कोयले की कोठरी में मनमोहन भी काले?
06-Nov-2013 06:17 AM 1234774

कोयला ब्लॉक आवंटन में हुई गड़बड़ी की आग अब कोयले की खदान में लगी आग की भांति भीतर ही भीतर प्रधानमंत्री कार्यालय को भी धधकाने लगी है। प्रधानमंत्री सिरे से नकारते रहे कि वे इस मामले में शामिल नहीं हैं, लेकिन जिस वक्त यह हजारों-करोड़ रुपए का घोटाला हुआ था उस वक्त कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के ही पास था। इसीलिए प्रधानमंत्री को क्लीनचिट नहीं दी जा सकती। भले ही उन्होंने भ्रष्टाचार स्वयं न किया हो, लेकिन जो लापरवाहियां हुईं और जिस तरह कोयला ब्लॉक आवंटन के कागजों पर दस्तखत किए गए उससे उन भ्रष्टाचारियों को लाभ मिला जिन्होंने करोड़ों रुपए का गोलमाला कर दिया। भारत के विख्यात व्यवसायी कुमार मंगलम बिड़ला और प्रधानमंत्री का नाम इस घोटाले में सामने आने के बाद अब यह मामला एक बड़ा षड्यंत्र भी बनता जा रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने जांच के लिए फाइलें सीबीआई को उपलब्ध करा दी हैं और उनकी पावती भी ले ली है। व्यवसायी बिड़ला ने वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम से मुलाकात करके अपना दर्द बयां किया है, लेकिन सबसे ज्यादा कठोर प्रतिक्रिया पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख ने दी है। जिन्होंने कहा कि यदि वे दोषी हैं तो प्रधानमंत्री पहले दोषी हैं। पारख का कहना है कि प्रधानमंत्री ही वे सक्षम प्राधिकारी हैं जो इस मामले में अंतिम निर्णय लेने के लिए अधिकृत थे। पारख ने तो यह भी कहा कि कोयला मंत्रालय में कोल माफिया की घुसपैठ है। उधर सीबीआई ने पीसी पारख को आरोपी बनाते हुए कहा है कि 2005 में उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला के आधिपत्य वाली हिंडाल्को कंपनी को गलत तरीके से उड़ीसा में दो कोल ब्लॉक आवंटित किए गए थे जो कि गलत था, लेकिन एजेंसी ने यह भी कहा है कि पारख के फैसले को सक्षम प्राधिकारी द्वारा सहमति प्रदान की गई। जाहिर सी बात है यह सक्षम प्राधिकारी प्रधानमंत्री ही हैं। शायद इसीलिए सीबीआई की एफआईआर में नाम दर्ज किए जाने के बाद उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला ने कहा कि वे चिंतित नहीं हैं। क्योंकि उन्होंने कोई गलती नहीं की। गलती बिड़ला ने नहीं की है और पारख ने नहीं की है तो गलती किसकी है?
क्या प्रधानमंत्री इतने भोले हैं कि उन्होंने बिना जांच पड़ताल के एक महत्वपूर्ण दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए। उधर बिड़ला की वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम से मुलाकात के बाद यह आशा बंधी थी कि वित्तमंत्री उद्योग जगत में व्याप्त भय को कम करने के लिए कोई बयान देंगे। लेकिन वित्तमंत्री ने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया। सीआईआई ने बिड़ला के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी की आलोचना करते हुए कहा कि सीबीआई को मशहूर उद्योगपतियों के खिलाफ कार्रवाई करने में सावधानी बरतनी चाहिए ताकि भय का माहौल न बने। इंफोसिस के कार्यकारी अध्यक्ष एनआर नारायणमूर्ति ने भी बिड़ला के विरुद्ध बिना विस्तृत तथ्य के किसी भी प्रकार की कार्रवाई को गलत बताते हुए कहा है कि इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निवेशकों में गलत संदेश जाएगा। सवाल यह है कि सीबीआई प्रधानमंत्री को क्यों बचा रही है। जबकि स्वयं सीबीआई ने इस मामले में प्रधानमंत्री को सक्षम प्राधिकारी घोषित किया है।
कोयला ब्लॉक आवंटन का मामला शुरू से ही विवादों में रहा है। सीबीआई भी इस मामले में अपनी भूमिका सही तरीके से नहीं निभा पाई यहां तक की इस वर्ष जुलाई माह में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से रिपोर्ट दाखिल कर कोल ब्लॉक आवंटन को जस्टिफाई करने की बात कही थी। उस वक्त सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करके गुहार लगाई थी कि अदालत 8 मई को दिए गए अपने उस आदेश को वापस ले जिसमें सीबीआई को मामले की छानबीन से जुड़ी कोई भी जानकारी साझा न करने का आदेश दिया गया था। सीबीआई की याचिका में कहा गया था कि छानबीन के दौरान कई किस्म की मंजूरी लेने के लिए जांच की जानकारी सरकार या संबंधित प्राधिकरण से बांटनी पड़ती है।
दरअसल सीबीआई की जांच की पल-पल की जानकारी सरकार को रहने के कारण ही कोल ब्लॉक आवंटन में कई बड़े लोगों को बचने का मौका मिल गया। लेकिन जब सीबीआई ने नाल्को, हिंडाल्को और पारख सहित 14 लोगों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की तो विद्रोह हो गया और प्रधानमंत्री कटघरे में खड़े हो गए। इससे पहले इसी मामले में सीबीआई की रिपोर्ट में ग्रामेटिकल सुधारÓ करने के कारण दो केंद्रीय मंत्रियों की बली चढ़ी थी। अब चुनाव निकट हैं इसलिए प्रधानमंत्री को विपक्ष के हमले का सामना करना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में बहुत सख्त है। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त माह में ही सीबीआई को तेजी से जांच न कर पाने के लिए फटकारा था। इस मामले की फाइलें गुम होने पर भी बहुत हंगामा मचा था। प्रधानमंत्री को सफाई देनी पड़ी थी। अब प्रधानमंत्री फिर घेरे में हैं। गुम फाइलों का रहस्य तो अभी भी रहस्य ही बना हुआ है, लेकिन सवाल यह है कि सीबीआई कब तक प्रधानमंत्री को बचा सकती है। इसी वर्ष अगस्त माह में सीबीआई ने 43 फाइलें जांच के लिए मांगी थी, लेकिन कोयला मंत्रालय ने 21 फाइलें ही भेजी। बाकी फाइलें शीघ्र देने की बात कही गई, लेकिन दी नहीं गई। सीबीआई ने 19 आवेदन भी मंत्रालय से मांगे थे। यह आवेदन उन कंपनियों के थे जिन्हें कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए थे, जिनमें से सिर्फ तीन आवेदन मिल पाए थे और उनमें दो कंपनियों हिंडाल्को तथा टेल्को के नाम एफआईआर में हैं। 16 कंपनियों के आवेदनों को खोजा जा रहा है। इसका अर्थ यह है कि अभी आने वाले समय में कुछ और कंपनियों के नाम भी सीबीआई सामने ला सकती है। खास बात यह है कि दस्तावेज जानबूझकर सुनियोजित तरीके से गुमाए गए, ऐसा प्रतीत हो रहा है। निजी कंपनियों ने 2004 से पहले 157 आवेदन दिए थे जिनका कहीं अता-पता नहीं है। सीबीआई को जांच के लिए मटेरियल ही पूरा नहीं मिला तो फिर जो एफआईआर की गई है वह आधी-अधूरी ही कहलाएगी। शायद हो सकता है कोर्ट में एफआईआर को ही चुनौती दी जाए। यानी सीबीआई कोर्ट से बार-बार फटकार सुनने के लिए अविशप्त है। इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर करते हुए एडवोकेट एमएल शर्मा ने प्रधानमंत्री की भूमिका की जांच इस घोटाले में करने की मांग की है। यानी मुश्किलों भरा दौर जो कि पहले से ही काफी था और शुरू हो चुका है।
प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना है कि इस मामले में कुछ भी छुपाया नहीं जा रहा है। पूर्व कोयला सचिव पी. सी. पारख ने कहा कि हिंडाल्को को तालाबीरा-2 कोल ब्लॉक देने में कोई गड़बडी नहीं हुई है। अगर गड़बड़ी है तो प्रधानमंत्री भी जिम्मेदार हैं। पारख ने एफआईआर के बाद कहा था कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है। तब प्रधानमंत्री के हिस्से में ही कोयला मंत्रालय था और अंतिम फैसला वही लेते थे। ऐसे में दिलचस्प मामला यह है कि सीबीआई की एफआईआर में प्रधानमंत्री या उनके दफ्तर का नाम नहीं है। सीबीआई का कहना है कि पीसी पारख ने फैसला बदला दूसरी तरफ एफआईआर में एक सक्षम अधिकारी का जिक्र है, जिसने फैसला बदलने को मंज़ूरी दी। एफआईआर के मुताबिक महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड और नेवेलि लिग्नाइट कार्पोरेशन को तालाबीरा-2 और तालाबीरा-3 कोल ब्लॉक आवंटित किए जाने की सिफारिश और कुछ दिशा निर्देशों में संशोधन प्रस्तावों को सक्षम अधिकारी के सामने रखा गया। इसने दिशा निर्देशों में प्रस्तावित बदलावों को मंजूरी दी और निर्देश दिया कि संशोधित दिशा निर्देशों के तहत 25वीं स्क्रीनिंग कमिटी के मिनट देखें और कोयला सचिव के स्तर पर मंजूर किए जाएं। इसी के मुताबिक तत्कालीन कोयला सचिव पीसी पारख ने 16 जून 2005 के अपने नोट के जरिये 15 जुलाई 2005 तक आवंटन पत्र जारी करने का निर्देश दिया। सीबीआई की एफआईआर में सक्षम अधिकारी का जिक्र आगे भी आता है। सीबीआई जांच से पता चला है कि जब सक्षम अधिकारी द्वारा स्क्रीनिंग कमिटी की सिफारिशों को मंजूरी दी जा रही थी, तभी उसे हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड के कुमार मंगलम बिड़ला की ओर से 7 मई 2005 और 17 जून 2005 को लिखी गईं चि_ियां मिलीं। इनमें तालाबीरा-2 कोल ब्लॉक आवंटित किए जाने का अनुरोध किया गया था इसे कोयला मंत्रालय को भेज दिया गया। एफआईआर के इस हिस्से दो बातें पूरी तरह से साफ हो जाती हैं कि न कोयला सचिव सक्षम अधिकारी हैं और न ही कोयला मंत्रालय। तब सवाल उठता है कि यह सक्षम अधिकारी कौन है। सीबीआई इस सवाल का जवाब नहीं देती। बस इतना कहती है कि प्रधानमंत्री कार्यालय को भी क्लीन चिट नहीं दी गई है।

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