वाम-जदयू गठबंधन बनाम तीसरा मोर्चा
06-Nov-2013 05:53 AM 1234772

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में यद्यपि जनतादल युनाइटेड ने केवल वामदलों से गठबंधन किया है, लेकिन यह छोटा सा कदम तीसरे मोर्चे को पुनर्जीवित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। गौरतलब है कि नीतिश सरकार को बिहार में भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस ने सहारा दिया था और कांग्रेस के ही बल पर नीतिश कुमार अपना बहुमत सिद्ध कर सके थे। हालांकि नीतिश बिहार में पूर्ण बहुमत से मात्र 4-5 विधायक दूर हैं और इतने सक्षम हैं कि अपनी सरकार बिना किसी बाहरी समर्थन के चला सकें फिर भी कांग्रेस से उनकी निकटता का अर्थ यही लगाया जा रहा था कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में नीतिश की पार्टी कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन देते हुए मिल-जुलकर चुनाव लड़ेगी। हालांकि इन राज्यों में न तो वाम दलों का कोई वजूद है और न ही जनतादल युनाइटेड की कोई ताकत है पर जिस तरह नीतिश ने कांग्रेस के मुकाबले वामदलों को तरजीह दी है उससे यह तो लगता है कि कहीं न कहीं वे अब भी तीसरे मोर्चे के गठन के प्रति आशान्वित हैं और उनकी कोशिश भी यही है कि तीसरा मोर्चा येन-केन-प्रकारेण गठित हो जाए ताकि उसकी अगुवाई कर वे भी भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों की सूची में शामिल हो सकें। नीतिश का यह चिर-संचित स्वप्न तभी पूरा हो सकता है जब तीसरा मोर्चा 100 के करीब सीटें जीत ले और कांग्रेस बाहरी समर्थन से 7-8 माह के लिए पहले नीतिश बाद में मुलायम और आवश्यकता पडऩे पर दक्षिण के किसी नेता को बारी-बारी से प्रधानमंत्री बनाते हुए दो-ढाई वर्ष का समय गुजार दे और अंत में स्थिरता के नाम पर स्वयं मैदान में कूद जाए।
उधर भाजपा भी शरद पवार को कुछ इसी अंदाज में सामने ला सकती है और बाद में स्थायित्व का हवाला देते हुए चुनावी समर में उतर सकती है। कुल मिलाकर दोनों दलों की यही चेष्टा रहेगी कि तीसरे मोर्चे की अस्थिर और सिद्धांतहीन सरकार का दर्शन जनता जनार्दन को कराने के बाद ये दोनों दल अपनी-अपनी दावेदारी के साथ जनता के पास जाएंगे और कहेंगे कि किसी एक को चुनो पर पूर्ण बहुमत दो। बहरहाल नीतिश के इस कदम के कई दूसरे निहितार्थ भी हैं।
बिहार में भले ही वामदलों की प्रभावी मौजूदगी न हो लेकिन वामदलों के साथ मिलकर उन 4-5 सीटों की भरपाई हो सकती है जिसके लिए नीतिश को विश्वासमत के समय कांग्रेस की तरफ देखना पड़ा था। हालांकि अभी बिहार में विधानसभा चुनाव निकट नहीं है, लेकिन फिर भी लालू यादव की तकरीबन नष्ट हो चुकी राजनीतिक शक्ति का फायदा भाजपा को न मिले या बहुत कम मिले इसके प्रयास नीतिश कुमार करना चाहेंगे।  साथ ही उनकी यह भी कोशिश रहेेगी कि राज्य में कांग्रेस पुनर्जीवित न हो जाए। क्योंकि कांग्रेस में लालू यादव के वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की ताकत तो है। जहां तक भाजपा का प्रश्न है वह अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन पहले ही कर रही है और राज्य में उसकी ताकत जिन वोटों की बदौलत है उन पर फिलहाल किसी की दावेदारी नहीं है, लेकिन लालू यादव के वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए जनतादल युनाइटेड और कांग्रेस जैसी पार्टियों में घमासान हो सकती है।
उधर जनतादल युनाइटेड लालू यादव के जेल जाने के बाद नए सिरे से ताकत बटोरने की कोशिश कर रहा है। हाल ही में राबड़ी देवी ने एक बयान दिया था जिसमें कहा गया था कि नीतिश कुमार में इतनी ताकत नहीं है कि वह नरेंद्र मोदी को बिहार में प्रवेश करने से रोक दे। वह ताकत तो केवल लालू यादव में थी। जिन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के रथ को बिहार में रोक दिया था। राबड़ी शायद यह जताना चाह रही हैं कि मुसलमानों और पिछड़ों के सच्चे हितैषी लालू यादव ही हैं। राबड़ी का यह बयान उनकी राजनीतिक परिपक्वता की तरफ भी संकेत कर रहा है जिसकी आवश्यकता अब शायद ज्यादा पड़ेगी। क्योंकि बिहार में लालू यादव अगले एक दशक तक शायद ही कोई चुनाव लड़ सकें। बल्कि वे तो सक्रिय राजनीति में भी उतने सक्रिय नहीं रह सकेंगे।
शॉटगन ने बदला पैंतरा
गुजरात के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के प्रशंसकों में एक नया और अनपेक्षित नाम शत्रुघ्न सिन्हा का भी शामिल हो गया है। कभी मोदी के मुखर आलोचक रहे सिन्हा ने हाल ही में पटना में एक कार्यक्रम के दौरान यह कहकर सबको चौंका दिया कि मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकना किसी के भी बस में नहीं है। सिन्हा उन लोगों में से हैं जिन्होंने मोदी का खुला विरोध करते हुए गोवा अधिवेशन का बहिष्कार किया था। उनका अचानक रुख बदलना भाजपा के लिए फायदेमंद भी साबित हो सकता है। बिहार में नरेंद्र मोदी की रैली से पहले भारतीय जनता पार्टी यह जताने की कोशिश कर रही थी कि वह बिहार में भी संगठित और मजबूत है। शत्रुघ्न के बयान के बाद एक नया सियासी माहौल बन सकता है। क्योंकि बिहार में सबसे बड़े भाजपाई नेता के रूप में सुशील मोदी की पहचान बनी हुई है।

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