माओवादियों के एनकाउंटर से खौफ
02-Oct-2013 11:02 AM 1234771

उड़ीसा के मलकानगिरी जिले में 14 माओवादियों के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद इस क्षेत्र में सन्नाटा है। छत्तीसगढ़ जिले की सीमा पर घने जंगलों में इस एनकाउंटर को अंजाम दिया गया। स्पेशल ऑपरेशन गु्रप और डिस्ट्रिक्ट वालेन्टरी फोर्स ने संयुक्त रूप से  इस अभियान को अंजाम दिया। धुआंधार गोलियों की बरसात के बीच 14 माओवादी मारे गए और उनसे भारी मात्रा में हथियार भी बरामद हुए। पुलिस महानिदेशक सौमेन्द्र प्रियदर्शी का कहना है कि ये माओवादी इस वर्ष मई माह में कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हमले के लिए जिम्मेदार थे। मलकानगिरी भुवनेश्वर से 600 किलोमीटर दूर है और यह क्षेत्र माओवादियों का गढ़ माना जाता है।
छत्तीसगढ़ की घटना के बाद सारे देश में माओवादियों के खिलाफ अभियान तेज हो गया है। जुलाई माह में महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले में 6 माओवादियों को पुलिस ने मार गिराया था उनके पास से एक 303 कारबाईन 3 बारह बोर की रायफलें और कुछ कारतूस बरामद हुए हंै। उडि़सा में भी 19 जुलाई को राजगढ़ जिले में एक मुठभेड़ में 3 माओवादी मारे गए थे। यह मुठभेड़ स्पेशल ऑपरेशन गु्रप ने अंजाम दी थी। मुठभेड़ उस वक्त हुई जब कुछ माओवादियों ने स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप को चुनौती दी थी और बाद में दोनों तरफ से आधी रात तक गोली बारी होती रही। जिस तरह के हथियार इन एनकाउंटरों में बरामद हो रहे हैं। उससे लगता है कि माआवादियों की ताकत अब उतनी अधिक नहीं है। खुफियां रिपोर्ट में भी बताया गया है कि सरकार की सख्ती के बाद माओवादियो की ताकत में बहुत कमी आई है और अब वे छापामार लड़ाई ही कर पा रहे हैं। पुलिस वालों से सीधा मुकाबला करने की ताकत उनमें नहीं बची है।
छत्तीसगढ़ में जो हमला हुआ था वह खुफिया एजेन्सियों की नाकामी की कहानी थी लेकिन इसके बाद सरकार ने काफी सतर्कता बरती है। माओवादी भी मानने लगे हैं कि सरकार की सतर्कता के चलते उनकी ताकत घट गई है और पिछले कुछ सालों में संगठन में मैनपॉवर के साथ ही हथियार और गोला-बारूद में भी भारी कमी आयी है। इस जानकारी का खुलासा इंडियन एक्सप्रेसÓ की एक रिपोर्ट में किया गया है। दरअसल, माओवादियों की केन्द्रीय कमेटी ने अपने ही संगठन के बारे में इस तरह की चौंकाने वाली बातें बतायी हैं। समिति का कहना है कि हथियार बनाने के ठिकाने तथा उनके सप्लाई विभाग को भी राजनीति तथा सैनिकों के तंत्र ने पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। कमेटी ने पूरे देश में माओवादियों की दयनीय स्थिति की ओर इशारा करते हुए कहा कि वर्तमान में सभ्य और पढ़े-लिखे लोगों का समर्थन लगातार कम होता जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि माओवादी आंदोलन बुरे दौर से गुजर रहा है। इस संबंध में माओवादियों का मानना है कि प्रमुख  मल्कानगिरी और सुकमा क्षेत्र के कलेक्टर का अपहरण करने के बाद उन्होंने राजनीतिक समर्थन खो दिया। इस संबंध में उग्रवादी संगठन की केन्द्रीय समिति ने 11 पेज का एक मसौदा भी तैयार किया है। यह कमेटी उच्च निर्णय लेनी वाली संस्था है, जिसमें संस्था के शीर्ष 20 नेता शामिल होते हैं और इसका नेतृत्व जनरल सेक्रेटरी और माओवादियों के प्रमुख कमांडर मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति करते हैं। यह पहला मौका है जब माओवादियों की केंद्रीय कमेटी ने अपनी संस्था की कमजोरियों को उजागर किया है। इससे पहले हर मीटिंग में सभी दस्तावेज माओवादियों के अटैक तथा उनकी विजयगाथा की कहानियों से भरे रहते थे। इस बार पार्टी की सबसे महत्वूर्ण यूनिट गुरिल्लाÓ को भी बढ़ाने के लिये कई तरह योजनाएं बनायी गयी हैं। स्पेशल जोनल कमेटी ने उसके क्षेत्र में और विस्तार करने की योजना बनाई है। कमेटी का कहना है कि नार्थ तेलंगाना और आंध्र-ओडिशा बॉर्डर पर भी इस आंदोलन को पहुंचाना है। गोंदिया डिवीजन में लंबे समय से आंदोलन कमजोर हो गया है। पिछले कुछ सालों में कुछ प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी ने महाराष्ट्र आंदोलन को भी बैकफुट पर ला दिया है। समिति का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में ओडि़शा तथा बिहार-झारखंड के क्षेत्रों में नेतृत्व क्षमता की कमी ने हमारे कई प्रयासों में नाकामी दिलवाई है। माओवादियों की कमजोरी का फायदा उठाकर उनके संगठन को नष्ट करने का यही वक्त है।

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