दहशत के साए में कश्मीर की वादी
16-Nov-2013 07:32 AM 1234791

अभी हाल ही में कश्मीर की केसर की क्यारियों में लहलहाती फसल के फोटो देखकर दिल बाग-बाग हो उठा। लेकिन शायद ही किसी को मालूम हो कि इन केसर की क्यारियों में आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का रक्त सींचा जा रहा है। आतंकवादग्रस्त कश्मीर के कई जिलों में भय का माहौल है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कभी भी बम वर्षक विमान आतंकवादियों को खदेड़ेंगे और युद्ध शुरू हो जाएगा। पाकिस्तान में नवाज शरीफ के सत्तासीन होते ही हालात कारगिल युद्ध के समान भयानक हो उठे हैं। सीमा पर गतिविधियां बढ़ गई हैं। भारत की राजनीतिक स्थिति की तरफ पाकिस्तान की नजर है और यदि भारत में राजनीतिक अस्थिरता फैलती है तो पाकिस्तान युद्ध भी थोप सकता है। इस बार पाकिस्तान का साथ देने के लिए चीन तैयार बैठा है जो भारत की समृद्धि से बुरी तरह जला-भुना हुआ है। हालांकि चीन में जिस तरह पाकिस्तान समर्थित उइगर मुसलमानों ने आतंक फैलाकर रखा है उसे देखते हुए वहां पाकिस्तान से दोस्ती करने पर स्पष्ट विभाजन सामने आया है। लेकिन भारत को कमजोर करने के लिए डे्रगन किसी भी सीमा तक जा सकता है। पाकिस्तान ने कश्मीर में अघोषित युद्ध फिर से शुरू कर दिया है। आतंकवादग्रस्त क्षेत्रों में पाकिस्तानी सैना के नियमित जवान आतंकवादियों की वेशभूषा में भारत की सीमा पार कर रहे हैं और खूनी खेल खेल रहे हैं। दिक्कत तो यह है कि आतंकवादियों की इतनी हिम्मत नहीं है कि वे पारंपरिक हथियारों का इस्तेमाल कर पाएं, यह तो पाक सेना के नियमित जवान हैं, जो ऐसी हिम्मत दर्शा पा रहे हैं। आतंकवाद विरोधी अभियानों में लिप्त एक सेनाधिकारी का कथन था।
इन क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों तथा सुरक्षाकर्मियों की दशा बहुत ही बुरी है। कोई नहीं जानता कब और किस दिशा से ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार पाक सेना सीमा पार से गोले दागती है, आतंकवादियों द्वारा दागा गया रॉकेट, मोर्टार का गोला और मध्यम दूरी के तोपखाने के गोले आ गिरेंगे। हालांकि ऐसी परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए सुरक्षाबल तो पूरी ताकत के साथ अब उन्हीं हथियारों की मदद से आतंकवादियों को जवाब दे रहे हैं लेकिन आम नागरिक के पास सिवाय आंसू बहाने और दुबककर छुपने के कुछ भी नहीं है।  दोनों देशों ने लाइन आफ कंट्रोल (नियंत्रण रेखा) का उल्लंघन नहीं करना तय किया था। लेकिन नियंत्रण रेखा का उल्लंघन बार-बार होता रहा है। पाकिस्तान इसके लिए जिम्मेदार है क्योंकि जाड़ा आने और दर्रों के बर्फ से भर जाने के पहले भारत में घुसपैठ के लिए तहरीक-ए-तालिबान को पाकिस्तान मदद दे रहा है। अगर कश्मीर में बगावत इस्लामाबाद की नीति का हिस्सा है तो प्रधानमंत्री शरीफ का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बैठक का क्या मतलब था? दोनों इस बात पर सहमत हुए कि वे 2004 में हुए इस समझौते का आदर करेंगे कि नियंत्रण-रेखा का उल्लंघन नहीं हो। दोनों देशों के मिलिटरी आपरेशंस के डायरेक्टर जनरलों की बैठक होनी थी। सच है कि कोई समय सीमा नहीं तय हुई थी। लेकिन अब तक उन्हें मिल लेना चाहिए, भले ही यह सिर्फ एक औपचारिकता बन कर रह जाती। राजनीतिक आकाओं को समझना होगा कि सीमा पर फायरिंग का कोई अर्थ नहीं है। तीन युद्धों के बाद पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए था कि वह कश्मीर को भारत के हाथों से जबर्दस्ती नहीं छीन सकता।
पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीयकरण करना चाहता है। नवाज शरीफ ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में कश्मीर का मुद्दा उठाया और फिर वाशिंगटन में राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ बातचीत में कहा कि कश्मीर के मुद्दे पर अमेरिका को दखल देना चाहिए। सबसे बड़ी बात तो यह है कि नवाज शरीफ कहते है कि दोनों देश परमाणु शक्ति है इसका क्या अर्थ है यदि परमाणु विकल्प चुना गया तो भारत का शायद एक हिस्सा तबाह होगा, लेकिन पाकिस्तान का तो वजूद ही मिट जाएगा। ऐसा बेवकूफी भरा बयान शरीफ के मुंह से शोभा नहीं देता, लेकिन शरीफ शराफत से पेश नहीं आ रहे हैं। उन्होंने कश्मीर मुद्दे के लिए अमेरिका के दरवाजे खटखटाए हैं जो कि एक तरह से भारत की विदेश नीति के ढीलेपन का ही परिणाम है। हालांकि बराक ओबामा अच्छी तरह जानते हैं कि मौजूदा आर्थिक परेशानी के दौर में भारत जैसे देश को नाराज करना उचित नहीं होगा। लिहाजा उन्होंने शरीफ को शराफत से समझा दिया कि कश्मीर द्विपक्षीय मामला है और इसे दोनों देशों को मिलकर आपस में सुलझा लेना चाहिए। बड़े आश्चर्य का विषय है कि इतनी बड़ी सामरिक शक्ति होने के बावजूद भारत कश्मीर पर कोई ठोस कदम उठाने में कामयाब नहीं हो सका है। जवाहर लाल नेहरू के समय जो गलती कश्मीर में की गई वह आज इस देश को भारी पड़ रही है।

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