02-Jan-2020 07:55 AM
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नगरीय निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरताज बनकर उभरी है। वोटरों ने विधानसभा चुनाव की तर्ज पर कांग्रेस के पक्ष में जमकर मतदान की। प्रदेश के 151 निकायों के दो हजार 840 पार्षद पद के चुनाव में कांग्रेस ने एक हजार 283 वार्डों में जीत दर्ज की है। वहीं, भाजपा को एक हजार 131 वार्डों में जीत मिली है। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार प्रदेश में 36 पार्षद जकांछ और 364 पार्षद निर्दलीय जीतकर पहुंचे हैं। प्रदेश के 10 निगम में कांग्रेस ने बड़ी छलांग लगाई है और सात में अपना महापौर पक्का कर लिया है। राजनांदगांव, धमतरी और कोरबा में पेंच फंसा है। यहां निर्दलीय पार्षद निर्णायक भूमिका में रहेंगे। प्रदेश की सत्ता से बाहर होने के बाद हुए पहले नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा है।
नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत को पार्टी विकास की जीत मान रही है। पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम कहते हैं कि शहरी क्षेत्र में अक्सर भाजपा को बढ़त मिलती रही है, लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन रहा है। कांग्रेस ने सरकार के एक साल की उपलब्धियों और कामों की ब्रांडिंग करके चुनाव लड़ा। जनता ने जिस तरह से कांग्रेस पर भरोसा जताया है, उससे साफ है कि वह सरकार के काम से संतुष्ट है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने 17 दिसंबर को एक साल पूरा किया। सरकार ने पहले ही साल में आक्रामक पारी खेली और खूब चौके-छक्के भी लगाए। सरकार बनने के चंद घंटे के भीतर किसानों का कर्जा माफ करने और किसानों का धान 2,500 रुपए क्विंटल में खरीदने का ऐलान किया गया और उस पर अमल भी हुआ। सरकार ने सभी को 35 किलो चावल देने का वादा पूरा किया और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तवज्जो दी। पहली बार मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल की राजनैतिक अहमियत में भी इजाफा हुआ। वे राज्य की राजनीति से उभरकर राष्ट्रीय परिदृश्य में आ गए। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव और अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारक के तौर पर उन्हें भेजकर उनका कद बढ़ाया। प्रधानमंत्री के खिलाफ आक्रामक बयानों के चलते भी वे सुर्खियों में रहे।
कांग्रेस की राज्य की सत्ता में 15 साल बाद वापसी हुई, तो मुख्यमंत्री बघेल ने पिछली सरकार के कामकाज और फैसलों की परतें खोलने के साथ तब के ताकतवर अफसरों पर कार्रवाई कर आक्रामकता का परिचय दिया, लेकिन कोर्ट में सरकार की मजबूती नहीं दिखी। यही वजह रही कि झीरम घाटी कांड की दोबारा जांच लटक गई। नान घोटाला और डीके सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल में गड़बड़ी के जिम्मेदारों पर शिकंजा कस नहीं पाए। पिछली सरकार के कामकाज की जांच और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के परिजनों को निशाने पर लेने को भाजपा ने बदलापुर की राजनीति करार दिया।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक साल में छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को स्थापित करने के प्रयास के साथ गांधीजी और भगवान राम को उभारने के लिए भी कदम बढ़ाए। गांधीजी की 150वीं जयंती पर पदयात्रा और राम वन गमन पथ पर काम की शुरुआत इसके उदाहरण हैं। बघेल ने अन्य पिछड़े वर्ग का रिजर्वेशन 14 से बढ़ाकर 27 कर दिया और एससी वर्ग का आरक्षण भी एक फीसदी बढ़ाया। राज्य में आरक्षण 85 फीसदी को पार कर जाने से मामला कोर्ट में अटक गया, लेकिन बघेल पिछड़े वर्ग के हितैषी बनकर उभरे। बिजली बिल आधा करने का वादा भी निभाया। छत्तीसगढ़ पत्रकारों की सुरक्षा के साथ उनके हित में कई कदम उठाने वाला राज्य भी बन गया है। राज्य में सरकारी नौकरियों के द्वार खुले हैं, लेकिन वादे के मुताबिक सरकार को अभी और काम करने होंगे।
बघेल सरकार ने वादे के मुताबिक उद्योग न लगने पर किसानों की जमीन लौटाकर नई पहल की। नक्सल प्रभावित इलाकों में आदिवासियों के स्वास्थ्य बेहतर करने की रणनीति और कुपोषण के खिलाफ अभियान सरकार की नई सोच को दर्शाता है। इसके सकारात्मक नतीजे भी दिखाई पड़े हैं। लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा विधायक की हत्या को छोड़ दें तो, राज्य में एक साल के भीतर कोई बड़ा नक्सली हमला नहीं हुआ और कांग्रेस को नक्सली क्षेत्र के दो विधानसभा उपचुनाव में सफलता भी मिली। धान 2,500 रुपए क्विंटल में खरीदने से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई और राज्य में मंदी का असर दिखाई नहीं पड़ा। हालांकि समर्थन मूल्य से अधिक दाम के मुद्दे ने बघेल सरकार के चेहरे पर पसीना ला दिया है। केंद्र सरकार के अधिक मात्रा में चावल खरीदने से हाथ झटकने से मामला गड़बड़ा गया है। सरकार अपने फंड से किसानों को 2,500 रुपए देने का वादा कर रही है, पर किसान कब तक सब्र करते हैं, यह बड़ा सवाल है। चुनाव के समय किए शराबबंदी समेत और कुछ वादों पर भी अमल बाकी है। एक साल में बघेल की राजनैतिक चतुराई भी दिखाई पड़ी, लेकिन प्रशासनिक अनुभव की कमी भी दिखी। खासतौर पर जिले और शीर्ष स्तर पर कुछ अधिकारियों की पोस्टिंग से विपक्ष को उन पर हमले का मौका मिल गया।
अपने दम पर महापौर नहीं बना पाएगी भाजपा
एक भी नगर निगम में भाजपा अपने दम पर महापौर बनाने की स्थिति में नहीं है। रायपुर और बिलासपुर नगर निगम में भाजपा के बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा। यहां कांग्रेस की बहुमत नहीं होने के बाद भी भाजपा अपना महापौर सिर्फ एक पार्षद कम होने के कारण नहीं बना सकती है। राजनांदगांव में कांग्रेस को चार और भाजपा को पांच निर्दलीय के समर्थन की जरूरत है। कोरबा में कांग्रेस को दस और भाजपा को आठ पार्षद और धमतरी में कांग्रेस को दो और भाजपा को तीन पार्षद की जरूरत है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पाटन में कांग्रेस को एकतरफा जीत मिली है। नगर पंचायत में कांग्रेस को 15 में 12, भाजपा को दो और एक सीट पर निर्दलीय जीते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के गृह जिले कवर्धा में भी कांग्रेस को जीत मिली है।
- रायपुर से टीपी सिंह