16-Sep-2013 07:09 AM
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अंतत: फैसला आ ही गया। देश को जिस निर्णय की प्रतीक्षा थी वह निर्णय अदालत ने कर दिया। 16 दिसंबर 2012 की रात को देश की राजधानी दिल्ली में चलती बस में मेडिकल प्रोफेशन से जुड़ी 23 वर्षीय

छात्रा के साथ वीभत्स बलात्कार करने वाले और उसके शरीर पर क्रूरतम प्रहार करने वाले दानवों को दिल्ली में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई है। 26 वर्षीय मुकेश, 19 वर्षीय पवन, 20 वर्षीय विनय और 28 वर्षीय अक्षय को हत्या, गैंगरेप, डकैती, सबूत नष्ट करने सहित 11 अपराधों में दोषी ठहराते हुए अंतत: फांसी के फंदे पर झूलने का आदेश दे दिया गया। कोर्ट में जिस वक्त यह सजा सुनाई गई उस वक्त चारों दोषी और दामिनी के माता-पिता भी मौजूद थे। इस सजा से पहले बचाव पक्ष के वकील ने पवन तथा विनय की कम उम्र का हवाला देते हुए उनके प्रति नरमी बरतने की अपील की थी, लेकिन कोर्ट ने यह अपील ठुकरा दी। कोर्ट का कहना था कि जो कुछ इन्होंने किया वह होशो-हवाश में किया और इसलिए किसी प्रकार की दया नहीं दिखाई जा सकती। कोर्ट का यह कहना सच भी था उस रात वह लड़की दया की भीख मांगती रही, लेकिन इन दरिंदों का दिल नहीं पिघला। ऐसे दरिंदों को जिंदा रखकर समाज पर बोझ बढ़ाने से बेहतर उन्हें सजा-ए-मौत देना है। अब ये चारों सुप्रीम कोर्ट तक अपील कर सकते हैं और उसके बाद राष्ट्रपति के समक्ष भी दया याचिका जा सकती है। लेकिन देश का मानस इन दरिंदों के खिलाफ है, इन्हें सजा देने के लिए सारे देश में धरने, प्रदर्शन हुए थे। एक सैलाब सा आया था, लेकिन उसके बाद भी ये घटनाएं रुकी नहीं। कम से कम इस फैसले से उन दरिंदों के हौसले पस्त होंगे जो महिलाओं को अपनी जागीर समझते हुए रौंदने को तैयार रहते हैं।
इस वीभत्स हत्याकांड में कुल छह आरोपी थे, जिनमें से रामसिंह ने 11 मार्च को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी के फंदे से झूलकर आत्महत्या कर ली थी। एक अन्य नाबालिग आरोपी को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने 31 अगस्त को दोषी ठहराते हुए बाल सुधारगृह 3 वर्ष के लिए भेज दिया था। बाकी बचे आरोपियों को फांसी की सजा मिलने से देश में बलात्कार के खिलाफ बने माहौल के बाद अब कुछ सुकून महसूस किया जा रहा है। विशेष लोक अभियोजक दयान कृष्णन ने इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ रेयर करार देते हुए चारों दोषियों के लिए फांसी की मांग की थी। कृष्णन का कहना था कि गुनाहगारों ने असहाय लड़की पर कोई दया नहीं दिखाई। उसके शरीर के साथ पाश्विकता की सारी हदें पार की गईं। बाद में उस लड़की ने सिंगापुर में दम तोड़ दिया था। फैसला सुनने के बाद लड़की के माता-पिता के चेहरों पर दर्द भरी राहत थी। लड़की की मां ने बताया कि किस तरह उस बहादुर बेटी ने इन दरिंदों को सजा-ए-मौत देने की मांग की थी और अदालत ने जो निर्णय दिया है उससे कहीं न कहीं उस लड़की की आत्मा को शांति अवश्य पहुंचेगी। 237 पन्नों का यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली के इतिहास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। बलात्कार भारतीय समाज का नासूर बन चुका है। हर दिन वीभत्स से वीभत्स बलात्कार की घटनाओं का खुलासा होता है। छह माह की छोटी बच्ची से लेकर 70 साल की वृद्धा तक कोई सुरक्षित नहीं है। न घर के बाहर न भीतर। शहर में न गांव में। राह चलते लड़कियों से बलात्कार हो जाते हैं। घटनाएं इतनी तेजी से बढ़ी हैं कि दिल्ली को रेप की राजधानी कहा जाने लगा है। इतना अवश्य हुआ है कि अब इन घटनाओं के बाद पुलिस तुरंत हरकत में आती है। वरना इससे पहले तो बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराने में पीडि़ता को दर-दर भटकना पड़ता था। दामिनी कांड के बाद केंद्र सरकार भी हरकत में आई थी और बलात्कार के विरोध में कुछ कठोर कानून बनाए गए थे। इन सारे कानूनों का तथा जनता के द्वारा किए गए विरोध का असर कहीं न कहीं इस फैसले पर अवश्य पड़ा होगा। न्यायाधीशों ने निश्चित रूप से इन सारी परिस्थितियों को देखा और एक ऐसा फैसला दिया जिसका इंतजार अरसे से किया जा रहा था। गौरतलब यह है कि फास्ट टै्रक अदालत को भी यह निर्णय देने में 8 माह का समय लगा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बलात्कार के सामान्य प्रकरणों में कितनी देरी होती होगी। यह देरी ही बलात्कार पीडि़ता के हौसले को तोड़ती है। इसी कारण देश में जितने भी बलात्कार होते हैं उनमें से आधे तो सरकारी रिकार्ड में आ ही नहीं पाते क्योंकि कानूनी कार्रवाई के भय से और अंतहीन पीड़ा झेलने की आशंका के चलते बहुत सी पीडि़ताएं रिपोर्ट ही दर्ज नहीं करा पाती हैं, लेकिन अब उम्मीद की जा रही है कि बलात्कार जैसे मुद्दे पर पुलिस और न्याय प्रणाली की संवेदनशीलता बढ़ेगी।
चिंता इस बात की भी है कि कहीं ऊंची अदालत से यह अपराधी अपनी सजा को तब्दील कराने में कामयाब न हो जाएं। क्योंकि मामला अभी फास्ट ट्रैक कोर्ट तक ही है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट तक जाया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि फांसी के तख्त तक पहुंचने में अभी भी इन आरोपियों को 2-3 वर्ष लगेंगे। बहरहाल इस सजा ने उन आरोपियों के साथ-साथ बलात्कार के आरोप में सजा काट रहे बाकी लोगों को भयभीत अवश्य किया होगा। यह भय बहुत जरूरी है। क्योंकि दिन रात डरने वाली महिलाएं निर्भय होकर जीना चाहती हैं।