दंगों की पाठशाला उत्तरप्रदेश
02-Oct-2013 11:44 AM 1234931

उत्तरप्रदेश में दंगे किसने करवाए यह स्पष्ट हो चुका है। दंगे आम जनता के बीच आपसी वैमनस्य का नतीजा नहीं हैं बल्कि सुनियोजित तरीके से भड़काए गए हैं। आजम खान ने जिस तरह 27 अगस्त को कवाल में गिरफ्तार सातों आरोपियों को दबाव डलवाकर छुड़वाया था उससे साफ हो गया है कि सरकार दंगों को रोकने के लिए गम्भीर नहीं थी। सरकार किसी एक पक्ष के लोगों की तरफदारी करे, तो दंगे भड़केगें ही। इलेक्ट्रोनिक मीडिया के स्टिंग ऑपरेशन में यह साफ हो चुका है आजम खान ने कहा था कि जो हो रहा है हो जाने दो। लेकिन आजम खान को बर्खास्त करने की ताकत सरकार में नहीं है। अखिलेश यादव तो आजम खान को मनाने उनके घर तक पहुंचे। इस मामले में सरकार ने भारतीय जनता पार्टी के चार और बहुजन समाज पार्टी दो विधायकों को आरोपी बनाया है। कांग्रेस के एक पूर्व सांसद को भी आरोपी बनाया गया है। तीन गिरफ्तारियां भी की गई हैं। भाजपा के एक विधायक पर रासुका लगाई गई है। लेकिन खास बात यह है कि दंगा भड़काने में सरकार की भी भूमिका थी जो अब उजागर हो चुकी है पर किसी समाजवादी पार्टी के व्यक्ति को या लापरवाही करने वाले को सरकार ने आरोपी नहीं बनाया।
यह सच है कि 7 सितम्बर को महापंचायत में जहर उगला गया था लेकिन उससे पहले धारा 144 का उल्लंघन कर जो भड़काने वाली बातें कही गई थीं उसके बाद ही उन शैतानी तत्वों की गिरफ्तारी कर ली जाती तो शायद दंगे नियंत्रित हो जाते लेकिन आजम खान के इशारे पर इन तत्वों को छूट दी जा रही थी। 27 अगस्त को जब पुलिस को दबाव मे डालकर गिरफ्तार दंगाईयों को छुड़वाया गया उसके बाद पुलिस का हौंसला टूट चुका था। इसीलिए धारा 144 के बाद भी  भड़काऊ भाषण देने वालों को पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया और फिर उनका हौंसला इतना बढ़ गया कि उन्होंने महापंचायत से लौटने वाले किसानों पर घातक हमला कर दिया। इस खूनी दंगे की कहानी ज्यों-ज्यों खुल रही है यह साफ होता जा रहा है कि पुलिस ने नहीं बल्कि आजम खान जैसे मंत्रियों और नेताओं ने दबाब बनाकर दंगों को भड़कने दिया। अखिलेश यादव ने आजम खान की हरकतों को नजरअंदाज किया। शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अखिलेश यादव के कार्यकाल में कितने दंगे हुए हैं। नुकसान चाहे किसी का भी हुआ हो लेकिन 40 हजार लोग अभी भी बेघर हैं। वे इतने सहमे हुए है कि अपने घरों का नहीं लौटना चाहते। सरकार उनमें विश्वास पैदा करने में कामयाब नहीं रही। महापंचायत में भी लोग हथियार लेकर शामिल हुए थे लेकिन पुलिस को डर था कि पिछले बार उसने गिरफ्तारी की थी तो आजम खान का फोन आ गया था इस बार गिरफ्तार किया तो कहीं सीएम का ही फोन न आ जाए। क्योंकि जो अधिकारी ईमानदारी से काम कर रहे थे उन्हें दबाव में हटा दिया गया और बाद में जो अधिकारी आए उन्होंने जांच की दिशा ही बदल दी।
हालांकि पुलिस के बड़े अधिकारियों ने स्टिंग ऑपरेशन को सरासर गलत बताते हुए इस बात से इंकार किया है कि किसी प्रकार का राजनीतिक दबाब था। लेकिन जिस तरह दंगों ने जोर पकड़ा और लगातार धीरे-धीरे आग सुलगती रही तथा बाद में दावानल बन गई उससे कहीं न कहीं लापरवाही उजागर हो रही है। स्टिंग ऑपरेशन को भले ही सच न माना जाए तब भी यह पता लगाना आसान है कि किस प्रकार पुलिस ने गम्भीर अपराध करने वालों को संरक्षण दिया। पुलिस को उसी दिन सतर्क हो जाना था जब लड़की के साथ गलत हरकत करने वालों को सजा देने के लिए कानून हाथ में लिया गया। पुलिस ने सजगता दिखाई भी लेकिन बाद में वह अकारण ही ढीली पड़ गई। उत्तरप्रदेश जैसे राज्य में जहां बड़ी संख्या में सभी समुदाय के लोग रहते हैं। वहां पुलिस को बंदिशों के साये में कैद करके रखना कहां तक उचित है। पुलिस को उसके विवेक से भी काम करने की छूट होनी चाहिए लेकिन उत्तरप्रदेश में सब कुछ राजनीति ही तय करती है। इसी कारण कानून व्यवस्था की दृष्टि से यह प्रदेश सबसे निचले पायदान पर बना रहता है। राजनीति ने उत्तरप्रदेश को संवेदनशील बनाते हुए बारूद के ढेर पर बिठा दिया है। अब चौतरफा दबाब झेल रही सरकार ने पुलिस को खुली छूट दी है तो पुलिस के हाथ से वे सारे सूत्र निकल चुके हैं जो इस भयानक अपराध की कडिय़ों को जोडऩे में मददगार साबित हो सकते थे। इसीलिए पुलिस अंधाधुध गिरफ्तारियां कर रही है। कई बेकसूर जेल में ठूंस दिए गए हैं। हथियारों की फैक्टरी खेतों में मिल रही हैं। इससे पता चलता है कि लंबे समय से हथियार जमा किए जा रहे थे और लड़ाई की योजना बन रही थी। कहा तो यह भी जा रहा है कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अवैध हथियार बनने की प्रक्रिया में तेजी आई है। नफरत की यह आग अभी तक सुलग रही है। सरकार ने अदालत से 16 आरोपियों के विरूद्ध गिरफ्तारी वांरट जारी करवाए हंै। नगला पंचायत में जहर उगलने वाले सरधना क्षेत्र से भाजपा विधायक संगीत सोम, बिजनौर के भाजपा विधायक कुंवर भारतेंदु, भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत, प्रवक्ता राकेश टिकैत, पूर्व विधायक ओमवेश, स्थानीय निवासी हरपाल सिंह, बिट्टू व चंद्रपाल के खिलाफ सिखेड़ा पुलिस ने वारंट प्राप्त किए हैं। इसके साथ ही भाजपा नेता हुकुम सिंह, भाजपा विधायक सुरेश राणा और कांग्रेस के पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक आदि के खिलाफ पुलिस विवेचना चल रही है। इसके साथ ही खालापार की सभा में नफरत फैलाने वाले बसपा सांसद कादिर राना, विधायक नूर सलीम राना, मौलाना जमील, पूर्व गृह राज्यमंत्री सईदुज्जमां और उनके बेटे सलमान सईद, पालिका सदस्य असद जमां, पूर्व पालिका सदस्य नौशाद कुरैशी, व्यापारी एहसान कुरैशी के विरुद्ध कोर्ट से वारंट लिए गए हैं। भाजपा विधायक संगीत सोम और कुंवर भारतेन्दु पर दो-दो मुकदमे हैं। संगीत सोम पर 7 सितंबर की पंचायत में भड़काऊ भाषण के साथ कवाल कांड की फेसबुक पर डाली गई कथित वीडियो को भी शेयर करने का आरोप है। विधायक भारतेन्दु पर 31 अगस्त और 7 सितंबर की पंचायतों के मुकदमे हैं। भाजपा विधायकों सुरेश राणा, संगीत सोम और बसपा विधायक नूर सलीम राणा को गिरफ्तार कर लिया गया है। संगीत सोम के खिलाफ रासुका लगाई गई है।
दंगा पीडि़तों का दुख दर्द जानने पहुंचे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को दंगा पीडि़तों ने आप बीती सुनाई। प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने उचित समय पर कार्यवाही नहीं की। भाजपा नेता उमा भारती को जब मुजफ्फरनगर और मलिकपुरा जाने से सरकार ने रोक दिया तो वे धरने पर बैठ गई। राजनीति स्टंटबाजी जारी है। मृतकों की संख्या स्वास्थ्य विभाग की सूची के मुताबिक 105 है। हालांकि सरकार 39 मौतों का दावा कर रही है उधर गैरसरकारी संस्थाओं ने कहा है कि सरकारी आंकड़ा सरासर गलत है। लाशों के बरामद होने का सिलसिला जारी है। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका मांग की गई है कि मुजफ्फरनगर हिंसा की जांच गुजरात दंगों की तरह ही होनी चाहिए। गुजरात में तो 2002 के बाद से कोई दंगा नहीं हुआ लेकिन मुजफ्फरनगर में या उत्तरप्रदेश में दंगे नहीं होंगे इस बात की गारंटी नहीं है। सारे प्रदेश में कई गांव ऐसे हैं जहां अवैध हथियार बनते हैं। यह हथियार दंगों के समय दंगाईयों के हाथ में पहुंच जाते है। पुलिस को भी पता है पर पुलिस इन हथियार निर्माताओं पर हाथ डालने से डरती है क्योंकि पुलिस को राजनीति का खौफ सताता है। चुनाव के समय अवैध शराब और अवैध हथियार का यह धंधा बहुत फलता-फूलता है और उत्तरप्रदेश तथा बिहार के कुछ इलाके इन धंधों के लिए आदर्श भूमि उपलब्ध करवाते हैं।

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