06-Nov-2013 06:23 AM
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इंदौर में राहुल गांधी ने 24 अक्टूबर को एक सनसनीखेज रहस्योदघाटन किया। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरनगर दंगा पीडि़तों के संपर्क में आईएसआई एजेंसी है और वह कुछ युवकों को बरगलाने की कोशिश कर रही है। राहुल के बोलने का

आशय यह था कि भारतीय जनता पार्टी ने मुजफ्फरनगर दंगे भड़काए हैं और वह दंगों की आग पर रोटी सेंकना चाहती है। यह बड़ी अजीब बात है कि राहुल गांधी ने इंदौर में यह बात कही। मध्यप्रदेश में उत्तरप्रदेश की तरह सांप्रदायिक माहौल फिलहाल नहीं है। लेकिन राहुल सांप्रदायिकता का हवाला देकर न मालूम किस तरह की सनसनी पैदा करना चाहते थे। बहरहाल राहुल के इस बयान ने मुसलमानों सहित सभी राजनीतिक दलों को क्रोधित कर दिया। भाजपा ने तो चुनाव आयोग में शिकायती भी कर दी और नरेंद्र मोदी ने झांसी की सभा में राहुल गांधी को इस बयान के लिए मुसलमानों से माफी मांगने की हिदायत तक दे डाली। लेकिन प्रश्न केवल इतना ही नहीं है। राहुल गांधी को खुफिया एजेंसियां सब कुछ बता देती हैं या उन्हें सब पता चल जाता है। यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है। राहुल गांधी कोई सरकारी पद नहीं संभाल रहे हैं न ही वे देश के रक्षामंत्री, गृहमंत्री या प्रधानमंत्री हैं। ऐसे में खुफिया एजेंसियां राहुल गांधी को ब्रीफ कर रही हैं यह विवाद का विषय है। राहुल गांधी भले ही इस विषय पर स्पष्टीकरण न दें लेकिन कांग्रेस के खिलाफ भाजपा और अन्य दलों को हमला करने के लिए एक अवसर तो मिल ही गया है। राहुल गांधी के इस कथन से यह भी लगा कि मध्यप्रदेश में एक समुदाय के वोट बैंक को बरकरार रखने के लिए कांग्रेस में बहुत छटपटाहट है। ऐसे में विधानसभा चुनाव तक सियासी तापमान बढऩे के साथ-साथ अब चुनावी माहौल नए मोढ़ पर पहुंच सकता है।
कभी जयपुर में राहुल गांधी ने उपाध्यक्ष पद पर ताजपोशी के समय बड़े भावुक अंदाज में एक करुण कहानी सुनाई थी जिसका सार यह था कि उनकी मां सोनिया गांधी राहुल के राजनीति में आने के पक्ष में नहीं थी क्योंकि वे राजनीति को जहर समझती थी। लेकिन राहुल ने देश (कांग्रेस) की खातिर यह विष पीना गंवारा कर लिया। उस वक्त राहुल ने यह सब उन कांग्रेसियों के समक्ष बोला था जो लगभग साढ़े छह दशक से नेहरू गांधी परिवार का चेहरा देखकर राजनीति करते आए हैं। यदि यह परिवार इमोशनल होता है तो कांग्रेसी भी इमोशनल हो जाते हैं। खुश होता है तो कांग्रेसी भी खुश हो जाते हैं। किंतु राजस्थान में खेड़ली में चुनावी सभा के दौरान राहुल को सुनने कांग्रेसी नहीं बल्कि आम जनता पधारी थी और इस बार उनके दिल का दर्द आम जनता के सामने प्रकट हो गया। राहुल ने अपने बचपन की कहानी सुनाते हुए जनता को उन पुराने दिनों में ले जाने का प्रयास किया जब गांधी परिवार का नाम सुनते ही जनता कांग्रेस को वोट दे डालती थी। वे भावनाओं में बहने वालों के दिन थे। कांग्रेस ने आजादी दिलाई है यह सोचकर एक पूरी पीढ़ी बदस्तूर कांग्रेस को वोट करती रही या यूं कहें कि अहसान उतारती रही।
लेकिन अब बदलती पीढ़ी में वह भावुकता नहीं है, बदलती पीढ़ी देश को विकसित होते और देश में शासन करने वाले शासकों को ज्यादा पारदर्शी तथा ईमानदार होते देखना चाहती है। इसीलिए उसे राहुल बाबा की कहानियां अपील नहीं करती। उनके परिवार का बलिदान अतुलनीय है। यह जानते हुए भी आज का युवा अपना वोट केवल इसी आधार पर कांग्रेस को दे देगा यह गलत फहमी पालना दिन में तारे देखने के समान है। लेकिन राहुल गांधी भी क्या करते कांग्रेस के पिछले दस वर्ष के रिकार्ड को सामने रखकर वोट तो नहीं मांगा जा सकता। खासकर कांग्रेस का दूसरा कार्यकाल जिस तरह घोटालों का पर्याय बन चुका है वह कांग्रेस के किसी भी स्टार प्रचारक के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। लिहाजा राहुल इमोशनल अत्याचार पर उतर आए हैं। वे अब अपने पूर्वजों की शहादत का हवाला देकर झोली फैलाकर वोट मांग रहे हैं। लेकिन राहुल यह भूल रहे हैं कि शहादतें वोट नहीं दिलाया करती। यदि ऐसा होता तो इस देश की सत्ता पर उन शहीदों के परिजनों का शासन होता जिन्होंने अपना खून बहाकर भारत को आजाद कराया। इमोशनल कहानियां केवल राहुल के पास ही नहीं हैं हर उस व्यक्ति के पास हैं जिसने अकारण अपने परिजनों को खोया है। जिसके निकट के लोग आतंकवादी हमलों से लेकर राजनीतिक हत्याओं के शिकार हुए हैं। फिर केवल अपने परिवार की त्रासदी पर प्रलाप क्यों। त्रासदी तो इस देश में असंख्य लोगों ने भोगी है चाहे वे 1984 के दंगों में मरने वाले सिक्ख हों या फिर 2002 के गुजरात दंगों में मरने वाले हिंदू-मुसलमान। बहुत से परिवारों की ऐसी ही कहानियां है और यदि इन कहानियों को भावुक सियासी भाषणों में बदला जाएगा तो इस देश में आंसुओं का सैलाब आ जाएगा। इसलिए राहुल गांधी के इमोशनल भाषण ने कुछ ज्यादा प्रभाव नहीं डाला।
राहुल गांधी ने कहा कि वे भाषण नहीं देते विकास की बातें नहीं करते सिर्फ दिल के दर्द की कहानियां कहते हैं। यदि विकास की बातें नहीं करते, भाषण नहीं देते केवल दिल के दर्द की कहानियां कहते हैं तो फिर राजनीति में क्या कर रहे हैं राहुल। उन्हें तो शायरी और कला की दुनिया में होना चाहिए। जहां दर्द के बहुत से कद्रदान हैं। यदि कोई राजनीति में रहेगा तो उसे विकास की बातें करनी होंगी। भविष्य की दृष्टि प्रस्तुत करनी होगी। समाज के सामने अपने दल के सिद्धांत और सत्तासीन सरकार का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना होगा। राजनीतिक चुनावी प्रचार कोई अखिल भारतीय मुशायरा नहीं है जहां दर्द की बातें की जाएं। बल्कि यहां तो बात यह होनी चाहिए कि भुखमरी, गरीबी और बेरोजगारी की तड़प में तड़पते असंख्य लोगों के चेहरे से दर्द कैसे दूर किया जाए विकास की गंगा कैसे बहाई जाए। राहुल गांधी से मंच से इसी तरह के भाषण की उम्मीद की जाती है। लेकिन लगता है उनके भाषण लेखक बॉलीवुड की फिल्में देखकर डायलॉग से भरपूर भाषण लेखन कर रहे हैं। जिनका कोई सार नहंीं है। कुछ देर के लिए यह सब सुनना अच्छा लग सकता है। लेकिन बाद में हमारा विवेक यह सवाल करता है कि इस कथन में ऐसा क्या है न कोई दूर दृष्टि है, न चिंतन है, न निष्कर्ष है। केवल भावनाएं हैं और जिसे भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा हो वह अपनी भावनाओं का प्रकटन हर समय करता फिरे और स्वयं को सबसे बड़ा बलिदानी बनाने की कोशिश में लगा रहे तो वह शख्श देश का क्या भला करेगा। देश को एक संतुलित व्यक्तित्व के संकल्पी और दृढ़ निश्चयी नेतृत्व की नितांत आवश्यकता है और इस तरह के लच्छेदार भाषण देकर राहुल गांधी अपनी पार्टी को दुविधा में डाल रहे हैं। जिस तरह का माहौल है उसमें एक आक्रामक व्यक्तित्व के विषय में जनता का मानस तैयार हो रहा है। जो उनका पूरी शक्ति और ताकत के साथ संतुलन स्थापित करते हुए नेतृत्व करे।
राजस्थान ही क्यों
राहुल ने अपनी आंतरिक पीड़ा उजागर करने का स्थान आखिर राजस्थान ही क्यों चुना? देश के कई शहरों से उनके भाषण हुए लेकिन उन्होंने इस तरह की भावनात्मक अभिव्यक्ति कर और अपनी व्यथा सुनाकर आम पार्टी कार्यकर्ताओं ही नहीं बल्कि आम जनता को भी भावनात्मक दृष्टि से उद्वेलित कर दिया। उनकी दादी इंदिरा गांधी ने भी अपनी मृत्यु से पहले उड़ीसा की एक सभा में कहा था कि मैं रहूं न रहूं लेकिन मेरे खून का एक-एक कतरा इस देश के काम आएगा। इंदिरा गांधी की हत्या के ठीक बाद 1985 में हुए आम चुनाव में देशभर में उनके अंतिम भाषण के तौर पर ऑडियो कैसेट के जरिये सुनाया गया। इससे कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर पैदा हो गई और कांग्रेस ने भारी सफलता प्राप्त की थी। चूरू और खेड़ली की सभाओं में राहुल के जज्बाती भाषण ने प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के प्रति आम आदमी को सोचने के लिए मजबूर तो किया ही है। राहुल ने कहा - यह मैं आपको इसलिए भी बता रहा हूं कि आपको पता चलेगा कि मैं भाजपा का विरोध क्यों करता हूं? ऐसा ही एक सज्जाई भरा जज्बाती भाषण राजीव गांधी ने 1990 में इसी जगह खेड़ली में दिया था। उन्होंने उस समय कहा कि केंद्र सरकार जनता के लिए एक रुपया भेजती है लेकिन उसके पास सिर्फ 15 पैसे पहुंचते हैं। 85 पैसे बीच में कोई खा जाता है। यह भाषण आज तक चर्चित है। यह भी संभावना है कि राहुल गांधी का आज का भाषण पंाच राज्यों के चुनाव में मतदाताओं की भावनाओं को छूने का माध्यम बने और पार्टी इसे इस्तेमाल करे। मोतीलाल नेहरू खेतड़ी से ही इलाहाबाद गए। जवाहर लाल नेहरू का भी राजस्थान से जीवंत संपर्क रहा। उन्होंने नागौर में पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ किया। सोनिया गांधी ने पंचायती राज की स्वर्ण जयंती के समारोह को संबोधित किया। राहुल ने फिर भावनात्मक भाषण के लिए राजस्थान को ही चुना और वे शायद इस भाषण को उन राज्यों को पहुंचाना चाहते हों, जहां राजस्थान के साथ चुनाव होने जा रहे हैं। राजनीतिक हलकों में भले ही इसकी आलोचना हो लेकिन राहुल ने भाजपा-कांग्रेस के बयानवीरों एक नई बहस में उलझाने का काम तो कर ही दिया है। बहस जितनी होगी बात उतनी ही आगे तक जाएगी।