02-Oct-2013 10:50 AM
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हरियाणा के रोहतक में 19 सितम्बर को 20 वर्ष की निधि और 23 वर्ष के धर्मेन्द्र की लाशें हर किसी को दहशत में डाल रही थीं। धर्मेन्द्र का बेहरहमी से सर काट

दिया गया और निधि को भीड़ के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया। निधि की लाश का जब अंतिम संस्कार किया जा रहा था उस वक्त पुलिस ने पहुुंच कर लाश जब्त की और धर्मेन्द्र का क्षत-विक्षत शव बरामद किया गया। लड़की को मारने वाले माता-पिता और चाचा को जरा भी अफसोस नहीं है। लड़की का भाई फरार है। अफगानिस्तान में तालिबान कोई बर्बर अपराध करे या हत्या करे तो हम उसकी कितनी आलोचना करते हैं लेकिन हमारे महान लोकतांत्रिक देश में तालिबानों से भी ज्यादा बर्बर माँ-बाप और समाज वाले पाए जाते हैं। इससे ज्यादा शर्म की बात कोई और नहीं हो सकती। लेकिन हरियाणा में उन गांव वालों को शर्म नहीं है जो सब कुछ जानते बूझते कानून का डर एक तरफ कर सरेआम प्रेमी जोड़ों को मौत के घाट उतार देते हैं। निधि और धर्मेन्द्र ने घर से भागकर शादी कर ली। दिल्ली में वे कुछ दिन साथ रहे बाद में निधि के परिजनों ने यह कहते हुए कि तुम्हें कुछ नहीं किया जाएगा प्रेमी युगल को धोखे से गांव वापस बुला लिया गांव वापस लौटना ही मौत का कारण बन गया। घर पहुंचते ही बेरहमी से दोनों को मार डाला गया। लड़की की चाची कहती है कि जब पिता इतना क्रूर हो गया तो उसके पीछे कोई कारण अवश्य होगा। लड़के के परिजनों के सामने लड़के को मार डाला गया उसका सर धड़ से अलग कर दिया गया लेकिन उन्होंने रिपोर्ट लिखाना भी मुनासिब नहीं समझा। वे यह कहने लगे कि जो कुछ हुआ ठीक हुआ। उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं था। दोनों का अपराध केवल यह था कि वे एक ही गांव के थे और एक ही गांव में विवाह करना इस क्षेत्र में वर्जित है। ऐसा करने पर कई जोड़ों को मौत की सजा दी जा चुकी है।
प्रश्न यह है कि यह गांव आज भी बर्बर युग में क्यों जी रहे हैं। यहां के लोग उन आदिम संस्कारों को ढोने के लिए विवश क्यों हैं। परम्पराओं के नाम पर प्रेमियों का गला क्यों दबा दिया जाता है। सरकारें हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रहती हैं। वोट की राजनीति के दबाब में सबके हाथ बंधे हुए हैं। खाप पंचायतें मौत का फरमान जारी करती हैं उनके हिसाब से एक ही गोत्र में या एक ही गांव में शादी करना अपराध है जो इस फरमान को नहीं मानेगा उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। दुख तो इस बात का है कि जिन युवाओं पर परिवर्तन करने का दायित्व है वे भी ढपोलशंख बनकर अपने कुंठित और पुरातनपंथी बूढ़ों के आदेश मानने के लिए विवश हैं। ये कैसे तरूण हैं जो इन घटिया रिवाजों के खिलाफ विद्रोह करने का साहस नहीं जुटा पाते। हर माह ऐसी घटनाएं सुनाई पड़ती हैं और लगातार ऐसी हत्याएं होने के बाबजूद पुलिस हाथ पर हाथ रख कर बैठी रहती है।
पुलिस भी आखिर उसी समाज से है जहां ये बर्बर संस्कार जारी हैं। पुलिस चाह कर भी कोई ठोस कदम नहीं उठा पाती है। बल्कि कई मामलों में तो पुलिस वाले ही अपराधियों को बचा लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है जो कुछ किया गया वह सही था। चिंता की बात यह भी है कि यह हत्याएं ज्यादातर उन लोगों द्वारा की जा रही है जिनकी उम्र कम रहती है। इसका अर्थ यह हुआ कि तरूण लोग भी इस घटिया परंपरा से सहमत हैं। यदि ऐसा है तो फिर अगले सौ वर्ष तक भी मानस बदलने वाला नहीं है क्योंकि जो लोग यह कर रहे हैं वे दूसरे को जीवन तो नष्ट कर ही रहे हैं अपना जीवन भी जोखिम में डालने को तैयार बैठे हैं। यह समस्या कानून से नहीं सुधरेगी। कानून का ही भय होता तो प्रेमी-प्रेमिकाओं के शव इस तरह नहीं मिलते। हरियाणा में तो बाकायदा गिरोह बने हुए हैं जो इन हत्याओं को अंजाम देते हैं। माता-पिता भी विरोध नहीं करते। समाज उनका हुक्का पानी बंद कर देता है। सबूत जुटाना और भी कठिन है क्योंकि गवाह को मौत के घाट उतार दिया जाता है। राजनीति पूरी तरह हताश करने वाली है वोट के डर से हर राजनीतिक दल ऐसे घटिया मामलों में चुप्पी साध लेता है।
इसी वर्ष जून में कुरूक्षेत्र के पास एक गांव में पिता ने अपनी बेटी की हत्या कर दी क्योंकि उसका प्रेम प्रसंग चल रहा था। पडोसी भी इस हत्या कांड को तमाशबीन बनकर देखते रहें। उत्तरप्रदेश के आगरा में जब रेलवे लाइन के पास एक युवक-युवती का शव मिला तो पता चला कि दोनों प्रेम करते थे इसलिए उनकी हत्या कर दी गई। सितम्बर माह में ही नैनिताल में एक होटल में प्रेमी-प्रेमिका के शव होटल के पंखे से झूलते मिले थे बाद में पता चला कि दोनों ने आत्महत्या कर ली क्योंकि वे हरियाणा के पलवल के रहने वाले थे जहां पर प्रेम करना अपराध है। दूसरा कोई मारे उससे पहले उन्होंने खुद ही मौत को गले लगा लिया।