अवैध शिकारियों को छोड़ा मध्यप्रदेश ने?
16-Sep-2013 07:18 AM 1234774

इस वर्ष जून माह में मध्यप्रदेश के वन विभाग के आला अफसर अवैध शिकारियों के एक बड़े गिरोह पर हाथ डालने से चूक गए। महाराष्ट्र में जून माह में वहां के वन विभाग, वाइल्डलाईफ क्राइम कन्ट्रोल ब्यूरो और महाराष्ट्र पुलिस ने मिलकर अवैध शिकारियों के बड़े गिरोह का पर्दाफाश किया था। इस गिरोह में 14 पुरूष और 2 महिलाओं सहित कुल 16 लोग शामिल थे। इस गिरोह के सरगना सूरजभान उर्फ चाचा तथा  शिकारी सरजू और नरेश से जो सूचनाएं मिली है उनसे लगता है कि टाईगर का अवैध शिकार बफर जोन के बाहर धड़ल्ले से किया जा रहा है और मध्यप्रदेश का वन विभाग इस गम्भीर अपराध के प्रति सचेत नहीं है। पाक्षिक अक्स ने जो जानकारी जुटाई है उससे पता चलता है कि दिल्ली और नागपुर के अधिकारियों ने मध्यप्रदेश के वन विभाग के आला अफसरों को इन अवैध शिकारियों की गतिविधियों की जानकारी तथा कुछ मोबाइल नम्बर उपलब्ध कराए थे लेकिन अधिकारियों ने इस आधार पर सूचना जुटाने और अवैध शिकारियों का पता लगाने की जहमत नहीं उठाई।
हालांकि यह सच है कि इस गिरोह का पर्दाफाश करने में मध्यप्रदेश पुलिस, एसटीएफ और वन विभाग ने महाराष्ट्र को हर सम्भव सहयोग दिया तथा तत्परता से गिरोह का भंडाफोड़ किया लेकिन पूछताछ के लिए  किसी भी अवैध शिकारी को प्रदेश में नहीं रोका गया। इस कारण शायद यह था कि यदि पूछताछ में यह शिकारी मध्यप्रदेश में किसी टाईगर को मारने की बात कबूलते तो मामला और उलझ जाता, मीडिया भी सक्रियता दिखाते हुए वन विभाग के अधिकारियों को ही कटघरे में खड़ा करता इसलिए अपने सिर से बला टालने हेतु इतने महत्वपूर्ण अवसर को हाथ से जाने दिया गया।
सूत्र बताते हंै कि इस गिरोह ने महाराष्ट्र में 11 टाइगरों का शिकार करने की बात कबूली है। गिरोह के सारे सदस्य मध्यप्रदेश के कटनी दमोह और आसपास के क्षेत्रों के रहने वाले पारधी समुदाय से हैं। यह लोग जाल बिछाकर टाईगरों को पकड़ते थे एक बार जाल में फंसने के बाद टाईगर जब दहाड़ता था तो उसे मुॅह में भाला या बल्लम घुसाकर उसकी हत्या कर दी जाती थी। हत्या का यह तरीका इसलिए अपनाया जाता है ताकि टाईगर का शरीर सुरक्षित रहे। उसकी खाल और दूसरे अंगों को नुकसान नहीं पहुंचे। इसके बाद टाईगर का मांस खा लिया जाता था और खाल से लेकर हड्डी, दांत, नाखून, आंख तथा अन्य अवयव बाजार में बेच दिया जाता था। अधिकारियों का कहना है कि इस गिरोह ने ज्यादातर शिकार बफर जोन के बाहर के क्षेत्रों में किए हैं। क्योंकि बफर जोन में टाईगर का शिकार अब सम्भव नहीं हैं। गिरोह के द्वारा टाईगर के हर एक मूमेन्ट पर नजर रखी जाती है लेकिन टाईगर सुरक्षित क्षेत्र से बाहर निकल गया तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। यह लोग पहले उन इलाकों में डेरा जमाते हैं जहां टाईगर के भटक कर आने की आंशका रहती है। स्थानीय आबादी को शक न हो इसलिए महिलाएं छोटा मोटा सामान बेचने का धंधा करती हैं और पुरूष जंगलों में टाईगर की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। इन्हें टाईगर के आने-जाने के रास्तों से लेकर हर कदम का ज्ञान हो जाता है उसके बाद किसी जल स्रोत पर जाल बिछाया जाता है। कई बार जहर देकर भी टाईगर को मार देते हैं। लेकिन आम तौर पर मारने का यह तरीका इसलिए प्रयुक्त नहीं किया जाता क्योंकि पारधी समुदाय में टाईगर का मांस पसन्द किया जाता है। मारने के बाद मांस बांटकर खा लेते हंै और बाकी अवयवों के दाम बाजार में अच्छे मिल जाते हैं। सूत्र बताते है कि महिलाएं साड़ी के नीचे टाईगर की खाल लपेटकर उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाती हैं और तरकरी का यह व्यवसाय प्रशासन की नाक के नीचे चलता रहता है।
महाराष्ट्र के फारेस्ट विभाग को वाइल्डलाईफ क्राइम कन्ट्रोल ब्यूरो ने जब इन अवैध शिकारियों की जानकारी दी तो उन तक पहुंचने में आठ दिन से ज्यादा समय नहीं लगा। सरजू और नरेश सबसे पहले पकडाए और बाद में उन्होंने गिरोह के सरगना सूरजभान तक पुलिस को पहुंचाया। सरकारी सूत्र दावा कर रहे हैं कि इस गिरोह ने कुल पांच टाईगरों का शिकार किया है जबकि वे स्वयं 11 टाईगरों को मारने की बात कह रहे हैं। यह जानकारी मामले को संदिग्ध बनाती है। बताया जाता है कि अक्टूबर 2012 से लेकर मई 2012 के बीच इन टाईगरों का शिकार किया और खाल सहित शरीर के बाकी अवयव सरजू बागड़ी को बेच डाले गए जो हरियाणा और दिल्ली में टाईगर के अंगों की तरकरी कर रहा था। छह खालों का पहला सौदा अप्रैल माह में रामटेक के निकट भंडारबोदी में किया गया और पांच खालों का  दूसरा सौदा जून में माह में आमडी के नजदीक किया गया। इन टाईगरों का शिकार मध्यप्रदेश और विदर्भ में कथित रूप से किया गया। गिरोह तक पहुंचने में चीका नामक अवैध शिकारी के मोबाइल की महत्वपूर्ण भूमिका रही जिसको लगातार टे्रस किया जा रहा था। मामरू नाम का एक अन्य व्यक्ति भी इन्ही से मिला हुआ था। इनमें से एक व्यक्ति सिवनी का रहने वाला है। सिवनी के निकट ही पेंच अभ्यारण्य है इस अभ्यारण्य में शिकार करना लगभग असम्भव है क्योंकि यहां बेहद चौकसी है लेकिन यदि कोई टाइगर अभ्यारण्य से भटक गया तो उसका शिकार सम्भव है। इस प्रकरण में जो महत्वपूर्ण प्रश्र है वह यह है कि यदि पांच टाईगरों का शिकार महाराष्ट्र में हुआ तो बाकि छह टाइगर कहा और किन हालातों में मारे गए। क्या इन टाईगर्स का शिकार मध्यप्रदेश में किया गया। अगर सीबीआई जांच हुई तो मामला मध्यप्रदेश तक भी पहुुंचेगा।

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