यूपी पुलिस ने होमगार्ड पर लाठियां भांजी
06-Nov-2013 07:39 AM 1234772

उत्तरप्रदेश का गुंडाराज अब वहां की प्राथमिक स्तर की सुरक्षा सेवा होमगार्ड के लिए भी खतरे का सबब बन गया है। 22 अक्टूबर को प्रदर्शन में होमगार्ड दिवस मनाने की घोषणा की गई थी लेकिन उससे एक दिन पहले 21 अक्टूबर को प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपनी मांगों को लेकर धरना दे रहे होमगार्ड के जवानों को पुलिस ने लाठियों से पीट-पीटकर भगा दिया। जो होमगार्ड दिनभर पुलिस की जी हुजूरी करते हैं और मैदान में दिन रात कड़ी मेहनत करके अपना पसीना बहाते हैं उन्हें पुलिस ने बुरी तरह पीटा। दरअसल होमगार्ड दिवस से पहले अपनी सेवा की बेहतरी के लिए ये जवान सरकार को जगाना चाह रहे थे और झूलेलाल पार्क सहित कई क्षेत्रों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। उनमें से कुछ वर्दी में भी थे कुछ सादी वर्दी में थे। उधर राजधानी में ही वाम पार्टियों के प्रदर्शन के कारण जाम लगा हुआ था। जब पुलिस को कुछ नहीं सूझा तो उसने लाठियां भांजनी शुरू कर दी। पुलिस का गुस्सा इस बात पर था कि वामदलों के साथ-साथ होमगार्ड ने भी आसमान सर पर उठा रखा था। ये वही होमगार्ड हैं जो पुलिस की आधी से ज्यादा ड्यूटी बजाते हैं और उसका काम आसान करते हैं, लेकिन पुलिस ने लाठियां भांजते वक्त इस बात का भी लिहाज नहीं किया। संभवत: देश के इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब होमगार्डों को अनुशासनहीनता के कारण पुलिस की लाठियां खानी पड़ी और बाद में रबर की गोलियां तथा आंसु गैस के गोलों का भी सामना करना पड़ा। दर्जनों होमगार्ड घायल हो गए। जिनमें से दो को गंभीर चोटें लगी हैं। उधर अखिलेश यादव ने होमगार्डों के लिए कुछ विशेष घोषणाएं की हैं, लेकिन इससे उनके जख्मों पर शायद ही मरहम लग सके। क्योंकि उत्तरप्रदेश में ही नहीं सारे देश में खासकर मध्य और उत्तरी भारत में होमगार्डों की स्थिति बड़ी दयनीय है। उन्हें वेतन भत्ते सुविधाएं न के बराबर मिलते हैं। उनके रहने के स्थान बहुत खराब हैं जिन बैरकों में उन्हें रखा जाता है वहां सुविधाएं बिल्कुल नहीं होती। दिन-रात उनकी तैनाती कर दी जाती है, संवेदनशील क्षेत्रों में एक डंडा देकर भेज दिया जाता है। अपनी जान पर खेलने वाले इन जांबाजों को न तो जनता महत्व देती है और न ही सरकार। होमगार्ड के किसी भी जवान को आम आदमी हड़का देते हैं, लेकिन इसके बाद भी वे बदस्तूर काम करते जा रहे हैं। स्वाभाविक है उनकी कुछ मांगें हैं जिनमें समान कार्य और समान वेतन प्रमुख है, लेकिन सरकारों के कानों पर जूं नहीं रेंगती। इसी कारण उत्तरप्रदेश में होमगार्ड दिवस से पहले वे अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन सरकार को यह रास नहीं आया और उन्हें लाठियों का सामना करना पड़ा। अब अखिलेश यादव कुछ घोषणाएं की हैं, लेकिन लाठी वाला प्रकरण सर्वत्र चर्चा का विषय बन चुका है। अखिलेश सरकार की तीखी भत्र्सना हुई है। लाठीचार्ज को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है।
मोदी की रैली से थरथराहट
उत्तरप्रदेश में नरेंद्र मोदी की रैली से राजनीति थरथरा गई है। कानपुर और झांसी में नरेंद्र मोदी की रैलियों में आई अपार भीड़ ने उत्तरप्रदेश में सत्तासीन समाजवादी पार्टी को सोचने पर विवश कर दिया है। समाजवादी पार्टी के मंत्री आजम खान की नाराजगी अब एक बड़ा प्रश्नचिन्ह बनती जा रही है। मुजफ्फरनगर में दंगों की सुलगती आग में अभी भी घी डालने का काम किया जा रहा है। लोगों का मरना बदस्तूर जारी है। इससे वहां के मुस्लिमों में हताशा है। वे समाजवादी पार्टी से खफा हैं। दंगों में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं। ऐसे माहौल में नरेंद्र मोदी का उत्तरप्रदेश के राजनीतिक पटल पर अचानक छा जाना समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी है। राज्य में विधानसभा चुनाव फिलहाल चार वर्ष तक होने नहीं हैं और लोकसभा चुनाव में यदि मुसलमानों ने कांग्रेस का साथ दिया तो समाजवादी पार्टी के लिए भारी मुश्किल पैदा हो सकती है। किसी भी तरह का सांप्रदायिक तनाव भाजपा और कांग्रेस को लाभान्वित करेगा। जबकि समाजवादी पार्टी घाटे में रहेगी। मुलायम की तरह अखिलेश में वह ताकत नहीं है कि वे कारसेवकों की तरह हिंदुओं पर गोली चलवाकर मुसलमानों की नजरों में मौलाना बन जाएं। लेकिन माहौल में तल्खी है और इसकी कीमत समाजवादी पार्टी को ही चुकानी पड़ेगी। क्योंकि वही सत्ता में है। मुसलमान हर एक मौत के लिए समाजवादी पार्टी को ही जिम्मेदार मान रहा है। उधर राजा भैया की मंत्रिमंडल में वापसी भी मुसलमानों के जख्मों पर नमक छिड़कने के समान है। जितना जाति-वादी और सांप्रदायिक संतुलन स्थापित करने की कोशिश समाजवादी पार्टी कर रही है। बात उतनी ही बिगड़ती जा रही है। ऐसे हालात में मोदी का असर कम करने के लिए मुलायम सिंह और अखिलेश यादव नरेंद्र मोदी की नौ चुनावी रैलियों के जवाब में 18 चुनावी रैलियां उत्तरप्रदेश में करेंंगे ताकि आगामी लोकसभा चुनाव में राज्य की 80 संसदीय सीटों में से अधिकांश पर जीत मिल सके। सुनने में तो यह भी आया है कि राज्य की 18 अति पिछड़ी जातियों को अपनी तरफ खींचने के लिए मुलायम सिंह यादव अब रथ यात्रा भी कर सकते हैं।

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