02-Oct-2013 07:34 AM
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आंध्रप्रदेश का सियासी तापमान जगन मोहन रेड्डी की रिहाई से अचानक गर्म हो गया है। बहुत से गैर कांग्रेसी राजनीतिक दल रेड्डी की तरफ आशा भरी निगाहों से

देख रहे हैं लेकिन रेड्डी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और वर्तमान राजनीतिक माहौल में जब भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन सकता है रेड्डी के समर्थन में आने से होने वाले नुकसान का आंकलन भी यह राजनीतिक दल कर रहे हैं। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी ने आंधप्रदेश में रेड्डी के मुकाबले चन्द्रबाबू नायडू को तरजीह दी है। लेकिन नायडू के लिए रेड्डी मुफीद हो सकते हैं क्योंकि तेलंगाना में टीआरएस और कांग्रेस का वर्चस्व रहेगा ऐसे हालात में नायडू रेड्डी की जुगलबंदी शेष आंध्रप्रदेश में कांग्रेस का सफाया करने के लिए पर्याप्त है। फिलहाल जगन मोहन की पार्टी के लोकसभा में दो सांसद और विधानसभा में 18 विधायक हैं।
रेड्डी ने ज्यादातर जीत उपचुनाव में हासिल की जिस तरह उपचुनाव में उन्हें सफलता मिली उसे देखकर यह कहा जाने लगा है कि रेड्डी के प्रति आंध्रप्रदेश में बहुत दीवानगी है और उन्हें उनके पिता वाईएसआर की असमय मृत्यु से उपजी साहनभूति का लाभ मिल सकता है। वाईएसआर की एक हेलिकापॅटर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी उसके बाद आंध्रप्रदेश में जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री पद का भी दावेदार कहा जाने लगा लेकिन कांग्रेस से उनके रिश्ते बिगड़ गए और इतने बिगड़े कि 16 माह पूर्व आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में रेड्डी को गिरफ्तार कर लिया गया। 16 माह जेल में रहने के दौरान रेड्डी ने कांग्रेस को राज्य में बहुत कमजोर कर दिया है। कांग्रेस का जनाधार कम हो रहा है और यदि पृथक तेलंगाना के गठन के समय हैदराबाद को लेकर कोई सर्वमान्य निर्णय नहीं हुआ तो कांग्रेस का सफाया तय है ऐसे हालात में जगन मोहन रेड्डी बहुत ताकतवार राजनीतिज्ञ बन सकते हैं। रेड्डी को जमानत तो मिली है लेकिन हैदराबाद छोडऩे की इजाजत नहीं है। इसके लिए उन्हें कोर्ट से अनुमति लेनी होगी। अगले वर्ष राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और लोकसभा चुनाव भी साथ ही हैं रेड्डी के ऊपर और भी कई मामले लंबित हैं यदि सभी मामलों में निर्णय आया तो रेड्डी को लंबे समय के लिए जेल की हवा खानी पड़ेगी पर चुनाव के दौरान यदि वे बुक नहीं होते हैं तो राज्य में चुनावी नतीजे चौकाने वाले होंगे। जगन समर्थकों ने आरोप लगाया है कि अगले चुनाव में पराजय के डर से कांग्रेस रेड्डी को घेर रही है जबकि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं। पिछले वर्ष 27 मई को जेल की सलाखों के पीछे गए जगन का बाहर आने पर जिस तरह स्वागत हुआ उसे देखकर तो यही लग रहा है कि जगन समर्थकों का यह आंकलन गलत नहीं है।
क्या मोदी का शांति प्रस्ताव स्वीकारेंगे नायडू
आंध्रप्रदेश में चंद्रबाबू नायडू पशोपेश में हैं यदि वे एनडीए के खेमें में वापस लौटते हैं तो उन पर सांप्रदायिक होने का आरोप चस्पा हो जाएगा और यदि जगन मोहन रेड्डी से हाथ मिलाते हैं तो भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने का आरोप लग सकता है। लेकिन जिस तरह नरेंद्र मोदी ने सारी बहस का रुख विकास की तरफ मोडऩे की कोशिश की है उसे देखते हुए लग रहा है कि चंद्रबाबू नायडू अंतत: मान ही जाएंगे और वे मान जाते हैं तो दो अक्टूबर को दिल्ली में एक गैर सरकारी कार्यक्रम के दौरान दोनों नेताओं की मुलाकात हो सकती है। सूत्र बताते हैं कि नायडू ने इस कार्यक्रम के लिए सहमति प्रदान कर दी है। उधर भाजपा ने भी नायडू को फेसबुक पर फेंड रिक्वेस्ट भेजी है अब आंध्र की राजनीतिक स्थितियों पर निर्भर करेगा कि वे इस फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकारते हैं या नहीं। 2004 में जब चुनावी पराजय हुई तो इस पराजय का श्रेय गुजरात दंगों को देते हुए नायडू ने एनडीए छोड़ दिया था, लेकिन अब वही परिस्थिति फिर सामने आ रही है। गुजरात दंगों के सबसे बड़े खलनायक नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया है। इस घोषणा के बाद से ही मोदी दक्षिण में अपने दोस्त तलाशने में जुट गए हैं। उनकी लिस्ट में सबसे पहला नाम चंद्रबाबू नायडू का है। कुछ समय पहले जब नायडू और भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की मुलाकात हुई थी उस वक्त नायडू ने कहा था वे किसी भी संभावना को खारिज नहीं कर सकते। कारगिल युद्ध के समय 1999 में जब भाजपा की लहर चली थी उस समय नायडू को भाजपा से गठबंधन का लाभ राज्य में मिला था। इस बार भी उन्हें किसी ने सलाह दी है कि मोदी का करिश्मा दक्षिण में काम कर सकता है। इसीलिए नायडू भाजपा की तरफ झुके नजर आ रहे हैं। देखा जाए तो नायडू के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। जो कुछ है वह पाने के लिए ही है। यदि नायडू किस भी तरह मोदी के रुझान का लाभ उठा सकें तो यह उनके लिए फायदे की बात होगी।