16-Sep-2013 07:11 AM
1234844
कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के प्रमुख बनने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी महाराजा की छवि से बाहर निकलने के लिए छटपटा रहे हैं। लेकिन महाराजा का विशेषण उनका पीछा नहीं छोड़ता।

पार्टी और पार्टी के बाहर हर कोई उनके राजसी बैकग्राउंड की चर्चा करता है और यही उनका सबसे बड़ा अवरोध बना हुआ है। अपनी सामंतवादी छवि को सिंधिया ने भरसक तोडऩे की कोशिश की, लेकिन अभी तक तोड़ नहीं पाए हैं। पक्ष-विपक्ष में उन्हें उसी रूप में देखा जा रहा है क्योंकि हाल तक जिस तरह की कार्यशैली से वे काम करते रहे हैं उससे कहीं न कहीं उनके व्यवहार में सामंतवाद की झलक तो दिखाई देती है। यही कारण है कि उनके विरोधी चाहे वे संगठन में हों या बाहर इसी आधार पर सिंधिया की मुखालफत करते नजर आते हंै, लेकिन इन कमजोरियों के बावजूद सिंधिया के आने से युवा कांग्रेस में उत्साह देखा जा रहा है। पिछले दिनों भोपाल में उनके स्वागत के समय जिस तरह जनसैलाब उमड़ा उससे भी यही संकेत मिला कि कम से कम सिंधिया मध्यप्रदेश में लगभग वेंटिलेटर पर चली गई कांग्रेस में जान फूंकने के काबिल तो हैं ही। खास बात यह है कि कांग्रेस जिस गुटबाजी के लिए बदनाम है उस गुटबाजी को सिंधिया ने बखूबी साधा हुआ है। गुटबाजी में उनका कोई मुकाबला नहीं है और अपने गुट के लोगों का फेवर करने के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। इसी कारण यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने से मध्यप्रदेश में कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ेगी। इसके संकेत अभी से दिखाई देने लगे हैं। खासकर टिकिट को लेकर जिस तरह की दावेदारी की जा रही है उससे लगता है कि गुटबाजी कांग्रेस का स्थायी दुर्गण हो चुकी है। वर्ष 2003 में भी कुछ इस तरह का ही नजारा देखने को मिला था। बहरहाल इतना तो तय है कि सिंधिया के आने से राज्य में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी में बेचैनी बढ़ गई है और चुनाव थोड़े कठिन हो गए हैं।
राहुल का फार्मूला काम करेगा: कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने टिकिट वितरण को लेकर एक गाइड लाइन तैयार की है। उस गाइड लाइन में कुछ खास बातें भी हैं, जिनमें से यह प्रमुख है कि 64 विधायकों में से 18 के टिकिट काटे जा सकते हैं। 4-5 सांसद चुनाव लड़ सकते हैं जिनमें सज्जन सिंह वर्मा, विजयलक्ष्मी साधौ, अरुण यादव और कालू खेड़ी का नाम प्रमुख है। इस फार्मूले के तहत उस व्यक्ति को टिकिट नहीं दिया जाएगा जो पहले कभी पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। एक हजार से कम वोट से हारने वालों को टिकिट दिया जा सकता है, लेकिन 10 से 15 हजार वोट से पराजित होने वाले टिकिट के बारे में सोचे भी नहीं ऐसा राहुल गांधी ने संदेश पहुंचाया है। यह भी कहा गया है कि पार्टी डॉक्टर, इंजीनियर जैसे बुद्धिजीवियों को जो लोकप्रिय हैं तलाशकर टिकिट दे। जो पंचायत पदाधिकारी लगातार सक्रियता से काम कर रहे हैं उन्हें भी टिकिट दिया जा सकता है। इसके लिए एक प्रोफार्मा तैयार किया गया है जो 6-7 पेज का है। प्रोफार्मा में पूरा राजनीतिक बैकग्राउंड और पिछले किए गए कार्यों के विषय में जानकारी शामिल रहेगी। बाद में यह प्रोफार्मा स्कैनिंग कमेटी के मधुसूदन मिस्त्री और जनार्दन पुजारी की नजरों से गुजरेगा। राजेश्वर राव की भी इसमें भूमिका रहेगी। उसके बाद भी कुछ तय नहीं कहा जा सकता। दरअसल पिछले चुनाव के समय कुछ क्षत्रपों ने अपने-अपने पसंद के लोगों को टिकिट दिलवाए थे मगर वे उन्हें जिता नहीं पाए। सिंधिया ने 35 प्रत्याशियों को टिकिट दिलवाए वे 5 भी नहीं जिता पाए। इसी तरह कमलनाथ, भूरिया, दिग्विजय जैसे नेता भी अपने-अपने समर्थकों को टिकिट दिलवाने के बावजूद जिता नहीं पाए हैं। कांग्रेस ने इसीलिए अपने मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी की घोषणा नहीं की। उसे 115 से 116 सीटें मिलने की उम्मीद है। लेकिन मुख्यमंत्री को लेकर कश्मकश जारी है। दिग्विजय सिंह पर कुशासन का दाग लगा है तो सिंधिया सामंतवाद की छवि के नीचे दबे हैं। कमलनाथ को मूलत: कोलकाता का माना जाता है जिन्होंने छिंदवाड़ा में आकर अपनी राजनीति जमाई इसलिए वे बाहरी कहे जा रहे हैं। कांतिलाल भूरिया सस्ती राजनीति करते हैं। इसी कारण पब्लिक में भी असमंजस है।
हवा में रहेंगे सिंधिया
सिंधिया ने मध्यप्रदेश का धुआंधार दौरा तैयार किया है। वे पूरे प्रदेश में लगातार घूमते रहेंगे, लेकिन इस घुमक्कड़ी में वे आम आदमी और कार्यकर्ता से कितना मिल पाएंगे और इन्हें कितना वक्त देंगे यह समझ से परे है। उनके दो-दो घंटे के कार्यक्रम तय किए गए हैं। इस दौरान सब-कुछ होगा मिलना-जुलना और आमसभा भी। यह समझ से परे है कि सिंधिया इतने सीमित समय में अपना काम कैसे कर पाएंगे। बहरहाल सिंधिया मैदानेजंग में पूरी तैयारी के साथ आ चुके हैं। अब केवल यह देखना है कि मध्यप्रदेश में मौजूदा ताकतवर भाजपा शासन को वे किस तरह उखड़ फेंकते हैं।