के तहत मार्च में भावेश पटेल का आत्मसमर्पण हुआ। न्यायालय ने पटेल को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इसके बाद पटेल का वक्तव्य चौंकाने वाला है। उसके अनुसार जयपुर जेल से ही अपने मोबाईल फोन पर जांच अधिकारी विशाल गर्ग ने उसकी एन.आई.ए. के आई.जी. संजीव कुमार सिंह और प्रमोद त्यागी से बात करवाई, जिसमें उन्होंने भागवत और इंद्रेश का नाम लेने के लिये फिर दबाव और लालच दिया।
मार्च में पटेल ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा के तहत बयान दर्ज करवाया लेकिन उसने मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार का नाम नहीं लिया। तब जांच अधिकारी उसे फिर जयपुर जेल में मिला और कहा कि तुमने हमारा काम नहीं किया इसलिये अब तुम्हारी कोई सहायता नहीं की जायेगी। इसके बाद न्यायालय की अनुमति से पटेल को जयपुर जेल से अलवर जेल भेज दिया गया जबकि अजमेर कांड के बाकी सब अभियुक्त जयपुर जेल में रखे गये थे। यहीं नहीं, पटेल के अनुसार जांच अधिकारी एक बार फिर उससे अलवर जेल में मिला और उससे वायदा माफ गवाह बनने के लिये कहा। एन.आई.ए. पूरा जोर लगा रही थी कि किसी तरह इस केस में भागवत और इंद्रेश का नाम डाला जाये। अब यह रहस्योद्घाटन भी हुआ है कि पटेल को बिना अधिकार के अलवर स्थानान्तरित करने की योजना भी एनआईए के डीजी की थी। पटेल ने न्यापयालय से गुहार लगाई है कि उसे जान का खतरा है। कांग्रेस ने अपने राजनैतिक हितों के लिये उसका दुरुपयोग किया है। यह पूरी घटना अनेक सवालों को जन्म देती है।