02-Jan-2020 08:34 AM
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देश के तमाम बड़े विश्वविद्यालय युद्ध के मैदान में तब्दील हो गए हैं। भले ही इनमें सबसे बड़ा नाम जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) का है। लेकिन भोपाल का माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भी कम नहीं है। यह विश्वविद्यालय तो अपने विवादों और भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात था ही अब जातिवाद के कारण अखाड़ा बन गया है। विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसर्स दिलीप मंडल और मुकेश कुमार पर जातिवाद को भड़काने का आरोप लगा है। दोनों अनुबंध प्राध्यापकों पर ऐसे आरोप लगाकर छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। हालांकि धरना-प्रदर्शन और 23 छात्रों के निष्कासन और बहाली के बाद मामला शांत है, लेकिन आग अभी भी सुलग रही है।
पत्रकारिता विश्वविद्यालय बीते कुछ वर्षों से सियासी अखाड़ा रहा है। इस पर एक खास विचारधारा को पोषित करने के आरोप लगते रहे हैं। राज्य में सत्ता बदलने के बाद विश्वविद्यालय की तमाम व्यवस्थाओं में सुधार और बदलाव लाने की कोशिशें शुरू की गईं, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तमाम संस्थाओं में सुधार लाने का वादा और दावा करते हुए कहा कि हमने हर संस्थान और विभाग की जिम्मेदारी योग्य लोगों को सौंपी है। एक तरफ जहां संस्थानों में सुधार लाने की बात कही जा रही है, वहीं दूसरी ओर एमसीयू के दो अनुबंधक प्राध्यापक दिलीप मंडल और मुकेश कुमार विवाद का कारण बन रहे हैं। दिलीप मंडल पर आरोप है कि वे अपने ट्विटर हैंडल से जातिवाद को भड़काने की कोशिश करते हैं और जाति विशेष पर टिप्पणी करते हैं। वहीं मुकेश कुमार पर भी जातिवाद का सहारा लेने का आरोप है जिसके बाद इन दोनों प्राध्यापकों के खिलाफ छात्र आंदोलनरत हुए थे।
छात्रों ने विश्वविद्यालय के भीतर पिछले दिनों प्रदर्शन और हंगामा किया। छात्रों को खदेडऩे के लिए पुलिस बुलाई गई और इनके खिलाफ थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई है। छात्रों के समर्थन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और करणी सेना के कार्यकर्ता भी आए, वहीं विश्वविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि पुरानी विचारधारा से जुड़े कुछ लोग बेवजह हंगामा और आंदोलन करा रहे हैं। विश्वविद्यालय की एक साल की गतिविधियों पर नजर दौड़ाई जाए, तो यहां गांधी के दर्शन को स्थापित करने की कोशिश हुई है। उच्च दर्जे के सेमीनार आयोजित किए गए और छात्रों को पत्रकारिता जगत में आ रहे बदलाव से रू-ब-रू कराने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए गए, लेकिन इसी दौरान दो अनुबंधक प्राध्यापकों पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगा और विवाद बढ़ गया। वहीं इस मामले को लेकर पत्रकारिता से जुड़े लोगों का कहना है कि विश्वविद्यालय में अपनी गरिमा के अनुरूप कई वर्ष बाद पठन-पाठन का कार्य शुरू हो पाया है। छात्रों में पत्रकार और पत्रकारिता की समझ विकसित करने के लिए नवाचारों का सहारा लिया जा रहा है, उन्हें नई तकनीकों से अवगत कराया जा रहा है। इसी बीच दो प्रोफेसरों की कार्यशैली ने विश्वविद्यालय को राजनीति का अखाड़ा बना दिया है।
भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय पर लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव में होने के आरोप लगते रहे हैं। 1990 में स्थापित इस विश्वविद्यालय के बारे में कहा जाता रहा है कि भाजपा की शिवराज सिंह चौहान की सरकार के तहत विश्वविद्यालय का भगवाकरण’ किया गया। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्कासन की कार्रवाई का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय द्वारा छात्रों पर कार्रवाई निंदनीय और दमनकारी है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की पढ़ाई करने वाले इन बच्चों पर की गई कार्रवाई तानाशाही पूर्ण है। क्या कमलनाथ सरकार के एक साल का यही तोहफा है? विश्वविद्यालय प्रशासन तत्काल इन बच्चों का निष्कासन समाप्त करें।’ वहीं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इस कार्रवाई का विरोध करते हुए कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्रों का निष्कासन और उन पर हुई एफआईआर बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। बच्चों का निष्कासन तुरंत रद्द कर उन पर लादे गए झूठे मुकदमे वापस किए जाएं और उनकी जायज बातों को सुना जाए। मैं बच्चों के साथ हूं और हम उनके साथ उनकी लड़ाई लड़ेंगे।’
कुठियाला का कार्यकाल सबसे विवादास्पद
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति रहे प्रो. बीके कुठियाला पर अपने कार्यकाल के दौरान मनमर्जी से बड़ी संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति करने और आर्थिक अनियमितताओं के आरोप हैं। गत दिनों इस मामले की जांच कर रही एजेंसी ईओडब्ल्यू के समक्ष कुठियाला को पेश होना था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। ईओडब्ल्यू ने कुठियाला को नोटिस जारी कर बयान दर्ज कराने के लिए 8 जून को तलब किया था, लेकिन कुठियाला ने 15 दिन का समय मांगा, जिसे डीजी के एन तिवारी ने खारिज कर दिया था। प्रो. कुठियाला 11 जून को पेश होने के लिए राजी हुए थे, लेकिन फिर भी वे पेशी के दिन नदारद रहे। आपको बता दें कि भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय, देश में पत्रकारिता के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है। देशभर के छात्र यहां पत्रकारिता की पढ़ाई करने आते हैं। प्रो. बीके कुठियाला के कार्यकाल के दौरान यहां कई शैक्षणिक पदों पर मनमर्जी से अयोग्य लोगों की नियुक्ति का मामला सामने आया। कई बड़े पदों पर सिफारिश के माध्यम से लोगों की भर्ती कर दी गई। इस दौरान संस्थान में कई वित्तीय अनियमितताऐं भी सामने आई जिसकी जांच जारी है। इस मामले की जांच कर रही ईओडब्ल्यू ने इस मामले में 20 लोगों पर एफआईआर दर्ज की है।
- बृजेश साहू