02-Jan-2020 08:35 AM
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सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मध्यान्ह भोजन योजना सहित भारत की पांच सरकारी योजनाओं के तहत, गरीबों को दिए जाने वाले चावल को सूक्ष्म पोषक तत्वों (माइक्रो न्यूट्रिएंट्स) से भरपूर बनाया जाएगा। केंद्र सरकार ने 15 राज्यों में इस योजना की शुरुआत कर दी है। योजना के मुताबिक, चावल में विटामिन बी 12, आयरन और फोलिक एसिड जैसे पोषक तत्व शामिल किए जाएंगे, जो कुपोषण से लडऩे में मदद करते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्व शरीर के विकास के लिए आवश्यक एंजाइम और हार्मोन उत्पादन करने में शरीर को सक्षम बनाते हैं।
सरकार का मानना है कि ये सूक्ष्म पोषक तत्व एक ऐसे राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जहां राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के 38 फीसदी बच्चे अविकसित (नाटे कद के) हैं और 36 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं। इस खरीफ सीजन से 15 जिलों में, चावल में सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाने (राइस फोर्टिफिकेशन) का काम पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया जाएगा। इस घोषणा ने एक बहस को जन्म दिया है कि क्या फोर्टिफिकेशन से कुपोषण से निपटने में मदद मिलती है और वास्तव में इस निर्णय से किसे फायदा होगा।
खाद्य पदार्थ में अलग से सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाना एक लाभकारी व्यवसाय है और अगर इसे सरकारी समर्थन मिल जाए तो फिर ये करोड़ों रुपए के बाजार में तब्दील हो जाता है। विश्व स्तर पर, सिर्फ पांच बहुराष्ट्रीय कंपनियां- जर्मनी की बीएएसएफ (बेडन एनीलाइन एंड सोडा फैक्टरी), स्विट्जरलैंड की लोन्जा, फ्रांस की एडिस्सेओ और नीदरलैंड्स की रॉयल डीएसएम एंड एडीएम ही माइक्रोन्यूट्रिएंट्स बनाती हैं और सभी भारतीय कंपनियां इन्हीं से खरीदकर भारत में इसे बेचती हैं। दिल्ली स्थित कृषि व्यवसाय और व्यापार विश्लेषक विजय सरदाना कहते हैं, ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां उत्पादक संघ (कार्टेल) के माध्यम से विश्व बाजार पर शासन करती हैं।
चावल पांचवा खाद्य पदार्थ है, जिसके फोर्टिफिकेशन की बात सरकार ने की है। इससे पहले नमक, खाद्य तेल, दूध और गेहूं का फोर्टिफिकेशन होता रहा है। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा दिए गए 2018-19 की मांग और खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के आकड़ों के अनुसार चावल, गेहूं और दूध के फोर्टिफिकेशन का कुल वार्षिक बाजार 3,000 करोड़ रुपए से अधिक का है। अकेले फोर्टिफाइड चावल 1,700 करोड़ रुपए का बाजार बनाएगा, क्योंकि इसे बनाने की प्रक्रिया अन्य खाद्य पदार्थों की तुलना में महंगी है। 1980 के बाद, पहली बार जब सरकार ने नमक में आयोडीन मिलाना अनिवार्य बनाया, तब से खाद्य पदार्थों के फोर्टिफिकेशन पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित हुआ।
गेहूं के फोर्टिफिकेशन के फैसले की घोषणा पिछले साल की गई थी और इसे भारत के प्रमुख पोषण अभियान के तहत 12 राज्यों में लागू किया जा रहा है। इसका मकसद बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण में सुधार लाना है। 2018 में, एफएसएसएआई ने देशभर में खाद्य तेल का फोर्टिफिकेशन भी अनिवार्य कर दिया था। 2017 में दूध का फोर्टिफिकेशन शुरू किया गया था। इसके तहत, भारतीय राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) ने कंपनियों को दूध में विटामिन डी मिलाने को कहा। एनडीडीबी के अनुमान के मुताबिक, 20 राज्यों के 25 दुग्ध संघों ने प्रतिदिन विटामिन डी मिला 55 लाख लीटर दूध की आपूर्ति की है। आश्चर्यजनक रूप से, गुजरात की डेयरी सहकारी संस्था अमूल ने फोर्टिफिकेशन से मना कर दिया। अमूल के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी कहते हैं, हम विटामिन की कमी को दूर करने के लिए प्राकृतिक फोर्टिफिकेशन के पक्ष में हैं। मौजूदा फोर्टिफिकेशन सिंथेटिक या कृत्रिम तरीके पर आधारित है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होगा।
चावल का फोर्टिफिकेशन एक महंगी प्रक्रिया
चावल के फोर्टिफिकेशन की तैयारी टूटे हुए चावल को इकट्ठा करने से शुरू होती है, जिसका कोई बाजार मूल्य नहीं होता है। इसका उपयोग चावल का आटा बनाने के लिए किया जाता है, जिसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों का पूर्व मिश्रण मिलाया जाता है। इस मिश्रण से बने आटे को एक मशीन से गुजारा जाता है (जिसकी लागत लगभग 2 लाख रुपए होती है)। यह मशीन आटे को चावल की आकार के दाने में काटता है। फिर इन दानों को चावल के साथ मिलाया जाता है। फोर्टिफाइंग गेहूं के आटे को मिलाने के लिए भी एक ब्लेंडर की आवश्यकता होती है, जिसकी लागत लगभग 1.5 लाख रुपए है। फोर्टिफाइड चावल और गेहूं के पोषण को बरकरार रखने के लिए विशेष पैकेजिंग की आवश्यकता होती है। फोर्टिफाइंग दूध, तेल या नमक बनाना आसान होता है, क्योंकि इसमें सिर्फ खाद्य पदार्थ में प्री-मिक्स (सूक्ष्म पोषक तत्व) को मिलाने की जरूरत भर होती है।
- ऋतेन्द्र माथुर