विस्फोट के बाद मोदी का महाविस्फोट
06-Nov-2013 06:34 AM 1234777

पटना में मोदी की रैली पर हमले की ख़ुफिय़ा सूचना तो पहले से थी किन्तु गाँधी मैदान के चप्पे-चप्पे की छानबीन कर चुकी पुलिस को यह अंदेशा नहीं था कि आतंकवादी हमला इतना अकस्मात् हो जायेगा। 6 लोगों की मृत्यु हो गयी और  83 लोग घायल हुए ैं। 12 की हालत गंभीर है। भाजपा के मंच से जैसे ही भाषणों का दौर शुरू हुआ मैदान में धमाके होने लगे। 11.15 बजे भाषण शुरू हुए, 11.45 बजे पहला विस्फोट हुआ। मंच से शाहनवाज ने कहा कि किसी गाड़ी का टायर फटा है। दूसरे धमाके के बाद मंच से घोषणा हुई कि पटाखा फटा है। तीसरे धमाके के बाद दर्शकों में खलबली मचने लगी। आखिरी धमाके 12.45 बजे हुए। इसके बाद मोदी मंच पर पहुंचे। पुलिस के मुताबिक पहला धमाका सुबह साढ़े नौ बजे पटना स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 10 के शौचालय में हुआ। एक व्यक्ति की मौत वहीं हो गई। इसके बाद स्टेशन से सिर्फ दो किमी दूर रैली स्थल गांधी मैदान में बम धमाके होने लगे। 11.40 से 12.45 बजे के बीच छह ब्लास्ट हुए। धमाकों की जद में आने से चार और लोगों की मौत हो गई। एक धमाका बम डिफ्यूज करते समय हुआ। इसमें बम स्क्वॉड का एक जवान घायल हो गया। मोदी ने अपने भाषण में धमाके का तो जिक्र नहीं किया पर आखिर में लोगों से शांति की अपील जरूर की। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसकी तारीफ भी की। 
ये विस्फोट ख़ुफिय़ा एजेंसियों की नाकामी का मुजाहिरा तो कर ही रहे हैं, बिहार में ख़ास मौकों पर हो रही चूक की ओर भी संकेत कर रहे हैं। यह चूक किसी भी नेता को भरी पड़  सकती है। ऐसा अंदेशा है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन भारत के चुनावों के दौरान भरी तबाही मचा  सकते हैं, यदि उनके मंसूबे कामयाब हुए तो भारत के लिए बड़ी मुश्किल होगी।
बहरहाल पटना में भाजपा की हुंकार रैली में  आयी उस भारी भीड़ की जाबांजी की प्रशंसा करनी   पड़ेगी जिसने धमाकों के बाद भी मोदी को सुना और आतंकवादियों को करारा  जवाब भी दिया। उधर मोदी ने अपने भाषण में धमाकों का जिक्र न करके यह संकेत दिया कि आतंक पर राजनीति  नहीं करनी चाहिए। हालाँकि मोदी का भाषण हमेशा की तरह विस्फोटक और राजनीतिक  कटाक्षों से भरा हुआ था. निशाने पर थे- कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। मोदी ने कहा - कांग्रेस के मित्र परेशान हैं कि मोदी शहजादा (राहुल को) क्यों कह रहे हैं। अगर मैं शहजादे कहता हूं तो आपको बुरा लगता है। इस देश को भी इस वंशवाद से बुरा लगता है। कांग्रेस वादा करे, वह वंशवाद छोड़ देगी। मैं शहजादा कहना छोड़ दूंगा।  मोदी ने लालू के खेमें को भी अपनी तरफ खींचा और कहा-तीन माह पहले लालू का एक्सीडेंट हुआ। मैंने हालचाल पूछा। लालू ने मीडिया से कहा-देखिए मैं इतनी गाली देता हूं फिर भी मोदी मेरी खबर पूछता है। मैंने कहा- लालू जी, श्रीकृष्ण गुजरात के द्वारका में बसे थे। यदुवंश से हमारा नाता है। मोदी के इस कथन से नए राजनीतिक समीकरण पकने की सुगंध भी आ रही है. शयद इसीलिये उनके निशाने पर नीतीश अवश्य थे। मोदी  ने कहा - जो जेपी के नहीं हुए, वो बीजेपी के क्या होंगे। जेपी ने पूरी जिंदगी कांग्रेस को देश से उखाड़ फेंकने के लिए काम किया और हमारे मित्र को चेले-चपाटों ने कह दिया, कांग्रेस से जुड़ जाओ। पीएम बनने का अवसर है। वे ख्वाब देखने लगे। 
मोदी ने स्थानीय लोगों को लुभाने के लिए भाषण  की शुरुआत ही भोजपुरी से की। बीच में कुछ बातें मैथिली और मगही में भी। उन्होंने कहा -एक साल पहले पीएम की ओर से दिए गए डिनर की टेबल पर हम और बिहार के मुख्यमंत्री साथ में थे। वह खाना नहीं खा रहे थे। मैंने कहा-चिंता मत करो। कोई कैमरे वाला नहीं है। खा लो। हिप्पोक्रेसी की भी सीमा होती है। चुनावों में पार्टी के नेता चाहते थे कि गुजरात से नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार में लाया जाए। तब मैंने कहा था-बिहार में जंगलराज न होने दो। मोदी अपमानित होता है तो होने दो। हमारे लिए दल से बढ़कर देश होता है। मोदी ने कहा-जेपी लोकतंत्र के लिए जिए जूझते रहे। उसके लिए जेल में जिंदगी गुजारने को तैयार रहे। लेकिन आज लोकतंत्र के चार दुश्मन हैं- जातिवाद, परिवारवाद, सांप्रदायिकता और अवसरवाद। देश का दुर्भाग्य है कि आज बिहार की राजनीति में ये सभी दुश्मन उभरकर सामने आ रहे हैं।
राहुल पर निशाना
मोदी की शब्दों तोप का रुख अब कांग्रेस के उपाध्यक्ष और अघोषित रूप से कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी राहुल गांधी की तरफ हो गया है। झांसी की सभा में राहुल गांधी के प्रति नरेंद्र मोदी ने जो रुख अपनाया उससे तो यही लग रहा है कि मनमोहन सिंह अब नरेंद्र मोदी की रेंज में नहीं हैं। दरअसल राजस्थान में राहुल गांधी ने एक भावनात्मक भाषण देकर जनता को कांग्रेस के सर्वोच्च परिवार की कुर्बानियों का स्मरण करवाया था। उससे पहले वे खाद्य सुरक्षा विधेयक के दौरान सोनिया गांधी की अनुपस्थिति की कैफियत भी बड़े दर्द भरे शब्दों में जनता को सुना चुके थे। राहुल गांधी के इस भावनात्मक अभियान का जवाब देना जरूरी था। क्योंकि भारत की जनता भावनाओं में तत्काल बह जाती है। इसीलिए नरेंद्र मोदी ने राहुल के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया और उनकी हर एक बात पर सिलसिलेवार जवाब दिया तथा उनसे कुछ सवाल भी पूछें। उन्होंने राहुल से उन लोगों का नाम सार्वजनिक करने का कहा जो कथित रूप से मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बकौल राहुल आईएसआई के संपर्क में आए थे। मोदी ने कहा कि वे रोने-धोने नहीं आए बल्कि जनता के आंसु पोछने का विश्वास दिलाने आए हैं और गरीबों, मजदूरों के आंसू पोंछने का संकल्प लेकर आए हैं। मोदी के इस कथन में यह साफ था कि वे गांधी परिवार के बलिदान को आगे रखकर वोट मांगने वाले राहुल को सचेत कर रहे थे। उन्होंने राहुल से सवाल किया कि जब उनकी दादी की मृत्यु हो गई थी तो उन्हें क्रोध आया था, लेकिन जब हजारों सिक्खों को जिंदा जला दिया तो क्रोध क्यों नहीं आया। मोदी ने कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान को भी आड़े हाथों लिया जिसमें उन्होंने कहा था कि पूरी रोटी खाएंगे कांग्रेस को जिताएंगे। मोदी ने कहा कि साठ साल लग गए आधी रोटी से पूरी रोटी तक पहुंचने में। पेट भर रोटी में तो ये लोग और 100 साल लगा देंगे। ये लोग गरीबों का मजाक उड़ा रहे हैं।
इन भाषणों  के बलबूते ही भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने पार्टी के भीतर और पार्टी के बाहर अपने प्रभुत्व में अभूतपूर्व वृद्धि की है। चेन्नई से लेकर कानपुर और पटना से लेकर जयपुर हर जगह नरेंद्र मोदी की सभाओं में जुटती भीड़ कहीं न कहीं विरोधियों को परेशानी में तो डाल रही है। यह बात अलग है कि स्वयं भारतीय जनता पार्टी इस तथ्य को लेकर आश्वस्त नहीं है कि मोदी की सभाओं में जुटती भीड़ वोट में तब्दील होगी। कानपुर में मोदी की रैली ने राज्य में सत्तासीन समाजवादी पार्टी सरकार को सचेत किया है और मोदी की आने वाले समय में होने वाली रैलियों के मुकाबले मुलायम सिंह यादव तथा अखिलेश यादव राज्य में 18 रैलियों का आयोजन कर यह जताना चाहते हैं कि भीड़ इकट्ठा करने के मामले में वे भी पीछे नहीं हैं। दरअसल नरेंद्र मोदी का प्रभुत्व यूं ही नहीं बढ़ा है। उनके बोलने के अंदाज के और भाषण के लोग कायल हैं और उनमें लोगों को खींचने की ताकत है। हर जगह हर सभा में लोग मोदी को ही सुनना चाहते हैं। कानुपर से लेकर चेन्नई तक मोदी को सुनने वालों की तादाद बहुत अधिक है। यह मोदी का करिश्मा है या फिर वास्तव में जनता कांग्रेसी नेताओं से उब चुकी है। कहना मुश्किल है पर भारतीय जनता पार्टी ने मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी प्रोजेक्ट कर जो जुआं खेला है वह अब कामयाब होता दिख रहा है। मोदी की रैलियों की बदौलत लगभग हर चुनावी सर्वे में भारतीय जनता पार्टी और उसका गठबंधन यूपीए से आगे दिखाई दे रहा है, लेकिन चिंता इस बात की है कि वह इतना आगे भी नहीं है कि भाजपा को या एनडीए को पूर्ण बहुमत मिल जाए। प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में जनता की पसंद के हिसाब से अपने विरोधियों से मीलों आगे मोदी की पार्टी अपनी विरोधी पार्टियों से उतनी ही आगे है यह पूरे आत्मविश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता। इसका असर तो पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद ही दिखाई देगा। जो तस्वीर उभर रही है उसे देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि इन राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर मोदी का कोई प्रभाव पड़ेगा। मिसाल के तौर पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के उभार को रोकने में मोदी नाकामयाब रहे। उसी प्रकार राजस्थान में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने में संदेह है। हालांकि वह बड़ी पार्टी बन सकती है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने प्रभावी बढ़त ले ली है। मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस का शतक लग सकता है। ऐसे हालात में यह कहना ज्यादा कठिन है कि मोदी के मैदान में आने के बाद जनमानस में कितना बदलाव हुआ। यह सच है कि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे काम करते हैं। लेकिन यह भी सच है कि जब किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया जाता है तो उसके बाद होने वाले सभी चुनाव में उसके प्रभाव का आंकलन किया जाता है। मोदी इस सत्य से अनजान नहीं है। लेकिन नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर इन घटनाओं का प्रभाव ज्यादा नहीं होने वाला। वे लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ही अपनी तैयार कर रहे हैं। उनका पूरा फोकस लोकसभा पर है। इसलिए मोदी की सभाएं राहुल के समानांतर चल रही हैं। मोदी अपनी सभाओं में सीधे प्रधानमंत्री और कांग्रेस को निशाना बना रहे हैं। कानपुर में उन्होंने समाजवादी पार्टी की सरकार को भी लपेटे में लिया और कहा कि उत्तरप्रदेश के लोग पलायन करके सारे देश में जाते हैं लेकिन उन्हें उनके प्रदेश में ही रोजगार के अवसर मिलने चाहिए। मोदी ने यह कहकर एक तीर से दो निशाने साधे। एक तरफ तो उन्होंने समाजवादी पार्टी की सरकार की नाकामी को सामने रखा तो दूसरी तरफ उन्होंने राहुल गांधी द्वारा उत्तर भारतीयों के विषय में कुछ समय पहले कहे गए कथन का भी उत्तर दिया।  कानपुर में अपने 25 मिनट के भाषण के दौरान गरीबी, बेरोजगारी, सुरक्षा से लेकर शिक्षा और व्यवस्था तक की बात की।

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