16-Nov-2013 06:51 AM
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के प्रत्याशी करीब-करीब तय हो चुके हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी ने जिस तरह चुनावी बिसात बिछाई है उसके चलते यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच न होकर अब

त्रिकोणीय चुनाव हो गए हैं। पहले दिल्ली में भाजपा-कांग्रेस प्रमुखता से चुनावी मैदान में रहती थीं। थोड़ी बहुत मौजूदगी बहुजन समाजपार्टी, अकालीदल जैसे दलों की थी, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने इन दोनों मुख्य दलों का मिजाज बिगाड़ दिया है और अन्ना आंदोलन के समय जो माहौल बना था उसका असर कम से कम इन चुनावों में तो रहने वाला है। शायद लोकसभा चुनाव तक भी कुछ खुमारी बची रहेगी और यदि केजरीवाल दिल्ली की राजनीति में अपनी स्थायी जगह बनाने में कामयाब रहे तो आम आदमी पार्टी जनता के बीच स्थापित भी हो सकती है।
बहरहाल कांग्रेस ने मौजूदा 43 विधायकों में से 42 विधायकों को टिकट देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी प्रकार की बगावत चुनाव से पहले नहीं चाहती। पुराने चेहरों पर दांव खेलने का अर्थ शायद यह है कि शीला दीक्षित दर्शाना चाह रही हैं कि उनके विधायकों का काम इतना अच्छा है कि उन्हें बदलने का सवाल ही पैदा नहीं होता। किसी भी प्रत्याशी की सीट बदली नहीं गई है। शीला मंत्रिमंडल के राजकुमार चौहान, हारून यूसुफ, डॉ. किरण वालिया, डॉ. एके वालिया और रमाकांत गोस्वामी जैसे चेहरे इस बार भी चुनावी मैदान में हैं। अरविंद केजरीवाल ने इन मंत्रियों के चुनावी क्षेत्र में अच्छा-खासा हंगामा किया था और अनुमान था कि सत्ता विरोधी रुझान के चलते इनकी टिकिट कट जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शीला दीक्षित के इस कदम ने भाजपा को परेशान तो किया है अभी भी यह समझने में कठिनाई हो रही है कि आखिर बड़ी तादाद में टिकिट क्यों नहीं बदले गए। शीला दीक्षित ने सोनिया गांधी से टिकिट वितरण में फ्री-हेंड देने का आग्रह किया था और सोनिया ने उनका आग्रह स्वीकारा था। इसीलिए भितरघात से बचने हेतु टिकिट में परिवर्तन नहीं किया गया है, लेकिन इस कवायद का फायदा दिल्ली में शायद ही मिले। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी की आठ रैलियां प्रस्तावित की हैं, ये रैलियां तीन दिनों में होंगी। 23 नवंबर को 3 रैलियां और 30 नवंबर तथा एक दिसंबर को पांच रैलियां मोदी की ही आयोजित की गई हैं। ताकि अंतिम समय में माहौल बन सके।
नरेंद्र मोदी दिल्ली के लिए नया चेहरा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को दिल्लीवासी देखते ही रहते हैं। केंद्र सरकार के खिलाफ तो वैसे ही दिल्ली में सबसे नकारात्मक माहौल है। इसलिए इन चेहरों को तुरुप का पत्ता नहीं समझा जा सकता। जहां तक केजरीवाल का प्रश्न है उन्होंने भरसक कोशिश कर ली है और उनकी टीम लगातार जनसंपर्क भी कर रही है, लेकिन मोदी की मार्फत नए मतदाताओं और इंटरनेट, सोशल मीडिया प्रेमियों को लुभाना चाहती है भारतीय जनता पार्टी। इसके लिए भाजपा उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी विशेष मेहनत कर रहे हैं। किंतु भाजपा के गणित को शिरोमणि अकाली दल ने थोड़ा सा बिगाड़ा है क्योंकि अकाली दल को इस बार भी 4 सीटें देनी पड़ी हैं और इससे उन लोगों में असंतोष है जो राजौरी गार्डन, हरिनगर, शाहदरा और कालका जी से टिकिट की उम्मीद लगाए बैठे थे। इनमें हरिनगर पर तो विद्रोह भी हो गया है। यहां से हरशरण सिंहबल्ली लगातार 4 चुनाव में जीतते रहे हैं इस बार उनका टिकिट काटकर अकालीदल को दे दिया गया है जिससे नाराज होकर बल्ली ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि पिछली बार भी अकालीदल को 4 सीटें दी गई थी जिनमें आदर्शनगर भी शामिल था लेकिन इस बार आदर्शनगर से भाजपा के प्रत्याशी को लड़ाया जाएगा। शीला दीक्षित को उन्हीं के क्षेत्र में घेरने के लिए भाजपा ने उसी विधानसभा क्षेत्र से विजेंद्र गुप्ता जैसे बड़े नेता को टिकिट दिया है। गुप्ता दिल्ली की भाजपा इकाई के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं अरविंद केजरीवाल भी शीला दीक्षित के खिलाफ इसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर सारे देश की नजर रहेगी और इसी का परिणाम भविष्य की राजनीति तय करेगा। यदि त्रिकोणीय मुकाबले में केजरीवाल जीत जाते हैं तो आने वाले समय में आम आदमी पार्टी दिल्ली की ताकत बन सकती है। वैसे महरोली से योगानंद शास्त्री को भी आम आदमी पार्टी से कड़ी टक्कर मिलेगी। अरविंद केजरीवाल की खासियत यह है कि उन्होंने चिडिय़ा से बाज लड़ाने की बजाए बाजों के सामने बाज ही प्रस्तुत किए हैं। वजनदार प्रत्याशी के मुकाबले अपने वजनदार प्रत्याशी ही खड़े किए हैं। इसी कारण यह प्रतिद्वंदिता अब एक रोचक रख अख्तियार कर रही है। परिवहन मंत्री रमाकांत गोस्वामी, शहरी विकास मंत्री अरविंद कुमार लवली को भी त्रिकोणीय मुकाबले में आम आदमी पार्टी ने कड़ी टक्कर देने का लक्ष्य रखा है। भाजपा पहले से ही विपक्ष में है इसलिए उसके पास खोने को कुछ नहीं है, किंतु भाजपा के कुछ बागी खेल बिगाडऩे में लगे हुए हैं जैसे कस्तूरबा गुप्ता ने टिकिट न मिलने के कारण आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। हालांकि उन्हें आम आदमी पार्टी ने भी टिकिट नहीं दिया है, लेकिन अब वे आम आदमी पार्टी का काम करेंगी। कुल मिलाकर 10 नेता पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं और लगभग छह नेता ऐसे हैं जो इस्तीफा देने की कगार पर हैं।
आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल को छोड़कर बाकी किसी की पहचान नहीं है। कुमार विश्वास को मंचीय कवि के रूप में लोग जानते हैं जो ज्यादा पैसे लेकर घटिया कविताएं सुनाते हैं। इसके अतिरिक्त शाजिया इल्मी, मनीष सिसोदिया और योगेन्द्र यादव जैसे लोगों की गिनती बुद्धिजीवियों में होती है राजनीतिज्ञों में नहीं। लेकिन सच यह भी है कि यदि राजनीति में अच्छे लोग नहीं आएंगे तो फिर कबाड़ को जगह मिलेगी। इसीलिए अच्छे लोगों का आना जरूरी है, भले ही वे जीते या न जीतें। इस दृष्टि से अरविंद केजरीवाल ने यदि कुछ खास और बेहतर लोगों को चुनावी रण में उतारा है तो यह एक अच्छा निर्णय है। अभी तक जो भी ओपिनियन पोल हुए हैं उनमें आम आदमी पार्टी को 8 से 18 के बीच सीट मिलने की बात कही जा रही है, लेकिन चुनाव प्रचार 25 नवंबर के बाद चरम सीमा पर होगा। अरविंद केजरीवाल स्टेट फारवर्ड राजनीतिज्ञ हैं। राजनीति के हथकंडों से वे वाकिफ नहीं हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों को चुनावी क्रिकेट के स्लॉग ओवरों का अच्छा अनुभव है। मोदी की रैलियां भी इसी प्रकार तय की गई हैं ताकि अंतिम समय में हिटर के रूप में मोदी कुछ चौकों-छक्कों की बरसात करके भाजपा के पक्ष में माहौल बना ले। जहां तक जनता के बीच छवि का प्रश्न है आम आदमी पार्टी को अभी तक किसी ने परखा नहीं है इसलिए स्वाभाविक रूप से उसकी छवि अच्छी ही है, लेकिन अच्छी छवि वालों को इस देश में वोट मिलते हो ऐसा पक्का नहीं है। इसीलिए अरविंद केजरीवाल की जीत की संभावना उतनी प्रबल नहीं है। आम आदमी पार्टी में भी दूसरी राजनीतिक पार्टियों की बुराइयां घर कर गई है। इसी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता राकेश अग्रवाल ने केजरीवाल को खुला खत लिखा है जिसमें उन्होंने तानाशाही रवैया दिखाने का दोषी ठहराते हुए केजरीवाल को उन कमजोरियों को दूर करने की चेतावनी दी है जिनके चलते अन्ना का आंदोलन धराशायी हो गया। अग्रवाल का आरोप है कि केजरीवाल अपना कद ऊंचा उठाने के लिए तानाशाही रवैया अपना रहे हैं। अग्रवाल की प्रेसवार्ता में हंगामा भी हुआ था। उधर भाजपा में भी कुछ ऐसी ही उथल-पुथल है। मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदार रहे विजय गोयल अपनी हार को भूले नहीं हैं। जिस तरह उन्हें दरकिनार करके डॉ. हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाया गया वह गोयल के लिए एक बड़ा झटका था। गोयल प्रकट रूप से भले ही कुछ न बोलें लेकिन वे विधानसभा चुनाव में भाजपा को उसकी असलियत दिखाने की ताकत रखते हैं। यही कारण है कि गोयल को साथ लेकर ही भाजपा चुनावी रणनीति बना रही है। कहा जाता है कि तीमारपुर, आदर्शनगर, बवाना, नांगलोई, ओखला, छतरपुर, सीमापुरी और मुस्तफाबाद में सीटों को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ था उसके पीछे कहीं न कहीं गोयल की भूमिका थी। पिछली बार भाजपा ने इनमें से अधिकांश सीटें मामूली अंतर से हारी थी इस बार उन्हें जीता जा सकता है। लेकिन गोयल का साथ जरूरी होगा। यही हाल ओखला विधानसभा क्षेत्र का है। जहां जनता दल यूनाइटेड के प्रत्याशी से मामूली अंतर से हार मिली थी। अब जनता दल यूनाइटेड के ये प्रत्याशी आसिफ मोहम्मद कांग्रेस में चले गए हैं। आम आदमी पार्टी का यहां उतना असर नहीं है इसलिए मुकाबला मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच में है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए रामवीर सिंह विधूड़ी को प्रत्याशी बनाने के कारण असंतोष है। विधूड़ी हर विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी बदलते हैं। इसी कारण स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उनके विरोध में प्रदर्शन भी किया। जिसका नेतृत्व युवा कार्यकर्ता संतोष सिंह ने किया। बदरपुर में संतोष सिंह की बगावत का फायदा कांग्रेस को मिलेगा क्योंकि त्रिकोणीय मुकाबले में आम आदमी पार्टी को भाजपा के समर्थक वोट डालेंगे। कांग्रेस में भी शीला दीक्षित को फ्री हेंड देने से दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष नाराज हैं वे अपने समर्थकों को टिकिट दिलाना चाह रहे थे। हालांकि उन्होंने अपनी नाराजगी प्रकट नहीं की है, लेकिन भीतर ही भीतर उनका आक्रोश जारी है।
केजरीवाल से सफाई मांगी
केंद्र सरकार ने कोर्ट के निर्देश पर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को नोटिस भेजा है, जिसमें पार्टी से विदेशों से उन्हें प्राप्त होने वाले धन का स्रोत बताने को लेकर कई सवाल किए गए हैं। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा, आप पार्टी ने अभी तक हमारे सवालों का कोई जवाब नहीं दिया है... वैसे, अभी जवाब देने के लिए उनके पास समय है।Ó यह जांच तब शुरू हुई थी, जब दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से अरविंद केजरीवाल की पार्टी के खाते जांचकर 10 दिसंबर तक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। उधर, इस मामले पर अरविंद केजरीवाल ने कहा, अगर हम दोषी पाए जाते हैं तो हम दोगुनी सजा के लिए भी तैयार हैं। अप्रवासी भारतीयों से चंदा लेना कोई अपराध नहीं है और हमारी वेबसाइट पर चंदे से जुड़े सारे तथ्य मौजूद हैं। इसमें क्या गलत है...? सरकार ने आम आदमी पार्टी को विदेशों से प्राप्त होने वाले धन से जुड़ी कई शिकायतें आने के बाद इन आरोपों की जांच के आदेश दिए हैं। इससे पहले आप ने विदेशों से मिले पैसों की जांच का आदेश देने पर सरकार की आलोचना करते हुए उसे परेशान करने का आरोप लगाया और कहा कि उसने कोई कानून नहीं तोड़ा है। इसके साथ ही पार्टी ने अन्य राजनीतिक दलों के खिलाफ भी ऐसी ही जांच कराए जाने की मांग की।