06-Nov-2013 07:05 AM
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मध्यप्रदेश के धार जिले में बलवारी पंचायत के खोकरिया गांव में एक विवाहिता और उसके कथित प्रेमी को सुबह साढ़े पांच बजे कुछ लोगों ने रंगे हाथों क्या पकड़ लिया मानो भूचाल आ गया। कहा गया कि दोनों रंगरेलियां मना रहे थे। वे किस

स्थिति में थे किसी को पता नहीं। बस किसी ने कहा और फिर शुरू हो गया मध्य युगीन बर्बर खेल। दोनों को पकड़कर लाया गया और गरबा पंडाल के बीच खंभे से बांध दिया। लोगों ने बुरी तरह पीटा, कपड़े फाड़ दिए और तड़पते युवक-युवती के समक्ष नाचने लगे। इतने से भी मन नहीं भरा तो उनके पूरे शरीर पर कालिख पोत दी। उसके बाद कमर के नीचे खाद की थैली बांधकर पूरी पंचायत (तीनों गांव खोकरिया, बलवारी और बयड़ीपुरा) में लगभग नग्न अवस्था में मारते-पीटते हुए घुमाया। लड़के से पूरे रास्ते थाली बजवाई गई। वे गिड़गिड़ाते रहे कि हम निर्दोष हैं, हमें छोड़ दो लेकिन बहशी लोगों का दिल नहीं पसीजा। उन्होंने तो सजा देने की ठान ली थी। दोनों पीडि़त रुकने की या बैठने की कोशिश करते तो उनके शरीर पर कीलें गोद दी जाती थीं। दुख की बात तो यह है कि इन दंरिदों का साथ कुछ महिलाएं भी दे रहीं थी उन महिलाओं ने उस विवाहिता को कपड़े देने की कोशिश नहीं की न ही कोई उसे बचाने के लिए आगे आईं। कम से कम लड़की को तो सुरक्षित बचाया जा सकता था। जो महिलाएं नौ दिन से देवी साधना कर रही थीं वह एक स्त्री को बचाने का साहस तो जुटा ही सकती थीं, लेकिन लगता है इस क्रूर कृत्य को सभी की मौन सहमति थी। इसीलिए तो भारत सुधर नहीं पा रहा है। वर्ष में दो बार नौ-नौ दिन तक देवी उपासना के बावजूद वही बर्बर और बहशी संस्कार हमारे मन और मस्तिष्क पर छाए हुए हैं। उन दोनों पीडि़तों को लगातार पीड़ा दी गई उन्हें बुरी तरह बेइज्जत किया गया। मारा, पीटा गया और प्रशासन हमेशा की तरह सोता रहा। तीन गांवों में प्रेमी युगल का जुलूस निकाला गया, लेकिन पुलिस को भी पता नहीं लगा। पुलिस के आला अधिकारी गहरी नींद में थे।
धार एसपी भगवत सिंह चौहान को जब एक प्रतिष्ठित अखबार के संवाददाता ने फोन लगाया तो उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं है। धामनोद टीआई मुकेश इजारदार ने भी कहा कि हमें शिकायत नहीं मिली। बाद में टीआई ने कहा कि गांव वालों ने बोला है कि वे समझौता कर लेंगे। डीआईजी प्रवीण माथुर ने भी रात में कहा कि उन्हें ऐसी किसी घटना की जानकारी नहीं है। आईजी विपिन माहेश्वरी को रात को बारह बजे इस घटना के विषय में बताया गया तब जाकर उन्होंने मौके पर डीएसपी को रवाना किया और फिर डीआईजी माथुर ने भी मौके पर टीआई को मामले की जांच के लिए भिजवाने की बात कही।
यह घटना और गंभीर हो जाती यदि मीडिया समय पर नहीं चेतता। क्योंकि गांव वालों ने पुलिस के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था और कहा था कि यह गांव का मामला है समझौते से निपट जाएगा। खास बात यह है कि पुलिस ने भी हमलावरों की सलाह मान ली। इससे ग्रामीणों के हौंसले बढ़ गए उन्होंने युवक-युवती को बुरी तरह पीटा। दरअसल ग्रामीण लड़की पक्ष के लोगों से कुछ खर्चा मांग रहे थे। क्योंकि लड़की ने गांव वालों की नजर में कथित रूप से भ्रष्टाचार किया था। जबकि युवक-युवती के परिजन इसके खिलाफ थे और वे रिपोर्ट दर्ज कराना चाह रहे थे, लेकिन हमारी पुलिस सदियों पुरानी उस ग्रामीण न्याय व्यवस्था को पुनर्जीवित करने में जुटी हुई थी जिसके तहत गंभीर अपराध करने पर सरेआम बेइज्जती की जाएगी और फिर जुर्माना वसूला जाएगा। जब यह घटना सारे देश की मीडिया में चर्चित हो गई तो मुंह छिपाने के लिए पुलिस ने 25 आरोपियों को गिरफ्तार किया, 9 को जेल भेज दिया, 2 की पुलिस रिमांड ली, 11 को कोर्ट में प्रस्तुत किया गया। धामनौद टीआई मुकेश इजारदार, एएसआई योगेंद्र जादौन, हेड कांस्टेबल राकेश और आरक्षक पंकज को निलंबित कर दिया गया, कलेक्टर ने सरपंच, सचिव, कोटवार सहित गांव के खास लोगों से रिपोर्ट भी तलब की है, लेकिन इससे होगा क्या ऐसी घटनाओं के बाद निलंबन की कार्रवाई करना और रिपोर्ट को कूड़ेदान में डालना आम बात है।
यह घटना वैसे भी पुलिस के बस में नहीं है क्योंकि पुलिस समाज में फैलती अराजकता को रोकने के लिए नहीं बल्कि त्वरित कानूनी कार्रवाई के लिए बनी है। यदि उस रात दुर्गा पूजा के गरबा पंडाल में पुलिस पहुंचकर उन दोनों युवक-युवती को छुड़ा लेती तो शायद जुलूस न निकलता। पुलिस की लापरवाही तो है ही, लेकिन एक समाज के रूप में हम कहां जा रहे हैं। यह भी बड़ा प्रश्न चिन्ह है। समाज में हर तरह के लोग मौजूद है। उस युवक और युवती का संबंध क्या था यह एक अफवाह भी हो सकती है। पल भर के लिए इसे सच भी मान लिया जाए तो इतनी बड़ी सजा। कहीं न कहीं कुछ कमी है हमारे अपने ही भीतर, हमें उस कमी को पहचानना होगा।