02-Oct-2013 08:06 AM
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जब से देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड योजना की वैधता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया है, केंद्र सरकार सकते में आ गई है। आधार कार्ड योजना पर केंद्र

सरकार का बहुत दारोमदार था और यूपीए को आशा थी कि चुनावी वैतरणी इस योजना के द्वारा पार लग सकती है। लगभग 17 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे भी जा चुके हैं और 18 हजार करोड़ रुपए का भारी भरकम खर्च भी हो चुका है, लेकिन कोर्ट में जब सरकार को घेरा गया तो सरकार के पास जवाब देने का कोई तर्क नहीं था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि आधार कार्ड न होने पर किसी भी नागरिक को कोई सेवा या लाभ लेने से वंचित नहीं किया जाएगा। यह एक स्वैच्छिक योजना है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कम से कम उन लोगों को राहत मिल सकती है जो आधार कार्ड बनाने के लिए जूझ रहे थे और जिसके कारण उन्हें गैस से लेकर कई तरह की सब्सिडी से वंचित होने का खतरा लग रहा था। चुनाव नजदीक हैं इसलिए आधार कार्ड का मुद्दा प्रमुख बनता जा रहा है। इससे पहले गैस कंपनियों ने भी फर्जी कनेक्शन खत्म करने के लिए कुछ कदम उठाए थे और गैस की टंकी में कांग्रेस के डूबने की आशंका जताई गई थी लेकिन बाद में सरकार के ही कुछ मंत्रियों के दबाव में इस योजना को बदला गया और सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या बढ़ाकर 9 कर दी गई। गुप्त रूप से गैस कंपनियों को भी कहा गया कि वे फिलहाल फर्जी कनेक्शनों पर ज्यादा सख्ती न बरतें। अन्यथा कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को नुकसान हो सकता था।
लेकिन भारतीय राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण आधार कार्ड को अनिवार्य करने के लिए संकल्पित है। इस संबंध में केंद्र सरकार एक विधेयक लाने की तैयारी कर रही है जिसे तैयार करते वक्त दो प्रमुख आपत्तियों पर ध्यान दिया जा रहा है, जिसमें आधार कार्ड का कानूनी आधार न होना और लोगों की निजता का उल्लंघन शामिल है। आधार कार्ड के विरोधियों का कहना है कि आधार कार्ड से निजता का उल्लंघन होता है क्योंकि इसमें बायोमैट्रिक डाटा रखा जाता है। वहीं यह भी कहा गया है कि इसे अनिवार्य फिलहाल नहीं किया जा सकता। क्योंकि इसका काम संतोषजनक स्तर तक नहीं पहुंचा है। जो नया बिल तैयार किया जा रहा है उसका मसौदा सन् 2010 में बनाए गए विधेयक से बेहतर है जिसे संसदीय पैनल ने खारिज कर दिया था। यह विधेयक नामांकन से लेकर संपूर्ण प्रक्रिया को कानूनी कवच प्रदान कर रहा है। जिससे नागरिकों को ज्यादा राहत मिल सकेगी। दरअसल आधार कार्ड बनवाने के ेलिए अपनी निजता का उल्लंघन करवाना ही होगा। क्योंकि इसमें जनसांख्यिकीय और बायोमैट्रिक जानकारी जुटानी है। बायोमैट्रिक जानकारी में निजी बातें रहती हैं। अब सरकार ने कहा है कि यदि इन निजी जानकारी का दुरुपयोग किया जाता है तो दुरुपयोग करने वाले को तीन साल की सजा और अधिकतम एक करोड़ का जुर्माना भरना पड़ेगा। लेकिन सरकार के इस परिवर्तित विधेयक पर कोई सहमति बनेगी इस बात के आसार बहुत कम हैं। इसका कारण यह है कि भारत जैसे देश में सभी लोगों की जानकारी एकत्र करना तत्काल संभव नहीं है। शायद इसीलिए केंद्र सरकार के इस कदम को गलत बताते हुए वित्त मंत्रालय पर संसदीय समिति के अध्यक्ष और भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने कहा है कि सरकार लोगों के मन में आधार कार्ड योजना के बारे में भ्रम पैदा कर रही है। सिन्हा ने यह भी कहा कि संसदीय समिति दिसंबर 2011 में ही राष्ट्रीय भारतीय पहचान प्राधिकरण विधेयक 2010 को ठुकरा चुकी है। यदि इस विधेयक को ठुकरा दिया गया था तो फिर 18 हजार करोड़ रुपए खर्च क्यों किए गए यह एक बड़ा सवाल है। कांग्रेस को छोड़कर ज्यादातर पार्टियां आधार कार्ड की मुखालफत कर रही हैं। माकपा के सांसद पी. राजीव ने कहा है कि सरकार हर एक सुविधा पर अड़ंगा डालने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य क्यों करना चाहती है। यही कारण है कि आधार कार्ड योजना पर सवालिया निशान लग गया है। करीब 30 अरब रुपए की इस योजना को लेकर भ्रम की स्थिति बन गई है। यूपीए सरकार 2014 के लोकसभा चुनाव में इस योजना को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत करने का सपना देख रही थी, लेकिन अब कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय से इस अभियान को धक्का लग सकता है। दिल्ली जैसे कुछ राज्यों ने तो सरकारी अनुदान के लिए आधार कार्ड अनिवार्य भी कर दिया था।