02-Oct-2013 10:22 AM
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जिस दिन अमेरिका में मनमोहन सिंह नवाज शरीफ से मुलाकात कर आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश दे रहे थे उसी दिन कश्मीर में आतंकवादियों ने घात लगाकर
कठुआ और सांबा में सुबह-सुबह हमला कर दिया। लेफ्टिनेंट कर्नल सेना के जवान और आम नागरिकों सहित 12 लोग मारे गए। बहुत से घायल हो गए। आतंकवादी सेना की वर्दी पहने हुए थे। उससे पहले उन्होंने हीरापुर में थाने पर धावा बोलकर 4 पुलिसकर्मियों को भी मार डाला और ट्रक में बैठकर फरार हो गए। सेना के कैम्प में घुसने से पहले आतंकवादियों ने अपने चिर-परिचित अंदाज में अंधाधुंध गोलियां चलाई और बाद में निहत्थे सैनिकों को संभलने का मौका दिए बगैर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। मुठभेड़ चलती रही। कश्मीर में आए दिन होने वाली आतंकी घटनाओं ने एक बार फिर यहां के स्थानीय निवासियों को गरीबी के दुष्चक्र में धकेल दिया है। बीच में कुछ दिन शांति थी तो पर्यटक भी आने लगे थे और लोगों की आजीविका भी चल निकली थी। लेकिन लगता है आतंकवादियों को कश्मीर के लोगों का चैन से जीना नहीं सुहा रहा है। पहले उन्होंने गैर मुस्लिमों को कश्मीर से खदेड़ दिया था। अब वे कश्मीर में ही उन लोगों को खदेडऩे में लगे हुए हैं जो भारत के प्रति सहानुभूति रखते हैं।
हाल ही में वहां काम करके लौटे कुछ लोगों ने बताया था कि किस प्रकार कश्मीरियों के दिलों में जानबूझकर दहशत भरी जा रही है ताकि वे भारत के विरोध में खड़े हो जाएं। नौजवानों को अगवा कर उन्हें बंदूकें थमा दी जाती हैं। जो नौजवान ऐसा करने से मना कर देते हैं। उन्हें बेरहमी से मारा जाता है और फिर बाद में उनके शरीर पर विस्फोटक बांध कर उन्हें भीड़ में धकेल दिया जाता है। यदि वे वापस लौटें तो मौत है और भीड़ में जाने पर विस्फोटक के द्वारा दूसरे निर्दोष लोगों को साथ लेकर मरने की मजबूरी है। एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई। हालत यह है कि पढ़-लिखकर जीवन शांति से बिताने का सपना देखने वाले कई नौजवान कश्मीर छोड़कर भारत के दूसरे हिस्सों में जा बसे हैं। उनके मां-बाप भी अब वहां नहीं रहना चाहते। क्योंकि उन्हें यह पता लग गया है कि आतंकवादियों के बहकावे में आकर उन्होंने जिस तरह अपने हिंदु पड़ोसियों को कश्मीर से खदेड़ दिया है अब वे आतंकवादी ही उन्हें खदेडऩा चाहते हैं। कुछ समय पहले एक खुफिया जानकारी में पता लगा था कि पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई, तालिबान और अलकायदा जैसे खतरनाक संगठन मिलकर कश्मीर को एक ऐसे युद्ध के मैदान में तब्दील करना चाहते हैं जो सामरिक दृष्टि से भी उनके हितों को पूरा करता रहे। इस योजना का पहला हिस्सा कामयाब हो चुका है। क्योंकि कश्मीर में अब नाम मात्र के ही गैर मुस्लिम बचे हैं।
योजना का दूसरा हिस्सा जो मुस्लिम आबादी है उनमें युवकों को जेहाद के लिए तैयार करने का है। लेकिन सभी कश्मीरी इसके लिए राजी नहीं हैं। इसीलिए बंदूक की नोंक पर कश्मीर को अफगानिस्तान बनाने का लक्ष्य रखा गया है। यदि समय रहते भारत सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो कश्मीर की हालत डरावनी हो जाएगी। जहां तक पाकिस्तान का प्रश्न है वह कश्मीर में किसी भी स्थिति में अमन नहीं देखना चाहता। जिस तरह भारत ने पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग कर दिया था उसी तरह पाकिस्तान भी कश्मीर को तोडऩा चाहता है। मनमोहन सिंह और नवाज शरीफ के बीच चाहे जो बातचीत हुई हो लेकिन कश्मीर जैसे मुद्दे पर कोई ठोस समाधान तभी निकल पाएगा जब भारत अपने कठोर कदमों की घोषणा करे। जिस तरह कश्मीर में लगातार भारत विरोधी गतिविधियां जोर पकड़ रही हैं उसे देखते हुए वहां शांति की उम्मीद करना बेमानी है। यह तभी कामयाब हो सकती है जब सरकार पाकिस्तान और वहां की सेना को माकूल जवाब दे। नई दिल्ली की ढुलमुल नीति के चलते पिछले एक दशक में कश्मीर में हालात दयनीय हो चुके हैं। अभी हाल ही में वहां लगातार आतंकवादी हमले किए गए। जिनका निशाना या तो सेना थी या फिर वे लोग जो आतंकवादियों का विरोध करते हंै। कश्मीर में बैठे कुछ राजनीतिक लोग भी आतंकवादियों का साथ दे रहे हैं। अलगाव की यह हवा भारत की अखंडता के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकती है। मनमोहन सिंह ने कश्मीर पर कोई ठोस पहल अब तक नहीं की। छह दशक बीत चुके हैं जवाहरलाल नेहरू की ऐतिहासिक गलती को सुधारने का हर मौका भारत गवां चुका है। ऐसे में कश्मीर पर अब भी बातचीत नहीं की गई तो आने वाले समय में जो स्थिति बनेगी उसका समाधान केवल और केवल युद्ध से ही निकल सकेगा। लेकिन युद्ध के लिए निकलने से पहले बाकी विकल्पों पर पूरी तरह काम नहीं किया गया तो सारी दुनिया में गलत संदेश भी जा
सकता है।