16-Nov-2013 07:38 AM
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मध्यप्रदेश पुलिस ने डिब्बा कारोबार से संबंधित जिस गिरोह का इंदौर में भंडाफोड़ किया था उसे लेकर पुलिस की दो शाखाओं के आला अफसरों की भिड़ंत हो गई। सूत्रों के अनुसार साइबर सेल भोपाल के एडीजी अशोक दोहरे और आईजी

अनिल गुप्ता के बीच इस मामले की जांच को लेकर तनातनी के बाद पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे ने यह मामला सीआईडी के हवाले कर दिया है।
जब यह मामला सीआईडी सेल के पास पहुंचा तो आधा-अधूरा था। साइबर सेल के अधिकारियों ने इस मामले की तफ्तीश किए बगैर इसकी डायरी सीआईडी को सौंप दी। इस संबंध में जो सबूत थे वे पर्याप्त क्यों नहीं जुटाए और इस प्रकरण से संबंधित कम्प्यूटर तथा हार्डडिस्क वगैरह कहां पर हैं। क्योंकि साइबर सेल इस संवेदनशील मामले में अभी तक हार्डडिस्क का डाटा रिकवर करने में कामयाब नहीं हो पाई है। इसलिए यह कहना भी मुश्किल है कि दरअसल यह घोटाला कितने करोड़ का है। शुरुआती अनुमान 15 सौ करोड़ रुपए के घोटाले की तरफ इशारा कर रहे हैं, किंतु जब तक सीआईडी और दो आला-अफसरों के बीच आपसी तालमेल नहीं होगा और जांच सही दिशा में नहीं बढ़ेगी इस घोटाले का पर्दाफाश नहीं हो सकेगा। साइबर सेल ने यह मामला जब सीआईडी को सौंपा था उस वक्त सीआईडी के पल्ले कुछ नहीं पड़ा था। क्योंकि यह विषय ही सर्वर से जुड़ा हुआ था जो कि साइबर सेल ही जांच कर सकती थी। सरकार की दोनों एजेंसियां मामले का भंडाफोड़ करने में नाकामयाब रहीं। अब दोनों की तनातनी के कारण जांच आगे नहीं बढ़ रही है। फिलहाल सीआईडी ने राजस्थान के पाली में बंद मुख्य सरगना अमित सोनी के लिए कोर्ट से प्रोटेक्शन वारंट मांगा है जिसमें सीआईडी कामयाब रही। अब देखना यह है कि इस रिमांड के दौरान अमित सोनी से वह क्या-क्या सबूत जुटा पाती है। अमित सोनी से सवाल-जवाब को लेकर साइबर सेल के एडीजी और आईजी में ठन गई थी। एडीजी का कहना था कि मामले के अभियुक्तों से कोई सवाल-जवाब नहीं किया जाएगा। उधर आईजी का कहना था कि जब तक पूछताछ नहीं करेंगे जांच कैसे आगे बढ़ेगी। बाद में आईजी ने तेज स्वर में कहा कि यदि आप चाहते हैं पूछताछ न हो तो लिखित में दे दो। इसके बाद एडीजी ने आईजी के खिलाफ शिकायत की। मामले को तूल पकड़ता देख डीजीपी नंदन दुबे ने इस मामले को सीआईडी को सौंप दिया।
फर्जी एक्सचेंज में करोड़ों के कारोबार का मामला हाल ही में तब सामने आया था जब इंदौर में इस कारोबार में शामिल छोटा सर्राफा के कुछ आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। फर्जी एक्सचेंज का डब्बा कारोबार एक तरह का अवैध कारोबार है जिसमें पंजीकृत एक्सचेंज से अलग फर्जी एक्सचेंज बनाकर शेयर का कारोबार संचालित किया जाता है। यहां चेक के जरिए भुगतान करने या कर इत्यादि देने के नियम कानून वाले मापदंड नहीं होते। गत माह 28 अक्टूबर को जब पुलिस को करोड़ों रुपए के अवैध कारोबार की भनक लगी तो उसने 12 लोगों से इस बारे में पूछताछ की और 8 लोगों को गिरफ्तार भी किया। जिसमें स्वप्निल, विजय सेमरी, कुणाल, राजेश बत्रा, अनुराग सोनी, अमजद, अमित और गोपाल नीमा शामिल हैं। जब पुलिस को इस मामले की गंभीरता समझ में आई तो उसने साइबर पुलिस की मदद लेना उचित समझा, लेकिन साइबर पुलिस में जो कुछ हुआ उसका ब्यौरा ऊपर दिया जा चुका है। सीआईडी भी इस मामले को समझने में नाकामयाब रही है लिहाजा उसने राज्य सरकार से अपील की है कि वह इसकी जांच सीबीआई जैसी एजेंसियों से कराए। सवाल यह है कि सीबीआई किन सबूतों के आधार पर जांच आगे बढ़ाएंगी। सीबीआई को तो सबसे पहले यह पता लगाना होगा कि आखिर इस मामले को लेकर दो अफसरों के बीच टसल क्यों पैदा हो गई।
शातिर दिमाग है अमित सोनी
और उसकी गर्लफ्रेंड का
इस मामले के सरगना अमित सोनी ने अपनी गर्लफ्रेंड के तकनीकी ज्ञान का भरपूर दुरुपयोग कर नकली साम्राज्य खड़ा कर लिया है। सूत्रों के मुताबिक सोनी पहले राजस्थान के पाली में भी इस तरह के धंधे को अंजाम दे रहा था। वहां से यह इंदौर पहुंचा और अपना नकली कारोबार करने लगा। इस दौरान कई निवेशकों के पैसे डूब गए, लेकिन जब एक निवेशक ने अपने निवेश का रिटर्न मांगा तो उसे मना कर दिया गया और उसने पुलिस की शरण ली। बाद में यह मामला पुलिस के सामने खुलासा हो गया। इसमें मोबाइल के जरिए फर्जी एक्सचेंज का परिचालन किया जा रहा था, जिसका कहीं पंजीयन नहीं था और न ही किसी जिम्मेदार एजेंसी से यह एक्सचेंज संबद्ध था। सूत्र बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में पीयरलेस के नकली चिटफंड के कारोबार के सामने आने के बाद पुलिस ने इस तरह की गतिविधियों के प्रति सख्त रवैया अपनाया जिसके बाद यह नया तरीका खोज निकाला गया है। केवल इंदौर ही नहीं नागपुर में भी ऐसे नकली एक्सचेंज का भंडाफोड़ हो चुका है और जयपुर में भी इस नकली कारोबार की जड़े हैं।
डब्बा कारोबार के तहत नकली एक्सचेंज खोलना थोड़े से तकनीकी ज्ञान संपन्न व्यक्ति के लिए कठिन नहीं है। इसमें मेटा ट्रेडरफाई नामक साफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है। पहले निवेशकों को उनके निवेश पर ज्यादा रिटर्न का लालच देकर फंसाया जाता है और उसके बाद उनका पैसा हड़प लिया जाता है। अमित सोनी और उसके गुर्गे भी कारोबार से जुड़े लोगों को ज्यादा रिटर्न का लालच देकर फंसाते थे और कहते थे कि उनका प्लेट फार्म एमसी एक्स और एनसीडीईएक्स से संबद्ध है। वे ऐसे निवेशकों को तलाशते थे, जिनके पास नगदी कम हो लेकिन प्रॉपर्टी कम हो। ताकि भुगतान में चूक होने की स्थिति में वे प्रॉपर्टी कब्जे में ली जा सके।
प्रश्न यह है कि भारत में विदेशी कारोबार और शेयर के कारोबार पर नजर रखने वाली कई संस्थाएं हैं, लेकिन वे भी शांत बैठी रही। सेबी और प्रवर्तन निदेशालय को इतने बड़े कारोबार की भनक नहीं लगी। इनकम टैक्स विभाग को भी पता नहीं चला कि अरबो का लेन-देन चल रहा है। अब सीबीआई को यह मामला सौंपा जाएगा तो ये सारी संस्थाएं भी जांच करेंगी, लेकिन इससे पहले अमित सोनी ने जो आर्थिक कारोबार खड़ा कर लिया है वह भी जांच का विषय होना चाहिए। अमित सोनी के डब्बा कार्यालय जयपुर, उज्जैन, दिल्ली, मुंबई, इंदौर, अहमदाबाद, लखनऊ और पुणे में फैले हुए हैं। जिसकी जानकारी पाक्षिक अक्स कार्यालय में उपलब्ध है। प्रारंभिक जानकारी में अमित सोनी के पास दो सौ करोड़ रुपए की काली संपत्ति होना पाया गया है। इंदौर में पांच करोड़ रुपए तथा डेढ़ करोड़ रुपए की दो दुकाने हैं इसके अलावा ग्राम उमराझाल में अमित सोनी के पास 45 बीघा जमीन है जिसकी कीमत 4 करोड़ रुपए है। इंदौर के अतिरिक्त खंडवा और आसपास के गांव में लगभग 36 प्रॉपर्टियां हैं, जिनमें से एक निर्माणाधीन अस्पताल में 20 करोड़ का निवेश भी शामिल है और 72 करोड़ का सोना भी अमित सोनी के पास होना पाया गया है। देश विदेश में घूमने का शौकीन अमित सोनी अक्सर दुबई जाता था और वही उसे यह साफ्टवेयर हाथ लगा जिसके सहारे उसने फर्जी एक्सचेंज मेटा ट्रेडर 5 नाम से स्थापित की। अमित सोनी ने 24 सितंबर 2012 को ट्रेडिंग का हवाला देकर अपने लिए सर्वर खरीदा था। सर्वर ट्रेडिंग करने वाले दलालों द्वारा खरीदा जाता है, लेकिन उस सर्वर के माध्यम से फर्जी एक्सचेंज चला रहा था और किसी को खबर तक नहीं थी। इंदौर के उन 8 व्यापारियों ने भी कोई विशेष पड़ताल नहीं की जिनके शेयर तो मुनाफे में बिके लेकिन उनकी रकम खाते में ट्रांसफर नहीं हुई। कंपनी सरगना सोनी निवेशकों को फर्जी साफ्टवेयर पर फर्जी आईडी बनाकर ट्रेडिंग करने के लिए प्रेरित करता था और निवेशकों को लगता था कि उनके खरीदे हुए शेयर ऊंचे दामों में बिक रहे हैं, लेकिन न तो कोई ट्रांजेक्शन होता था और न रकम खाते में पहुंचती थी। इस प्रकार लगभग 2 से 5 लाख रुपए तक का निवेश सैंकड़ों व्यक्तियों ने किया पर उन्हें जरा भी मुनाफा नहीं हुआ, बल्कि उल्टे पैसे डूब गए। इस मामले की शिकायत करने वालों को धमकाया भी गया और उनसे मारपीट भी की गई। जिसकी सूचना पुलिस के पास है। फरियादी अमरीश, लोकेश शर्मा, विशाल गर्ग आदि ने एफआईआर दर्ज कराकर कहा है कि उनके साथ गाली-गलौच और मारपीट तक की गई और उन्हें धमकियां भी मिली। इस घटना से यह पता चलता है कि गिरोह के हाथ बहुत लंबे हैं और वह केवल साइबर ठगी ही नहीं करता था बल्कि लोगों से पैसा वसूलने का काम भी किया करता था।
गर्लफेंड ने दिया दिमाग
सूत्रों के मुताबिक अमित सोनी की गर्लफ्रेंड ने उसे साइबर क्राइम करने के लिए प्रेरित किया। देखा जाए तो असली सूत्रधार यही गर्लफ्रेंड है जो इंदौर की रहने वाली है। परंतु वर्तमान में दिल्ली में रहती है और पिछले 10 सालों से आईएएस कोचिंग इंस्टीट्यूट के संपर्क में है। इसी गर्लफ्रेंड के माध्यम से अमित सोनी अपने अवैध कारोबार को संचालित करता था। एक जमाने में सर्राफे की दुनिया पर बैठने वाले अमित सोनी ने अमीर बनने के लिए कई हथकंडे अपनाए और डेढ़ करोड़ रुपए का घाटा भी झेला, लेकिन बाद में जब उसे पैसे कमाने का शर्टकट पता चला तो उसने पहले तो छोटी-मोटी ठगी की, लेकिन बाद में वह काला धन कमाने की मशीन बन गया जिसमें उसकी गर्लफ्रेंड का बहुत बड़ा हाथ था। बताया जाता है कि इसके बाद अमित का अगला कदम क्रिकेट की सट्टेबाजी में हाथ आजमाने का था। फरियादियों ने इस प्रकरण में आईपीएस अशोक दोहरे की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। फरियादियों का कहना है कि दोहरे ने अमित सोनी से पूछताछ करने के लिए साफ मना कर दिया। पहले-पहल वे मामले में विशेष रुचि दिखा रहे थे, लेकिन बाद में अचानक उन्होंने अमित से बातचीत के लिए ही अपने अधिकारियों को मना कर दिया। फरियादियों राजेश सोनी और नवीन रघवुंशी का यह भी कहना है कि अमित ने अपने आपको सुरक्षित करने के लिए भारी मात्रा में पैसा खर्च किया है। यह कितना सच है इसके बारे में तो कहा नहीं जा सकता। लेकिन साइबर क्राइम का यह रूप मध्यप्रदेश पुलिस के लिए अब एक चुनौती बन चुका है। पहले तो एक हर्षद मेहता था, लेकिन अब जिस तरह टेक्नोलॉजी विकसित हो रही है और हर गली-मोहल्ले में नए जालसाज पैदा हो रहे हैं। उसके चलते यह आशंका बलवती हुई है कि आने वाले दिनों में हर शहर में
हर्षद मेहता देखने को मिलेंगे। ट्रेडिंग को
ज्यादा पारदर्शी और सुरक्षित बनाने की आवश्यकता है। अन्यथा भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने से निवेशक पीछे भी हट सकते हैं जो कि एक खतरनाक स्थिति होगी। फिलहाल अमित से सीआईडी रिमार्ड पर लेकर पूछताछ कर रही है।