02-Jan-2020 08:34 AM
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नियामक आयोग के समक्ष वित्तीय वर्ष 2014-15, 2015-16, 2016-17 और वर्ष 2017-18 में करीब 25000 करोड़ के घाटे को लेकर यह ट्रू-अप याचिकाएं दायर की गईं। ये याचिकाएं उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर नहीं बल्कि अब जाकर साल 2019 में दायर की गई हैं, जबकि एपलेट ट्रिब्यूनल ऑफ इलेक्ट्रिसिटी नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2011 में दिए गए न्याय दृष्टांत में स्पष्ट है कि प्रत्येक बिजली कंपनी को ट्रू-अप याचिकाएं उसी वित्तीय वर्ष की समाप्ति के अंतराल के दौरान ही दायर करनी होंगी, लेकिन मध्य प्रदेश में इस आदेश का पालन नहीं किया गया। जैसे ही बिजली कंपनियों ने ट्रू-अप याचिकाओं को नियामक आयोग के समक्ष दायर किया तो उन्हें डिले कॉन्डोलेंस यानी माफी के साथ आयोग ने स्वीकार कर लिया। प्रदेश की बिजली कंपनियों के रवैये पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल इसलिए भी क्योंकि जिस भाजपा सरकार में बिजली कंपनियों को इतना बड़ा घाटा हुआ, आखिर उसकी भरपाई के लिए कमलनाथ सरकार में यह बिजली कंपनियां क्यों जाग उठी।
पहले ही कर्ज का अंबार और वित्तीय संसाधनों की कमी से जूझ रही कमलनाथ सरकार आखिर इतना बड़ा घाटा कहां से भर पाएगी। हाल फिलहाल ट्रू अप याचिकाएं नियामक आयोग ने स्वीकार कर ली है और दावे आपत्तियां भी बीते 11 दिसंबर तक प्राप्त की गई हैं, ऐसे में ट्रू अप याचिकाओं पर अब नियामक आयोग फैसला लेने वाला है। लाजमी हैं नियामक आयोग इन याचिकाओं पर बिजली कंपनियों को हुए घाटे की भरपाई के लिए कोई ना कोई फैसला जरूर लेगा और अगर घाटे की भरपाई का सवाल उठा तो सरकार आखिर किस तरीके से इससे निपटेगी यह बड़ा सवाल है।
मध्य प्रदेश में बिजली सियासी मुद्दा बना हुआ है। सत्ता बदलाव के बाद से बिजली व्यवस्था में गड़बड़ी के आरोप लगते रहे हैं, कई बार बिजली दरों में बढ़ोतरी की भी चर्चा हुई, मगर राज्य के ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह ने साफ कर दिया है कि राज्य सरकार के पास बिजली दरों में बढ़ोतरी का कोई प्रस्ताव नहीं है। कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद बिजली व्यवस्था में सुधार के दावे किए, वहीं भाजपा ने किसानों को जरूरत के मुताबिक बिजली न मिलने के आरोप लगाए, साथ ही उपभोक्ताओं को हजारों रुपए के मनमाने बिल जारी किए जाने के भी आरोप लगे। सरकार की ओर से किसानों को 10 घंटे बिजली आपूर्ति किए जाने के दावे किए गए, मगर भाजपा इन आरोपों को नकारती रही। बिजली राज्य में बड़ा सियासी मुद्दा बना हुआ है।
राज्य सरकार घरेलू उपभोक्ताओं के लिए लागू की गई इंदिरा गृह ज्योति योजना को राहत देने वाली योजना बता रही है, साथ ही दावा किया जा रहा है कि जिन उपभोक्ताओं की 30 दिन की मासिक बिजली खपत 150 यूनिट से कम है, उसे 100 यूनिट की खपत का 100 रुपए बिल दिया जा रहा है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के घरेलू उपभोक्ताओं को 30 यूनिट तक की मासिक खपत के लिए मात्र 25 रुपए की राशि देय होगी। सूत्रों का कहना है कि इंदिरा गृह ज्योति योजना से अभी तक एक करोड़ 86 हजार (92 प्रतिशत) से अधिक उपभोक्ताओं को लाभ मिला है। योजना में प्रतिवर्ष लगभग 3400 करोड़ रुपए की सब्सिडी शासन द्वारा दी जाएगी।
राज्य सरकार की इंदिरा गृह ज्योति योजना पर भाजपा लगातार सवाल उठाती रही है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में पिछले दिनों सागर में प्रदर्शन कर बढ़े हुए बिजली बिलों की होली जलाई गई गई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने किसानों का बिजली बिल हाफ करने की बात कही थी, मगर किसानों को हजारों रुपए के बिल आ रहे हैं। ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह ने कहा है कि किसानों को खेती के लिए लगातार 12 घंटे बिजली देने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। वहीं प्रदेश में विरासत में मिली खस्ताहाल विद्युत कंपनियों की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास जारी हैं।
बिजली उपभोक्ताओं के गड़बड़ बिजली बिल आने की शिकायतों पर मंत्री ने कहा, विद्युत उपभोक्ताओं के गलत देयकों से संबंधित शिकायतों के निराकरण के लिए हर जिले में विद्युत वितरण केंद्रवार समिति का गठन किया गया है। प्रदेश में कुल 1210 समितियां गठित की गई हैं। वहीं विद्युत प्रदाय की शिकायतों के निराकरण के लिए डायल 100 सेवा की तर्ज पर जबलपुर, भोपाल और इंदौर में स्थापित केन्द्रीकृत कॉल सेंटर सेवा में कार्यरत डेस्क की संख्या बढ़ाकर सेवा को सुदृढ़ बनाया गया है।
एपलेट ट्रिब्यूनल के आदेश का नहीं हुआ पालन
आम अवधारणा में यह बात खुलकर सामने आ रही है कि इसकी वसूली भी आम जनता से ही की जाएगी और प्रदेश में बिजली महंगी होगी। पूरे मामले को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा चुका नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच इस मामले को अब दिल्ली तक ले जाने वाला है, क्योंकि नियामक आयोग ने एपलेट ट्रिब्यूनल फॉर इलेक्ट्रिसिटी के आदेश की अवहेलना की है। मंच के सदस्यों का सवाल है कि आखिर सरकार इस भारी-भरकम घाटे की भरपाई कैसे करेगी। मंच ने बिजली कंपनियों के रवैये पर बड़ा सवाल खड़ा किया है और एक साथ ट्रू अप याचिकाएं दायर करने के कदम को साजिश बताया है। गौरतलब है कि मामले मे पूर्व में ही ऊर्जा मंत्री प्रियवत सिंह ने बयान देकर स्पष्ट किया था कि अगर बिजली महंगी होगी तो सरकार इसमे हस्तक्षेप करेगी, लेकिन यहां तो घाटा दर्शाने वाली ट्रू अप याचिकाओं पर सुनवाई लगभग आखिरी दौर में है, ऐसे में सरकार 25 हजार करोड़ की भरपाई के लिए क्या फॉर्मूला अपनाती है, ये देखना होगा।
- विकास दुबे