भरेगा खजाना
02-Jan-2020 08:34 AM 1234912
आर्थिक तंगी से जूझ रही प्रदेश की कमलनाथ सरकार के लिए बकस्वाहा की बंदर हीरा खदान और नई रेत नीति बड़ी फायदेमंद साबित हुई है। इन दोनों से होने वाली आमदनी सरकार का खजाना भरेगी। सरकार ने बकस्वाहा के बंदर हीरा खदान का आशय पत्र जारी करते हुए इस खदान को 50 साल के लिए बिरला ग्रुप हवाले कर दिया। इस ग्रुप ने खदान के आधार मूल्य की प्रीमियम राशि कुछ दिन पहले ही सरकारी खजाने में जमा कर दी थी। खनिज मंत्री प्रदीप जायसवाल ने मेसर्स ऐस्सल माईनिंग एंड इंडस्ट्रीस लिमिटेड (आदित्य बिरला ग्रुप) मुंबई के प्रबंध संचालक तुहीन कुमार मुखर्जी एवं अशोक कुमार बल को छतरपुर जिले के बंदर हीरा खदान का आशय पत्र दिया। इसके साथ ही उन्होंने कंपनी से उम्मीद जताई कि वे वन एवं पर्यावरण सहित अन्य अनुमतियों और माइनिंग प्लान तैयार करने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू करेंगे, जिससे तय समय पर हीरे का उत्खनन शुरू हो सके। उन्होंने कंपनी प्रबंध संचालक को विश्वास दिलाया कि उन्हें सरकार की तरफ से पूरा सहयोग मिलेगा। इस अवसर पर प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई, सचिव नरेन्द्र सिंह परमार, और संचालक विनीत आस्टीन मौजूद थे। स्मरण रहे कि बंदर डायमंड ब्लॉक की अधिकतम बोली बिरला ग्रुप द्वारा 30.05 प्रतिशत लगाई गई थी, जो उच्चतम रही। इस नीलामी प्रक्रिया में देश की बड़ी कंपनियों में शुमार अडानी ग्रुप 30 प्रतिशत अधिकतम बोली लगाकर दूसरे स्थान पर रही। इस डायमंड ब्लॉक में 34.20 मिलियन कैरेट हीरा भंडार होने की संभावना है जिसका अनुमानित मूल्य 55 हजार करोड़ रुपए आंका गया है। राज्य शासन को इस हीरा खदान से लीज अवधि में लगभग 16 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त प्रीमियम के रूप में प्राप्त होंगे। इसके अतिरिक्त 6000 करोड़ रुपए रॉयलटी के रूप में खनिज मद में प्राप्त होंगे। इस खदान की लीज की अवधि 50 वर्ष होगी। सरकार अब बकस्वाहा खदान के दूसरे हिस्से में हीरा भंडार की खोज की जाएगी। यह काम भारत सरकार के उपक्रम नेशनल मिनिरल्स डेवलपमेंट कारपोरेशन (एनएमडीसी) को देने की तैयारी की जा रही है। इसके अगले चरण में सरकार दो हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर हीरे की मात्रा तलाशने की तैयारी करेगी, यह काम चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा। छतरपुर से पन्ना जिले तक की पूरी पट्टी पर हीरा होने की संभावना है। हालांकि ज्यादातर हीरे की खदानें वन क्षेत्र में हैं, इसके चलते सरकार को हीरे की खोज और उत्खनन में देरी लग रही है। छतरपुर बकस्वाहा हीरा खदान में कुल 954 हेक्टेयर हिस्से में हीरा है। पूरे क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय कंपनी रियोटेंटो ने हीरा उत्खनन के लिए आवेदन किया था। लेकिन पर्यावरण की अनुमति नहीं मिलने के चलते कंपनी इस प्रोजेक्ट को सरेंडर कर दिया था। अब सरकार 954 हेक्टेयर में से इसके 364 हेक्टेयर का बिड़ला को दे दिया है, दूसरे हिस्से में हीरे की खोज कराई जाएगी। हालांकि पूरे क्षेत्र में हीरा भंडार होने की रिपोर्ट रियोटिंटो ने सरकार को दी थी, लेकिन अब सरकार 590 हेक्टेयर में नए सिरे से हीरे की खोज कराएगी। बताया जाता है कि 364 हेक्टेयर में लगभग 3.50 करोड़ कैरेट के हीरे के भण्डार होना बताया जा रहा है। रेत खदानों के लिए बुलाई गई ऑनलाइन निविदाओं के जरिए मध्य प्रदेश सरकार को 1234 करोड़ रुपए से अधिक की आमदनी होगी। रेत के टेंडर से अप्रत्याशित राजस्व की प्राप्ति तय है, वहीं सभी संभागों में से सर्वाधिक ग्वालियर संभाग में आरक्षित मूल्य से 500 प्रतिशत से ज्यादा राजस्व मिलने की संभावना है। सरकार की मंशा बांधों से प्राप्त होने वाली रेत की ज्यादा बिक्री से है। दावा यह है कि हर साल बांध ड्रेजिंग के समय प्राप्त रेत को बेचने की मंजूरी जल्द दी जा सकती है। हालांकि अभी तक इसका नोटिफिकेशन जारी नहीं हो सका है। बांधों से रेत का उत्पादन शुरू होने के बाद बाजार में रेत की उपलब्धता बढ़ेगी। हालांकि यह काम जलसंसाधन विभाग के अधीन होगा, इसलिए खनिज विभाग द्वारा जारी रेत नीति में इसका कोई जिक्र नहीं है। दावा है कि प्रतिस्पर्धा से कीमतें कम होंगी। एक साल में पांच गुना राजस्व बढ़ाया खनिज साधन मंत्री प्रदीप जायसवाल ने बताया कि सरकार ने मात्र एक साल के भीतर पिछली सरकार की तुलना में पांच गुना राजस्व बढ़ाया है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में रेत से प्राप्त होने वाले वाला राजस्व मात्र 240 करोड़ रुपए था। मंत्री ने बताया कि सरकार ने रेत की उपलब्धता के आधार पर 43 जिलों के समूह बनाए थे और ऑनलाइन पोर्टल के जरिए निविदाएं आमंत्रित की थीं, जिसमें 243 निविदाएं प्राप्त हुई थीं। फिलहाल 36 जिलों से प्रदेश सरकार को 1234 करोड़ रुपए की आमदनी होनी है। उन्होंने कहा कि इसका ऑफसेट प्राइस 448 करोड़ रखा गया था। ऑफसेट प्राइस से भी तीन गुना अधिक राजस्व सरकार को प्राप्त होने वाला है। पांच गुना राजस्व बढ़ाने का मध्य प्रदेश ने नया कीर्तिमान पहली बार बनाया, जो अपने आप में रिकॉर्ड है। - राजेश बोरकर
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