ताकि बेहतर हो रैंकिंग
02-Jan-2020 08:34 AM 1235316
स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 के मद्देनजर तीन चरणों में होने वाले सर्वे में भोपाल दूसरी तिमाही की परीक्षा में पिछड़ गया है। देश में एक बार फिर इंदौर पहले नंबर पर है। भोपाल दूसरे नंबर से खिसककर पांच पर आ गया है। इसके साथ ही भोपाल नगर निगम के सामने चुनौती खड़ी हो गई है कि वह अपनी स्थिति मजबूत करे। इसके लिए निगम को कुछ स्तर पर सुधार की जरूरत है। यदि डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन, गीला-सूखा कचरा को अलग-अलग करना, लोगों में सफाई को लेकर जागरूकता, बाजारों की सफाई व्यवस्था में कसावट की गई तो शहर फिर देश के दूसरे स्थान पर होगा। हालांकि अब स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 के लिए शहर की सड़कों, गलियों से गुजरते हुए ये तैयारियां नजर भी आ रही है। शहर की दीवारों पर हो रहे रंगरोगन-पेंटिंग के साथ ही सड़क किनारे स्थापित किए जा रहे शौचालय बता रहे हैं कि शहर गंदगी और कचरे से निपटने का काम कर रहा है। देश की सबसे साफ राजधानी भोपाल में हर सुबह 7 बजे से ही गंदगी के खिलाफ जंग शुरू हो जाती है। लगभग 6100 सफाईकर्मी दोपहर 2 बजे तक 505 छोटी गाडिय़ां और 940 साइकल रिक्शा की मदद से तकरीबन 800 टन कचरा जमा कर लेते हैं। सुबह से शाम तक कई कोशिशों के बाद शहर न सिर्फ साफ सुथरा दिखता है बल्कि कचरे को दोबारा उपयोग लाने लायक भी बनाया जाता है। रैंकिंग सुधारने के लिए नगर निगम हर घर से कचरा कलेक्शन, शहर में सौंदर्यीकरण सहित कई क्षेत्रों में फोकस किया है। 543 मैजिक वाहनों के साथ डेढ़ सौ रिक्शा हर घर से कचरा कलेक्शन करने के लिए लगाए गए हैं। इनकी मॉनीटरिंग में टेक्नोलॉजी का उपयोग किया है, इससे इनके रूट लेाकेशन और कचरे का वजन तक रिकॉर्ड होता है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में अब भी रोजाना कचरा नहीं उठ पाने की शिकायत है। अंदरूनी गलियों, क्षेत्रों में करीब दस फीसदी कचरा अब भी समस्या बना हुआ है। वहीं नगर निगम ओडीएफ डबल प्लस और इसके बाद स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए शहर को सजाने में लगा हुआ है। शहर में करीब पौने दो लाख वर्गफीट की दीवारों के साथ शौचालयों के सौंदर्यीकरण पर दो करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च की जा रही है। इतना नहीं, अब सड़क किनारे की घास और जंगली पौधों को हटाने जेसीबी का उपयोग किया जा रहा है। शहर में छह वेस्ट ट्रांसफर सेंटर काम करना शुरू कर चुके हैं। औसतन रोजाना 600 मैट्रिक टन से अधिक कचरा यहां कंप्रेस्ड हो रहा है। कंप्रेस्ड होकर कैप्सुल से इसे आदमपुर खंती भेजा जा रहा है। हालांकि आदमपुर में वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट तो नहीं बना, लेकिन यहां कंपोस्ट यूनिट और डिस्पोजल यूनिट इसका निष्पादन कर रही है। वेस्ट सेंटर बनने का असर ये है कि आदमपुर जाने वाले वाहनों में 40 फीसदी तक की कमी आई। गंदगी फैलाने और पॉलीथिन उपयोग पर फाइन लगाया जा रहा है। नगर निगम ने मॉड्यूलर के साथ सार्वजनिक शौचालयों के उपयोग को बढ़ाने पर फोकस किया हुआ है। हाल में सभी शौचालयों की लोकेशन गूगल लोकेटर पर डाली है। इन पर सौंदर्यीकरण कार्य किए हैं ताकि लोगों को ये आकर्षित करें। यहां नियमित तौर पर पानी और सफाई की दिक्कत अब भी है। नगर निगम प्रतिदिन शत-प्रतिशत कचरा उठाने का दावा करता है, लेकिन पूरी सफाई अब भी बाकी है। दस फीसदी कचरा सड़क व गलियों में बिखरा हुआ अब भी सिरदर्द बना हुआ है। शहर में निगम ने डस्टबिन की सुविधा पहले ही खत्म कर दी है। अब कर्मचारी सफाई कर सीधे कचरा वाहनों में डंप करते हैं। अंडरग्राउंड डस्टबिन कई जगह से निकले हुए हैं और लोग खुले में कचरा फेंकते हैं। सीवेज बड़ी समस्या बनी हुई है। रोजाना सीवेज चैंंबर से निकलने की 150 से अधिक शिकायतें आती हैं। गीले-सूखे कचरे को घर से सेग्रिकेशन 100 फीसदी का दावा किया जा रहा है, हालांकि 40 से अधिक क्षेत्रों में अब भी दिक्कत है। अवधपुरी, साकेत नगर, हबीबंगज अंडरब्रिज के पास, जंबूरी मैदान, आनंद नगर, भानपुर जैसे क्षेत्रों में खाली पड़े प्लॉट्स व मैदानों में कचरा अब भी खुले में फेंकने की शिकायतें हैं। अब देखना यह है कि नगर निगम तमाम चुनौतियों से निपटते हुए शहर को किस काबिल बनाता है। जनता भी जागे तो स्वच्छता में पहली रैंकिंग पर आए शहर स्वच्छता सर्वेक्षण का पांचवा साल है, लेकिन अब भी शहरवासी पूरी तरह से इस अभियान से नहीं जुड़ पाए। यही वजह है कि शहर में 40 से अधिक क्षेत्रों की गलियों के साथ 25 हजार से अधिक खाली प्लॉट्स में गंदगी की स्थिति है। पूर्व सिटी प्लानर दिनेश शर्मा का कहना है कि लोगों को सफाई के प्रति खुद सजग और जागरूक रहने की जरूरत है। वे घर पर दो डस्टबिन रखें। गीला और सूखा कचरा अलग-अलग करके रखें। कचरा गाड़ी वाले को ये अलग-अलग ही दें ताकि कचरे का सेग्रिकेशन घर पर ही हो जाए। इसके अलावा यदि बल्क में कचरा निकले तो भी इसे खुले में फेंकने की बजाय निगम के माध्यम से ही डंपिंग साइट पर भिजवाएं। शहर में करीब साढ़े तीन सौ स्लम एरिया हैं और यहां सबसे अधिक दिक्कत है। बाजारों में दुकानदारों को भी जागरूक होने की जरूरत है। अब भी 20 से 30 फीसदी दुकानदारों के पास सही डस्टबिन नहीं हैं और वे कचरा यहां-वहां फेंकते हैं। दुकानों पर से सामान लेने के बाद उसके रैपर को सड़क पर फेंकने की आदत भी बरकरार है। - श्याम सिंह सिकरवार
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