पटेल की विरासत पर बहस
16-Nov-2013 08:00 AM 1234968

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपना जीवन इस देश को जोडऩे में लगा दिया। उन्होंने सचमुच बहुत आरोप सहे लेकिन इस देश को जोड़े रखा। यहां तक कि जवाहर लाल नेहरू जैसे कद्दावर नेता का विरोध भी उन्होंने अपने सीने पर झेला, लेकिन भारत के टुकड़े मंजूर नहीं किए। आज उन्हीं वल्लभभाई पटेल के नाम पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस बांटने की राजनीति कर रही है। दोनों उनकी विरासत की दावेदार बनने की कोशिश में हैं। भारतीय जनता पार्टी विशेष रूप से यह कोशिश कर रही है क्योंकि उसका अपना कोई इतिहास नहीं है। कोई भी महापुरुष ऐसा नहीं है जिसकी विरासत पर वह दावा कर सके। इसीलिए कभी सरदार पटेल तो कभी महात्मा गांधी और कभी सुभाषचंद बोस जैसे नेताओं की राजनीति को अपनी धरोहर घोषित करते हुए भारतीय जनता पार्टी भारतीय राजनीति में नेहरू गांधी परिवार के वर्चस्व को तोडऩा चाहती है। इन दिनों यह प्रक्रिया कुछ ज्यादा ही तीव्र हुई है। खासकर नरेंद्र मोदी द्वारा सद्भावना उपवास किए जाने के बाद वल्लभभाई पटेल और महात्मा गांधी के ऊपर भाजपा की दावेदारी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। महात्मा गांधी से वैचारिक मतभेद होते हुए भी भाजपा अच्छी तरह जानती है कि गांधी का नाम लिए बगैर इस देश में राजनीति नहीं की जा सकती। इसीलिए बार-बार मंचों से कहा जा रहा है कि जनता को महात्मा गांधी का वह चिर संचित स्वप्न साकार करना चाहिए जो उन्होंने कांग्रेस की समाप्ति के रूप में देखा था।
सरदार वल्लभ भाई पटेल भी कमोबेश इसी रूप में भारतीय जनता पार्टी द्वारा अधिग्रहितÓ किए जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी का थिंक टैंक सारे देश में यह स्थापित करने में लगा है कि जवाहर लाल नेहरू देश की अखंडता के प्रति उतने सजग नहीं थे जितने कि सरदार वल्लभभाई पटेल थे। कश्मीर में जवाहर लाल नेहरू ने जो राजनीतिक आदर्श उस वक्त प्रकट करने की कोशिश की। वह गांधी जी का प्रभाव कहा जा सकता है। नेहरू जी कश्मीर मसले के समय कुछ ज्यादा ही आदर्शवादी बन गए थे यह सत्य है किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे कश्मीर के भारत में विलय के खिलाफ थे बल्कि नेहरू जी का स्वप्न यह था कि भारत एक ऐसा देश बने जिसमें सभी समुदाय के लोग अपनी इच्छा से मिल-जुल कर रहे। किसी पर भी कोई दबाव नहीं हो। किसी प्रकार की संप्रभुता थोपी न जाए बल्कि वह लोगों के दिल में रहे, लेकिन नेहरू जी उनसे वफा की उम्मीद कर रहे थे जो वफा का अर्थ ही नहीं जानते थे, जिनकी रग-रग में धोखा और बेईमानी बसी हुई थी। सरदार पटेल ज्यादा व्यावहारिक राजनीतिज्ञ थे। उन्हें इस बात की समझ थी कि राज सत्ता को आवश्यकता पडऩे पर धर्म-दंड भी उठाना ही पड़ता है। लिहाजा पटेल ने अपेक्षाकृत अधिक सख्त रवैया अपनाया जो शायद नेहरू से उनके मतभेद का कारण भी बना।
लेकिन कालांतर में कुछ भाजपा समर्थक विचारकों ने इस मतभेद को इस तरह प्रचारित किया कि नेहरू एक बड़े खलनायक साबित हो जाएं और इस तरह उन्होंने सुनियोजित रूप से नेहरू की देशभक्ति को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। आज कुछ किताबों का उद्धरण देकर लालकृष्ण आडवाणी इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं और मंच से इतिहास के गलत तथ्यों को प्रस्तुत करके नरेंद्र मोदी भी इसी मुहिम की आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। लेकिन वे शायद भूल रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी के एक अन्य राजनीतिज्ञ अटल बिहारी वाजपेयी नेहरू जी के कायल थे और उन्होंने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय इंदिरा गांधी की भी मुक्त कंठ से सराहना की थी। इतिहास में स्थान पा चुके व्यक्ति को किसी एक विशेष कोण से देखने की राजनीति उचित नहीं है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जो भी कदम उठाए या जो भी किया वह उस समय की राजनीति की आवश्यकता थी। एक विशाल जनसंख्या वाला देश होने के बावजूद भारत सामरिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ था। हमारे पास जो भी ताकत थी और जो हथियार थे वे अंग्रेजों की देन थे। इसीलिए उस वक्त भारत को बहुत सोच-समझकर फैसला करना था। भारत देश के अंदर और बाहर सामरिक मोर्चा नहीं खोल सकता था। भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, पिछड़ापन जैसे मोर्चे देश में पहले से ही खुले थे। इसलिए नेहरू को कई मोर्चों पर लड़ाई करनी थी। उनके व्यक्तित्व को खंड-खंड कर देखने की साजिश जो की जा रही है वह उचित नहीं है। इतिहास की बजाए राजनीतिक दलों को आगे देखना चाहिए। जहां तक पटेल का प्रश्न है उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि इस देश में मुजफ्फरनगर जैसे दंगे न हों ताकि अलगाव की आग को हवा न मिले।
लेकिन कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों जनता को पटेल बनाम नेहरू की राजनीति में उलझाकर रखना चाहती हैं। एक नया बवंडर खड़ा किया जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने तो विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा ही सरदार पटेल की बनवाने का संकल्प किया है, लेकिन यह प्रतिमा राजनीतिक रूप से पटेल और नेहरू को दो अलग धु्रवों पर खड़ा करेगी तो नुकसान देश का ही होगा। भले ही इन दोनों में कुछ मतभेद थे, पर यह नहीं भूलना चाहिए कि पटेल और नेहरू ने ही एक विशाल भारत की नींव रखी और इस देश को उस दौर में बचाने में कामयाब रहे जब दुनिया में कई ताकतें तबाह हो चुकी थी।

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