06-Nov-2013 07:08 AM
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जब गवर्नेंस फेल होता है तो अराजकता फैलती है... जब अराजकता फैलती है तो उसकी चक्की में कई बेगुनाह पिसते नजर आते है... गवर्नेंस फेल होने की पराकाष्ठा देखनी हो तो गुड गवर्नेंस का राग अलापने और दावा करने वाले

मध्यप्रदेश के परिदृश्य पर नजर डालनी होगी। पिछले चंद महीनों में व्यावसायिक परीक्षा मंडल के पीएमटी घोटाले और सरकारी नौकरियों में भर्ती में जिस तरह से घोटाले सामने आए हैं उन पर सरकार के नुमाइंदों के पास कोई जवाब नहीं है। यही कारण है कि कभी सीहोर की कशिका श्रीवास्तव पीएमटी पास नहीं कर पाने से दुखी होकर जान दे देती है तो कभी प्रदेश के प्रशासनिक मुख्यालय वल्लभ भवन में प्रशासनिक मुखिया के दरवाजे पर पत्रकार राजेंद्र सिंह सल्फास खाकर अपनी जान दे देता है। तकनीकी रूप से पुलिस की फाइलों में राजेंद्र की मौत भी ही आत्महत्या के रूप में दर्ज है, लेकिन इसके कारणों की तह में जाएं तो परत-दर-परत यह साफ होता चला जाएगा कि राजेंद्र की मौत आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है... राजेंद्र की मौत ऐलान है गवर्नेंस की मौत हो जाने का... भ्रष्टाचारियों के बेलगाम और बेखौफ हो जाने का... राजेंद्र की मौत ऐलान है प्रशासन के उन जिम्मेदार अधिकारियों की नपुंसकता का जिनकी नाकामियों, अनदेखी और आपराधिक चुप्पी के चलते एक ऐसा शख्स इस कदर निराश हो गया कि उसको राहत की राह प्रशासनिक नक्कारखाने के बजाए मौत की आगोश में नजर आई।
भ्रष्टाचारियों ने तोड़ दिया
भोपाल के अवधपुरी में रहने वाले राजेंद्र सिंह शायद पत्रकारों की उस विलुप्त होती प्रजाति के लोगों में से थे जिनकी रगों में पत्रकारिता बहती थी और इस पत्रकारिता में शामिल था अन्याय के खिलाफ लडऩे का जज्बा और जुनून। राजेंद्र पिछले कई सालों से फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए सरकारी नौकरी हासिल करने वालों और फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए डॉक्टरी इंजीनियरिंग पास करने वालों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए वे यह मामला हाईकोर्ट तक भी ले गए। साथ ही साथ जाति प्रमाण पत्रों की वैधानिकता के लिए जिम्मेदार अनुसूचित जाति राज्य स्तरीय छानबीन समिति, आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग तक भी पहुंचाया। जब इन विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते शिकायत सही पाए जाने पर भी दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने जनहित याचिका के जरिए हाईकोर्ट का सहारा लिया। यह लड़ाई अंजाम तक पहुंच पाती इसके पहले ही फर्जी दस्तावेजों के जरिए नौकरी पाए लोग एकजुट हो गए और फिर शुरू हुआ प्रताडऩा का दौर। नतीजा यह हुआ कि पुलिस प्रशासन की अनदेखी और शह पाकर भ्रष्टाचारी इनपर हावी होते गए। हालात यहां तक पहुंचे ऐसे ही एक फर्जी जाति प्रमाण पत्र धारी शैलेंद्र खांबरा ने इन्हें कानूनी दांवपेंच में फंसाकर हरियाणा की जेल में बंद करा दिया। जब अपनी दुकान और जायदाद गंवाकर किसी तरह परिजनों ने इनकी जमानत कराई तो फिर मध्यप्रदेश में उनके खिलाफ झूठे मुकदमें दायर किए गए और फिर जेल पहुंचा दिया गया। जेल से छूटा तो मारपीट कर अपहरण कर लिया गया और गनीमत इतनी रही कि कई दिनों बाद बिना जान गंवाए छूट गए। बावजूद इसके राजेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी और वह लड़ाई लड़ता रहा लेकिन जिन 200 से ज्यादा अधिकारियों-कर्मचारियों की उसने सा-प्रमाण शिकायत कर रखी थी उनमें से कई पुलिस विभाग में भी थे, जिसका उन्होंने भरपूर फायदा उठाया। हालात यहां तक पहुंच गए कि परिवार दाने-दाने का मोहताज हो गया और दो-दो जवान बेटियों वाला यह परिवार दिन-रात दहशत के साए में जीने लगा। राजेंद्र की हत्याÓ की यह खबर आत्महत्या के रूप में पुलिस की डायरियों में सिर्फ एक मर्ग क्रमांकÓ बनकर ही रह जाती यदि अपने साथ हुई ज्यादती का एक-एक लम्हा सिलसिलेवार ढंग से मौत के पहले आला-अधिकारियों को भेजे गए मेल और अपने पीछे छोड़े गए 23 पन्नों के सुसाइड नोट में न कर दिया होता।
नहीं ली किसी ने सुध
न मौत के पहले और न मौत के बाद किसी ने भी उनके परिवार की सुध नहीं ली। उल्टे पुलिस वालों का जोर इस बात पर रहा कि परिजन सिर्फ प्रताडऩा के आरोप की बात करें न कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र की। मामले में मोड़ तब आया जब पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने परिजनों की सुध ली और फोन पर हर मदद का आश्वासन दिया। बाद में भाजपा सरकार के नुमाइंदे तब चेते जब राजेंद्र की बेटी आकांक्षा और पत्नी ने पिता और पति की अधूरी लड़ाई लडऩे का माद्दा दिखाते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निवास पर पिता के अस्थि कलश के साथ धरना दे दिया। विवाद बढ़ते देख बमुश्किल शिवराज सिंह ने परिजनों से मुलाकात की और आईजी की देखरेख में एसआईटी से जांच कराने का आश्वासन तथा हर संभव मदद का वादा किया। राजेंद्र की मौत से परिवार भले ही दिली तौर पर टूट गया हो लेकिन जज्बा नहीं। उनकी पत्नी...... कहती है कि जबलपुर हाईकोर्ट में उन्होंने जो लड़ाई अधूरी छोड़ी है उसे वे पूरा करेंगी। बेटी भी उसी हौंसले से कहती है कि उसकी लड़ाई तब तक अधूरी है जब तक फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए असली हकदारों का हक छीनने वाले सलाखों के पीछे नहीं पहुंच जाते।
इन अधिकारियों के लिखे नाम
डॉ. शैलेंद्र खांबरा, रवींद्र खांबरा, डॉ. प्रशांत मजोका, परमिंदर सिंह निरंकारी, दर्शन खांबरा, अभिमन्यु खांबरा, विशाल खांबरा, किशोर खांबरा, अशोक खांबरा, मनोज कुमार मजोका, बीएन खांबरा, कुलदीप ओड, परमानंद राजपूत, डॉ. ओपी ओड, डॉ. काजल खांबरा, डॉ. माधवी खांबरा, डॉ. शालिनी खांबरा, डॉ. नमृता खांबरा, रवि योधा, अंकिता खांबरा, धर्मेंद्र खांबरा, डॉ. नीलम खांबरा, श्रीराम मजोका, डॉ. अनिल ओड, नीरा मजोका निरंकारी, सुशील कुमार मजोका, डॉ. सुभाषचंद्र खांबरा, मोहन सिंह ओड, अजय कुमार, एसएस भंडारी, महेंद्र कुमार, डॉ. वीरेंद्र ओड।
सुसाइड नोट में लिखी दास्तां
राजेंद्र अपने 23 पन्नों के पत्र में लिखते हैं कि यह पत्र मैंने पूर्णत: होशो हवास में लिखा है और यह मेरा जीवन नष्ट करने वाले लोग हैं जो कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर शासन में नौकरी कर रहे हैं। यह मुझ पर निरंतर जनहित याचिका क्रमांक 4743/09 की वापसी हेतु लगातार दबाव बना रहे हैं। मैं इनकी प्रताडऩा से तंग आ चुका हूं। अत: इन्हें मेरा आत्महत्या का दोषी नहीं बल्कि हत्या का दोषी माना जाए। यह मेरी जान के हत्यारे... हैं। प्रदेश के पुलिस मुखिया नंदन दुबे को भेजे अपने अंतिम कथन में राजेंद्र ने स्पष्ट लिखा है कि खांबरा एवं अपर संचालक अनुसूचित जाति विकास एसएस भंडारी पिछले आठ वर्षों से निरंतर प्रताडि़त कर रहे हैं। अत: मैं आत्महत्या करने के लिए बाध्य हूं। अपने पत्र में राजेंद्र ने लिखा है कि उन्होंने 250 लोगों के विरुद्ध उच्च न्यायालय जबलपुर में जनहित याचिका दायर कर रखी है उनकी शिकायत पर ही अनुसूचित जाति छानबीन समिति ने 21 खाम्बरा जाति के लोगों के प्रमाण पत्र फर्जी पाए और इन्हें नौकरी से बर्खास्त करने तथा पुत्र-पुत्रियों के जाति प्रमाण पत्र निरस्त करने का आदेश पारित कर दिया। अनुसूचित जाति के अधिकारी एसएस भंडारी पर संरक्षण का आरोप लगाते हुए राजेंद्र का कहना है कि जिन लोगों की शिकायत मैंने की थी उनमें 12 पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं। कई लोग तो बाकायदा घर में आते और टेबिलों पर अपने हथियार रख देते और उन्हें धमकाते। राजेंद्र अपने पत्र में कहते हैं कि आए दिन मुझ पर झूठी एफआईआर कराई जाती है यदि में इन पुलिस कर्मियों के अत्याचार की कहानी लिखना शुरू करूं तो पूरे मध्यप्रदेश पुलिस को शर्म आएगी। यदि एसएस भंडारी के आतंक की कहानी लिखीं तो शासन को भी ऐसे अधिकारी की करतूत पर शर्म आएगी। उन्हें न तो न्याय मिल रहा है न पुलिस का संरक्षण और सहयोग, पिछले 8-10 वर्षों में पुलिस के हर अधिकारी के दर पर दस्तक दी, लेकिन किसी ने न सुनी। 12.10.2007 से 22 नवंबर 2007 तक 55 दिन रायसेन के किशनपुर में अपहरण करके रखा गया और खांबरा जाति के लोगों द्वारा जोर-जबरदस्ती करके हस्ताक्षर कराए गए। फोन पर जो धमकियां दी गईं उसके सबूत के रूप में सीडी, फेसबुक पर जो धमकियां दी गईं उसके सबूत सब कुछ मैंने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दिए लेकिन कहीं मेरी सुनवाई नहीं हुई उल्टा प्रताडऩा झेलनी पड़ी। इसके बाद राजेंद्र ने सिलसिलेवार ढंग से उन 33 व्यक्तियों के नाम लिखे हैं जिन्होंने समय-समय पर उन्हें धमकी दी। इसके पहले भी उन्होंने तत्कालीन आईजी भोपाल को शपथ पत्र के साथ आवेदन दिया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। पांच अक्टूबर को एंटोनी डिसा को आवेदन दिया पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार निराश होकर मैं आत्महत्या कर रहा हूं। पत्र के अंत में उन्होंने लिखा है कि उक्त 23 पृष्ठ का सुसाइड नोट मैंने अपने हाथ से लिखा है और प्रार्थना की है कि इन सभी हत्यारों को कड़ा दंड देने की कानूनी कार्रवाई करें। उन्होंने पत्र के अंत में अपने हस्ताक्षर के दो नमूने भी दिए हैं ताकि कोई संशय न रहे।