16-Nov-2013 07:00 AM
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पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने टाट्रा (टेट्रा) ट्रक घोटाले में प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है। कोयला घोटाले में पहले ही प्रधानमंत्री कार्यालय पर छींटे आ चुके हैं और अब यह नया आरोप मनमोहन सिंह

के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। जनरल वीके सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस घोटाले की भूमिका तैयार की। इस अधिकारी के रिश्तेदारों को भारत में टेट्रा ट्रक एसेम्बल करने वाली पीपीएमएल कंपनी के परिसर में प्लाट भी दिए गए। सिंह ने अपनी एक किताब करेज एंड कंविक्शंसÓ में यह आरोप लगाया कि जब उन्होंने टेट्रा ट्रक संबंधी फाइलों को रोक दिया तो पीएमओ के एक अधिकारी ने उनकी आयु से जुड़े मामले को उठा दिया।
ज्ञात रहे कि टेट्रा ट्रक का सौदा लंबे समय से विवाद के घेरे में है। एक जमाना था जब 26 वर्ष पूर्व इन ट्रक्स की सप्लाई के लिए एक विदेशी फर्म को ठेका दिया गया था। उसके बाद से लगातार यह ठेका रिन्यू होता रहा। लेकिन वर्ष 2010 में जब तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह को घटिया वाहनों की खरीद से संबंधित एक समझौते को मंजूरी देने के लिए 14 करोड़ रुपए की रिश्वत की पेशकश की गई उस समय यह मामला सतह पर आया। 26 सालों से घोटाला होते चला आ रहा था। अब जनरल कहते हैं कि इसकी जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी को थी जिसने टेट्रा ट्रक बेचने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बीईएमएल को भारत में कई सुविधाएं दी जिसके एवज में बीईएमएल ने भी उक्त अधिकारी को नवाजा। जनरल वीके सिंह को रिश्वत की पेशकश जब की गई तो उन्होंने मौखिक रूप से रक्षामंत्री को बताया था, अब उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय को भी इसकी जानकारी थी। यह नया खुलासा इस विवाद को गहराई तक ले जा रहा है। पूर्व सेनाध्यक्ष ने अपनी किताब में यह भी लिखा है कि हथियारों के सौदागर भारत की राजनीति में गहरी पकड़ बना चुके हैं और वे कई लोगों को प्रभावित करते हैं। जनरल का यह आरोप यदि सच है तो इसकी गहराई जाने की आवश्यकता है। क्योंकि पनडुब्बी सौदे से लेकर बोफोर्स सौदे तक जो भी जांच हुई है उसमें कई बड़े नाम शामिल हैं, लेकिन किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। जनरल वीके सिंह से सीबीआई पहले ही पूछताछ कर चुकी है, नतीजा कुछ नहीं निकला। जिस वक्त यह मामला उजागर हुआ था उसी समय लेफ्टिनेंट जनरल दलवीर सिंह के विरुद्ध तृणमूल नेता अंबिका बनर्जी ने सीबीआई को पत्र लिखा था यह पत्र सार्वजनिक हो गया। जिसके बाद वीके सिंह को बर्खास्त करने की मांग भी की गई थी, लेकिन भ्रष्टाचार का पैसा किन जेबों में जा रहा है। उन जेबों को टटोलने की कोशिश तब से लेकर अब तक नहीं हुई। देश के रक्षामंत्री ए.के. एंटनी टाट्रा ट्रक घोटाले के बारे में साल 2009 से जानते थे। लेकिन वे अपनी आंखें मूंदे रहे। दलित नेता डॉक्टर हनुमनथप्पा ने 26 अगस्त 2006 को सोनिया गांधी को इस बारे में चि_ी लिखी थी, जिस पर सोनिया गांधी ने रक्षा मंत्रालय को उचित कार्रवाई के लिए चि_ी लिखी थी। हनुमनथप्पा ने चि_ी में लिखा कि बीईएमएल के सीएमडी वीआरएस नटराजन ने टाट्रा ट्रक के लिए 6000 करोड़ रुपये का सौदा एक ब्रिटिश एजेंट से किया है। यह सौदा ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर से नहीं किया गया। हनुमनथप्पा ने लिखा कि यह सौदा रक्षा खरीद दिशा-निर्देशों का सीधा-सीधा उल्लंघन है। इसके बाद 5 अक्टूबर 2009 को सोनिया गांधी की तरफ से स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने रक्षा मंत्रालय को चि_ी लिखी और इस मामले में जरूरी कदम उठाने को कहा। मालूम हो कि 22 अक्टूबर 2009 को रक्षा मंत्रालय ने अपने जवाब में लिखा था कि टाट्रा ट्रक सौदे की जांच जारी है। इस मामले में जो भी कार्रवाई होगी उसकी जानकारी दी जाएगी। इस जवाब को भेजे आज 2 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है और मामले की जांच का कोई नतीजा सामने नहीं आया है। वहीं, सेनाध्यक्ष घूस मामले में जानकारों का यह भी कहना है कि सेनाध्यक्ष ने रक्षा मंत्री एंटनी को बताया था तो रक्षा मंत्री ने क्या किया? सोनिया गांधी के पत्र लिखने के बाद भी रक्षा मंत्रालय ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? इस मामले में रक्षा मंत्री को जवाब देना चाहिए।
इस मामले में सरकारी कंपनी बीईएमएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक वीआरएस नटराजन व अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार की लगभग आधा दर्जन शिकायतें सीबीआई के पास पहुंची थी। सीबीआई उनसे पूछताछ भी करने वाली थी। घोटाले के तार विदेशों से भी जुड़े हैं क्योंकि अनिवासी भारतीय रवि ऋषि समेत अर्थ मूवर्स लिमिटेड और अन्य के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया।