प्रकाश का अभाव जीवन को पंगु बना देता है
06-Nov-2013 05:51 AM 1234815

परमात्मा ज्योति स्वरूप है, प्रकाश स्वरूप है। जो प्रकाश पुंज हैं उनका भी प्रकाश उन्हीं से है। प्रकाश का अभाव जीवन को पंगु बना देता है। मनुष्य की सभ्यता और संस्कृति का विकास उसके प्रकाश की उपलब्धि पर ही निर्भर है। सूर्य का प्रकाश जीवन, ऋतुओं, फसलों और जीव जगत की क्रियाओं का हेतु है। इसके अभाव में उक्त सभी जीवन/ऋतुएं आदि असंभव हैं। सूर्य के अस्त होने पर चंद्रमा और मनुष्य द्वारा विकसित कृत्रिम प्रकाश जीवन को सक्रिय रखता है। इसीलिए दीपक को हम प्रत्येक अवसर पर, जैसे मांगलिक अवसरों पर सामाजिक, सांस्कृतिक समारोहों पर अवश्य प्रज्ज्वलित करते हैं। दीपक हमारी संस्कृति, धर्म और विरासत का प्रतीक है।
भगवान राम के आगमन पर खुशी में जलाए गए दीपक हमें प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाने और प्रकाश की आराधना का अवसर देते हैं। वेद प्रार्थना करते हैं तमसो मा ज्योतिर्गमय। अर्थात हे परमात्मा, मुझे अंधकार की ओर जाने से रोकिए और प्रकाश की ओर ले चलिए। वेदों में परमात्मा के प्रकाश स्वरूप को उजाले के साथ-साथ ज्ञान का, चेतना का भी प्रतीक बताया गया है। जो हम स्वयं को जानते हैं या वाह्य वस्तुओं का संज्ञान लेते हैं या सभी जीव को जाग्रत या सोई अवस्था में संज्ञान ले रहे हैं वह परमात्मा के प्रकाश, चित्त, शक्ति या चैतन्य के कारण ही हम अनुभव कर रहे हैं। यह प्रकाश दिन हो या रात्रि, सदा हमारे साथ रहता है। यह प्रकाश या ज्योति अक्षर है, अविनाशी है, सर्वत्र है। जैसे अंधेरे में जलता दीपक घोर अंधकार को दूर करता है वैसे ही हमारे अंतर में उपस्थित परमात्मा रूपी दीपक हमारे और समस्त सृष्टि के अंधकार को दूर कर उसे संचालित कर रहा है। आइए, हम वाह्य प्रकाश के साथ अंतस् स्थित प्रकाश को जाग्रत करें। जो हमें वास्तविक ज्ञान समृद्धि और आनंद से पूर्ण करेगा, जीवन को सफल और सार्थक बनाएगा। हमें स्वयं के साथ ही औरों के जीवन और घरों में प्रकाश फैलाने में समर्थ बनाएगा।

परमात्मा ज्योति स्वरूप है, प्रकाश स्वरूप है
परमात्मा ज्योति स्वरूप है, प्रकाश स्वरूप है। जो प्रकाश पुंज हैं उनका भी प्रकाश उन्हीं से है। प्रकाश का अभाव जीवन को पंगु बना देता है। मनुष्य की सभ्यता और संस्कृति का विकास उसके प्रकाश की उपलब्धि पर ही निर्भर है। सूर्य का प्रकाश जीवन, ऋतुओं, फसलों और जीव जगत की क्रियाओं का हेतु है। इसके अभाव में उक्त सभी जीवन/ऋतुएं आदि असंभव हैं। सूर्य के अस्त होने पर चंद्रमा और मनुष्य द्वारा विकसित कृत्रिम प्रकाश जीवन को सक्रिय रखता है। इसीलिए दीपक को हम प्रत्येक अवसर पर, जैसे मांगलिक अवसरों पर सामाजिक, सांस्कृतिक समारोहों पर अवश्य प्रज्ज्वलित करते हैं। दीपक हमारी संस्कृति, धर्म और विरासत का प्रतीक है। भगवान राम के आगमन पर खुशी में जलाए गए दीपक हमें प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाने और प्रकाश की आराधना का अवसर देते हैं। वेद प्रार्थना करते हैं तमसो मा ज्योतिर्गमय। अर्थात हे परमात्मा, मुझे अंधकार की ओर जाने से रोकिए और प्रकाश की ओर ले चलिए। वेदों में परमात्मा के प्रकाश स्वरूप को उजाले के साथ-साथ ज्ञान का, चेतना का भी प्रतीक बताया गया है। जो हम स्वयं को जानते हैं या वाह्य वस्तुओं का संज्ञान लेते हैं या सभी जीव को जाग्रत या सोई अवस्था में संज्ञान ले रहे हैं वह परमात्मा के प्रकाश, चित्त, शक्ति या चैतन्य के कारण ही हम अनुभव कर रहे हैं। यह प्रकाश दिन हो या रात्रि, सदा हमारे साथ रहता है। यह प्रकाश या ज्योति अक्षर है, अविनाशी है, सर्वत्र है। जैसे अंधेरे में जलता दीपक घोर अंधकार को दूर करता है वैसे ही हमारे अंतर में उपस्थित परमात्मा रूपी दीपक हमारे और समस्त सृष्टि के अंधकार को दूर कर उसे संचालित कर रहा है। आइए, हम वाह्य प्रकाश के साथ अंतस् स्थित प्रकाश को जाग्रत करें। जो हमें वास्तविक ज्ञान समृद्धि और आनंद से पूर्ण करेगा, जीवन को सफल और सार्थक बनाएगा। हमें स्वयं के साथ ही औरों के जीवन और घरों में प्रकाश फैलाने में समर्थ बनाएगा।

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